जल स्रोत के जल समेट क्षेत्र का समुचित संरक्षण व संवर्धन करने के साथ ही नौले व हैंडपम्प में पानी के प्रवाह में गुणात्मक परिवर्तन आया है। ग्रामवासियों के अनुसार वर्ष 2003 में उक्त नौले में वर्ष भर पानी बना रहा तथा इस वर्ष हैंडपम्प से औसतन 1200 लीटर पानी प्रतिदिन प्राप्त हुआ। जल समेट क्षेत्र में मलमूत्र विसर्जन करने पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाने के साथ ही गाँव में पेयजल सम्बन्धित बीमारियाँ भी काफी कम हुई हैं।
नाली गाँव अल्मोड़ा जिले के धौला देवी ब्लॉक में अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ मार्ग पर दन्यां बाजार के निकट बसा एक छोटा सा गाँव है। इस गाँव में 17 हरिजन परिवार निवास करते हैं, इस गाँव के लिये पेयजल की कोई सरकारी योजना नही है। गाँववासी पानी की दैनिक जरूरतों की पूर्ति गाँव के निकट स्थित नौले से करते रहे हैं। ग्रामवासियों के अनुसार विगत 15 वर्षों से इस सदाबहार नौले का जल प्रवाह निरन्तर कम होता गया तथा वर्ष 1999 तक यह नौला गर्मियों में पूर्ण-रुप से सूख गया। इस नौले के सूखते ही गाँववासियों को पेयजल का गम्भीर संकट उत्पन्न हो गया तथा उन्हें पेयजल हेतु गाँव से डेढ़ किलोमीटर नीचे स्थित दूसरे स्रोत पर निर्भर होना पड़ा। इतनी दूर से पानी ढोने में महिलाओं को 2-3 घण्टे का समय लगने लगा। साथ ही साथ पानी ढोने से उनके सिर में निरन्तर दर्द रहने लगा।
गाँव में पानी की समस्या को दूर करने के लिये ग्राववासियों ने परती भूमि विकास समिति, नई दिल्ली व कस्तूरबा महिला उत्थान मण्डल, दन्या के साथ मिलकर विकल्प ढूँढ़ने प्रारम्भ किये। चूँकि इस गाँव के आस-पास कोई दूसरा उचित जल स्रोत उपलब्ध नहीं था इस कारण इस गाँव में केवल हैंडपम्प व बरसाती जल एकत्रण टैंक ही मुख्य समाधान निकले। ग्रामवासियों ने बाहरी विशेषज्ञ की सहायता से नौले से 10 मीटर नीचे की तरफ कुआँ खोदना प्रारम्भ किया। काफी परिश्रम के उपरान्त करीबन 25 फीट की गहराई पर पानी निकलना प्रारम्भ हुआ। पानी निकलते ही ग्रामवासियों को अपार खुशी हुई व उन्होंने सर्वप्रथम विष्णु (जल) की पूजा की। कुएँ को 5 फीट और गहरा खोदने के उपरान्त छनित जल कुएँ का निर्माण किया गया। इसके उपरान्त कुएँ में इण्डिया मार्क-।। हैंडपम्प लगाया गया। इस हैंडपम्प को लगाने में सम्पूर्ण लागत 44,141.50 रुपये आई जिसका 10 प्रतिशत भाग ग्रामवासियों द्वारा श्रमदान के रूप में वहन किया गया।
प्रारम्भ में इस कुएँ में जल प्रवाह काफी कम (1000 ली/दिन) था, जल प्रवाह को बढ़ाने के लिये ग्रामवासियों के साथ मिल कर तय किया कि इस स्रोत के जल समेट क्षेत्र को पूर्ण रूप से बंद करके वर्षा जल के संग्रहण हेतु कार्य किये जाएँ। गाँव में काफी चर्चा के उपरान्त इस स्रोत के पास पड़ने वाली समस्त भूमि (वन पंचायत व बंजर कृषि भूमि) को पशुचरान हेतु पूर्ण रूप से बंद कर दिया गया तथा इस भूमि में 5 मीटर के अन्तराल में कन्टूर नालियाँ खोद कर उनमें औंस व नेपियर घास का रोपण किया गया व इन कन्टूरों के मध्य 2.5 मीटर की दूरी पर उतीस, बाँस, बाँज व अनेक फल प्रजातियों का रोपण किया गया। नौले व हैंडपम्प के समीप पड़ने वाले सूखे गधेरे के उपचार हेतु इसमें 5 रोक बाँध बनाये गये तथा नाले के दोनों ओर केला, बाँस व अन्य प्रजातियों का रोपण किया गया।
इस जल स्रोत के ऊपरी पहाड़ी पर एक परम्परागत खाल था, किन्तु निरन्तर उपेक्षा के कारण इसमें पूर्ण रूप से गाद भर गई थी। ग्रामवासियों ने श्रमदान करके इस खाल का जीर्णोद्धार किया। जिससे वर्तमान में यह खाल वर्ष भर वर्षा के जल से भरा रहता है।
जल स्रोत के जल समेट क्षेत्र का समुचित संरक्षण व संवर्धन करने के साथ ही नौले व हैंडपम्प में पानी के प्रवाह में गुणात्मक परिवर्तन आया है। ग्रामवासियों के अनुसार वर्ष 2003 में उक्त नौले में वर्ष भर पानी बना रहा तथा इस वर्ष हैंडपम्प से औसतन 1200 लीटर पानी प्रतिदिन प्राप्त हुआ। जल समेट क्षेत्र में मलमूत्र विसर्जन करने पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाने के साथ ही गाँव में पेयजल सम्बन्धित बीमारियाँ भी काफी कम हुई हैं। स्थानीय महिलाओं के अनुसार गाँव के समीप ही पानी की उपलब्धता होने से अब उनके सिर में दर्द नहीं रहता है। महिलाएँ अब पानी ढ़ोने में बचे समय का उपयोग अपने संगठन को मजबूत करने व गाँव के संसाधनों के विकास में लगा रही है।
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