नदी पर्यटन बनाम सामाजिक-पर्यावरणीय जोखिम

सरकार पर्यटन को एक अच्छा उद्योग मानते हैं क्योंकि इसके कारण लोगों की आय में अंतर आया है। पर इस अच्छाई के साथ जो बुराई आती है उसे नजरंदाज कर दिया गया है। गंगा एक पूजनीय नदी है, उस पर नदी राफ्टिंग करना क्या नदी का अपमान नही है-इस बात पर किसी ने विचार नहीं किया।

गंगा सदैव से पूजनीय, पाप-विमोचिनी माता समान मानी गई है। एक डुबकी मात्र से समस्त पाप धुल जाते हैं ऐसी मान्यता है। आज भी ऋषिकेश में देश-विदेश से लाखों यात्री गंगा में डुबकी लगाने आते हैं। पिछले चालीस वर्षों में गंगा के किनारे हिमालय में बियासी तथा मैदान में ऋषिकेश में पर्यटन का एक नया आयाम देखने में आया है। नदी पर्यटन अथवा रिवर टूरिज्म आज पर्यावरणविदों एवं समाजशास्त्रियों दोनों के लिए चिंता का विषय बन चुका है। इन दो स्थानों के बीच की जगह अब रिवर राफ्टिंग और कैम्पिंग दोनों ही कामों के लिए प्रयोग में लाई जाती है। नदी के एकदम किनारे पर टेंट कॉलोनी बनाई जाती है। नदी पर इन सबका क्या असर पड़ता होगा-आइये एक नजर डालें।

गोविन्दवल्लभ पन्त इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन इनवायरमेंट एंड डेवेलपमेंट के श्रीनगर, गढ़वाल केन्द्र के एन ए फारुकी, टी के बुदाल एवं आर के मैखुरी ने इस प्रकार के पर्यटन का गंगा के पर्यावरण एवं क्षेत्र के समाज व संस्कृति पर पड़ने वाले प्रभाव पर शोध किया। अपने शोध को इन्होंने करेंट साईंस में प्रकाशित किया था। इनकी रिपोर्ट से इस पर्यटन के अनेक पहलुओं पर ज्ञान प्राप्त होता है। पहाड़ के खूबसूरत ढलान, हरे-भरे वन, नदियां, झरने आदि पर्यटकों को अनायास ही मोह लेते हैं। हमारे पहाड़ स्वदेशी एवं विदेशी दोनों प्रकार के पर्यटकों को सदियों से आकर्षित करते रहे हैं। इधर हाल के कुछ वर्षों में पर्यटन एक उद्योग रूप ले चुका है। विश्व में पिछले 40 वर्षों से पर्यटन एक बेहद सफल उद्योग रहा है मानते हैं फारुखी व उनके सह-शोधकर्ता अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देखा जाये तो पर्यटन का जी एन पी में योगदान 5.5% तथा रोजगार में 6% योगदान रहा है।

प्रश्न यह है कि यदि यह इतना कमाऊ उद्योग है तो समस्या कहाँ है?


दरअसल पर्यटन को बढ़ावा मिलने के कारण लोग अचानक एक स्थान विशेष पर आ पहुंचते हैं। पर इस प्रकार हजारों या लाखों लोगों के आने से उस स्थान की संस्कृति या पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है इस पर कभी गहराई में शोध नहीं किया गया। फारुखी आदि को इस दिशा शोध कर समस्याओं को उजागर करने में अग्रणी माना जा सकता है। पर्यटन जहां एक ओर पर्वतीय युवाओं को रोजगार देता है तो दूरी ओर सामाजिक तालमेल बिगाड़ भी देता है। मसलन तलहटी में कहती करने वाले युवा टूरिस्ट कैम्प में सामान ढोने के कुली का काम अधिक लाभकारी समझते हैं। चमक-दमक के लालच में अपना पुश्तैनी रोजगार छोड़कर कुलीगिरी करने वाले यह युवा बहुधा शराब आदि की लत के भी शिकार हो जाते हैं-जिसका परिणाम होता है पारिवारिक कलह।

गो कि स्थानीय समाज एवं सरकार पर्यटन को एक अच्छा उद्योग मानते हैं क्योंकि इसके कारण लोगों की आय में अंतर आया है। पर इस अच्छाई के साथ जो बुराई आती है उसे नजरंदाज कर दिया गया है। गंगा एक पूजनीय नदी है, उस पर नदी राफ्टिंग करना क्या नदी का अपमान नही है-इस बात पर किसी ने विचार नहीं किया। ना ही इस दिशा में कोई शोध हुआ है। नदी के किनारे 36 कि. मी. तक कौडियाला से ऋषिकेश तक अनेक पर्यटक कैम्प लगाए जाते हैं। फारुखी एवं उनके सहयोगियों ने इस क्षेत्र का विशेष अध्ययन किया। फारुखी आदि ने देखा कि इन कैंपों के 500 मी के दायरे में लगभग 500 गाँव हैं। ब्रह्मपुरी एवं शिवपुरी (ऋषिकेश के निकट) 1994 में दो निजी कैम्प स्थल थे। इसके अतिरिक्त 1996 के पूर्व गढवाल मंडल विकास निगम के शिवपुरी व बियासी में मात्र दो कैम्प स्थल हुआ करते थे। 1997 के बाद से अचानक इन कैम्पों की बाढ़ सी आ गई है। अब यह 45 कैम्प गंगा के किनारे 183510 वर्ग मीटर के क्षेत्र पर फैले हैं। सबसे अधिक कैम्प सिंग्ताली और उसके बाद शिवपुरी में हैं। इस लेखक को याद है कि 1979 में सर्वे के दौरान शिवपुरी में ऋषिकेश में अधिकारीयों से गंगा के किनारे एक टेंट लगाने की इजाजत नहीं मिली थी-क्योंकि अधिकारियों को भय था कि गंगा गंदी हो जायेगी! अब तो इन कैम्पों में प्रति कैम्प 15 से 35 पर्यटक प्रति कैम्प रहते हैं। इसके अतिरिक्त वहाँ काम करने वाले लोग अलग से इन स्थानों पर प्रति कैम्प औसत शौचालय 4 से 10 तक हैं, तथा हर कैम्प की अपनी रसोई एवं भोजनालय अलग से है।

पर्यटकों से पैसा कमाने की होड़ में अनेक स्थानीय लोगों ने भी नदी के किनारे अपनी जमीन पर कैम्प लगा लिए तथा बहुतों ने अपनी जमीन टूर ऑपरेटरों को बेच दी। यही कारण है कि इस क्षेत्र में टेंट कालोनियों की भरमार हो चुकी है। फारुखी ने यह डाटा 2006 में एकत्रित किया था। बढ़ते हुए उद्योग को देखते हुए प्रतिवर्ष इसमें 10% इजाफे को नकारा नहीं जा सकता। स्थानीय लोगों में इस उद्योग के प्रति मिली जुली प्रतिक्रिया व्यक्त की है। कुछ को लगता है कि इस उद्योग से उनकी माली हालत सुधरी है तो कुछ का कहना है बाहरी लोगों के आने से उनमें सामाजिक सांस्कृतिक असुरक्षा की भावना बढ़ी है। सरकार का नदी पर्यटन को बढ़ाने का रवय्या तो ठीक है, पर टूरिज्म के नाम पर होने वाले गतिविधियों पर नजर रखनी जरूरी है। गोवा में टूरिज्म के नाम पर खुली छुट मिलने के बाद क्या हुआ यह बात किसी से छिपी नहीं है। इसलिए कितनी स्वतंत्रता देनी चाहिए यह तो सरकार ही तय कर सकती है।

यह पश्चिमी देशों की नकल है-कोई बुराई नहीं है, केवल ध्यान इस बात का रखना जरूरी है कि उन देशों ने इस प्रकार के टूरिज्म को बढ़ावा अपनी संस्कृति, सामाजिक परिस्थति या पर्यावरण को दांव पर लगा कर नहीं किया। उलटे कैम्प में आने वाले पर्यटकों को यह बार-बार बतलाया जाता है कि वह केवल वहाँ की प्रकृति का आनंद लें न कि वहाँ की पर्यावरणीय एवं सामाजिक पवित्रता को अपवित्र करें।

गंगा के किनारे इन टूरिस्ट कैम्पों का प्रयोग रिवर राफ्टिंग के लिए भी खूब होता है। फारुखी के अनुसार 2004-5 के दौरान 12726 पर्यटकों ने इन स्थानों का प्रयोग किया। इन कैम्पों के लिए सरकार ने पाबन्दिया ठीक-ठाक लगाई हैं, जैसे जितना क्षेत्र कैम्प के लिए आवंटित है उसके बाहर टेंट नहीं लगा सकते, शाम 6 बजे के बाद राफ्टिंग की सख्त मनाही है, कैम्प में खाना बनाने के लिए लकड़ी जलाना मना है, कैम्प फायर केवल राजपत्रित अवकाशों एवं रविवारों में ही की जा सकती है, उस पर भी जमीन में लकड़ी रख कर नहीं जला सकते, उसके लिए विशेष प्रकार की लोहे की ट्रे का प्रयोग करना होता है। कैम्प फायर के लिए लकड़ी केवल वन विभाग से ही ली जायेगी ऐसे भी आदेश हैं। कैम्प फायर के बाद राख को बटर कर नियत स्थान पर ही फेकना होता है, नदी में डालने पर एकदम मनाही है। कैम्प में सोलर लाईट का प्रयोग किया जा सकता है रात नौ बजे तक तेज आवाज का संगीत एवं पटाखों पर सख्त पाबंदी है। शौचालय नदी से कम से कम 60 मी की दूरी पर होने चाहिए, जिनके लिए सूखे टाईप के सोक पिट आवश्यक हैं।

इतना ही नही वन अधिकारी को किसी भी समय कैम्प का मुआयना करने का अधिकार होगा तथा यदि किसी भी शर्त का उल्लंघन पाया गया तो कैम्प के मालिक को जुर्म के हिसाब से जुर्माना या सजा तक हो सकती है। पर काश यह सब कायदे माने जा रहे होते! फारुखी के अनुआर कैम्प नियत से अधिक क्षेत्र में लगाये जाते हैं तथा अन्य सभी नियमों का खुलेआम उल्लंघन होता है। सबसे खराब है नदी से एकदम सटा कर शौच टेंट लगाना। बरसात में इनके गड्ढे पानी से भर जाते हैं तथा मल सीधे नदी में पहुँच जाता है। कैम्प फायर जब भी मांग होती है की जाती है, तथा उसकी राख सीधे नदी में झोंक दी जाती है।

स्थानीय लोगों और टूर ऑपरेटरों को इन कैम्पों से जितना फायदा होता है उससे कई गुना अधिक पर्यावरण का नुकसान होता है। फारुखी के अनुसार 1970 से2000 के बीच जैव-विविधता में 40% की गिरावट आई है, जबकि आदमी का पृथ्वी पर दबाव 20% बढ़ गया। विकास कुछ इस प्रकार हुआ है कि अमीर अधिक अमीर हो गए और गरीब अधिक गरीब। ऐसी अवस्था में फारुखी व उनके साथी कहते हैं कि जब झुण्ड के झुण्ड अमीर टूरिस्ट आते हैं तो सभी स्थानीय वस्तुओं की मांग कई गुना अधिक बढ़ जाती है। इनमे सबसे अधिक मांग बढती है लकड़ी की। गरीब गाँव वाले टूरिस्ट कैम्पों को लकड़ी बेचने में कुताही नही करते-उनको भी लालच रहता है। लकड़ी की मांग इतनी बढ़ चुकी है कि स्थानीय लोगों को सीजन में मुर्दा फूकने तक को लकड़ी नहीं मिल पाती। दूसरी ओर स्थानीय लड़कियों एवं स्त्रियों को नहाने के लिए नित्य नए स्थान ढूँढने पड़ते हैं क्योंकि उनके क्षेत्रों पर कैम्प वालों का कब्जा हो चुका होता है।

इसलिए समय की मांग है कि नदी पर्यटन को और अधिक बढ़ावा देने के पूर्व सरकार उस क्षेत्र का इनवायरोन्मेंट इम्पैक्ट एस्सेस्मेंट करवा ले-ताकि क्षेत्र के सांस्कृतिक और सामाजिक व पर्यावरणीय बदलाव का सही आंकलन हो सके। इन कैम्पों से कितना कचरा नित्य निकलता है उसका सही आंकलन कुछ उसी प्रकार हो सके जैसा सागर माथा बेस कैम्प में एवरेस्ट जा रहे पर्वतारोहियों के लिए किया जाता रहा है। हिमालय में और विशेषकर गंगा के किनारे एडवेंचर टूरिज्म एवं नदी टूरिज्म को हम बढ़ावा दे रहे हैं-यह पश्चिमी देशों की नकल है-कोई बुराई नहीं है, केवल ध्यान इस बात का रखना जरूरी है कि उन देशों ने इस प्रकार के टूरिज्म को बढ़ावा अपनी संस्कृति, सामाजिक परिस्थति या पर्यावरण को दांव पर लगा कर नहीं किया। उलटे कैम्प में आने वाले पर्यटकों को यह बार-बार बतलाया जाता है कि वह केवल वहाँ की प्रकृति का आनंद लें न कि वहाँ की पर्यावरणीय एवं सामाजिक पवित्रता को अपवित्र करें।

2, इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट फ्लैट
हैवलॉक रोड
लखनऊ: 226001


Path Alias

/articles/nadai-parayatana-banaama-saamaajaika-parayaavaranaiya-jaokhaima

Post By: Hindi
×