नाव भी एक स्त्री है
उस युवती चित्रकार ने दिसंबर की एक शाम
अपनी तस्वीरों को दिखाते हुए मुझे गैलरी में यही बताया था
उस गैलरी में आने से पहले
मैं तो यही जानता था
कि नाव तो लकड़ी का एक निर्जीव शरीर है
और उस पर सवार होकर मैंने कई नदियां पार की थीं
पर उस शाम के बाद मैंने जाना
नाव भी बोलती है, सुनती है
और सहती है एक भारतीय स्त्री की तरह
तब तो उसके भी दुःख होंगे जरूर
एक किनारे से दूसरे किनारे तक फैले
उसकी भी एक आत्मकथा होगी
पानी की सतह को छूती, उसे काटती हुई
तब मैंने एक रात अत्यंत एकांत, आत्मीय और निजी क्षणों में
अपनी पत्नी के होठों और वक्षस्थलों पर नाव के गहरे निशान देखे थे
मेरे बाहुपाश में उसका जर्जर शरीर बिस्तर पर
नाव की तरह ही कांप रहा था
मेरी मां की कमर नाव की तरह झुक गई थी अपने बोझ से
मेरी बेटी तो एक चप्पू की तरह दीख रही थी
फिर हर नाव में
मैंने अपनी पत्नी का चेहरा देखा था
एक थकी हुई स्त्री के चेहरे की तरह
मेरी मां तो उसमें एक कील की तरह धंसी थी अंदर तक
मेरी बेटी एक डोर की तरह बंधी थी उससे
उस युवती चित्रकार ने
तब मुझे यह भी बताया
कि पेड़ भी एक स्त्री है
तो मैं और चौंक गया
मुझे अपनी पत्नी के पके केशों में पेड़ की जड़े नजर आई
मां तो एक सूखे पत्ते की तरह सड़कों पर गिरी पड़ी थी अलग ही
बेटी भी ऐसी एक टहनी थी जो आंधी में टूटने वाली थी
मैं कुछ देर रहता गैलरी में
कुछ और सोचता
पेड़ स्त्री के संबंधों के बारे में
कि उस युवती चित्रकार ने यह कहकर मुझे भीतर से और डरा दिया
कि इस साल गर्मियों में
जंगल में फिर आर लगेगी
फिर पेड़ काटे जाएंगे
फिर बाढ़ आएगी नदी में
फिर नावें डूबेंगी
मैं मुश्किल में फंसा
एक बाल-बच्चेदार आदमी हूं
इस सदी में घूम-घूमकर
फेरी वाले की तरह आवाज लगाता हूं
है कोई? है?
इन पेड़ों और नावों को बचाने वाला!
उस युवती चित्रकार ने दिसंबर की एक शाम
अपनी तस्वीरों को दिखाते हुए मुझे गैलरी में यही बताया था
उस गैलरी में आने से पहले
मैं तो यही जानता था
कि नाव तो लकड़ी का एक निर्जीव शरीर है
और उस पर सवार होकर मैंने कई नदियां पार की थीं
पर उस शाम के बाद मैंने जाना
नाव भी बोलती है, सुनती है
और सहती है एक भारतीय स्त्री की तरह
तब तो उसके भी दुःख होंगे जरूर
एक किनारे से दूसरे किनारे तक फैले
उसकी भी एक आत्मकथा होगी
पानी की सतह को छूती, उसे काटती हुई
तब मैंने एक रात अत्यंत एकांत, आत्मीय और निजी क्षणों में
अपनी पत्नी के होठों और वक्षस्थलों पर नाव के गहरे निशान देखे थे
मेरे बाहुपाश में उसका जर्जर शरीर बिस्तर पर
नाव की तरह ही कांप रहा था
मेरी मां की कमर नाव की तरह झुक गई थी अपने बोझ से
मेरी बेटी तो एक चप्पू की तरह दीख रही थी
फिर हर नाव में
मैंने अपनी पत्नी का चेहरा देखा था
एक थकी हुई स्त्री के चेहरे की तरह
मेरी मां तो उसमें एक कील की तरह धंसी थी अंदर तक
मेरी बेटी एक डोर की तरह बंधी थी उससे
उस युवती चित्रकार ने
तब मुझे यह भी बताया
कि पेड़ भी एक स्त्री है
तो मैं और चौंक गया
मुझे अपनी पत्नी के पके केशों में पेड़ की जड़े नजर आई
मां तो एक सूखे पत्ते की तरह सड़कों पर गिरी पड़ी थी अलग ही
बेटी भी ऐसी एक टहनी थी जो आंधी में टूटने वाली थी
मैं कुछ देर रहता गैलरी में
कुछ और सोचता
पेड़ स्त्री के संबंधों के बारे में
कि उस युवती चित्रकार ने यह कहकर मुझे भीतर से और डरा दिया
कि इस साल गर्मियों में
जंगल में फिर आर लगेगी
फिर पेड़ काटे जाएंगे
फिर बाढ़ आएगी नदी में
फिर नावें डूबेंगी
मैं मुश्किल में फंसा
एक बाल-बच्चेदार आदमी हूं
इस सदी में घूम-घूमकर
फेरी वाले की तरह आवाज लगाता हूं
है कोई? है?
इन पेड़ों और नावों को बचाने वाला!
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