वह हिम-गिरि के देवदारु-वन में है विचरण करती
नीरद कुंज बनाकर वह, शशि-बदनी रहती
नहीं किसी ने पिए अझर झरते वे निर्झर
जिन पर रहते हिलते उसके सुमधुर अधर।
शशि-आलिंगित सांध्य जलद से गिरि पर सुंदर।
वह तट पर उल्लास उछाल छलककर बहती
पत्थर में वह फूल खिला फेनिल हो हँसती।
नीरद कुंज बनाकर वह, शशि-बदनी रहती
नहीं किसी ने पिए अझर झरते वे निर्झर
जिन पर रहते हिलते उसके सुमधुर अधर।
शशि-आलिंगित सांध्य जलद से गिरि पर सुंदर।
वह तट पर उल्लास उछाल छलककर बहती
पत्थर में वह फूल खिला फेनिल हो हँसती।
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