परेशानी : दिनभर नदी में खड़े रहने के बाद भी मेहनताना न के बराबर
यहां की एक नदी सोना उगलती है। नदी की रेतीली बालू से हर रोज सोना निकालना और बेचना। पीढियों से यहां की महिलाओं की ये दिनचर्या रही है। लेकिन, हालात ये कि दिनभर सोना छानने वालों के हाथ इतने पैसे भी नहीं आते कि परिवार पाल सकें। यह स्थिति है रांची से करीब 100 किलोमीटर दूर स्थित तमाड़ और सारंडा क्षेत्र की। यहां के घने जंगलों में स्थित राबो और टेबो पहाड़ों के बीच करकरी नदी बहती है।
इसी से सोना निकलता है, पर यह कोई नहीं जानता कि इसमें सोना आता कहां से है। यह इलाका घोर नक्सल क्षेत्र है। इनामी नक्सली कुंदन पाहन का ये गढ़ है। हालात ये हैं कि सीआरपीएफ के तीन कैंप यहां लगाए गए हैं, ताकि कुंदन की दहशत को कम किया जा सके। घना जंगल और वीरान रास्ते यहां के हालात खुद ही बयां करते हैं। लेकिन, नदी में सूप लिए जगह-जगह खड़ी महिलाएं दिख जाती हैं। क्षेत्र के करीब आधा दर्जन गांवों के दो दर्जन से अधिक परिवार नदी से निकलने वाले सोने पर निर्भर हैं। कडरूडीह, पुरनानगर, नोढ़ी, तुलसीडीह आदि गांवों के लोग करकरी नदी से पीढियों से सोना निकाल रहे हैं। पहले यह काम इन गांवों के पुरुष भी करते थे, लेकिन आमदनी कम होने से पुरुषों ने अन्य कामों का रुख कर लिया, जबकि महिलाएं परिवार को आर्थिक मदद देने के लिए आज भी यही करती हैं। हालांकि, नदी से सोना छानने के लिए बेहद धैर्य और मेहनत चाहिए।
नदी से सोना छानने वाली हर महिला एक दिन में करीब एक या दो चावल के बराबर सोना निकाल लेती है।
एक माह में कुल सोना करीब एक से डेढ़ ग्राम होता है।
हर दिन स्थानीय साहूकार महिला से 80 रुपए में एक चावल के बराबर सोना खरीदता है। वह बाजार में इसे करीब 300 रुपए तक में बेचता है।
हर महिला सोना बेचकर करीब 3000 से 4800 रुपए महीने में कमाती है।
नदी से सोना निकाल रही करीब 45 वर्षीय शुकरमनी ने बताया कि नदी से सोना निकालने का सिलसिला लगभग सालभर चलता रहता है। लेकिन, बारिश के दौरान जब नदी में बाढ़ आती है, तो डेढ़ से दो माह तक काम रुक जाता है। नदी से सोना नहीं निकलता, तो उस दौरान परिवार के लिए खाने के भी लाले हो जाते हैं। घर के पुरुष मजदूरी या खेतों में काम कर जो लाते हैं, पूरा परिवार उसी पर निर्भर होता है।
नदी में काम कर रहीं निर्मला, मेनका और ठाकुरमनी जैसी कुछ महिलाओं ने बताया कि व्यापारी हमें ठगते हैं क्योंकि हम शहरों में जाकर सोना बेचना नहीं जानते। साहूकार हमसे कहता है कि सोने में बालू है, इसलिए कम पैसे देता है। खुद उसे दोगुने-तिगुने दामों में बेचता है। अगर हमें हमारे सोने की सही कीमत मिले, तो हमारे परिवार की स्थिति ठीक हो सकती है।
करकरी से स्वर्णरेखा नदी को मिला सोना झारखंड के लोग रांची से निकलने वाली और समुद्र में मिलने वाली राज्य की इकलौती नदी स्वर्णरेखा को सोना उगलने वाली नदी मानते हैं। लेकिन सही मायने में करकरी नदी से ही बहकर सोना स्वर्णरेखा तक पहुंचता है। जमशेदपुर जोयदा के पास करकरी, स्वर्णरेखा नदी में मिलती है। स्वर्णरेखा नदी से भी सोना निकाला जाता है। डॉ.चंद्रमणि महतो, पंचपरगनिया भाषा साहित्य के विशेषज्ञ।
करकरी नदी से सोना निकालने का सिलसिला सैकड़ों वर्षों से जारी है। पुराने समय में तो जीवनयापन का यही एक साधन हुआ करता था। हालांकि, यह कभी पता नहीं चल सका कि करीब 37 किलोमीटर लंबी इस नदी में सोना कहां से आता है। बुद्धराम मुंडा, शिक्षक अगलेसा स्कूल ।
यहां की एक नदी सोना उगलती है। नदी की रेतीली बालू से हर रोज सोना निकालना और बेचना। पीढियों से यहां की महिलाओं की ये दिनचर्या रही है। लेकिन, हालात ये कि दिनभर सोना छानने वालों के हाथ इतने पैसे भी नहीं आते कि परिवार पाल सकें। यह स्थिति है रांची से करीब 100 किलोमीटर दूर स्थित तमाड़ और सारंडा क्षेत्र की। यहां के घने जंगलों में स्थित राबो और टेबो पहाड़ों के बीच करकरी नदी बहती है।
इसी से सोना निकलता है, पर यह कोई नहीं जानता कि इसमें सोना आता कहां से है। यह इलाका घोर नक्सल क्षेत्र है। इनामी नक्सली कुंदन पाहन का ये गढ़ है। हालात ये हैं कि सीआरपीएफ के तीन कैंप यहां लगाए गए हैं, ताकि कुंदन की दहशत को कम किया जा सके। घना जंगल और वीरान रास्ते यहां के हालात खुद ही बयां करते हैं। लेकिन, नदी में सूप लिए जगह-जगह खड़ी महिलाएं दिख जाती हैं। क्षेत्र के करीब आधा दर्जन गांवों के दो दर्जन से अधिक परिवार नदी से निकलने वाले सोने पर निर्भर हैं। कडरूडीह, पुरनानगर, नोढ़ी, तुलसीडीह आदि गांवों के लोग करकरी नदी से पीढियों से सोना निकाल रहे हैं। पहले यह काम इन गांवों के पुरुष भी करते थे, लेकिन आमदनी कम होने से पुरुषों ने अन्य कामों का रुख कर लिया, जबकि महिलाएं परिवार को आर्थिक मदद देने के लिए आज भी यही करती हैं। हालांकि, नदी से सोना छानने के लिए बेहद धैर्य और मेहनत चाहिए।
यह है सोने का गणित
नदी से सोना छानने वाली हर महिला एक दिन में करीब एक या दो चावल के बराबर सोना निकाल लेती है।
एक माह में कुल सोना करीब एक से डेढ़ ग्राम होता है।
हर दिन स्थानीय साहूकार महिला से 80 रुपए में एक चावल के बराबर सोना खरीदता है। वह बाजार में इसे करीब 300 रुपए तक में बेचता है।
हर महिला सोना बेचकर करीब 3000 से 4800 रुपए महीने में कमाती है।
दो माह रुकता है सिलसिला
नदी से सोना निकाल रही करीब 45 वर्षीय शुकरमनी ने बताया कि नदी से सोना निकालने का सिलसिला लगभग सालभर चलता रहता है। लेकिन, बारिश के दौरान जब नदी में बाढ़ आती है, तो डेढ़ से दो माह तक काम रुक जाता है। नदी से सोना नहीं निकलता, तो उस दौरान परिवार के लिए खाने के भी लाले हो जाते हैं। घर के पुरुष मजदूरी या खेतों में काम कर जो लाते हैं, पूरा परिवार उसी पर निर्भर होता है।
ठगते हैं व्यापारी
नदी में काम कर रहीं निर्मला, मेनका और ठाकुरमनी जैसी कुछ महिलाओं ने बताया कि व्यापारी हमें ठगते हैं क्योंकि हम शहरों में जाकर सोना बेचना नहीं जानते। साहूकार हमसे कहता है कि सोने में बालू है, इसलिए कम पैसे देता है। खुद उसे दोगुने-तिगुने दामों में बेचता है। अगर हमें हमारे सोने की सही कीमत मिले, तो हमारे परिवार की स्थिति ठीक हो सकती है।
करकरी से स्वर्णरेखा नदी को मिला सोना झारखंड के लोग रांची से निकलने वाली और समुद्र में मिलने वाली राज्य की इकलौती नदी स्वर्णरेखा को सोना उगलने वाली नदी मानते हैं। लेकिन सही मायने में करकरी नदी से ही बहकर सोना स्वर्णरेखा तक पहुंचता है। जमशेदपुर जोयदा के पास करकरी, स्वर्णरेखा नदी में मिलती है। स्वर्णरेखा नदी से भी सोना निकाला जाता है। डॉ.चंद्रमणि महतो, पंचपरगनिया भाषा साहित्य के विशेषज्ञ।
सोने का स्रोत पता नहीं
करकरी नदी से सोना निकालने का सिलसिला सैकड़ों वर्षों से जारी है। पुराने समय में तो जीवनयापन का यही एक साधन हुआ करता था। हालांकि, यह कभी पता नहीं चल सका कि करीब 37 किलोमीटर लंबी इस नदी में सोना कहां से आता है। बुद्धराम मुंडा, शिक्षक अगलेसा स्कूल ।
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