प्रतिमत
भारत जल और भूमि संसाधनों से सम्पन्न देश है। विश्व में भारत की भूमि 2.5 प्रतिशत है, जल संसाधन वैश्विक उपलब्धता का 4 प्रतिशत है और जनसंख्या 17 प्रतिशत है। उपलब्ध क्षेत्र 165 मिलियन हेक्टेयर है जो दुनिया में दूसरा सबसे अधिक क्षेत्र है, उसी तरह जैसे भारत का स्थान जनसंख्या के मामले में भी दुनिया में दूसरा है। नब्बे के दशक में भारत में 65 प्रतिशत किसान और कृषि मजदूर थे जिससे स्पष्ट होता है कि हमारा देश कृषि यानि जमीन और पानी पर निर्भर रहा है। इसलिए इस बात को शुरुआत से ही माना जाता रहा है कि देश के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिये जल संसाधनों का विकास अत्यंत महत्त्वपूर्ण है
भारत में जल संसाधन प्रचुर मात्रा में है लेकिन देश के कई राज्यों में पानी की समस्या बहुत गम्भीर है। इस साल यानि 2016 में देश के 10 राज्य जैसे महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि पानी की समस्या और कमी से जूझ रहे हैं। लगभग 32 करोड़ लोगों को पीने का पानी उपलब्ध नहीं है। एक वैज्ञानिक के तौर पर पिछले 60 वर्षों से अधिक समय से इस क्षेत्र में काम करते हुए मैं 30-40 वर्षों से यह चेतावनी देता रहा हूँ कि देश में पानी की समस्या प्रकृति जनित नहीं, मनुष्य जनित है। भारत में 1150 मि.मी. वार्षिक वर्षा होती है, जबकि विश्व का औसत 840 मि.मी. का है और इजरायल में तो केवल 400 मि.मी. वार्षिक वर्षा होती है। इजरायल सफलतापूर्वक पानी का प्रबंधन कर रहा है जबकि भारत के चेरापूँजी में जहाँ 11,000 मि.मी. वर्षा होती है, हर साल मानसून की शुरुआत से पहले दो-तीन महीने पानी की समस्या बनी रहती है।
पानी सबसे महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है और उसकी उपलब्धता लोगों के स्वास्थ्य और किसी क्षेत्र विशेष के विकास को बहुत हद तक प्रभावित करती है। मानक परिभाषा के अनुसार 1000 घन मीटर/प्रति व्यक्ति/प्रति वर्ष से 1700 घन मीटर/प्रति व्यक्ति/प्रति वर्ष पानी की उपलब्धता स्थानीय कमी से होती है। 1000 घन मीटर/प्रति व्यक्ति/प्रति वर्ष से नीचे होने पर जल आपूर्ति स्वास्थ्य, आर्थिक विकास और मानव कल्याण को बाधित करती है। 500 घन मीटर/प्रति व्यक्ति/प्रति वर्ष से कम पानी की आपूर्ति जीवन के लिये बाधक है और ऐसा होने पर किसी भी देश को पानी की अत्यन्त कमी झेलनी पड़ती है। विश्व बैंक और अन्य एजेंसियों द्वारा 1000 घन मीटर/प्रति व्यक्ति/प्रति वर्ष को पानी की कमी के एक सामान्य सूचक के रूप में स्वीकार किया जाता है।
जल संसाधन
दुनिया में जल संसाधन प्रचुर मात्रा में है। अगर विश्व की आबादी बढ़कर 25 अरब हो जाएगी (यानि तीन से चार गुना) तो भी उपलब्ध पानी पर्याप्त होगा। भारत में कुल उपलब्ध पानी 16500 लाख की आबादी के लिये पर्याप्त है (1500 घन मीटर/प्रति व्यक्ति/प्रति वर्ष)।
देश में जल संसाधनों का आकलन करने की बुनियादी हाइड्रोलॉजिकल इकाई नदी घाटियाँ (बेसिन) हैं। पूरा देश 20 बेसिनों में विभाजित किया गया है। हमारे यहाँ 20,000 वर्ग किलोमीटर के जलग्रहण क्षेत्र वाले 12 प्रमुख बेसिन हैं और शेष 8 बेसिन मध्यम आकार वाले और छोटे हैं।
एकीकृत जल संसाधन विकास योजना के लिये राष्ट्रीय आयोग ने 1999 में 19 करोड़ हेक्टेयर मीटर जल संसाधनों का आकलन किया था। केंद्रीय जल आयोग के अनुसार सभी 20 बेसिनों में इस्तेमाल जल संसाधनों की मात्रा 690 लाख हेक्टेयर मीटर है जो कुल सतही जल का 35 प्रतिशत है। इतना पानी 760 लाख हेक्टेयर के फसल क्षेत्र की सिंचाई जरूरतों को पूरा कर सकता है। राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (एनडब्ल्यूडीए) द्वारा प्रस्तावित अंतर बेसिन हस्तांतरण में 250 लाख हेक्टेयर मीटर पानी के अतिरिक्त उपयोग की परिकल्पना की गई। इसके अलावा एक प्रारंभिक अध्ययन के अनुसार, 400 लाख हेक्टेयर मीटर भूमिगत जल के कृत्रिम रीचार्ज से 160 लाख हेक्टेयर मीटर जल संसाधनों का अतिरिक्त उपयोग किया जा सकता है।
केंद्रीय भूजल बोर्ड ने वर्ष 1994-95 के लिये पुनर्भरणीय भूजल संसाधनों को 432 लाख हेक्टेयर मीटर बताया था जोकि बोर्ड का नवीनतम आकलन है। उपयोग करने योग्य भूजल को 395.6 लाख हेक्टेयर मीटर बताया गया है (70 लाख हेक्टेयर मीटर घरेलू, औद्योगिक उपयोग के लिये और 325.6 लाख हेक्टेयर मीटर सिंचाई के लिये) जोकि 640 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई कर सकता है। कुल सिंचाई 1400 लाख हेक्टेयर (सतही जल = 760 लाख हेक्टेयर और भूमिगत जल = 640 लाख हेक्टेयर) है। विभिन्न जल संसाधनों की बेसिन आधारित जानकारी और उनके उपयोग के घटकों की सूचना तालिका 1 में दी गई है।
तालिका 1 : न्यून प्रवाह, उपयोग योग्य सतही और भूमिगत जल संसाधन-बेसिन वार | |||||
न्यून प्रवाह | उपयोज्य प्रवाह | पुनर्भरणीय | ***उपयोज्य | ||
सतही जल | सतही जल | भूजल | भूजल | ||
1 | सिंधु | 73.31 | 46.0 | 26.50 | 24.3 |
2क | गंगा | 525.02 | 250.0 | 171.00 | 156.8 |
2ख | ब्रह्मपुत्र | *629.05 | 24.0 | 26.55 | 24.4 |
2ग | बराक | 48.36 | - | 8.52 | 7.8 |
3 | गोदावरी | 110.54 | 76.3 | 40.64 | 37.2 |
4 | कृष्णा | **69.81 | 58.0 | 26.40 | 24.2 |
5 | कावेरी | 21.36 | 19.0 | 12.30 | 11.30 |
6 | सुवर्णरेखा | 12.37 | 6.8 | 1.82 | 1.7 |
7 | ब्रह्मपुत्र- बरतमी | 28.48 | 18.3 | 4.05 | 3.7 |
8 | महानदी | 66.88 | 50.0 | 16.50 | 15.1 |
9 | पेन्नार | 6.32 | 6.9 | 4.93 | 4.5 |
10 | मणि | 11.02 | 3.1 | 7.20 | 6.6 |
11 | साबरमती | 3.81 | 1.9 | - | - |
12 | नर्मदा | 45.64 | 34.5 | 10.80 | 9.9 |
13 | ताप्ति-ताद्रि के बीच # | 87.41 | 11.9 | 17.70 | 16.20 |
14 | ताद्रि-कन्याकुमारी के बीच # | 113.53 | 24.3 | - | - |
15 | महानदी-पेन्नार के बीच ## | 22.52 | 13.1 | 11.22 | 10.3 |
16 | कच्छ और सौराष्ट्र एवं लूनी के बीच # | 16.46 | 16.7 | 18.80 | 17.20 |
17 | कच्छ और सौराष्ट्र एवं लूनी के बीच | 15.10 | 15.0 | 0 | 0 |
18 | राजस्थान में अंतर्देशीय जल निकासी | 0.00 | - | - | - |
19 | बांग्लादेश और म्यामांर में छोटी नदियाँ | 31.0 | - | 18.12 | 16.8 |
कुल | 1937.99 | 675.8 | 423.05 | 388.0 | |
स्रोतः सीडब्ल्यूसी, पब्लिकेशंस 6/93-रीएसेसमेंट ऑफ वॉटर रिसोर्सेज पोटेंशियल ऑफ इंडिया, ग्राउंड वॉटर रिसोर्सेज ऑफ इंडिया सीजीडब्ल्यूडी-1995 #पश्चिम की ओर बहने वाली नदियाँ ##पूर्व की ओर बहने वाली नदियाँ *ब्रह्मपुत्र से मिलने वाली 9 सहायक नदियों के प्रवाह के साथ 91.81 अरब घन मीटर का अतिरिक्त योगदान शामिल **केडब्ल्यूटी अवॉर्ड द्वारा स्वीकृत उपज श्रृंखलाओं के न्यून प्रवाह पर आधारित आकलन। विजयवाड़ा में रन ऑफ डेटा से विश्लेषित सीडब्ल्यूसी का आँकड़ा 78.12 अरब घन मीटर है। *वार्षिक पुनर्भरणीयता से सानुपातिक आधार पर अभिकलित 10 अरब घन मीटर = 1 मिलियन हेक्टेयर मीटर |
सकल उपलब्ध पानी और उपयोग करने योग्य पानी का मूल्यांकन
नदी प्रवाह (सतही जल) + भूजल = 195,290 + 43,200 = 238,490 लाख हेक्टेयर मीटर |
मूल्यांकित उपयोग के योग्य पानी = 69,000 + 39,560 = 1,08,600 लाख हेक्टेयर मीटर |
1991-2050 तक भारत की जनसंख्या के आधार पर (संभावित) पानी की सकल उपलब्धता और प्रति व्यक्ति/प्रति वर्ष जल संसाधनों के उपयोग को तालिका 2 में दिखाया गया है।
प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति उपयोग योग्य जल संसाधन नर्मदा बेसिन में 3020 घन मीटर और साबरमती बेसिन में लगभग 180 घन मीटर है। 1991 में जब देश की जनसंख्या 85 करोड़ 10 लाख थी, 20 बेसिनों में से 4 बेसिन में 1700 घन मीटर/प्रति व्यक्ति/प्रति वर्ष से अधिक उपयोग योग्य जल संसाधन था जबकि 9 बेसिनों में 1000-1700 घन मीटर, 5 बेसिनों में 500-1000 घन मीटर के बीच और 2 बेसिनों में 500 घन मीटर से कम जल संसाधन थे। 2050 में जनसंख्या के 165 करोड़ लाख तक पहुँचने की उम्मीद है और देश में 550-600 मीट्रिक टन खाद्यान्न की जरूरत होगी जिसमें भंडारण और परिवहन में नुकसान, बीजों की जरूरत और कई सालों से मानसून की विफलता के कारण होने वाला कैरी ओवर भी शामिल है (15 प्रतिशत भत्ता आदि)।
तालिका 2: भारत में उपलब्ध और उपयोग योग्य जल प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष (घन मीटर में) (1991 से 2050) | ||||
वर्ष | जनसंख्या (मिलियन) | उपलब्ध जल* | उपयोग्य जल** | टिप्पणियाँ |
1991 | 850 | 2830 | 1290 | 500 घन मीटर=अत्यंत कमी |
2001 | 1030 | 2316 | 1055 | 1000=कमी और दबाव |
2011 | 1210 | 1970 | 910 | 1700=कमी स्थानीय होगी और दुर्लभ |
2025 | 1350-1400 अनुमानित | 1700 | 780 | >1700 घन मीटर- जल - समस्या नहीं |
2050 | 1650 अनुमानित | 1445 | 680 | एमएचएम = मिलियन हेक्टेयर मीटर |
*283.5 मिलियन हेक्टेयर मीटर प्रति व्यक्ति/प्रति वर्ष घन मीटर **108.60 मिलियन हेक्टेयर मीटर प्रति व्यक्ति/प्रति वर्ष घन मीटर |
1995 तक बड़ी और मध्यम परियोजनाओं के जरिये विभिन्न बेसिनों में कुल जल भंडारण 173.7 लाख हेक्टेयर मीटर था। निर्माणाधीन चिन्हित बड़ी और मध्यम परियोजनाओं के तहत भंडारण क्रमशः 75.4 लाख हेक्टेयर मीटर और 132.3 लाख हेक्टेयर मीटर था। कुल भंडारण 381.5 लाख हेक्टेयर मीटर था। टैंक/तालाबों सहित छोटी भंडारण संरचनाओं (लगभग 4 मिलियन हेक्टेयर मीटर) को मिला दिया जाए तो कुल भंडारण क्षमता लगभग 420 लाख हेक्टेयर मीटर थी। 121 करोड़ लाख की आबादी को देखते हुए इस भंडारण क्षमता के साथ देश में प्रति व्यक्ति उपलब्धता 350 घन मीटर होती है। अमेरिका में यह आँकड़ा 5961 घन मीटर और चीन में 2486 घन मीटर है। इस सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है कि विश्व में 45000 बाँध हैं जिनमें से 46 प्रतिशत चीन में हैं और 14 प्रतिशत अमेरिका में। भारत में सिर्फ 9 प्रतिशत बाँध हैं, जबकि जापान में 6 प्रतिशत और स्पेन में 3 प्रतिशत। इन आँकड़ों से यह संकेत मिलता है कि जनसंख्या को देखते हुए भारत की जल भंडारण क्षमता और बाँध, दुनिया के विभिन्न देशों की अपेक्षा बहुत कम है।
तालिका 1 और 2 में दिए गए आँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2050 में 165 करोड़ लाख की आबादी के साथ देश के समूचे सतही और भूमिगत जल, जोकि 23 करोड़ 85 लाख हेक्टेयर मीटर है, तुलना की जाए तो जल की प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति उपलब्धता 1450 घन मीटर होगी जोकि 1700 घनमीटर से कम है। इससे पानी की कमी का संकेत मिलता है और विश्व बैंक/संयुक्त राष्ट्र मानदंडों के अनुसार देश को जल संकट का सामना करना पड़ सकता है। अगर वर्ष 2050 में अनुमानित 16,500 लाख की आबादी के लिहाज से उपयोग योग्य जल पर विचार किया जाये (10 करोड़ 86 लाख हेक्टेयर मीटर) तो प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता 680 घन मीटर होगी जोकि 1000 घन मीटर/प्रति व्यक्ति/प्रति वर्ष है। इससे यह पता चलता है कि देश में पानी की बहुत अधिक कमी होगी, साथ ही देश के खाद्य उत्पादन और आर्थिक विकास पर गंभीर खतरा होगा।
नदियों को आपस में जोड़ना
इन परिस्थितियों में यह बहुत जरूरी है कि भारत सरकार उपलब्ध पानी का उपयोग करने के लिये नदियों (19 करोड़ 50 लाख हेक्टेयर मीटर) को आपस में जोड़ने का कार्य तुरन्त करें। जैसा कि पहले ही कहा गया है, देश में काफी पानी उपलब्ध है लेकिन उसका वितरण असमान है, इसलिए देश जल संकट का सामना कर रहा है- विशेष रूप से दक्षिण और पश्चिम में। हमें समुद्र में व्यर्थ बहने वाले 65 प्रतिशत पानी का उपयोग करना चाहिए और जिन स्थानों पर अतिरिक्त पानी है, उन स्थानों से संकट ग्रस्त इलाकों में पानी पहुँचाया जाना चाहिए। पानी की समस्या का समाधान करने के लिये भारत सरकार ने 1982 में राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (एनडब्ल्यूडीए) बनाई थी। सिंचाई मंत्रालय के अन्तर्गत यह एक स्वायत्त संस्था है। एनडब्ल्यूडीए का मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित नदी परियोजनाओं के लिंक्स का अध्ययन करना है जिससे परियोजना की संभावनाओं का पता लगाया जा सकेः
1. गंगा-ब्रह्मपुत्र -कावेरी लिंकिंग या हिमालय नदी विकास।
2. प्रायद्वीपीय नदियों यानि महानदी, गोदावरी, कृष्णा, पेन्नार, कावेरी और वैगई की इंटरलिंकिंग या प्रायद्वीपीय नदियों का विकास।
3. पश्चिम में केरल, कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र में बहने वाली नदियों को पूर्व में तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र की तरफ मोड़ना।
हालाँकि सभी तीन प्रस्ताव संभव और व्यावहारिक हैं, किन्तु दूसरे और तीसरे प्रस्ताव पर तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए क्योंकि उनके सम्बन्ध में विस्तृत अध्ययन किया जा रहा है और इनकी लागत कम है।
प्रायद्वीपीय नदियों को आपस में जोड़ना
एनडब्ल्यूडीए ने एक उत्कृष्ट काम किया है। इस एजेंसी ने प्रायद्वीपीय नदी विकास योजना के तहत 17 लिंक्स की पहचान की है। उसने सभी लिंक्स की पूर्व व्यवहार्यता रिपोर्ट को तैयार करने के साथ-साथ अधिकतर सभी लिंक्स की व्यवहार्यता रिपोर्ट भी पूरी कर ली है।
विभिन्न प्रायद्वीपीय नदियों में महानदी और गोदावरी में बेसिन राज्यों की प्रस्तावित माँगों को पूरा करने के बाद भी अतिरिक्त जल मौजूद है। यह प्रस्तावित किया गया है कि पूर्वी तट पर गुरुत्वाकर्षण प्रवाह द्वारा गोदावरी नदी से महानदी को अतिरिक्त जल का हस्तांतरण किया जाए। इस प्रस्ताव के बाद महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में सिंचाई करना संभव होगा। फिर कृष्णा-पेन्नार लिंक के रास्ते में पड़ने वाले कृष्णा और पेन्नार बेसिनों में सिंचाई की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकेगा।
पेन्नार-कावेरी लिंक ग्रैंड एनीकट पर कावेरी में गिरता है। इस रास्ते का उपयोग करते हुए 180 अरब घन फीट को ग्रैंड एनीकट तक पहुँचाया जाएगा जिसमें 100 अरब घन फीट का उपयोग कावेरी बेसिन में होगा और बाकी का 80 अरब घन फीट वैगई और वैप्पर बेसिन में प्रयोग किया जाएगा। इससे 20 लाख एकड़ के क्षेत्र की सिंचाई होगी। एनडब्ल्यूडीए ने 10 साल पहले यह अनुमान लगाया था कि 1000 अरब घन फीट की अतिरिक्त मात्रा को मोड़ने के लिये महानदी-गोदावरी-कावेरी और वैगई की 3716 किलोमीटर लम्बाई को जोड़ा जाए तो 30,000 करोड़ रुपये की लागत आएगी। (देखें चित्र 1)
लेखक ने केरल राज्य की पानी की जरूरत पर आँकड़े एकत्र किये और अध्ययन किया तो जानकारी मिली कि पानी की अतिरिक्त उपलब्धता 500 अरब घन फीट है, हालाँकि भारत सरकार (एनडब्ल्यूडीए) ने 1000 अरब घन फीट का अनुमान लगाया है। अगर यह मात्रा (यानि 500 अरब घन फीट) पूर्व (तमिलनाडु) की तरफ मोड़ी जाए तो तमिलनाडु के दक्षिणी जिलों की 5 लाख एकड़ जमीन की सिंचाई करना सम्भव होगा।
डाइवर्जन के हिस्से के रूप में एनडब्ल्यूडीए ने पश्चिम में बहने वाली नदियों को पूर्व में पश्चिम केरल की तरफ मोड़ने के लिये ब्लू प्रिंट तैयार किया है। इसके अनुसार केरल में 250 अरब घन फीट पानी लाने वाली पंबा और अचनकोइल नदियों को तमिलनाडु की वैपर नदी में 22 अरब घन फीट तक मोड़ा जा सकेगा जिससे 1400 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से तिरुनेलवेली, तूथकुडी, विरुधनगर जिलों के सूखा प्रभावित क्षेत्रों की 2.26 लाख एकड़ जमीन की सिंचाई की जा सके।
तमिलनाडु में किसानों के जेहन में अन्य दो परियोजनाएँ हैं- पेंडियार और पुन्नमपुजा। यह योजनाएँ बहुत पहले जल विद्युत परियोजना के रूप में परिकल्पित की गई थी लेकिन जब तमिलनाडु के किसानों ने इससे सिंचाई करने की माँग की तो केरल सरकार ने इसकी अनुमति नहीं दी। अगर इस परियोजना को कार्यान्वित किया जाता है तो अरब सागर में बहने वाले 10-12 अरब घन फीट पानी को (केवल तमिलनाडु में, क्योंकि इसका जलग्रहण क्षेत्र तमिलनाडु में है) तमिलनाडु के भवानी/मोयर बेसिन में मोड़ा जा सकेगा और इस पानी से कोयंबटूर, तिरुपुर और इरोड के सूखाग्रस्त जिलों की सिंचाई की जा सकेगी। इस परियोजना को तुरंत कार्यान्वित किया जा सकता है क्योंकि एनडब्ल्यूडीए ने विस्तृत सर्वेक्षण कर लिया है और यह आर्थिक रूप से संभव और व्यावहारिक है।
कर्नाटक में पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों को पूर्व की ओर मोड़ना
कर्नाटक में पश्चिमी घाट, जो राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 13 प्रतिशत है, वहाँ उच्च वर्षा घनत्व के कारण राज्य के 60 प्रतिशत जल संसाधन हैं लेकिन सारा पानी समुद्र में व्यर्थ बह जाता है। राज्य के शेष 87 प्रतिशत हिस्से में स्थित कृष्णा और कावेरी बेसिन है जहाँ केवल 40 प्रतिशत पानी है और उसके लिये कर्नाटक तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के साथ अदालती लड़ाई लड़ रहा है। कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ और दक्षिण कन्नड़ में बहने वाली पश्चिमोन्मुख नदियों जैसे नेत्रावती, कुमारधारा, वराही आदि में सालाना कुल 2000 अरब घन फीट पानी है (तालिका 3) जबकि कृष्णा और कावेरी में कुल मिलाकर 1300 अरब घन फीट पानी ही है।
हम बहुत आसानी और सस्ते में, पर्यावरण एवं वन पारिस्थितिकी को नुकसान पहुँचाए बिना, लोगों को विस्थापित किये बिना पश्चिम में बहने वाली नदियों को घाट के आर-पार पंप भंडारण योजनाओं के माध्यम से पूर्व तमिलनाडु की तरफ मोड़ सकते हैं। इस प्रकार मानसून के दौरान सिंचाई, उद्योग और पेयजल की कमी को दूर करने के लिये रात के समय बर्बाद होने वाले थर्मल पावर का भी उपयोग किया जा सकेगा। इस प्रकार, कर्नाटक के पानी का उपयोग किया जा सकेगा और शेष पानी को तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश को दिया जा सकेगा।
तालिका 3: कर्नाटक में पश्चिमोन्मुखी नदियों की वार्षिक प्राप्ति | ||
उपबेसिन | जलग्रहण क्षेत्रफल | औसत प्राप्ति (एमसीएम) |
काली नदी | 412 | 934 |
श्रावती | 3592 | 8816 |
चक्र नदी | 336 | 991 |
नेत्रावती | 3222 | 9939 |
वराही | 759 | 2263 |
महादेवी | 412 | 934 |
बेथी | 3574 | 5040 |
बेथी-अघनाशिनी* | 401 | 906 |
अघनाशिनी | 1330 | 3028 |
श्रावती-चक्र* | 1042 | 3066 |
वराही-नेत्रावती* | 3067 | 9457 |
नेत्रावती-बारापोल* | 1320 | 4474 |
बारापोल | 560 | 1274 |
कुल | 57489 एमसीएम और 2000 टीएमसी | |
स्रोतः जल संसाधन विकास संगठन, कर्नाटक सरकार, बेंगलुरु *दोनों नदियों के बीच स्वतंत्र जल ग्रहण क्षेत्र, #वर्ग किलोमीटर, एमसीएम = मिलियन क्यूबिक मीटर |
अगर उपरोक्त पाँचों परियोजनाओं को कार्यान्वित किया जाता है तो आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी की पानी और ऊर्जा की समस्या को हल किया जा सकता है और हम सभी आराम से रह सकते हैं।
गंगा-ब्रह्मपुत्र नदियों को मोड़ना (हिमालयी नदी विकास)
इस बीच, देश के जल संकट को देखते हुए इस बात पर भी विस्तृत अध्ययन किया जा सकता है कि क्या सभी लिंक्स की मदद से ब्रह्मपुत्र-गंगा को पश्चिम और दक्षिणी भारत की नदियों से जोड़ा जा सकता है। (देखें चित्र 2)। इस परियोजना की लागत 8 से 10 लाख करोड़ रुपये होगी लेकिन अगर इससे प्राप्त होने वाले लाभ को देखा जाए तो यह लागत कुछ भी नहीं है। इस परियोजना को कार्यान्वित करने के लिये नेपाल, बांग्लादेश, भूटान के सहयोग की जरूरत होगी इसलिये हम प्रायद्वीपीय नदी विकास को लागू कर सकते हैं और पश्चिम में बहने वाली नदियों को पूर्व की तरफ मोड़ सकते हैं। गंगा- ब्रह्मपुत्र को जोड़ने का काम बाद में किया जा सकता है।
कुशल जल प्रबंधन
यहाँ नई सिंचाई रणनीतियाँ (जल प्रबंधन कार्यपद्धति) दी जा रही हैं जिनकी मदद से देश भर में पानी की कमी को दूर किया जा सकता है:
- धान की खेती में 40 से 50 प्रतिशत पानी बचाने और पैदावार तीन से चार टन/हेक्टेयर तक बढ़ाने के लिये चावल गहनता (एसआरआई विधि) की प्रणाली को अपनाना चाहिए।
- विशेष रूप से नहर/टैंक सिंचाई में जल निकासी प्रदान करनी चाहिए और अगर यह सिंचाई के लिये उपयुक्त है तो बहने वाले पानी का पुनः उपयोग किया जाना चाहिए।
- सतही और भूमिगत जल का संयुक्त उपयोग।
- धान को छोड़कर पास-पास उगने वाली फसलों के लिये नहरों और टैंक कमांड क्षेत्रों में फव्वारा सिंचाई का उपयोग करना।
- सभी पंक्तिबद्ध फसलों- कपास, गन्ना, केला, नारियल और सब्जियों आदि के लिये अच्छी तरह से सिंचित क्षेत्रों में ड्रिप सिंचाई करना।
- पानी/उर्वरक उत्पादन फंक्शन कर्व्स के आधार पर सिंचाई
- जल प्रबंधन में किसानों और एक्सटेंशन अधिकारियों को प्रशिक्षण
- गाँवों में संगोष्ठी/कार्यशाला का आयोजन करके किसानों को सुरक्षित जल और उपज बढ़ाने के सम्बन्ध में जागरूक करना।
- किसानों के लिये खेतों में प्रदर्शन और कार्यशालाओं का आयोजन किया जा सकता है जिससे उन्हें पानी को विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग के बारे में बताया जा सके।
- कृषि विज्ञान, पादप सुरक्षा आदि के मामलों में ब्लॉक स्तर पर जल प्रबंधन के एक्सटेंशन अधिकारियों की तैनाती की जा सकती है।
जैसे कि ऊपर बताया गया है, अगर बारिश के जल को संरक्षित और अच्छी तरह से प्रबंधित किया जाए तो पानी की समस्या को दूर किया जा सकता है।
लेखक परिचय
लेखक अन्तरराष्ट्रीय जल संसाधन सलाहकार तथा तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय में जल प्रौद्योगिकी केंद्र के पूर्व निदेशक हैं। वह तमिलनाडु राज्य योजना आयोग के सदस्य भी रहे हैं। ईमेल : sivanappanrk@hotmail.com
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