पर्यावरण कार्यकर्ताओं के हस्तक्षेप के कारण मुम्बई की समुद्रतटीय सड़क का काम रुक गया है। पर्यावरण की बात करने वालों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि स्विट्जरलैंड में पहाड़ काटकर सड़कें बनाई गई हैं। वहाँ पर्यावरण सुरक्षित है और विकास भी हुआ है।
मुम्बई की जिस समुद्रतटीय सड़क यानी कोस्टल रोड की लोगों को बहुत अधिक जरूरत है, उसके निर्माण में अब समय लगेगा, क्योंकि मुम्बई उच्च न्यायालय ने इसका निर्माण रोकने का आदेश दिया है। न्यायालय ने इस सड़क का निर्माण रोकने का आदेश पर्यावरण के कुछ पहरेदारों की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। गौरतलब है कि इस सड़क के निर्माण पर अभी तक करोड़ों रुपए खर्च हो चुके हैं।
भविष्य में जब भी कभी 29 किलोमीटर लम्बी यह सड़क पूरी होगी, तब मुम्बई की शक्ल बदल जाएगी। वर्तमान स्थिति यह है कि इस महानगर में हवाई अड्डे से दक्षिण मुम्बई आने के लिए सिर्फ एक ही सड़क है, जिस पर इतना जाम लगता है कि अनेक विदेशी निवेशक शहर में आने का प्रयास ही नहीं करते और हवाई अड्डे के आस-पास किसी होटल से ही अपना काम करके वापस लौट जाते हैं। दशकों से विचार-विमर्श होने के बाद पिछले वर्ष ही इस सड़क के निर्माण की शुरुआत हुई। तब इस सड़क के निर्माण की लागत 14,000 करोड़ रुपए आंकी गई थी। लेकिन इसका निर्माण रोक दिए जाने के कारण सम्भव है कि अब इसकी लागत दोगुनी हो जाए।
अपने देश के शहर और महानगर दुनियाभर में सबसे बेहाल माने जाते हैं, और इसका मुख्य कारण यही है कि विकास की हर योजना में ऐसे लोग रुकावट पैदा करते हैं, जो अपने आपको पर्यावरण के ठेकेदार मानते हैं, जबकि वास्तव में वे विकास के दुश्मन हैं। वे अड़ंगा भी तब जाकर लगाते हैं, जब निर्माण कार्य की किसी योजना की शुरुआत हो चुकी होती है। इससे निर्माण कार्य प्रभावित होता है। पर्यावरण की बात करने वालों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि स्विट्जरलैंड जैसे देशों में ऊँचे पहाड़ों को काटकर सड़कें बनाई गई हैं और वे सड़कें पहाड़ों के नीचे लम्बी सुरंगों में बनी हैं। उस देश में पर्यावरण सुरक्षित है और विकास भी पूरी तरह हुआ है। जबकि अपने यहाँ के महानगरों में हवा-पानी इतना प्रदूषित है कि दुनिया के सबसे गन्दे शहरों की सूची में देश के कई शहरों के नाम आते हैं। ग्वालियर, पटना, लखनऊ, मुम्बई और अन्य शहर इस सूची में हैं।
मुम्बईवासी होने के नाते मैं कह सकती हूँ कि यहाँ जीना वास्तव में बहुत मुश्किल है। बरसात के मौसम में तो यहाँ रहना इतना कठिन हो जाता है कि हर दूसरे-तीसरे दिन जब बारिश ज्यादा होने लगती है, तब प्रशासन से सूचना मिलती है कि घर से बाहर सिर्फ उन लोगों को निकलना चाहिए, जिनको जरूरी काम हो। बरसात के दिनों में यहाँ स्कूल बन्द हो जाते हैं और कई रिहायशी इलाके ऐसे हैं, जहाँ सड़कें पूरी तरह डूब जाती हैं। इस हाल में क्या उन लोगों को दंडित नहीं करना चाहिए, जिनकी याचिकाओं के कारण इस महानगर का विकास बार-बार रोका गया है?
वैसे भी यहाँ नियम-कानून इतने अजीब हैं कि कानून के तहत समुद्र तटीय क्षेत्रों में निर्माण पर प्रतिबन्ध लगा हुआ है। जिस राजनेता ने यह कानून बनाया था, उसने शायद इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया होगा कि न्यूयॉर्क जैसे महानगर में इस किस्म का प्रतिबंध अगर लगा होता, तो शायद उस महानगर का आधा हिस्सा भी न बन पाता। इसमें इस तरह के कानूनों को हटाने की बात सोचने का समय अब आ गया है। इस कानून के कारण मुम्बई की आबादी का एक बड़ा हिस्सा झुग्गी-बस्तियों में रहने के लिए मजबूर है, क्योंकि वे बस्तियाँ बन ही नहीं पाई हैं, यहाँ किराए पर रहने के लिए मध्यवर्ग के लिए आवास हों।
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