अप्रैल 1984 में लखनऊ के पास गोमती में गंदगी के भर जाने से हजारों मछलियां खत्म हो गईं। लखनऊ शहर के एक दैनिक पत्र ‘पायोनियर’ ने लिखा था, “हर गरमी में गोमती मछलियों के लिए मौत का कुंआ बन जाती है क्योंकि धारा धीमी हो जाती है और बगल में लगे कारखानों से होने वाला प्रदूषण बढ़ जाता है।” केरल की समुद्रतटीय झीलें धीरे-धीरे मिट रही हैं क्योंकि उन्हें नारियल उद्योगों ने नारियल के छिलके फेंकने का कूड़ा घर बना लिया है।
पानी के प्रदूषण का बुरा प्रभाव देश के 20 लाख से ज्यादा मछुआरों की आर्थिक स्थिति पर पड़ रहा है। प्रदूषित नदियां सारी गंदगी और कूड़े को खाड़ियों और तटीय इलाकों तक बहा ले जाती हैं और उनसे खाड़ी के तथा तटीय मछली पालन उद्योग को भारी हानि उठानी पड़ती है। मछली उत्पादन पर और भी कई चीजों का प्रभाव पड़ता है। रासायनिक खाद और कीड़े मार दवाइयां भी मछलियों के लिए जानलेवा साबित होती हैं।
आज देश में एक भी नदी मछलियों के लिए अनुकूल नहीं बची है। गंगा के किनारे बसे कोई 1,500 उद्योग रोज अपने जहरीले पानी को नदी में बहाते हैं। यमुना के किनारों पर लगे उद्योग 60 डिग्री सेंग्रे. गरम पानी यमुना में छोड़ते है जिससे मछलियों का जीना मुश्किल हो जाता है। उत्तर प्रदेश में काली नदी में 24 चीनी के कारखानों की गंदगी गिराई जाती है। एक बार तो इस नदी में 160 किमी. की दूरी तक पानी में आक्सीजन की कमी के कारण 30 टन मछलियां मर गईं थीं। चंबल की लगभग सभी उपनदियां-छोटी हों या बड़ी बेहद प्रदूषित हो गई हैं और वहां मछलियां बिलकुल कम हो गई हैं। कागज और लुगदी के कारखाने, रासायनिक कंपनियां, चीनी, सीमेंट तथा अन्य कई उद्योग सोन नदी में रोज कई लाख लीटर गंदा पानी छोड़ रहे हैं। अब डेहरी-ऑनसोन से 22 किमी नीचे तक एक भी मछली नहीं है। दामोदर, हुगली, भद्रा, गोदावरी, कावेरी सभी की एक-सी बुरी हालत है। प्रदूषित नदी अपनी मछलियों को ले ही डूबती है, जब वह समुद्र में मिलती है तो उससे वहां की मछलियों पर भी असर पड़ता है।
जल प्रदूषण के बाद, मछलियों पर कहर ढाने वाली चीजे हैं बड़े-बड़े बांध। सेंट्रल इनलैंड फिशरीज रिसर्च इंस्टिट्यूट के पूर्व निर्देशक श्री वीजी झिंरागन के अनुसार “नदी घाटी विकास योजनाओं का आव्रजन करने वाली और न करने वाली दोनों प्रकार की मछलियों पर बुरा असर होता है। बांध, बैराज आदि सब मछलियों के आव्रजन में अड़चन बनते हैं”। मछलियां अंडे देने और पालने के लिए अपने निश्चित स्थान तक जा नहीं पाती हैं आव्रजन के बंद होने से हमेशा के लिए मछलियों की संख्या घट सकती है।
नदियों पर बांध बांधने से नदी के निचले प्रवाह का गुण भी बिगड़ता है। अकसर गहरे जलाशय से जो पानी बाहर छोड़ते हैं उसमें ऑक्सीजन की मात्रा कम, कार्बन डायआक्साइड ज्यादा और हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी कई गैसें होती हैं, जो नदी के निचले हिस्से की मछलियों को मारती हैं। बांधों से छोड़े जाने वाले पानी की मात्रा भी कम-ज्यादा होती रहती है। इसलिए मछलियों का स्थान भी घटता-बढ़ता रहता है, उनके अंडे देने के क्षेत्र पर और नदी की ही मछली उत्पादन क्षमता पर आघात पहुंचता है।
पानी के प्रदूषण का बुरा प्रभाव देश के 20 लाख से ज्यादा मछुआरों की आर्थिक स्थिति पर पड़ रहा है। प्रदूषित नदियां सारी गंदगी और कूड़े को खाड़ियों और तटीय इलाकों तक बहा ले जाती हैं और उनसे खाड़ी के तथा तटीय मछली पालन उद्योग को भारी हानि उठानी पड़ती है। मछली उत्पादन पर और भी कई चीजों का प्रभाव पड़ता है। रासायनिक खाद और कीड़े मार दवाइयां भी मछलियों के लिए जानलेवा साबित होती हैं।
आज देश में एक भी नदी मछलियों के लिए अनुकूल नहीं बची है। गंगा के किनारे बसे कोई 1,500 उद्योग रोज अपने जहरीले पानी को नदी में बहाते हैं। यमुना के किनारों पर लगे उद्योग 60 डिग्री सेंग्रे. गरम पानी यमुना में छोड़ते है जिससे मछलियों का जीना मुश्किल हो जाता है। उत्तर प्रदेश में काली नदी में 24 चीनी के कारखानों की गंदगी गिराई जाती है। एक बार तो इस नदी में 160 किमी. की दूरी तक पानी में आक्सीजन की कमी के कारण 30 टन मछलियां मर गईं थीं। चंबल की लगभग सभी उपनदियां-छोटी हों या बड़ी बेहद प्रदूषित हो गई हैं और वहां मछलियां बिलकुल कम हो गई हैं। कागज और लुगदी के कारखाने, रासायनिक कंपनियां, चीनी, सीमेंट तथा अन्य कई उद्योग सोन नदी में रोज कई लाख लीटर गंदा पानी छोड़ रहे हैं। अब डेहरी-ऑनसोन से 22 किमी नीचे तक एक भी मछली नहीं है। दामोदर, हुगली, भद्रा, गोदावरी, कावेरी सभी की एक-सी बुरी हालत है। प्रदूषित नदी अपनी मछलियों को ले ही डूबती है, जब वह समुद्र में मिलती है तो उससे वहां की मछलियों पर भी असर पड़ता है।
जल प्रदूषण के बाद, मछलियों पर कहर ढाने वाली चीजे हैं बड़े-बड़े बांध। सेंट्रल इनलैंड फिशरीज रिसर्च इंस्टिट्यूट के पूर्व निर्देशक श्री वीजी झिंरागन के अनुसार “नदी घाटी विकास योजनाओं का आव्रजन करने वाली और न करने वाली दोनों प्रकार की मछलियों पर बुरा असर होता है। बांध, बैराज आदि सब मछलियों के आव्रजन में अड़चन बनते हैं”। मछलियां अंडे देने और पालने के लिए अपने निश्चित स्थान तक जा नहीं पाती हैं आव्रजन के बंद होने से हमेशा के लिए मछलियों की संख्या घट सकती है।
नदियों पर बांध बांधने से नदी के निचले प्रवाह का गुण भी बिगड़ता है। अकसर गहरे जलाशय से जो पानी बाहर छोड़ते हैं उसमें ऑक्सीजन की मात्रा कम, कार्बन डायआक्साइड ज्यादा और हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी कई गैसें होती हैं, जो नदी के निचले हिस्से की मछलियों को मारती हैं। बांधों से छोड़े जाने वाले पानी की मात्रा भी कम-ज्यादा होती रहती है। इसलिए मछलियों का स्थान भी घटता-बढ़ता रहता है, उनके अंडे देने के क्षेत्र पर और नदी की ही मछली उत्पादन क्षमता पर आघात पहुंचता है।
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