आमंत्रण
सेमिनार
नदी जल प्रबंधन : एक समीक्षा
संदर्भ : बागमती-गंडक
8 जुलाई, 2012 (10 बजे सुबह से 5 बजे शाम तक)
स्था न : स्ना तकोत्त र अर्थशास्त्र2 विभाग, सोशल साइंस ब्लॉ क, विश्व विद्यालय परिसर, मुजफ्फरपुर
महोदय/महोदया,
बाढ़ समस्या के समाधन एवं सिंचाई के इंतजाम के नाम पर उत्तर और पूर्वी बिहार की नदियों पर तटबंध बनाये गये। 1950 में बिहार में तटबंधों की लम्बाई 165 किलोमीटर थी। उस समय बाढ़ प्रवण क्षेत्र 25 लाख हेक्टेयर था। आज बिहार की नदियों पर बने तटबंधों की लम्बाई लगभग 3600 किलोमीटर हैं और बाढ़ प्रवण क्षेत्र बढ़कर 79 लाख हेक्टेयर हो गया है।
नदी के जिन हिस्सों में तटबंध् बन गये वहां के लोग उजड़ गये। पुनर्वास का कोई इंतजाम नहीं हुआ। बांध के अंदर खेतों में बालू भर गया। जंगली घास, गुड़हन और जंगल उग आये। बनैया सुअर, नीलगाय आदि का वास हो गया, जो फसलों को चट कर जाते हैं। तटबंध के बाहर भी जल-जमाव होने लगा। उसके सड़े पानी और उसमें उगने वाली जहरीली घास के कारण 60 प्रतिशत गाय-भैंस, बैल-बकरी मर गये, मर रहे हैं। पक्षी भी मरते जा रहे हैं। विकास और बाढ़ नियंत्रण के नाम पर बागमती क्षेत्र के हजारों गांवों को काला पानी बना दिया गया।
हिमालय से निकलने वाली हमारी नदियों में अत्यधिक गाद आती है। पहले यह गाद हमारे खेतों में फैल जाती थी और उपजाऊ मिट्टी बिछा देती थी। अब यह तटबंधों के अंदर कैद हो जाती है। मिट्टी- बालू का भारी जमाव होने से नदी की जल वहन क्षमता हर साल घटती जाती है। केवल बागमती नदी के तटबंध 88 बार टूट चुके है। बिहार में 850 बार नदियों के तटबंध टूटे हैं। जब भी कोई तटबंध टूटता है सैकड़ों गांवों में जल प्रलय मच जाता है।
तटबंधों के कारण दसियों लाख एकड़ भूमि में जल जमाव हो जाता है। इससे भूमि ऊसर भी होती जाती है। गंडक एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (गाडा) की रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ गंडक कमांड एरिया के 8 जिलों में 10 लाख एकड़ भूमि ऊसर हो गई है। इन्हीं कारण से अब लोग तटबंधों के निर्माण का विरोध कर रहे हैं तथा बागमती के तटबंधों को वैज्ञानिक तरीके से तोड़ने की मांग कर रहे हैं।
अतः यह आवश्यक है कि जल प्रबंधन योजनाओं का मूल्यांकन किया जाय। इसी दृष्टि से यह सेमिनार आयोजित हैं। इसमें वैज्ञानिक, समाजकर्मी, साहित्यकार, रंगकर्मी, संस्कृतिकर्मी, पत्रकार, लेखक, छात्र और शिक्षक भाग लेंगे। बागमती एवं गंडक परियोजना से पीड़ित तथा विनाशकारी परियोजनाओं के खिलापफ लड़ रहे लोग शामिल होंगे।
आप सादर आमंत्रित हैं।
अतिथि वक्तां -
मानस बिहारी वर्मा, गोपालजी त्रिवेदी, रामचंद्र खान, महेंद्र नारायण कर्ण, रणजीव, सफदर इमाम कादरी, सुनीता त्रिपाठी, शाहीना परवीन
निवेदक :
डॉ. कृष्ण मोहन प्रसाद
विभागाध्य क्ष,
स्नागतकोत्तणर अर्थशास्त्रद विभाग, बीआरए बिहार विश्व विद्यालय, मुजफ्फरपुर
अनिल प्रकाश
बिहार शोध संवाद
मोबाइल – +919431405067, +9109304549662
सेमिनार
नदी जल प्रबंधन : एक समीक्षा
संदर्भ : बागमती-गंडक
8 जुलाई, 2012 (10 बजे सुबह से 5 बजे शाम तक)
स्था न : स्ना तकोत्त र अर्थशास्त्र2 विभाग, सोशल साइंस ब्लॉ क, विश्व विद्यालय परिसर, मुजफ्फरपुर
महोदय/महोदया,
बाढ़ समस्या के समाधन एवं सिंचाई के इंतजाम के नाम पर उत्तर और पूर्वी बिहार की नदियों पर तटबंध बनाये गये। 1950 में बिहार में तटबंधों की लम्बाई 165 किलोमीटर थी। उस समय बाढ़ प्रवण क्षेत्र 25 लाख हेक्टेयर था। आज बिहार की नदियों पर बने तटबंधों की लम्बाई लगभग 3600 किलोमीटर हैं और बाढ़ प्रवण क्षेत्र बढ़कर 79 लाख हेक्टेयर हो गया है।
नदी के जिन हिस्सों में तटबंध् बन गये वहां के लोग उजड़ गये। पुनर्वास का कोई इंतजाम नहीं हुआ। बांध के अंदर खेतों में बालू भर गया। जंगली घास, गुड़हन और जंगल उग आये। बनैया सुअर, नीलगाय आदि का वास हो गया, जो फसलों को चट कर जाते हैं। तटबंध के बाहर भी जल-जमाव होने लगा। उसके सड़े पानी और उसमें उगने वाली जहरीली घास के कारण 60 प्रतिशत गाय-भैंस, बैल-बकरी मर गये, मर रहे हैं। पक्षी भी मरते जा रहे हैं। विकास और बाढ़ नियंत्रण के नाम पर बागमती क्षेत्र के हजारों गांवों को काला पानी बना दिया गया।
हिमालय से निकलने वाली हमारी नदियों में अत्यधिक गाद आती है। पहले यह गाद हमारे खेतों में फैल जाती थी और उपजाऊ मिट्टी बिछा देती थी। अब यह तटबंधों के अंदर कैद हो जाती है। मिट्टी- बालू का भारी जमाव होने से नदी की जल वहन क्षमता हर साल घटती जाती है। केवल बागमती नदी के तटबंध 88 बार टूट चुके है। बिहार में 850 बार नदियों के तटबंध टूटे हैं। जब भी कोई तटबंध टूटता है सैकड़ों गांवों में जल प्रलय मच जाता है।
तटबंधों के कारण दसियों लाख एकड़ भूमि में जल जमाव हो जाता है। इससे भूमि ऊसर भी होती जाती है। गंडक एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (गाडा) की रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ गंडक कमांड एरिया के 8 जिलों में 10 लाख एकड़ भूमि ऊसर हो गई है। इन्हीं कारण से अब लोग तटबंधों के निर्माण का विरोध कर रहे हैं तथा बागमती के तटबंधों को वैज्ञानिक तरीके से तोड़ने की मांग कर रहे हैं।
अतः यह आवश्यक है कि जल प्रबंधन योजनाओं का मूल्यांकन किया जाय। इसी दृष्टि से यह सेमिनार आयोजित हैं। इसमें वैज्ञानिक, समाजकर्मी, साहित्यकार, रंगकर्मी, संस्कृतिकर्मी, पत्रकार, लेखक, छात्र और शिक्षक भाग लेंगे। बागमती एवं गंडक परियोजना से पीड़ित तथा विनाशकारी परियोजनाओं के खिलापफ लड़ रहे लोग शामिल होंगे।
आप सादर आमंत्रित हैं।
अतिथि वक्तां -
मानस बिहारी वर्मा, गोपालजी त्रिवेदी, रामचंद्र खान, महेंद्र नारायण कर्ण, रणजीव, सफदर इमाम कादरी, सुनीता त्रिपाठी, शाहीना परवीन
निवेदक :
डॉ. कृष्ण मोहन प्रसाद
विभागाध्य क्ष,
स्नागतकोत्तणर अर्थशास्त्रद विभाग, बीआरए बिहार विश्व विद्यालय, मुजफ्फरपुर
अनिल प्रकाश
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मोबाइल – +919431405067, +9109304549662
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