सरकार ने जरूर ऐसे कटाव पीड़ित, भूमिहीन और दरिद्र लोगों के लिए रिहाइशी जमीन की व्यवस्था करने का प्रावधान किया है। सरकारी जमीन उपलब्ध न होने पर इस बात की व्यवस्था है कि सरकार जमीन का अधिग्रहण करे और उसका भूमिहीन कटाव पीड़ितों में वितरण करे। ऐसे लोग जो कि दरिद्र नहीं हैं वह भी सरकार से गृह निर्माण के लिए जमीन ले सकते हैं बशर्ते कि वह जमीन की कीमत सरकार के पास पेशगी जमा कर दें।
नदियों के पानी में आने वाली अत्यधिक गाद के कारण नदियों की धारा का परिवर्तन होता है जिसकी परिणति नदी के कगारों के कटाव के रूप में होती है। यह कटाव गंगा और उसकी सहायक धाराओं के साथ लम्बे समय से चल रहा है और भविष्य में भी चलता रहेगा। इस कटाव का प्रभाव तो नदी की पूरी लम्बाई पर पड़ता है पर तटबन्धों के बीच में रहने वाले लोगों पर तो कटाव के कारण शामत ही आ जाती है। आये दिन इस कटाव से पीड़ित और उजड़े हुये व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि होती जा रही है और ऐसे लोगों के पास निकट के तटबन्धों, नहरों, सड़कों, रेल लाइनों या दूसरी ऊँची जगहों पर जा कर रहने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता है मगर इनमें से किसी भी जगह बसने का उनका कोई कानूनी आधार नहीं होता। ऐसे लोगों का जीवन फिर से उजाड़ दिये जाने के आतंक और प्रायः नारकीय परिस्थितियों में ही बीत जाता है।ग्राम खैरी, प्रखंड मधेपुर, जि. मधुबनी के दिगम्बर मंडल का कहना है कि “...कोसी तटबन्ध के अन्दर का गाँव बसी पट्टी (प्रखंड मधेपुर) पिछले दो साल में तीन बार कट गया। इस गाँव का रकबा करीब 2200 एकड़ का था जिसमें से 1400 एकड़ नदी लील गई। इस गाँव में लगभग 1800 परिवार यादव, मंडल (खतवे), नेनियाँ, मुसहर और मुसलमान रहते थे। 800 एकड़ के आस पास जमीन बची है। कोसी की तीन धाराओं ने घेर कर इस गाँव को काट दिया है। तटबन्धों के ठीक बीचो-बीच बसे इस गाँव को पुनर्वास पूर्वी तटबन्ध के पूरब सुपौल जिले में खरैल परसा में मिला था। दूरी की वजह से वहाँ कोई गया नहीं। कटाव की वजह से जो भगदड़ मची उसके कारण कोई 85 परिवार दक्षिण की ओर चले गये। 93 परिवार नदी के पूरब भाग गये है, 111 ने पुराने गाँव के उत्तर में ठिकाने तलाशे और 59 परिवार नदी और कोसी के पश्चिमी तटबन्ध के बीच रहने के लिए चले आये हैं। इस कटाव की वजह से 155 परिवार पूरी तरह से भूमिहीन हो गये हैं और वह सचमुच अब सड़क (गाँव के रास्ते) पर आ गये हैं। इनके रहने की भी जगह नहीं बची है। नदी की धारा इतनी गहरी है कि बसी पट्टी और भगता के बीच सूंसों (डॉल्फिनों) ने अड्डा जमाया हुआ है।
...रिहाइश के लिए अब गाँव में एक नई व्यवस्था ने जन्म लिया है। जो लोग पूरी तरह भूमिहीन हो गये हैं उन्होंने 300 रुपये प्रति कट्टा प्रतिवर्ष की सालाना अलिखित लीज पर मकान (झोपड़ी) बनाने के लिए उन लोगों से जमीन ली हुई है जिनकी जमीन अभी भी बची हुई है। यह व्यवस्था कब तक चल पाती है, यह समय बतायेगा। उधर सरकार का मानना है कि इन लोगों का पुनर्वास हो गया था अतः अब किसी भी प्रकार से अतिरिक्त जमीन की व्यवस्था नहीं की जायेगी। ग्रामीणों का मानना है कि जब सरकार राशन की दुकान, स्वास्थ्य केन्द्र या मतदान केन्द्र की व्यवस्था पुराने गाँवों में करती है तो फिर रिहाइशी जमीन पर ही उसको ऐतराज क्यों है? लोगों की जीविका का क्या होगा? उसके लिए तो अब पंजाब,हरियाणा, दिल्ली और भदोही अदि ही अब सर्वमान्य समाधान हो गया है।’’
सुन्दर बिराजित (प्रखंड मधेपुर जि. मधुबनी) के देव नाथ देवन की कुछ जमीन कोसी तटबन्धों के बीच मरौना प्रखंड के हर्री मौजे के बरमोतरा गाँव में पड़ती है। बताते हैं कि ‘‘कोसी में पिछले दो साल से बाढ़ नहीं आई सो यह नदी चर्चा में भी नहीं है मगर यहाँ कटाव जबर्दस्त है। गाँव के गाँव सापफ़ हो जा रहें हैं। बगल में खोखनाहा जोकि 2000 परिवारों का गाँव था, बेचिराग़ी हो गया। इसके साथ ही भगवतीपुर, पंचगछिया और मुरकियाही का भी अब नामों-निशान नहीं बचा, इन गाँवों के लोग कहाँ चले गये, इसका कोई हिसाब नहीं है। दक्षिण में मधेपुर प्रखड के भगता गाँव का भी पता नहीं है’’
सरकार ने जरूर ऐसे कटाव पीड़ित, भूमिहीन और दरिद्र लोगों के लिए रिहाइशी जमीन की व्यवस्था करने का प्रावधान किया है। सरकारी जमीन उपलब्ध न होने पर इस बात की व्यवस्था है कि सरकार जमीन का अधिग्रहण करे और उसका भूमिहीन कटाव पीड़ितों में वितरण करे। ऐसे लोग जो कि दरिद्र नहीं हैं वह भी सरकार से गृह निर्माण के लिए जमीन ले सकते हैं बशर्ते कि वह जमीन की कीमत सरकार के पास पेशगी जमा कर दें। यह अध्ययन बड़ा ही दिलचस्प होगा कि आज तक कटाव से पीड़ित कितने भूमिहीन या दरिद्र लोगों को सरकार की तरफ से बसने के लिए मुफ्त जमीन दी गई है या कितने लोग ऐसे हैं जिनके घर नदी की धारा में गिर कर बर्बाद हो गये और उन्होंने सरकार से कह कर जमीन पाई है, भले ही उन्हें उसकी कीमत ही क्यों न देनी पड़ी हो। कड़वी सच्चाई यह है कि ऐसे कटाव पीड़ितों को कोई घास नहीं डालता और जहाँ कटाव पीड़ितों ने संघर्ष करके सरकार की नाक में दम कर दिया वहाँ तो उन्हें कुछ रियायतें मिल गईं वरना वह ऐसी जमीन पर रह रहे हैं जहाँ से उन्हें कभी भी हटाया जा सकता है।
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