मैं दूध हूँ
आपके जन्म लेते ही प्रकृति ने माँ के स्पर्श के साथ जो सबसे पहला आहार आपको दिया था, मैं वही दूध हूँ, ठीक माँ की ममता जैसा ही मीठा और उसकी भावनाओं जैसा ही स्वच्छ। केवल मानव ही क्यों और भी बहुत से प्राणी हैं जो प्रकृति की इस उदारता का लाभ उठा रहे हैं और इन सबको ही स्तनपायी जीवों की श्रेणी में रखा जाता है।
पानी के साथ-साथ मुझमें प्रोटीन, वसा, लैक्टोज व लवणों जैसे कुछ ऐसे अन्य तत्व भी हैं जो आपके शरीर को पोषण देकर इसे विभिन्न रोगों से दूर रखते हैं और इसीलिये भिन्न-भिन्न देशों में मानव भिन्न-भिन्न प्रकार के जानवरों को मेरी लालच में पालता रहा है। जैसे इंग्लैंड व यूरोप के कुछ भागों में गाय, स्पेन में भेड़, अरब के रेगिस्तानी भागों में ऊँट, मिस्र में भैंस, तिब्बत में याक व टुण्ड्रा के हिम प्रदेश में रेण्डियर आदि। पर इन सभी जानवरों से पाये जाने वाले मुझ दूध में पोषक तत्वों की मात्रा अलग-अलग होती है, यह बात निम्न सारणी से स्पष्ट हो जाएगी-
पशु | पानी | प्रोटीन | लैक्टोज प्रतिशत | लवण | वसा |
गाय | 87.0 | 3.5 | 4.0 | 0.7 | 3.0 |
बकरी | 87.0 | 3.5 | 4.3 | 0.9 | 4.3 |
भेड़ | 82.0 | 5.8 | 4.8 | 0.9 | 6.0 |
भैंस | 82.7 | 3.6 | 5.5 | 0.8 | 7.4 |
रेण्डियर | 63.3 | 10.3 | 2.5 | 1.4 | 22.5 |
इसी सिलसिले में मैं यह और बता दूँ कि एक प्रकार के सब जानवरों का दूध एक जैसा ही होता हो, ऐसा भी नहीं है। यह तो उनके स्वास्थ्य, नस्ल, खान-पान आदि बहुत सी बातों पर निर्भर करता है। पर कुछ भी हो मैं दूध रहूँगा, संसार का सर्वाधिक सम्पूर्ण आहार ही जिसके माध्यम से नवजात शिशु का अपनी माँ से प्रथम परिचय होता है।
मुझ दूध से बनी क्रीम, पनीर, दही मक्खन या घी आदि के बारे में तो आप सबको पता ही होगा। जो नहीं पता है वह मैं आपको बता देता हूँ और वह है केसीन जिसका उपयोग फोटोग्राफी के पेपर विशेष प्रकार के ऑयल क्लॉथ, रंग-रोगन तथा इनेमिल आदि तैयार करने में बहुतायत से होता है। इससे बनाये गये एक विशेष प्रकार के प्लास्टिक से कंघे व बटन आदि तैयार किये जाते हैं। यूरोप में एक समय था जब केसीन से बने इनकी धूम मची हुई थी।
अधिकतर बच्चे मुझे प्यार नहीं करते, यह बात मैं अच्छी तरह जानता हूँ। पर क्रीम, खोया, पनीर, मक्खन, मलाई, दही आदि में से ये बच्चे किसी न किसी को जरूर पसन्द करते हैं और यह मेरे लिये बड़े सन्तोष की बात है क्योंकि ये सब भी तो आखिर मेरे ही विविध रूप हैं। क्यों, हैं न? मानते हैं न?
मैं मिट्टी हूँ
प्रकृति में एक ऐसा अजूबा मौजूद है जिससे मिलकर ही सब कुछ बना है और अन्त में सब कुछ इसमें ही मिल जाना है। यही अजूबा हूँ मैं मिट्टी। कहने को तो दो कौड़ी की चीज हूँ पर मेरी उपयोगिता के बारे में जरा ध्यान देकर सोचो तो आप पाओगे कि मैं न रहूँ तो पृथ्वी पर प्राणिमात्र का जीवन ही शायद खतरे में पड़ जाए।
प्राचीनकाल में तो मेरे महत्व को पाँच तत्वों क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा में सबसे पहले नम्बर पर शामिल कर दर्शा ही दिया गया था, पर आज भी मेरी उपयोगिता को भला कौन नकार पाया है। दवाइयों से लेकर भवन निर्माण तक मैं न जाने कहाँ-कहाँ काम आती हूँ। मेरी विभिन्न किस्मों का यदि आप विश्लेषण करोगे तो इनमें भिन्न-भिन्न खनिजों की उपस्थिति का पता चलेगा आपको।
मेरी एक किस्म ऐसी भी जिसको यदि गर्म किया जाये तो इसके कुछ अवयव पिघल जाते हैं और ठण्डा किये जाने पर अपने साथ दूसरे अवयवों को भी जकड़कर सीमेण्ट की भाँति मजबूती प्रदान कर देते हैं। यह गुण र्इंट व बर्तन आदि बनाने के लिये अत्यंत उपयोगी सिद्ध होता है। ऐसी किस्म के उपयोग से र्इंटे बनाते समय मुझे केवल थोड़े ताप तक पकाने की जरूरत होती है क्योंकि ये र्इंटें अधिक ताप सहने में असमर्थ होती हैं।
साधारणत: मेरी वह किस्म र्इंट बनाने के लिये सबसे उपयुक्त है जिसमें 45 प्रतिशत एल्यूमिनियम सिलिकेट, 35 प्रतिशत तक लोहा, 3 से 8 प्रतिशत तक चूना, 3 से 4 प्रतिशत तक मैग्नीशिया, 3 से 6 प्रतिशत तक पोटास अथवा सोडा तथा 4 से 6 प्रतिशत तक जल की मात्रा हो। आप खुश किस्मत हो कि आपके देश में र्इंट बनाने लायक मेरी किस्म तो प्राय: हर स्थान पर ही प्राप्य है। हाँ, यह बात और है कि उन स्थानों पर जहाँ यह अधिकता से मिलती है र्इंटों और खरपरैलों का निर्माण बड़े पैमाने पर शुरू कर दिया जाता है।
आपके देश के लिये वैसे भी मेरा महत्त्व कुछ अधिक ही है। जानते हो क्यों? अरे भई! इतना बड़ा कृषि प्रधान देश है आपका और कृषि का तो मुझ मिट्टी के साथ बिल्कुल सीधा और नजदीकी सम्बन्ध रहा है- यह बात भला कौन नहीं जानता? फिर आपके देश में मुझे वैसे भी हमेशा पूरा सम्मान मिला है। इस देश का इतिहास गवाह है कि मुझ मिट्टी के एक-एक कण के लिये यहाँ के देशभक्त सदैव अपने प्राणों को न्योछावर करने के लिये तत्पर रहे हैं।
इतने पर भी जरा सोचो कि क्या आपका यह फर्ज नहीं बनता कि अपने देश की प्राणस्वरूपा मुझ मिट्टी के बारे में अधिक से अधिक जितना हो सके जानो और मुझे दिलोजान से प्यार करो। क्यों ठीक कह रही हूँ न मैं?
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