इसके बाद का घटनाक्रम बताते हैं पछुआरी टोल निवासी (अब मुजफ्फरपुर) प्रो. सतीश चन्द्र झा जो युगेश्वर झा के बचपन के सहपाठी और अभिन्न मित्र हैं। वे कहते हैं, ‘‘...जब यह निश्चित हो गया कि युगेश्वर झा को वहाँ से हटना ही पड़ेगा तब उन्होंने डॉ. जगन्नाथ मिश्र से मंत्रणा की और तब यह तय हुआ कि आन्दोलन का नेतृत्व सतीश चन्द्र झा संभालेंगे। उन दिनों यहाँ शिक्षकों का भी एक आन्दोलन चल रहा था और मैं उसी सिलसिले में मुजफ्फरपुर जेल में बन्द था। युगेश्वर झा मुझसे मिलने जेल आये और कहा कि अगर आप आन्दोलन की कमान नहीं संभालेंगे तो यह रिंग बांध बन जायेगा। बहुत से लोग तबाह-बरबाद हो जायेंगे और धीरेन्द्र ब्रह्मचारी की जीत होगी। मैं बड़े लोगों की राजनीति में फंसा। आठ रुपया चालीस पैसा जमा करवा कर रात में मेरा डाक्टरी परीक्षण करवाया गया और मैं पैरोल पर जेल से रिहा होकर बाहर निकल आया और गाँव पहुँच गया।
यहाँ से युगेश्वर झा की गैर-मौजूदगी में जन-आन्दोलन की शुरुआत हुई क्योंकि रिंग बांध बन जाने से पहले से ही बदहाल जल-निकासी और भी बुरी हालत में पहुँचने वाली थी। इस रिंग बांध का असर नेपाल सीमा पर रातो नदी तक पड़ने वाला था। पचासों गाँव पर बाढ़ का खतरा मंडराने लगा था। हुआ यह कि अंगरेजवा पोखर के जमींदारी बांध के पास जब चानपुरा रिंग बांध का अलाइनमेन्ट दिया जाने लगा तभी यह समझ में आने लगा कि कोकराहा धार के पानी को इस सँकरे गैप से निकलने में मुश्किल होगी और यह पानी वापस खिरोई की ओर मुड़ेगा और पछुआरी टोल समेत बहुत से गाँवों को तबाह करेगा। यह आशंका बाद में सच निकली क्योंकि पानी की आमद बढ़ने से खिरोई नदी का तटबंध टूटने लगा और बर्री, पिलोखर, चौगामा, शुजातपुर और अवारी आदि गाँव तबाह होने लगे। हम लोगों ने एक ग्राम सुरक्षा संघर्ष समिति बनायी। पछुआरी टोल के दुःख हरण चौधरी इसके महामंत्री थे और मुझे अध्यक्ष बनाया गया। हम लोगों ने इन सभी गाँवों में सघन सम्पर्क कर बताया कि अगर चानपुरा रिंग बांध बन गया तो पश्चिम के गाँव तबाही के कगार पर पहुँच जायेंगे। मामला रंग लाया और मीडिया की रुचि इस पूरी वारदात में जगी। ब्लिट्ज़ के बी. के. करंजिया तीन दिन हमारे गाँव में आकर रुके थे। विकास कुमार झा ने भी काफी कुछ लिखा। भोगेन्द्र झा, एम.पी. लगभग एक सप्ताह मेरे घर में रहे। हमारा मुकाबला धीरेन्द्र ब्रह्मचारी जैसे समर्थ व्यक्ति से था। इसलिए मामले की पब्लिसिटी भी खूब हुई। सारा जमावड़ा मेरे घर पर और मैं खर्चे से तबाह था। मेरी पत्नी का सारा समय रसोई में और मेहमानों की देख-भाल में गुज़रता था। लगभग उसी समय बिहार के पूर्व एडवोकेट जनरल और वर्तमान सभापति-बिहार विधान परिषद, ताराकान्त झा के बेटे के यज्ञोपवीत संस्कार में अटल बिहारी वाजपेयी पड़ोस के उनके गाँव शिवनगर आये हुए थे। हमारे गाँव के एक बुजुर्ग रघुवंश झा वाजपेयी जी से मिलने गए और उन्हें सारी व्यथा-कथा सुनायी। वाजपेयी जी ने ताराकान्त जी से कहा कि पचास गाँवों का मामला है, आप इनकी तरफ से हाइकोर्ट में पैरवी कर दीजिये। यह लोग कहाँ से पैसा लायेंगे? तारा बाबू राजी हो गए। उधर मुकदमा चलता था और इधर आन्दोलन। महिलाएं तक जेल गईं। सरकार ने विरोध को दबाने के लिए केन्द्रीय रिजर्व पुलिस उतार रखी थी। मुख्यमंत्री डॉ. मिश्र पर बहुत दबाव था। उन्हें मजबूरन धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का पक्ष लेना पड़ा क्योंकि इसके अलावा उनके पास कोई चारा ही नहीं था।’’
यह सुनने में बड़ा ही विचित्र लगता है कि 30 लाख रुपये मात्र के किसी काम के पीछे राज्य का मुख्यमंत्री किसी दबाव में आ जाए पर चानपुरा रिंग बांध ने कुछ इसी तरह की परिस्थितियाँ निर्मित कर दी थीं। लेखक ने डॉ. मिश्र से बात करके उनका मंतव्य जानना चाहा। उन्होंने जो कुछ बताया वे शब्दशः यहाँ उद्धृत किया जाता है-
‘‘यह सच है कि युगेश्वर झा मेरे बहुत नजदीक थे और चानपुरा संबंधी पूरे मसले पर मैं उनसे सलाह लेता था। यह पूरी घटना व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए बहुत ही उलझन और किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति पैदा करने वाली थी। ब्रह्मचारी जी का जर्बदस्त दबदबा था और अब अन्दरूनी बात क्या थी वह तो मेरे लिए कह पाना मुश्किल है मगर इन्दिरा जी के यहाँ उनका आना-जाना और उठना-बैठना तो निश्चित रूप से था। इसका एक मनोवैज्ञानिक दबाव मेरे ऊपर था। लेकिन मेरी प्रतिबद्धताएं जन-हित के साथ थीं और उसका प्रतिनिधित्व युगेश्वर झा कर रहे थे और मानसिक रूप से राज्य सरकार उनका समर्थन कर रही थी। इस वजह से ब्रह्मचारी जी को हो सकता है मुझसे नाराजगी रही हो और इस घटना के विरोध को मेरे खिलाफ इस्तेमाल किया गया हो। पर इसमें कोई दो राय नहीं है कि मैं युगेश्वर झा का समर्थन कर रहा था और यही समग्रता में, जन-हित में था। यह लगभग तीस साल पुरानी घटना है और बहुत कुछ घटनाएं मुझे अब याद नहीं है और अब वहाँ क्या स्थिति है यह भी मुझे नहीं मालूम। एक बात और कि दिल्ली से लेकर पटना तक आई.ए.एस. अधिकारियों की एक बहुत ही मजबूत लॉबी है और यह लोग इंजीनियरिंग मामलों समेत लगभग सारे मसलों में बहुत हस्तक्षेप करते हैं जो कि नहीं होना चाहिये, मगर होता है। जिनके पास पॉवर होती है उसे सब चीजों की जानकारी हो, यह तो जरूरी नहीं है। जानकारी के लिए पॉवर का इस्तेमाल हो सकता है मगर पॉवर जानकारी नहीं हो सकती। ज्ञान का उपयोग होना चाहिये और यह ज्ञान उसी के पास से आना चाहिये जो ज्ञानी हो।’’
यहाँ से युगेश्वर झा की गैर-मौजूदगी में जन-आन्दोलन की शुरुआत हुई क्योंकि रिंग बांध बन जाने से पहले से ही बदहाल जल-निकासी और भी बुरी हालत में पहुँचने वाली थी। इस रिंग बांध का असर नेपाल सीमा पर रातो नदी तक पड़ने वाला था। पचासों गाँव पर बाढ़ का खतरा मंडराने लगा था। हुआ यह कि अंगरेजवा पोखर के जमींदारी बांध के पास जब चानपुरा रिंग बांध का अलाइनमेन्ट दिया जाने लगा तभी यह समझ में आने लगा कि कोकराहा धार के पानी को इस सँकरे गैप से निकलने में मुश्किल होगी और यह पानी वापस खिरोई की ओर मुड़ेगा और पछुआरी टोल समेत बहुत से गाँवों को तबाह करेगा। यह आशंका बाद में सच निकली क्योंकि पानी की आमद बढ़ने से खिरोई नदी का तटबंध टूटने लगा और बर्री, पिलोखर, चौगामा, शुजातपुर और अवारी आदि गाँव तबाह होने लगे। हम लोगों ने एक ग्राम सुरक्षा संघर्ष समिति बनायी। पछुआरी टोल के दुःख हरण चौधरी इसके महामंत्री थे और मुझे अध्यक्ष बनाया गया। हम लोगों ने इन सभी गाँवों में सघन सम्पर्क कर बताया कि अगर चानपुरा रिंग बांध बन गया तो पश्चिम के गाँव तबाही के कगार पर पहुँच जायेंगे। मामला रंग लाया और मीडिया की रुचि इस पूरी वारदात में जगी। ब्लिट्ज़ के बी. के. करंजिया तीन दिन हमारे गाँव में आकर रुके थे। विकास कुमार झा ने भी काफी कुछ लिखा। भोगेन्द्र झा, एम.पी. लगभग एक सप्ताह मेरे घर में रहे। हमारा मुकाबला धीरेन्द्र ब्रह्मचारी जैसे समर्थ व्यक्ति से था। इसलिए मामले की पब्लिसिटी भी खूब हुई। सारा जमावड़ा मेरे घर पर और मैं खर्चे से तबाह था। मेरी पत्नी का सारा समय रसोई में और मेहमानों की देख-भाल में गुज़रता था। लगभग उसी समय बिहार के पूर्व एडवोकेट जनरल और वर्तमान सभापति-बिहार विधान परिषद, ताराकान्त झा के बेटे के यज्ञोपवीत संस्कार में अटल बिहारी वाजपेयी पड़ोस के उनके गाँव शिवनगर आये हुए थे। हमारे गाँव के एक बुजुर्ग रघुवंश झा वाजपेयी जी से मिलने गए और उन्हें सारी व्यथा-कथा सुनायी। वाजपेयी जी ने ताराकान्त जी से कहा कि पचास गाँवों का मामला है, आप इनकी तरफ से हाइकोर्ट में पैरवी कर दीजिये। यह लोग कहाँ से पैसा लायेंगे? तारा बाबू राजी हो गए। उधर मुकदमा चलता था और इधर आन्दोलन। महिलाएं तक जेल गईं। सरकार ने विरोध को दबाने के लिए केन्द्रीय रिजर्व पुलिस उतार रखी थी। मुख्यमंत्री डॉ. मिश्र पर बहुत दबाव था। उन्हें मजबूरन धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का पक्ष लेना पड़ा क्योंकि इसके अलावा उनके पास कोई चारा ही नहीं था।’’
यह सुनने में बड़ा ही विचित्र लगता है कि 30 लाख रुपये मात्र के किसी काम के पीछे राज्य का मुख्यमंत्री किसी दबाव में आ जाए पर चानपुरा रिंग बांध ने कुछ इसी तरह की परिस्थितियाँ निर्मित कर दी थीं। लेखक ने डॉ. मिश्र से बात करके उनका मंतव्य जानना चाहा। उन्होंने जो कुछ बताया वे शब्दशः यहाँ उद्धृत किया जाता है-
‘‘यह सच है कि युगेश्वर झा मेरे बहुत नजदीक थे और चानपुरा संबंधी पूरे मसले पर मैं उनसे सलाह लेता था। यह पूरी घटना व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए बहुत ही उलझन और किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति पैदा करने वाली थी। ब्रह्मचारी जी का जर्बदस्त दबदबा था और अब अन्दरूनी बात क्या थी वह तो मेरे लिए कह पाना मुश्किल है मगर इन्दिरा जी के यहाँ उनका आना-जाना और उठना-बैठना तो निश्चित रूप से था। इसका एक मनोवैज्ञानिक दबाव मेरे ऊपर था। लेकिन मेरी प्रतिबद्धताएं जन-हित के साथ थीं और उसका प्रतिनिधित्व युगेश्वर झा कर रहे थे और मानसिक रूप से राज्य सरकार उनका समर्थन कर रही थी। इस वजह से ब्रह्मचारी जी को हो सकता है मुझसे नाराजगी रही हो और इस घटना के विरोध को मेरे खिलाफ इस्तेमाल किया गया हो। पर इसमें कोई दो राय नहीं है कि मैं युगेश्वर झा का समर्थन कर रहा था और यही समग्रता में, जन-हित में था। यह लगभग तीस साल पुरानी घटना है और बहुत कुछ घटनाएं मुझे अब याद नहीं है और अब वहाँ क्या स्थिति है यह भी मुझे नहीं मालूम। एक बात और कि दिल्ली से लेकर पटना तक आई.ए.एस. अधिकारियों की एक बहुत ही मजबूत लॉबी है और यह लोग इंजीनियरिंग मामलों समेत लगभग सारे मसलों में बहुत हस्तक्षेप करते हैं जो कि नहीं होना चाहिये, मगर होता है। जिनके पास पॉवर होती है उसे सब चीजों की जानकारी हो, यह तो जरूरी नहीं है। जानकारी के लिए पॉवर का इस्तेमाल हो सकता है मगर पॉवर जानकारी नहीं हो सकती। ज्ञान का उपयोग होना चाहिये और यह ज्ञान उसी के पास से आना चाहिये जो ज्ञानी हो।’’
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