नदी प्रदूषण की रोकथाम के लिये नदियों को आत्मनिर्भर बनाना होगा

नर्मदा नदी
नर्मदा नदी


मध्य प्रदेश सरकार नर्मदा, बेतवा, शिवना, पार्वती, माचना, मंदाकिनी और कुलबेहरा इत्यादि नदियों में बढ़ते प्रदूषण को समाप्त करने के लिये 24 प्रवाह उपचार संयंत्र (एसटीपी) स्थापित करने जा रही है। इनमें से 14 संयंत्र नर्मदा नदी पर और बाकी दस अन्य नगरों के पास से बहने वाली नदियों के सबसे अधिक प्रदूषित हिस्से में लगेंगे।

संयंत्रों में उपचारित पानी का उपयोग खेती, उद्योग और आग बुझाने में किया जाएगा। नर्मदा शुद्धिकरण का काम एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) और केएफडब्ल्यू मिशन, जर्मनी से लिये जा रहे कर्ज से किया जाएगा। जितनी राशि विदेशी वित्तीय संस्थानों से मिलेगी उसका 30 प्रतिशत अंशदान राज्य सरकार का होगा।

नर्मदा नदी में लगभग 34,542 घन हेक्टेयर मीटर पानी बहता है। इसमें से मध्य प्रदेश द्वारा केवल 22,511 घन हेक्टेयर मीटर पानी का उपयोग किया जा सकता है। नर्मदा प्राधिकरण के द्वारा किये बँटवारे के कारण बाकी पानी पर अन्य भागीदार राज्यों का हक है। मध्य प्रदेश ने अब तक अपने हिस्से के लगभग 80 प्रतिशत पानी के उपयोग की व्यवस्था कर ली है।

नर्मदा और उसकी सहायक नदियों पर बने बाँधों की भण्डारण क्षमता 17,000 घन हेक्टेयर मीटर से थोड़ी अधिक है। इसके अलावा पेयजल के लिये इन्दौर, देवास और भोपाल तथा नर्मदा के किनारे बसे अनेक नगर अपनी पेयजल योजनाओं के लिये नर्मदा के पानी का उपयोग करते हैं। अनुमान है कि नर्मदा नदी में सम्भवतः 5000 घन हेक्टेयर मीटर पानी ही प्रवाहित होता है। कुलबेहरा को छोड़कर, बाकी नदियाँ गंगा कछार का हिस्सा हैं। अब कुछ बात नर्मदा कछार में खेती के हानिकारक रसायनों और नगरीय गन्दगी की।

उल्लेखनीय है कि नर्मदा कछार में बने मुख्य बाँधों की भण्डारण क्षमता 16,463.36 घन हेक्टेयर मीटर और सिंचाई क्षमता लगभग 16 लाख हेक्टेयर है। इसके अलावा, बहुत बड़ा इलाका नलकूपों और गहरे कुओं से सिंचित है। सिंचित इलाकों में उत्पादन बढ़ाने के लिये रासायनिक खादों का उपयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त, फसलों को हानिकारक कीड़ों से बचाने तथा खरपतवार को समाप्त करने के लिये कीटनाशकों और खरपतवार नाशकों का उपयोग होता है।

इस कारण कछार के सिंचित भूभाग के जलस्रोतों का पानी और मिट्टी प्रदूषित हो रहे हैं। रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों तथा खरपतवारनाशकों के अलावा नर्मदा कछार की नदियों के पानी और भूजल को खराब करने में नगरों के अनुपचारित मल-मूत्र तथा कल-कारखानों के अपषिष्टों का भी बड़ा योगदान है। लगभग यही हालत प्रदेश की अन्य नदियों की है।

उल्लेखनीय है कि नर्मदा घाटी की खेती की परम्परागत हवेली पद्धत्ति के लुप्त हो जाने और भूजल के अतिदोहन के कारण नर्मदा और उसकी अनेक सहायक नदियों का प्रवाह घट रहा है। कुछ सहायक नदियाँ केवल मानसूनी रह गईं हैं। प्रवाह घटने के कारण नदियों की जल शुद्धिकरण की नैसर्गिक क्षमता लगातार कम हो रही है। सहायक नदियों के सूखने के कारण गन्दगी का निपटान अवरुद्ध हो रहा है। नर्मदा में जैविक गन्दगी को चुटकियों में समाप्त करने वाली पातल (जलचर) विलुप्त हो चुकी है। प्रवाह की कमी प्रदेश की लगभग हर नदी की समस्या है।

गौरतलब है कि मध्य प्रदेश की अनेक नदियों जिनका उल्लेख ऊपर किया है, के कुछ हिस्से, विभिन्न कारणों से बेहद प्रदूषित हैं। प्रदूषण के कारण उनका पानी स्नान के लायक भी नहीं है। कुछ हिस्सों में गन्दगी की अधिकता के कारण जलीय जीव-जन्तु तथा वनस्पतियों का अस्तित्व संकट ग्रस्त है। इन्दौर की खान नदी, जबलपुर का ओमती नाला, भोपाल का पातरा नाला और बेतवा नदी का पानी अनेक स्थानों पर किसी भी लायक नहीं है।

समूचे मध्य प्रदेश में नदी के पानी के प्रदूषण के उदाहरणों की सूची बहुत लम्बी है। प्रवाह की कमी ने प्रदूषण को बहुत अधिक खराब बनाया है। कहा जा सकता है कि राज्य सरकार का नदियों के पानी को साफ करने का मौजूदा फैसला नदी और समाज की सेहत के लिये सकारात्मक सन्देश है पर समग्रता प्रदान करने के लिये समूचे नदी तंत्र में प्रवाह वृद्धि को जोड़ा जाना आवश्यक है। वह स्थिति ही नदी की आत्मनिर्भरता को लौटा सकती है।

उल्लेखनीय है, भारत में, नदियों को साफ करने का पहला प्रयास 1986 में हुआ था। उस समय भारत सरकार ने गंगा एक्शन प्लान (प्रथम) प्रारम्भ किया था। उद्देश्य था गंगा नदी के पानी को स्नान योग्य बनाना। अनुमान था कि उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के गंगा तट पर बसे 25 शहरों की गन्दगी को रोकने तथा उपचारित करने से गंगा नदी का पानी स्नान योग्य हो जाएगा। प्लान के अनुसार काम हुआ, प्रवाह उपचार संयंत्र (सीवर ट्रीटमेंट प्लांट) बने पर बात नहीं बनी।

अगस्त 2009 में यमुना, महानदी, गोमती और दामोदर नदियों की सफाई को जोड़कर गंगा एक्शन प्लान (द्वित्तीय) प्रारम्भ किया। जुलाई 2013 की केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की रिपोर्ट बताती है कि गंगोत्री से लेकर डायमण्ड हार्बर तक समूची गंगा मैली है। इसके अलावा, हिमालयीन इलाके की जल विद्युत योजनाओं द्वारा रोके पानी और मैदानी इलाकों में सिंचाई, उद्योगों और पेयजल के लिये उठाये पानी के कारण गंगा का प्रवाह भी कम हुआ है। कम होता प्रवाह गाद जमाव सहित अनेक गडबडियों को बढ़ावा देता है।

कहा जा सकता है कि गंगा एक्शन प्लान का नजरिया सीमित था। यह भी कहा जा सकता है कि उस समय समस्या की आधी-अधूरी समझ थी पर गंगा मंथन और जल मंथन जैसे हालिया विमर्शों के बाद नदी तंत्र की समग्र सफाई से जुड़े अनेक नए आयाम सामने आये हैं। नदी विज्ञान सम्बन्धी नजरिया बेहतर हुआ है।

नदी की अविरल धारा, निर्मल धारा, प्राकृतिक जिम्मेदारी और इकोलॉजिकल भूमिका पहचानी गई हैं। उनका महत्त्व समझा गया है। गंगा मंथन सहित विभिन्न स्रोतों तथा समूहों से मिले सुझावों के कारण, लोगों की समझ परिष्कृत हुई है। परिष्कृत समझ बताती है कि नदी की अविरलता, निर्मलता, प्राकृतिक जिम्मेदारी और इकोलॉजिकल भूमिका की बहाली के बिना, नदी तंत्र कभी भी निर्मल नहीं होता। नदी आत्मनिर्भर नहीं बनती। परिणाम टिकाऊ नहीं बनते।

विदित है, नदी कछार में पनपने वाली प्राकृतिक गन्दगी तथा मानवीय गतिविधियों के कारण उत्पन्न अधिकांश दृश्य और अदृश्य प्रदूषणों को हटाने का काम बरसात करती है। इस व्यवस्था के कारण, किसी भी नदी-तंत्र की तरह, हर साल, समूचे नर्मदा कछार की धरती और नदी-नालों में जमा अधिकांश गन्दगी और गाद अरब सागर में जमा हो जाती है।

मौजूदा प्रयासों की मदद से, प्रदेश सरकार की जिम्मेदारी, नर्मदा नदी में बरसात बाद मिलने वाले प्रदूषण के निरापद निष्पादन की है। हालिया विमर्शों के कारण परिष्कृत हुई समझ बताती है कि नदी सफाई का मतलब आंशिक उपचार नहीं अपितु समग्र उपचार होता है। समग्र उपचार का मतलब है नदी की अविरलता, निर्मलता, प्राकृतिक जिम्मेदारी और इकोलॉजिकल भूमिका की शत-प्रतिशत बहाली। बिना उन्हें बहाल किये, नदी तंत्र कभी भी निर्मल नहीं होता।

नर्मदा नदी या अन्य किसी भी नदी के अत्यन्त प्रदूषित हिस्से की सफाई का परिणाम समग्र उपचार नहीं है। पूरे नदी तंत्र की गन्दगी के लिये काम करना आवश्यक है। प्रवाह बढ़ाना आवश्यक है। बिना प्रवाह बढ़ाए नदियों की बीमारी ठीक नहीं हो सकती। प्रवाह की तुलना मानव शरीर में प्रवाहित खून से की जा सकती है।

जिस तरह मानव शरीर में खून और प्लेटलेट्स जैसे घटकों की कमी बेहद खतरनाक होती है उसी तरह नदी में भी प्रवाह और आवश्यक कुदरती तथा पर्यावरणी घटकों की कमी अनेक विसंगतियों को जन्म देती है। नदी की साफ-सफाई का उद्देश्य उसकी सेहत की पूरी-पूरी बहाली ही होनी चाहिए। उल्लेखनीय है, कुछ साल पहले प्रदेश सरकार ने नदी-पुनर्जीवन कार्यक्रम प्रारम्भ किया था। उस कार्यक्रम को मुख्यधारा में लाने से प्रदेश की सभी नदियों की हालत सुधरेगी। टुकड़ों में ठोस अपशिष्टों की रीसाइकिलिंग या ट्रीटमेंट प्लांटों के कुछ स्थानों पर संचालन से टिकाऊ एवं निरापद परिणाम नहीं मिलेंगे। नदियों को भी आत्मनिर्भर और सेहतमन्द बनाना होगा। तभी बात बनेगी।
 

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