वन अनुसंधान संस्थान देहरादून, आईआईटी रुड़की, सेंटर फाॅर इकोलाॅजी सेंटर और रिसर्च सेंटर देहरादून मिलकर एक रिसर्च प्रोजेक्ट पर काम करेंगे। जिसका उद्देश्य नैनीताल झील के महत्वपूर्ण जल पुनर्भरण क्षेत्रों का अध्ययन और पहचान करने के लिए वाटर आइसोटोप जैसी तकनीक का उपयोग करके किया जाएगा। डिप्टी एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर और हिमालय जल निकायों के विशेषज्ञ विशाल सिंह ने बताया, केंद्र सरकार ने इस प्रोजेक्ट के लिए 1.8 करोड़ रुपये की सहायता की है और इस प्रोजेक्ट की समय सीमा 2022 तक है।
पहाड़ियों से घिरी नैनीताल झील 1,938 मीटर की ऊंचाई पर बनी हुई है। पीने के लिए इस झील के पानी पर अधिक निर्भरता, जनसांख्यिकी में बदलाव, जलवायु परिवर्तन, विकास की पहल, जनसंख्या में वृद्धि, गाद, झील के आसपास ढलानों पर अतिक्रमण और लंबे समय से योजना की कमी के कारण यह झील खतरे से गुजर रही है।
विशाल सिंह ने बताया कि इस प्रोजेक्ट के तहत, हम नैनीताल झील के चारों ओर के ढलानों पर अलग-अलग क्षेत्रों में आइसोटोप का पानी डालेंगे। इसके सीपेज और झील के रिचार्जिंग से संबंधित माप लेंगे। हम आइसोटोप वाॅटर से नाॅर्मल पानी को अलग कर सकते हैं। अलग-अलग रिचार्ज जोन के माध्यम से झील में पानी रिस रहा है, उसके बारे में हमें बहुत सारी जानकारी मिल सकती है। यह झील के महत्वपूर्ण वाटर रिवाइवल क्षेत्रों का पता लगाने में मदद करेगा।
विशाल सिंह ने कहा कि नैनीताल झील के आसपास के सभी प्रमुख वाटर रिचार्ज जोन की पहचान करने वाला यह पहली विस्तृत स्टडी होगी। इस स्टडी में हमें जो आंकड़े मिलेंगे उससे पता चलेगा कि इस हिमालयी झील को बचाने के लिए क्या किया जाना चाहिए? इसक स्टडी में यहां के जल स्तर में उतार-चढ़ाव और समग्र गहराई में कमी के बारे में पता चलेगा।
विशाल सिंह ने बताया कि इस पोजेक्ट के लिए पूरा पैसा केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय द्वारा दिया जा जा रहा है। सीईडीएआर इस तरह के प्रोजेक्ट में हमारी विशेषज्ञता को देखते हुए हमारे साथ काम करेगी। हम मसूरी में भी ऐसे ही एक रिसर्च प्रोजेक्ट को लेकर काम कर रहे हैं। सीईडीएआर पहले से ही मसूरी में महत्वपूर्ण वाॅटर रिवाइवल क्षेत्रों का अध्ययन कर रहा है। कनाडा में बने अंतर्राष्ट्रीय विकास संसाधन मसूरी में जलवायु अनुकूली जल प्रबंधन पर काम कर रहे इस प्रोजेक्ट के लिए आर्थिक सहायता दे रहा है। इस प्रोजेक्ट को पूरा करने की समय अवधि सितंबर 2019 में समाप्त होगी।
विशाल सिंह, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के शोधकर्ताओं के साथ, वर्षों से नैनीताल झील के महत्वपूर्ण जल स्रोतों का अध्ययन कर चुके हैं। जिसमें उन्होंने पाया है कि झील से लगभग एक किलोमीटर ऊपर सुखताल झील 40 से 50 प्रतिशत पानी की आपूर्ति की जा रही था और इस झील के लंबे समय के संरक्षण के लिए अन्य रिचार्ज जोन के साथ पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। पहाड़ियों से घिरी नैनीताल झील 1,938 मीटर की ऊंचाई पर बनी हुई है। पीने के लिए इस झील के पानी पर अधिक निर्भरता, जनसांख्यिकी में बदलाव, जलवायु परिवर्तन, विकास की पहल, जनसंख्या में वृद्धि, गाद, झील के आसपास ढलानों पर अतिक्रमण और लंबे समय से योजना की कमी के कारण यह झील खतरे से गुजर रही है।
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