2200 भारत और चीन में एंटीबायोटिक का सबसे ज्यादा उत्पादन होता है। इन्हीं दो देशों में सबसे ज्यादा असंशोधित जल मिट्टी और नदियों में बहाए जा रहे हैं, जिसमें एंटीबायोटिक कचरे बहुत ज्यादा मात्रा में होते हैं। एंटीबायोटिक कचरों के पानी में घुले होने की वजह से बैक्टीरिया की प्रतिरोधी क्षमता में लगातार इजाफा हो रहा है और इससे सुपरबग को बढ़ावा मिल रहा है।
नई दिल्ली। हाल में संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव बान की मून ने सुपरबग पर एंटीबायोटिक का असर नहीं पड़ने को लेकर चिन्ता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि सुपरबग पर एंटीबायोटिक का कोई असर नहीं पड़ रहा है और यह दुनिया के स्वास्थ्य के लिये खतरनाक है। उन्होंने यह कहा कि हम इस समस्या का मुकाबला करने में असफल रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस समस्या से पार पाना असंभव न हो, लेकिन कठिन तो है ही और यह स्थाई विकास का लक्ष्य पाने में रोड़ा साबित हो रहा है।एक करोड़ प्रभावित
माना जा रहा है कि इस तरह के प्रदूषण से 2050 तक एक करोड़ से ज्यादा लोग इससे प्रभावित होंगे और इसकी चपेट में आकर बहुत सारे लोग मारे भी जाएँगे।
सुपरबग की बढ़ी प्रतिरोधी क्षमता
भारत और चीन में एंटीबायोटिक का सबसे ज्यादा उत्पादन होता है। इन्हीं दो देशों में सबसे ज्यादा असंशोधित जल मिट्टी और नदियों में बहाए जा रहे हैं, जिसमें एंटीबायोटिक कचरे बहुत ज्यादा मात्रा में होते हैं। एंटीबायोटिक कचरों के पानी में घुले होने की वजह से बैक्टीरिया की प्रतिरोधी क्षमता में लगातार इजाफा हो रहा है और इससे सुपरबग को बढ़ावा मिल रहा है। सुपरबग हवा और पानी में सहजता से यात्रा करने में सक्षम हैं। वे हमारे स्वास्थ्य को हवाई जहाज और वैश्विक खाद्य आपूर्ति कड़ी के जरिए हम तक पहुँच बनाकर नुकसान पहुँचा रहे हैं।
पर्यावरण के लिये बड़ी चुनौती फार्मास्यूटिकल्स कम्पनियों के लिये एंटीबायोटिक कचरे से हो रहा पर्यावरण प्रदूषण अब एक बड़ी चुनौती बन गया है। वैश्विक स्तर पर निवेश करने वाली फार्मास्यूटिकल्स कम्पनी नॉर्डिया और बीएनपी परीबा ने भारत की लोकल दवा कम्पनियाँ प्रदूषण को लेकर धांधली कर रही हैं। इससे वैश्विक स्तर पर हमारा पोर्टफोलियो कमजोर पड़ रहा है। |
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