विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष
इस पर्यावरण दिवस पुरबियातान फेम लोकगायिका चन्दन तिवारी की पहल
नदी के मर्म को समझने, उससे रिश्ता बनाने की संगीतमय गुहार
पाँच जून को पर्यावरण दिवस के मौके पर अपने उद्यम व उद्यमिता से एक छोटी कोशिश लोकगायिका चन्दन तिवारी भी कर रही हैं। साधारण संसाधनों से साधारण फलक पर यह असाधारण कोशिश जैसी है। चन्दन पर्यावरण बचाने के लिये अपनी विधा संगीत का उपयोग कर और उसका सहारा लेकर लोगों से नदी की स्थिति जानने, उससे आत्मीय रिश्ता बनाने और उसे बचाने की अपील करेंगी।
लोकराग के सौजन्य व सहयोग से चन्दन ने ‘नदिया धीरे बहो...’ नाम से एक नई संगीत शृंखला को तैयार किया है, जिसका पहला शीर्षक गीत वह पर्यावरण दिवस पाँच जून को ऑनलाइन माध्यम से देश तथा देश के बाहर विभिन्न स्थानों पर जनता के बीच लोकार्पित कीं। इस गीत के बोल हैं- अब कौन सुनेगा तेरी आह रे नदिया धीरे बहो...। इस गीत की रचना बिहार के पश्चिम चम्पारण के बगहा के रहने वाले मुरारी शरण जी ने की है।
मुरारी शरण जी कालजयी गीतकार रहे हैं और प्रकृति पर उन्होंने कई खूबसूरत, मर्मस्पर्शी और प्रेरक गीतों की रचना की हैं, जिनमें यह नदी गीत ‘नदिया धीरे बहो...’ देश के तमाम हिस्से में मशहूर हुआ था। इस गीत को मुरारी शरण जी देश के अलग-अलग हिस्से में गाकर सुनाते थे और लोग उन्हें इस गीत को सुनाने के लिये बुलाते भी थे। इस गीत पर एक समय में गोवा पीस फ़ाउंडेशन और बाद में गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं ने विशेष पोस्टर भी जारी किए थे लेकिन धीरे-धीरे यह गीत विस्मृति के गर्भ में समाते जा रहा था।
इस गीत को रिकार्ड कर और लोगों को समर्पित कर लोकराग और चन्दन ने कालजयी नदी गीत को तो पुनर्जीवन दिया ही है, इसके जरिए सीधे-सहज शब्दों में संगीत के जरिए नदियों के प्रति समाज व समुदाय को जागृत करने का अभियान चलाने का निर्णय लिया है। इस नदी गीत के साथ ही मुरारी शरण जी के इस कालजयी नदी गीत को लेकर विभिन्न तरीके के पोस्टर, कैलेण्डर व पोस्टकार्ड भी ऑनलाइन माध्यम से जारी किए जा रहे हैं। ऑनलाइन माध्यमों से जारी करने के साथ ही पाँच जून को इस नदी गीत का लोकार्पण भी छोटे-छोटे समूह द्वारा अलग-अलग जगहों पर, बड़े शहरों से लेकर गाँवों तक किया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि बोकारो की रहने वाली चन्दन तिवारी ने पिछले एक साल में पुरबियातान अभियान के जरिए दुर्लभ, गाँव की गलियों में गुम होते गीतों, सदाबहार, पारम्परिक, मशहूर रचनाकारों के गीतों को लेकर काम किया है, उन शृंखलाओं को ऑनलाइन माध्यम से दुनिया को दिया है और कई शो भी किए हैं। बसन्ती बयार, बेटी चिरइयाँ के समान कुछ ऐसी शृंखलाएँ हैं, जिसकी तारीफ देश दुनिया में फैले लोकसंगीत रसियों ने की है। चन्दन पुरबियातान नाम से 100 लोकगीतों की एक शृंखला तैयार कर रही हैं, जिसमें साफ सुथरे गीत तो हो ही, वे सदाबहार-व कर्णप्रिय होने के साथ ही कुछ मायने के भी गीत हों।
चन्दन कहती हैं कि अभी हाल में मैं तीन गीतों पर काम पूरी की हूँ, जिसमें एक गीत बाबू रघुवीर नारायण रचित बटोहिया गीत है, जिसमें कई लोकधुनों का इस्तेमाल कर पूरा गाई हूँ. उसके साथ ही एक मशहूर किसान गीत भी तैयार की हूँ, जिसमें किसानों की दुनिया में महत्ता के शब्द हैं और जो समय और काल से परे हैं। इसके साथ ही तीसरा लेकिन सबसे अहम काम नदी गीतों का है। नदियों से बचपन से लगाव रहा है। बहुत दिनों से इच्छा थी कि नदी गीतों पर काम करूँ।
कई बार आयोजन में गंगा माई के ऊँची अररिया जैसे गीत सुनती थी तो मन मचलता था कि मैं भी गाऊँगी इन गीतों को। पिछले दिनों एक नदी गीत पर नजर पड़ी। यह गीत मुरारी शरण जी का था। एक कैलेण्डर में इस गीत को देखी और जब इसको पढ़ी, तब से ही तय की कि इस गीत को ही सबसे पहले गाऊँगी।
इस गीत के जो शब्द हैं, इसके जो भाव हैं, वे गजब के हैं। इस गीत में नदी की पीड़ा है, नदी का आग्रह है, नदी का करूणा राग है, इसलिए इस गीत को गाते हुए मैं सबसे ज्यादा भावुक हुई। चन्दन कहती हैं कि इस गीत को गाने के बाद कॉपी फ्री रखा गया है, जिसे जिस तरह से रिलीज करना है, करे, बस गीतकार मुरारी शरणजी का नाम जरूर दे तो खुशी होगी। चन्दन बताती हैं कि ऐसे कई गीतों को अपने सीमित संसाधनों से सामने लाने की कोशिश कर रही हूँ। मेरी इच्छा भी है कि पेशेवर स्टेज शो करने के साथ ही ऐसी गीतों में अपनी ऊर्जा लगाऊँ और जो सम्भव हो, वह करूँ।
पाँच जून को पर्यावरण दिवस के अवसर पर इस गीत को जारी किया गया है। इसके पोस्टर को भी। उसी दिन कई जगहों पर साथी लोग अपने तरीके से, अपने संसाधन से इस गीत का लोकार्पण समारोह में भी रखे हैं। मैं सबसे अपील भी कर रही हूँ कि इस नदी गीत के जो बोल हैं, इसके जो भाव हैं, उसे सुनने के बाद नदी के प्रति एक लगाव उत्पन्न होने की सम्भावना है। ऐसा जरा भी होता है तो मैं खुद को धन्य समझूँगी। नदिया धीरे बहो गीत को जारी करने के बाद नदी के कुछ और गीत जारी होंगे और उसके बाद किसानों की स्थिति और दुर्दशा और उनकी ताकत पर तैयार एक लोकगीत जारी करने की योजना है।
चन्दन बताती हैं कि इस गीत को लेकर वे भावुक हैं और उत्साहित भी। देश दुनिया में फैले कई साथियों ने इस गीत को लेकर पॉजिटिव रिस्पांस दिया है। पहले ऑनलाइन माध्यम से इस गीत को जारी करने के बाद विभिन्न जगहों पर नदिया धीरे बहो का लोकार्पण होगा। जिसमें तीन कालजयी गीत- नदिया धीरे बहो... बटोहिया और किसानी गीत का लोकार्पण होगा। तीनों गीतों की अपनी खासियतें हैं।
नदिया धीरे बहो... हिन्दी में नदियों को बचाने और नदियों को समझने को लेकर कालजयी गीत है तो बाबू रघुवीर नारायण रचित बटोहिया गीत भारत, भारतीयों व भारत की खासियतों को लेकर दुर्लभतम और उम्दा गीतों में से है, जिसे दुनिया भर के लोग मानते हैं। और विश्वनाथ सैदा रचित किसानी गीत किसानों के बारे में एक बेहद महत्त्वपूर्ण और ताकतवर गीत है। चन्दन कहती हैं कि वे इन तीनों गीतों को गाकर खुद में सुकून का अनुभव करती हैं।
नदिया धीरे बहो...
कौन सुनेगा तेरी आह, नदिया धीरे बहो…
किसको है तेरी परवाह, नदिया धीरे बहो…
सभ्ताएँ जनमी तट तेरे, संस्कृतियाँ परवान चढ़ी
तेरे आँचल के साये में, सारी दुनिया पली-बढ़ी
आज किसे एहसास, हो नदिया धीरे बहो...
अब कौन सुनेगा तेरी आह...
पहले तु माता थी सबकी, अब मेहरी सी लगती हो
पाप नाशनेवाली खुद ही सिर पर मैला ढोती हो
तेरी पीड़ा अथाह, हो नदिया धीरे बहो...
अब कौन सुनेगा तेरी आह...
इठलाने-बल खानेवाली, अब बेबश हो बहती हो
कंचन कायावाली मईया, काली-काली दिखती हो
बँध गये तेरी बाँह, हो नदिया धीरे बहो...
अब कौन सुनेगा तेरी आह...
तेरे पूत, कपूत हो गये, भूल गये तेरा सम्मान
ढूँढन से भी कहाँ मिलेंगे, राजा भगीरथ, कान्हा, राम
किससे करोगी फरियाद, हो नदिया धीरे बहो
अब कौन सुनेगा तेरी आह...
तेरा घुट-घुट ऐसे मरना, रंग एक दिन लाएगा
पानी रहते हुए विश्व जब बेपानी हो जाएगा
देगा कौन पनाह, हो नदिया धीरे बहो...
कौन सुनेगा तेरी आह...
- मुरारी शरण
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Post By: RuralWater