नाव के पाँव

नीचे नीर का विस्तार
ऊपर बादलों की छाँव,
चल रही है नाव;
चल रही है नाव;
लहरों में छिपे हैं पाँव,
सचमुच मछलियों से कहीं लहरों में छिपे हैं पाँव।
डाँड उठते और गिरते साथ,
फैल जाते दो सलोने हाथ;
टपकतीं बूँदें, बनातीं वृत्त,
पाँव जल में लीन करते नृत्त;
फूल खिल जाते लहरियों पर,
घूमते घिर आसपास भँवर;
हवा से उभरा हुआ कुछ पाल,
शीश पर आँचल लिया है डाल;
दूर नदिया के किनारे गाँव,
जा रही केवट-वधू-सी नाव।
घुल गया होगा महावर,
छिपे लहरों में अभी तक-
मछलियों की तरह चंचल पाँव।

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