भारतीय होने के कारण हमारी पहचान नदियों से अटूट रूप से जुड़ी है। जैसा कि हम सब जानते हैं, ‘इंडिया’ शब्द इंडस से, हिन्दुस्तान शब्द सिन्धु से निकला है। यह शब्द प्राचीन फारसी शब्द हिन्दू से उत्पन्न हुआ है। यह शब्द संस्कृत में इससे भी पहले सिन्धु, सिन्धु नदी के नाम से मौजूद है। ऋग्वेद के नादस्तुति सूक्त में सिन्धु का लिंग थोड़ा अस्पष्ट है। नदियों के नाम जानने का शास्त्र बड़ा अद्भुत और विस्मित करता है। इससे अपने देश के साथ-साथ दुनिया भर के भूले-बिसरे हुये इतिहास, संस्कृति और भूगोल को भी जाना, समझा जा सकता है। हमारे यहाँ इस पर बड़ा व्यापक काम किया गया है। लेकिन वह सबको मालूम नहीं है। भारत में नदियों के नामों को जानना एक पहेली है। ये नाम बोलचाल के और पारम्परिक हैं। यहाँ केवल उसकी भूमिका पर ही बात की जा सकेगी। बहुत संक्षेप में इन नामों के सम्भावित अर्थ और ऐसी बड़ी सुंदर घटनाओं-संयोगों पर कुछ चर्चा हो पायेगी। जो कहीं दूर घटित हुई हैं। हमें लगता है कि इसे पढ़ने वाले आप सब भी इस विषय पर कुछ और बातें जोड़ते चलेंगे।
ऋत्विक घटक ने नदियों पर जो फिल्में बनाई हैं, उनसे भी इस विचार की प्रेरणा मिली। ‘कोमल गांधार’, ‘सुवर्ण रेखा’ और ‘तीस्ता एकटी नदिर नाम’ फिल्में उन्होंने नदियों को लेकर बनाई हैं। अनूप सिंह ने श्री घटक पर आधारित एक बहुत बढ़िया वृत्त-चित्र बनाया है। इसका नाम भी उन्होंने ‘एकटी नदिर नाम’ यानी एक नदी का नाम रखा है।
भारतीय होने के कारण हमारी पहचान नदियों से अटूट रूप से जुड़ी है। जैसा कि हम सब जानते हैं, ‘इंडिया’ शब्द इंडस से, हिन्दुस्तान शब्द सिन्धु से निकला है। यह शब्द प्राचीन फारसी शब्द हिन्दू से उत्पन्न हुआ है। यह शब्द संस्कृत में इससे भी पहले सिन्धु, सिन्धु नदी के नाम से मौजूद है। ऋग्वेद के नादस्तुति सूक्त में सिन्धु का लिंग थोड़ा अस्पष्ट है। अन्य स्थानों पर यह बराबर स्त्रीलिंग है। लेकिन पश्तो बोली में सिन्धु का अर्थ अबासीन अथवा पितृ नदी है। लद्दाख में इसे सेंगे छू अथवा सिंह नदी कहते हैं। तिब्बत में इसे सेंगे जंग्बो कहते हैं। इसका अर्थ भी सिंह नदी ही है और दोनों ही पुल्लिंग हैं।
हमारे देश की अधिकांश नदियों के नाम स्त्रीलिंग हैं। साथ ही साथ पुरुष नाम वाली नदियाँ भी बहुत सारी हैं। नदियों के नामों का स्त्रीपरक और पुरुषपरक होना उलझन भरा है। सबसे ज्यादा प्रसिद्ध पुरुषवाची नाम तो ब्रह्मपुत्र है। धीमन दासगुप्ता ने बताया कि ब्रह्मपुत्र की मूल नदी यरलुंग जंग्बो भी पुरुषवाची नदी है। इसकी एक प्रमुख सहायक नदी लोहित की भी यही स्थिति है। पश्चिम बंगाल की कुछ नदियों के वैदिककालीन पुरुषवाची नाम हैंः जैसे दामोदर, रूपनारायण, बाराकर, बाराकरेश्वर, अजय, पागला, जयपंडा, गोदधरी, भैरव आदि। इनमें से अधिकतर दक्षिणी बंगाल में हैं। ये सारी अद्भुत जानकारी हमें फेसबुक पर बातचीत में पराग ज्योति सैकिया ने दी है। मन में सहज ही प्रश्न उठा कि दक्षिण पश्चिम बंगाल में पुरुष नाम वाली इतनी सारी नदियाँ क्यों हैं? धीमन दासगुप्ता ने बताया कि इसका कारण यह हो सकता है कि इस तरफ की नदियों का स्वभाव जरा उग्र और विध्वंसक गति का है। ये बाढ़ भी लाती हैं। हमें बड़ी खुशी होगी कि कोई पाठक इस बात पर और भी रोशनी डाले।
पुरुष नाम वाली नदियाँ और भी मिलती हैं। जैसे सिक्किम में रोंगीत। सिक्किम में विवाह के समय गाये जाने वाले गीतों में रोंगीत और रोंगनू; तीस्ता की कथा गाई जाती है। रोंगीत और रोंगनू महान प्रेमी थे। दोनों रहते थे पहाड़ पर। एक बार उन्होंने पहाड़ से नीचे आने का निर्णय लिया। वे कंचनजंघा पर्वत से आशीर्वाद लेकर नीचे उतर चले। रोंगीत पक्षी पर सवार हुआ। और रोंगनू साँप पर। रोंगनू के साँप ने घुमावदार रास्ता लिया और पेसोक नामक जगह पर वह पहले पहुँच गई। वहाँ वह रोंगीत का इन्तजार करने लगी। रोंगीत को उसके तेज उड़ने वाले पक्षी ने भटका दिया। वह ऊपर-नीचे होता रहा। वह वहाँ समय पर नहीं पहुँच सका। लोकगीत में तो यह भी है कि पुरुष होने के कारण वह प्रेमिका रोंगनू को पेसोक में पहले पहुँचा देखकर थोड़ा दुखी हो गया। रोंगनू/तीस्ता ने रोंगीत को बड़ी देर तक मनाया और कहा कि उसके देर से आने में उसकी कोई गलती नहीं है और न उसकी ही कोई गलती है कि वह जल्दी आ गई।
इसी तरह चंद्रा और भागा की कहानी है। इनसे ही चंद्रभागा बनती है। हम सोचते हैं यह एक ही शब्द है लेकिन ये दो शब्द हैं। हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति में बहने वाली चेनाब की यही कहानी है। कहा जाता है कि चंद्रमा की पुत्री चंद्रा का जन्म चंद्रताल से हुआ था। भागा भगवान सूर्य का पुत्र था। उसका जन्म सूरज ताल से हुआ था। उन दोनों ने निर्णय लिया कि वे विवाह करेंगे। पहले बरलाचल घाटी तक साथ चलेंगे फिर अलग-अलग चलकर तंडी में मिलकर शादी करेंगे। चंद्रा आसानी से घुमावदार तरीके से तंडी पहुँच गई। भागा का रास्ता चंद्रा से कठिन था। चंद्रा को वहाँ जब भागा न दिखा तो वह बहुत परेशान हुई। वह वापस उसे खोजने के लिये लोंग के रास्ते चल पड़ी। वहाँ उसने भागा को एक चट्टान से लड़ते हुये देखा। चट्टान उसके रास्ते में आ रही थी। अंततः दोनों तंडी में मिले और मिलकर चंद्रभागा बनी।
कई जगह नदियों के नाम एक जैसे मिलते हैं। जहाँ वे हैं, वहां से हजारों किलोमीटर दूर भी उसी नाम की कोई और नदी मिल सकती है। कुछ नदियों का नाम स्वभाव के कारण और कुछ का उनके रूप के कारण पड़ जाता है। जैसे यमुना का नाम उसके स्वभाव के कारण पड़ा है। चंद्रभागा का नाम उसके रूप के कारण।
पश्चिम बंगाल के बीरभूमि में भी एक चंद्रभागा है। गुजरात के अहमदाबाद के समीप भी एक चंद्रभागा है। पुरी के कोणार्क मंदिर के बगल में भी एक चंद्रभागा नदी है। पंढरपुर में भी एक लोकप्रिय चंद्रभागा है। वहाँ उसकी पूजा भी की जाती है। इसके तट पर ही विट्ठल मंदिर है। दिनेश कुमार मिश्र ने हमें बताया कि बिहार में भी एक चंद्रभागा है। इसे वहां चनहा कहा जाता है। एक नाम की अनेक नदियों की यह कहानी बहुत लम्बी है।
काका साहब कालेलकर की बेहद प्रभावशाली किताब ‘जीवन लीला’ पढ़कर दिनेश कुमार मिश्र बहुत खुश हुये। उन्होंने हमें सतलुज नदी के बारे में बतायाः वेदों के समय इसका नाम शतद्रु था। शतद्रु का मतलब है ‘सौ रास्तों वाली’। इसका संकेत है कि सतलुज उतराई में अपनी यात्रा के दौरान सौ रास्ते बनाती है। काका साहब ने नदी के रास्तों को सुंदर तरीके से ‘मुक्त वेणी’ और ‘युक्त वेणी’ के रूप में बाँटा। इनका शाब्दिक अर्थ है बलैया खाती हुई नदी के मुक्त होकर ‘उड़ते बाल’ और ‘बँधे हुये बाल’।
यमुना क्या जलदस्यु है? रमेश आठवले के अनुसार जो नदी किसी दूसरी नदी का पानी छीन लेती है, उसका अपहरण कर लेती है, उसके लिये इतना कड़ा शब्द प्रयोग में आता है। उसे यमुना कहा जाता है। जाने-माने भूवैज्ञानिक डाॅ. के.एस. वल्दिया ने हमें ऐसे तीन मामलों के बारे में बताया। इसमें एक नई धारा शुरू होती है और पुरानी नदी की धारा सूख जाती है। इन मामलों में नई दस्यु धारा को ‘यमुना’ कहा जाता है। पहला उदाहरण चम्बल की एक शाखा का है। इसमें वह प्राचीन सरस्वती से पानी लेकर रास्ता बदलकर उसे निर्जन बना देती है। एक अन्य उदाहरण सन 1720 ई. का है। तब ब्रह्मपुत्र नदी मेघना के साथ मिलकर बंगाल की खाड़ी में मिलती थी। अबकी तरह गंगा से वह नहीं मिलती थी। 1720 से लेकर 1830 के बीच उसने गंगा से मिलने के लिये पुराना रास्ता छोड़ दिया और एक नया रास्ता बना लिया। इसे यमुना कहा गया। मेघालय से असम की ओर बहने वाली कपिली/कोपिली के नदी उद्गम को धनाश्री हथिया लेती है। इस ‘दस्युधरा’ को भी यमुना के नाम से जाना जाता है। यह संयोग ही है कि ये धाराएँ यमुना ही है। ‘यम’ का संस्कृत में अर्थ ‘जुड़वा’ होता है।
गरुड़ पुराण में वैतरणी नदी का जिक्र आता है। यह एक ऐसी नदी है, जो इस लोक और परलोक के बीच बहती है। उड़ीसा में एक वैतरणी (बैतरण) नदी है। महाराष्ट्र में भी नासिक के पश्चिमी घाटों से निकलने वाली वैतरणा/वैतरणी है, जो बहती हुई अरब सागर में गिरती है। गोदावरी से कुछ किलोमीटर दूर से ही वैतरणी निकलती है। ब्रह्मगिरि से गोदावरी निकलती है और त्रयंबकेश्वर से उतरते हुये जहाँ वह बहती है, वहाँ हर जगह शिव की पूजा होती है। लेकिन वैतरणा की किस्मत में यह नहीं है।
हम जानते हैं कि गोदावरी नासिक से निकलती है और देश के प्रायद्वीपीय हिस्से की सबसे लम्बी नदी है। लेकिन नेपाल में भी एक गोदावरी है। एक इंद्रावती भी नेपाल में है। छत्तीसगढ़ और उड़ीसा से बहने वाली इंद्रावती गोदावरी की प्रमुख सहायक नदी है। महाराष्ट्र में कृष्णा नदी है, जिसे प्यार से कृष्णा माई या कृणई माता, कृणाद्ध कहते हैं। सच मानिये, एक कृष्णा मेघालय में भी है, जो वहाँ ब्रह्मपुत्र घाटी से जुड़ी हुई है।
गोमती गंगा की सहायक नदी है। त्रिपुरा में बांग्लादेश की तरफ बहने वाली एक नदी गुमती भी है। इसी नदी पर त्रिपुरा का सबसे बड़ा और कुख्यात बाँध है।
इरावती पंजाब की एक नदी रावी का ही प्राचीन नाम है। एक और इरावती भी है। हिमालय के हिमखण्डों से निकलकर म्यांमार (बर्मा) में बहने वाली नमाई और माली नदियों के संगम से इरावडी बनती है। यह इरावती का ही पाली नाम है। रावी नदी पाकिस्तान की तरफ सिन्ध नदी की ओर बहती है, वहीं इरावडी अंडमान समुद्र की तरफ बहती है।
कुछ लोग मानते हैं कि कुछ मामलों में एक ही नदी पर दूसरी नदी का नाम इसलिये होता है कि पहली नदी का महात्म्य अथवा महानता भी दूसरी को मिल जाय। भारतविद् सैली पलांदे दतार के अनुसार, ‘नदियों से जोड़कर मिथक इसलिये बनाये जाते हैं ताकि उनकी मान्यता बढ़े।’
कुछ लोग कहते हैं कि नदियों के एक जैसे नाम उनके साथ जुड़े धार्मिक महत्त्व और लोकप्रियता के कारण रखे जाते हैं। कुछ कहते हैं कि लोगों के साथ नाम भी यात्रा करते हुये कहीं और पहुँच जाते हैं। कुछ लोग यह मानते हैं कि प्राचीन वैदिक साहित्य में पारम्परिक नामों की संख्या चूँकि सीमित थी, इसलिये नदियों के नाम एक जैसे मिलते हैं। इन स्थानों पर अपने-अपने धार्मिक स्थान बनते हैं। इनसे व्यापार और उससे जुड़ी गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है और तीर्थाटन अथवा पर्यटन भी बढ़ता है।
धीमन दास गुप्ता कहते हैं कि लोगों के साथ नाम भी यात्रा करते हैं। लोग अपने साथ नामों को भी ले गये। रामायण में आये सरस्वती और सरयू नाम अफगानिस्तान और ईरान में भी हैं। यमुना तो पशरिया की प्रमुख देवी है। नामों के अध्ययन में इस तरह के अनेक उदाहरण हैं। पुराने समय में नामों के आविष्कार सीमित ही थे।
वैदिक अथवा शास्त्रीय संस्कृत के नाम सर्वाेत्तम रूप में लय के साथ कन्नड़ भाषा में आये हैं। कर्नाटक राज्य में नदियों के नाम सचमुच मधुर हैं: शाल्मला, शांभवी, नेत्रावती, कुमारधरा, पयस्विनी, सौपर्निका, स्वर्ण, अकरावती, अगहनशिनी, कबिनी, वेदवती, कुमदवती, शरवती, वृषभवती, घटप्रभा, मालाप्रभा आदि। बोलचाल के कुछ शब्दों में नदियों का उल्लेखनीय स्वभाव भी दिखता है। जैसे कि नासिक में एक नदी है। उसका नाम है बाघड़ी नदी। मराठी में बाघ यानी शेर। इस नदी का यह नाम उसके जरा भड़कने वाले स्वभाव के कारण पड़ा है। बरसात में इसमें बहुत जल्दी बाढ़ आती है। जो भी इसके रास्ते में आता है उसे यह बाघ की तरह पंजा मारती है। पुणे की मुला नदी घाटी में एक नदी है वालकी, जिसका मतलब होता है सूखी नदी।
रत्नागिरि की शास्त्री नदी घाटी में एक सहायक नदी है गड़गड़ी। यह जोर से आवाज करती है। इसमें बड़े-बड़े पत्थर नदी तल में बहते टकराते और आवाज करते हैं। रत्नागिरि में बाव नदी की भी यही कहानी है। इस नदी के तल में बड़े खतरनाक पत्थर बहते हैं। इसके बाद आपके चेहरे पर चोट करने वाली पोतफोड़ी और दोइफोड़ी नदियाँ भी हैं। इनमें पहली का मतलब पेट फोड़ने वाली और दूसरी का अर्थ सिर फोड़ने वाली नदी। ये नदियाँ भी अपनी खतरनाक प्रकृति और नामों वाली हैं। ‘लोकमत’ के प्रबंध सम्पादक महेश म्हात्रो ने बताया था कि गढ़चिरौली में एक नदी है, जिसका नाम है शैतानी नदी। इसकी प्रकृति भी बड़ी खतरनाक है।
गुजरात में साबरमती, रंगमती और रुकमावती जैसी प्राचीन नदियाँ हैं। यहाँ भूखी और उतावली नाम की नदियाँ भी हैं। देशभर की बोलियों में ऐसे अनेक उदाहरण होंगे। मैं महाराष्ट्र से कुछ को सामने रख सकती हूँ। आप भी हमें ऐसे कुछ उदाहरण अपने क्षेत्र के बताएँ। इस नामावली से क्षेत्रीय भूगोल और जलविद्या की खोज होती है। हमारे यहाँ प्राचीन नामों को क्षेत्रीय बोली में बदलकर प्रीतिकर रूप में रखने की प्रवृत्ति भी मिलती है। जैसे आंध्र में गोदावरी के लिये गोदारी, बांग्लादेश में पद्मा के लिये पोद्ध नाम मिलते हैं। इससे भी ज्यादा बदलाव देखने हों तो चरमावती का नाम चम्बल और वेत्रावती का बेतवा नाम देखें।
कुछ क्षेत्रों में नदियों के लिये कुछ विशेष उपसर्ग और प्रत्यय लगाये जाते हैं। लता अनंत कहती हैं, ‘‘तमिल और मलयालम में आर और पुझा का अर्थ नदी होता है। अनेक नदियों के नाम में ये दोनों जुड़े मिलते हैं। जैसे चलकुड़ी पुझा, पेरियार, पंडियार आदि।’’ इसी तरह से भूटान, सिक्किम और तवांग क्षेत्र में छू का मतलब भी नदी होता है। इसलिये जब हम पुनरुक्ति में शब्दों को कहते हैं- न्यामजंबाछू नदी अथवा रथोंग छू नदी, तो हम दो बार नदी का नाम ले लेते हैं।
असम से नीलिमा दत्त हमें बताती हैं कि ‘‘असम की अनेक नदियों के नाम ‘डी’ शब्द से शुरू होते हैं। डिहिंग, डिबांग, डिक्रोंग आदि। बोडो भाषा में पानी को डी कहते हैं। नदियों के नामों में बड़े आश्चर्यजनक संयोग घटित होते हैं। उत्तराखंड में जब भागीरथी और अलकनंदा का संगम हो जाता है तब बनती है गंगा। लेकिन गंगा मुहाने पर फिर पद्मा और भागीरथी के रूप में बँट जाती हैं। इसी तरह से नासिक में गोदावरी भी छोटी गोदावरी और गौतमी के संगम से बनती है। लेकिन नीचे बहते हुये हजारों किलोमीटर बाद जब गोदावरी का डेल्टा बनता है, तब यह भी फिर गोदावरी और गौतमी में बँट जाती है। इनसे नदियों का एक बड़ा सच सामने आता है कि उनका अर्थ एकता और निरंतरता भी होता है।
एक रूसी लोककथा है: एक छोटी लड़की गुम हो जाती है। बच्ची लोगों से अपनी माँ को खोज देने के लिये कहती है। माँ कैसी है, पूछने पर वह कहती है कि उसकी माँ पूरी दुनिया में सबसे सुंदर औरत है। इसी तरह लोग भी मानते हैं कि उनकी नदी दुनिया की सबसे बड़ी नदी है। जंबेजी, रियो ग्रांड, महानदी, गुआदल किविर, मिसिसिपी, सिन्धु इन सभी नदियों का मतलब ‘महान नदी’ ही है। सोग डियन भाषा में वोल्गा का वास्तविक अर्थ नस अथवा रक्त प्रवाही नस होता है।
अधिकांश नदियों का नाम नदी के उस गुण के कारण पड़ता है, जो दुर्लभ होता जा रहा है- वह है उसका प्रवाह। प्राचीन यूनानी ‘टिगरीस’ के बारे में कहा जाता है कि वह वास्तविक सुमेरियन इडिग्ना से विकसित हुई है। इसका मतलब है ‘तेज प्रवाहित जल’। इलीरियन बोसना से निकली बोसना का मतलब भी ‘प्रवाहित जल’ होता है। माओरी की वैकटो नदी का भी यही मतलब है। पुरातन जर्मन की राईन से निकली राईन नदी का मतलब है दौड़ना। बिलकुल यही स्थिति इटली की रिनो नदी की भी है। गंगा का भी यही अर्थ है: वह जोकि बहती रहती है।
अब अधिकांश नदियों पर बाँध बन गये हैं। कुछ ही नदियाँ बह पा रही हैं। कुछ तो रेंग ही रही हैं। भविष्य में हमें नदियों के कुछ ऐसे अर्थपूर्ण नाम खोजने शुरू करने चाहिये, जैसे वालकी, जिसका अर्थ है सूखी नदी!
अनुवादकः वेदप्रकाश सिंह
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