नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने के साथ चौथा अन्तरराष्ट्रीय नदी महोत्सव का समापन

Nadi mahotsava
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जीवनदायिनी नदियाँ लगतार प्रदूषित हो रही हैं: शिवराज
नर्मदा मेरे हृदय में बसी हैं : उमा भारती


जो पानी विनाश का कारण बन सकता है। वही पानी विकास का कारण बन सकता है। जल का उपयोग करना हमें गुजरात से सीखना चाहिए। देश के कुछ राज्यों को गुजरात से और कुछ को असम से सीखना चाहिए। असम के पास सबसे अधिक जल है, लेकिन वे इसका दुरुपयोग नहीं करते। पहले नदियों में मछली, कछुए, मगर जैसे जीव बड़ी संख्या में पाए जाते थे। खेतों में रसायनिक उर्वरकों के अन्धाधुन्ध प्रयोग से खेतों के प्रदूषित पानी के नदियों में मिलने से जीव-जन्तुओं का जीवनचक्र टूटने लगा है। तीन दिवसीय चौथा अन्तरराष्ट्रीय नदी महोत्सव होशंगाबाद जिले में नर्मदा-तवा नदी के संगम-स्थल बान्द्राभान में नदियों को प्रदूषित न करने के संकल्प के साथ हुआ। इस समारोह का उद्घाटन मध्य प्रदेश के मुख्यमन्त्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने किया। अपने सम्बोधन में उन्होंने नदियों को प्रदूषित न करने का संकल्प लेने का आह्वान किया।

बढ़ते प्रदूषण से अगाह कराते हुए उन्होंने कहा कि जीवनदायिनी नदियाँ लगातार प्रदूषित हो रही हैं। इसके कारण जलीय जीवों को खतरा पैदा हो गया है। उनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है। इससे ईको सिस्टम टूट रहा है। भारतीय संस्कृति में नदियों को पूजनीय माना गया है हम नदियों की पूजा तो करते हैं लेकिन नदियों को प्रदूषित भी करते हैं।

कार्यक्रम में विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीतासरन शर्मा, लोक निर्माण मन्त्री श्री सरताज सिंह, सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति श्री धर्माधिकारी, स्वामी चिदानन्द सरस्वती, श्री अमृत लाल वेगड़, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर कार्यवाह श्री भैयाजी जोशी, सांसद श्री अनिल माधव दवे सहित जन-प्रतिनिधि और पर्यावरणविद् उपस्थित थे।

इसके पूर्व मध्य प्रदेश के मुख्यमन्त्री श्री शिवराज सिंह चौहान एवं उनकी धर्म पत्नी श्रीमती साधना सिंह ने देश भर की विभिन्न नदियों के जल से भरे कलश का पूजन किया।

श्री चौहान ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण एवं नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने के काम में सरकार को तब तक सफलता नहीं मिल सकती जब तक कि हम सब मिलकर स्व-प्रेरणा से कार्य नहीं करेंगे। मुख्यमन्त्री ने नदी संरक्षण कार्य के लिये श्री दवे के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि कुछ वर्षों से मौसम चक्र में बदलाव हो रहा है। शीत, वर्षा एवं ग्रीष्म ऋतु अपने-अपने निर्धारित समय के अलावा भी प्रभाव दिखा रही है। मौसम में यह बदलाव पर्यावरण को हो रही क्षति का दुष्प्रभाव है।

मुख्यमन्त्री ने कहा कि पहले नदियों में मछली, कछुए, मगर जैसे जीव बड़ी संख्या में पाए जाते थे। खेतों में रसायनिक उर्वरकों के अन्धाधुन्ध प्रयोग से खेतों के प्रदूषित पानी के नदियों में मिलने से जीव-जन्तुओं का जीवनचक्र टूटने लगा है। उन्होंने कहा कि त्योहारों पर मूर्तियों तथा फूल-माला आदि के विसर्जन से जल प्रदूषित हो गया है। श्री चौहान ने नगरीय निकायों से आह्वान किया कि नदियों में शहरी गन्दगी की सीवर लाइन प्रवाहित होने से रोके। श्री चौहान ने खेती में रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशकों के स्थान पर जैविक कीटनाशक उपयोग करने की अपील की।

चतुर्थ नदी महोत्सवमुख्यमन्त्री ने बताया कि अगले साल उज्जैन में आयोजित सिंहस्थ को पॉलीथिन मुक्त बनाकर पर्यावरण संरक्षण के लिए नागरिकों को सन्देश देने का प्रयास किया जाएगा। सिंहस्थ से पूर्व पर्यावरण संरक्षण विषय पर राष्ट्रीय स्तर के विद्वानों की संगोष्ठी की जाएगी तथा निष्कर्षों को सिंहस्थ घोषणा-पत्र के रूप में जारी किया जाएगा। मुख्यमन्त्री ने नागरिकों से हर-हर नर्मदे का नारा लगवाया और नदियों के संरक्षण का आह्वान किया। उन्होंने केरल की नील नदी के तट पर होने वाले महोत्सव के लोगों का विमोचन भी किया।

श्री अनिल दवे ने कहा कि मीडिया नदी महोत्सव तथा इसके परिणामों का प्रचार-प्रसार करे। साथ ही अन्य भी फेसबुक, वाट्सअप जैसे माध्यमों से नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने में सहयोग करें। कार्यक्रम में परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने श्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि जिस धरती का शासक मन से सन्त नहीं होता उस धरती की पीड़ा का कभी अन्त नहीं होता है।

उन्होंने कहा कि नदियों के संरक्षण के लिए सरकार को कानून बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम लोग अपने घर को अपना मानकर साफ रखते हैं, लेकिन गली-मोहल्ले को गन्दा करते हैं। इसीलिये जरूरी है कि घर के साथ गली-मोहल्ले को भी अपना माने तथा स्वच्छ रखने का संकल्प लें।

राज्यसभा सांसद अनिल माधव दवे ने पत्रकारों से चर्चा के दौरान कही। उन्होंने कहा कि लोग मुझसे पिछले तीन बार के नदी महोत्सव की उपलब्धि पूछते हैं। मैं उन्हें बताता हूँ कि पहले देश भर में नदियों की पूजा तक की बातें होती थीं अब केरल और ब्रह्मपुत्र में भी नदी महोत्सव जैसे आयोजन होने लगे हैं। लोग नदियों के प्रदूषण पर चिन्ता कर रहे हैं और इसके उपाय करने लगे हैं। प्रदूषण करने वालों को टोकने लगे हैं। यही उपलब्धि में शामिल हैं। श्री दवे ने कहा कि रिवर कैचमेंट एरिया में केमिकल का प्रयोग कैसे रुके, यह महत्वपूर्ण सवाल है।

जल ग्रहण क्षेत्र को प्रदूषण से कैसे बचाया जाए। चौथे नदी महोत्सव का विषय नदी जलग्रहण क्षेत्र, रसायन और समस्याएँ तय किया गया है। नदी महोत्सव में नदी जलग्रहण क्षेत्र में प्रयोग होने वाले रसायन और कीटनाशकों पर आधारित आयोजन का प्रतीक चिन्ह बनाया गया है। इसमें पेड़, पहाड़, जल, भूमि और झोपड़ी को इंगित किया गया है।

दूसरे दिन उपस्थित शोधकर्ताओं, विद्वानों और विशेषज्ञों को सम्बोधित करते हुए आरएसएस के सर कार्यवाह भैयाजी जोशी ने कहा कि नदियों को बचाने के लिए हमें प्रकृति से सन्तुलन बनाकर चलना ही होगा। यदि हम प्रकृति के सन्तुलन को प्रभावित करेंगे, तो नदियाँ सूखेंगी और समय आने पर हमें अपनी ताकत भी दिखाएँगी। हम नदियों से हमेशा लेते हैं लेकिन उन्हें कुछ देते नहीं हैं। हमारा प्रयास होना चाहिए कि हम नदियों को शुद्ध वातावरण दें। भेदभाव रहित विचार देखना है, तो नदियों के पास आओ।

नदियाँ भेदभाव नहीं सिखाती। ये गन्दा करने वालों की भी प्यास बुझाती हैं और साफ-सफाई करने वालों की भी। नदियाँ मर्यादाओं का उल्लंघन भी नहीं करती। नदियों के किनारे संस्कृति पली-बढ़ी है। उन्होंने कहा कि हमारी सभ्यता और संस्कृति का जन्म नदियों के किनारे ही हुआ है। सिन्धु सभ्यता इसका उदाहरण है। हमें समझना होगा कि नदियों ने मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं किया है। वे सन्त भाव से दोनों किनारों के बीच बहती चली आ रही हैं। अगर ये किनारे तोड़कर बहने लगें तो तबाही को कौन रोक पाएगा?

उन्होंने कहा कि नदियाँ हमारी माँ हैं। यह आस्था का विषय है तर्क और विज्ञान का नहीं। नदियाँ कितनी पवित्र हैं। यह इससे सिद्ध हो जाता है कि हजारों सालों से कुम्भ और मेला के आयोजन हो रहे हैं। आधुनिक परिवेश में हम इन्हें बहता हुआ पानी या स्वीमिंग टैंक नहीं मान सकते।

चतुर्थ नदी महोत्सवउन्होंने कहा कि नदियों किनारे लोगों ने अतिक्रमण कर मकान बना लिए हैं, नालों का मुँह खोल दिया है। इससे गन्दा पानी नदियों में मिल रहा है। इससे नदियाँ प्रभावित हो रही हैं। नर्मदा भी अछूती नहीं है। इस कारण अब ऐसे आयोजनों की जरूरत पड़ने लगी है। इसलिए समय है कि हम प्रकृति से छेड़छाड़ बन्द करें और नदियों को देना शुरू कर देंगे। हम ऐसा वातावरण बनाएँ जिससे नर्मदा के तट दूषित नहीं हों।

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश देवदत्त धर्माधिकारी ने कहा कि नदियों को बचाने के लिए सभी को आगे आना होगा। नदियों से जुड़े सभी तरह के प्रकरण सुप्रीम कोर्ट में आते हैं। हम वहाँ यह देखते हैं कि कौन सा प्रदेश सबसे ज्यादा दोहन कर रहा है। नदियों के लिए गायों का होना जरूरी है। गाय को बचाने के लिए गौ हत्या पूरी तरह बन्द होना ही चाहिए।

नदियों पर काम करनेवाले जलयोद्धाओं ने अपने प्रयासों के बारे में बताया। गढ़मुक्तेश्वर से आए भारत भूषण गर्ग ने बताया कि पूजन सामग्री और मूर्ति विसर्जन के कारण नदी के प्रदूषण को रोकने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की। इसके तहत गंगा तट पर 20 गढ्डे बनाए। बाद में प्रशासन ने इसकी अहमियत को समझा। अब यह सिलसिला थम गया है। गाज़ियाबाद से आए प्रशान्त कुमार ने हिण्डन नदी के सन्दर्भ ने अपने अनुभवों को साझा किया।

वहीं अहमदाबाद से आए श्री पाल शाह ने बताया कि किस तरह से देशी वस्तुओं का इस्तेमाल कर रहे हैं। गोवा से आई शुभा दी ने महादेव नदी पर डैम बनाने और कर्नाटक सरकार से संघर्ष की दास्तान बताई। उन्होंने कहा कि संघर्ष के परिणामस्वरूप कोर्ट से स्थगन लाने मे कामयाबी हासिल की। वहीं गोमती नदी पर काम करने वाले गोपाल उपाध्याय ने कहा कि जीरो बजट पर पीलीभीत से लेकर गाजीपुर के बीच खेती का काम कर रहे हैं। इससे प्रदूषण नहीं हो रहा है।

समापन समारोह को सम्बो​धित करती हुई केन्द्रीय जल संसाधन मन्त्री उमा भारती ने पवित्र गंगा नदी को दो वर्ष में गुणात्मक रूप से स्वच्छ करने का भरोसा दिलाया। उन्होंने कहा कि गंगा सफाई के लिए 1985 में ही योजना बन गई थी, लेकिन इन 29 सालों में इस दिशा में कुछ नहीं हो सका है।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें गंगा मन्त्रालय देने के साथ ही पूर्ण रूप से स्वतन्त्र कर दिया है और गंगा की सफाई हेतु प्रत्येक मंत्रालय साथ होगा। उमा ने कहा, ‘‘नर्मदा मेरे मन्त्रालय में नहीं, तो क्या यह मेरे हृदय में बसी हैं।नर्मदा पवित्र और प्रमुख नदियों में से एक है यह पुण्य सलिला है, पापों के तारने वाली है, जहाँ लोग गंगा नहाने के लिये जाते हैं वही गंगा स्वयं नर्मदा में नहाने आती है। उन्होंने कहा हमें माँ नर्मदा को प्रदूषण से मुक्त कराना होगा, इसके किनारों को हरा-भरा करने के लिए वृक्ष लगाने होंगे। यही वृक्षारोपण नदी संरक्षण के साथ-साथ पर्यावरण शुद्धि भी बढ़ाएगा और प्रकृति के संरक्षण हेतु लाभदायक होगा।”

उन्होंने कहा कि जो पानी विनाश का कारण बन सकता है। वही पानी विकास का कारण बन सकता है। जल का उपयोग करना हमें गुजरात से सीखना चाहिए। देश के कुछ राज्यों को गुजरात से और कुछ को असम से सीखना चाहिए। असम के पास सबसे अधिक जल है, लेकिन वे इसका दुरुपयोग नहीं करते। गुजरात के पास कम जल होने के बाद भी विकास के मामले में वह आगे है। मप्र ने भी जल का उपयोग सही तरीके से करके कृषि उत्पादन को बढ़ाया है। इस वर्ष को हम जल क्रान्ति वर्ष के रूप में मना रहे हैं।

चतुर्थ नदी महोत्सवउन्होंने कहा कि मेरे मन्त्रालय अनुसार नदियों के संरक्षण के लिये हर सम्भव प्रयास किया जा रहा है। किसी भी नदी को सूखने नहीं दिया जाएगा। नदियों को आपस में जोड़कर उनके प्रवाह को सतत् बनाए रखा जाएगा। जिस प्रकार मप्र की केन, बेतवा, नर्मदा और क्षिप्रा को जोड़ा गया है। हर नदी की प्रकृति और उसकी जरूरतें अलग-अलग होती हैं। बाँध के लिए नदी को नष्ट नहीं किया जा सकता। बाँध बनाने हैं तो नदियों को भी बचाना होगा।

हमारे द्वारा बनाई जाने वाली योजनाओं से पर्यावरण को कोई हानि नहीं हो इसका भी ध्यान रखा जा रहा है। आर्थिक, पर्यावरण और वैधानिक पक्ष पर आंकलन करना होगा तभी देश भर की नदियों की सफाई हो सकेगी। उन्होंने कहा कि नदी और नारी को बहुत संघर्ष करना होता है। जो नदी और नारी का सम्मान और सुरक्षा नहीं कर सकता वह पाप का भागीदार होता है। समारेाह की अध्यक्षता सन्त शणमुखानन्द पुरी ने की।

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Post By: RuralWater
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