नदी का बुलावा

मैं सुनता हूं तुम्हारा बुलावा
बुलावा दूर से आता, सुनता हूं
झपटती पहाड़ियों का हिसार तोड़ते हुए
सुनता हूं उसे
चाहता हूं फिर से देखना तुमको
महसूस करना तुम्हारा ठंडा आलिंगन
या तुम्हारे किनारे खुद को बिठाना
निगलना तुम्हारी सांसें
या पेड़ों की तरह खुद को
तुम पर बिछा देखना
और सवेरे के होठों पर नाचते गीत से
अपने दिनों को फिर से जिंदा करना

मैं सुनता हूं तुम्हारी सरगोशी
अंदर से उभरती सुनता हूं उसे
गोश-बर-आवाज बच्चे की आत्मा को जगाते
वहां-जहां रुपहली लहरों को
जलचिड़ियां खुश-आमदेद कहती हैं

मेरी नदी भी बुला रही है मुझे
ढकेल रहा है बहाव
मेरी डोलती कश्ती को
उसके मुकद्दर में लिखे सफर पर
और मरता हुआ हर साल
करीब ले आता है समुद्री चिड़ियां का बुलावा
आखिरी बुलावा
जो जामिद कर देता है मचलती लहरों को
तोड़ देती है खामोशी
मेरी उखड़़ती डोंगी को
ऐ पहेली खुदा
आखिरी बुलावे के
रहनुमा होंगे
क्या मेरे ही पैदा किए हुए सितारे
ऐ मेरी नदी के गुंजलक रास्ते

अंग्रेज कविता/अनुवाद :फजल ताबिश

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