नदी जोड़ योजना

जब तक भारत और नेपाल के इन प्रस्तावित बांधों को लेकर कोई संधि नहीं हो जाती तब तक गंगा-ब्रह्मपुत्र क्षेत्र में नदी जोड़ योजना का कोई मतलब नहीं होता। अगर भारत-नेपाल के बीच महाकाली संधि को उदाहरण के रूप में लिया जाए तो जो संकेत मिलते हैं वह बहुत ज्यादा उत्साहवधर्क नहीं हैं।

अक्टूबर 2002 में उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद नदी जोड़ योजना एक बार फिर चर्चा में आयी। ऐसे दावे किये जा रहे थे कि इस योजना के क्रियान्वयन से देश में बाढ़ और सूखे की समस्या का निदान हो जायेगा। परियोजना के दो मुख्य अंश हैं। पहले हिस्से में गंगा-ब्रह्मपुत्र घाटी की बहुत सी नदियों को जोड़ने की बात है जिसमें कोसी-घाघरा, गंडक-गंगा, घाघरा-यमुना, शारदा-यमुना, मानस-सनकोश-तीस्ता, तीस्ता-गंगा या ब्रह्मपुत्र-गंगा तथा यमुना के माध्यम से शारदा-साबरमती लिंक आदि के निर्माण का प्रस्ताव है। इसके साथ ही गंगा-सुवर्णरेखा-दामोदर-महानदी को जोड़ना भी योजना का अंग है। योजना के दूसरे भाग में, जिसे प्रायद्वीपीय नदी जोड़ प्रकल्प कहा जाता है, उसमें महानदी, कृष्णा, गोदावरी, पेन्नार, कावेरी और वैगेई आदि मुख्य नदियाँ हैं जिन्हें जोड़ने का प्रस्ताव है। इसके अलावा केन-बेतवा, पार-तापी-नर्मदा और दमन गंगा-पिंजल जैसी नदियों को जोड़ने का प्रस्ताव भी इस योजना का अंग है।

2004 के चुनाव के पहले तक राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार 5,60,000 करोड़ रुपये की इस योजना के प्रति पूरी तरह वचनबद्ध और इसके शीघ्र क्रियान्वयन के प्रति सचेष्ट नजर आती थी। 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की सरकार सत्ता में आयी। वह इस योजना पर कदम तो फूंक-फूंक कर रख रही थी मगर शुरुआती दौर में ताल ठोंकने का स्तर पुरानी सरकार जैसा ही था।

इस परियोजना की लागत बेतरह ज्यादा है मगर तत्कालीन राजग सरकार द्वारा यह कहा जाता रहा था कि इस राशि की व्यवस्था आंतरिक संसाधनों से कर ली जायेगी। संसाधनों की कमी न होने का आश्वासन सरकार की तरफ से दिया जाता रहा फिर भी एक बड़ी संख्या में प्रबुद्ध नागरिकों का मानना था कि यह राशि बहुत ही बड़ी थी और आने वाले 15 वर्षों में बढ़ कर 20,00,000 करोड़ रुपये तक पहुँच जाने वाली थी। इतने पैसों का जुगाड़ कर पाना कतई आसान नहीं है। बहुत सी नदियों पर नेपाल में प्रस्तावित बांध इस योजना के अभिन्न अंग हैं और कम से कम गंगा-ब्रह्मपुत्र क्षेत्र में नदी जोड़ योजना की सफलता इन्हीं प्रस्तावित बांधों की सफलता पर आश्रित है। ऐसी सूचना है कि भारत द्वारा नेपाल को आधिकारिक रूप से इस योजना प्रस्ताव की अभी तक जानकारी नहीं दी गयी है। जब तक भारत और नेपाल के इन प्रस्तावित बांधों को लेकर कोई संधि नहीं हो जाती तब तक गंगा-ब्रह्मपुत्र क्षेत्र में नदी जोड़ योजना का कोई मतलब नहीं होता। अगर भारत-नेपाल के बीच महाकाली संधि को उदाहरण के रूप में लिया जाए तो जो संकेत मिलते हैं वह बहुत ज्यादा उत्साहवधर्क नहीं हैं। बराह क्षेत्र, बागमती तथा कमला परियोजनाओं पर बातचीत का सिलसिला लंबे समय से चल रहा है मगर यह सारी वार्तायें बेनतीजा हो जाती हैं। शायद इसीलिए तत्कालीन भारत सरकार गंगा-ब्रह्मपुत्र क्षेत्र के नदी-जुड़ाव के प्रति उतनी आग्रही नहीं थी और उसकी सारी कोशिशें प्रायद्वीपीय भारत की 16 नदी-जोड़ योजनाओं पर केन्द्रित थी। 2004 के बाद हुए सत्ता परिवर्तन से भी यथास्थिति बनी रही।

इस नदी जोड़ योजना पर बांग्लादेश को भी ऐतराज है क्योंकि उसे अंदेशा है कि भारत में नदियों के जुड़ने के बाद गंगा और ब्रह्मपुत्र घाटी में उसे पानी कम मिलेगा मगर भारत सरकार का उनसे यह कहना है कि यह योजना अभी परिकल्पना के ही स्तर पर है। अतः उसे चिंता नहीं करनी चाहिये। बांग्लादेश में सरकार और जनता दोनों ही इस योजना से चिन्तित हैं और वह एक समय उस मसले को अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक उठाने की तैयारी में थे। फिलहाल वहाँ इस मसले पर शांति है।

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Post By: tridmin
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