मशरूम की खेती से दिया सैकड़ों को रोजगार

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नोएडा के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा और इसके बाद इग्नू से सोशल वर्क में मास्टर डिग्री लेने के बाद मैंने यही सीखा- पहले अपना काम खुद करो, फिर दूसरों को सीख दो। मेरे पिता फौज में थे। वर्तमान में मैं देहरादून के मोथरोवाला क्षेत्र में रहती हूँ, पर मेरा पुराना घर चमोली के पास कंडारा गाँव में है। पढ़ाई खत्म करने के बाद मैंने तीन साल तक दिल्ली के कई संस्थानों में नौकरी की। मैं जब पलायन की वजह से उत्तराखण्ड के खाली होते गाँवों की खबर अखबारों में पढ़ती, तो लगता जैसे मैं भी उसी भीड़ का हिस्सा हूँ। मैं हमेशा सोचती थी कि कुछ ऐसा करूँ, जिससे मैं अपने साथ अपने राज्य और समुदाय के दूसरे लोगों का भी सहारा बन सकूँ। मुझे एहसास हुआ कि इसके लिये मुझे नौकरी छोड़ अपने राज्य की सम्भावनाओं के बारे में पता लगाकर वहीं कुछ नया काम शुरू करना होगा।

मशरूमपहाड़ी जलवायु और परिस्थितियों के मद्देनजर मुझे मशरूम की खेती एक उपयुक्त विकल्प लगा। इसके लिये मैंने डिपार्टमेंट ऑफ हॉर्टिकल्चर, देहरादून से मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण प्राप्त किया। वर्ष 2012 में मैंने अपने घर में सौ बैग से काम शुरू किया। मेहनत के बल पर जल्द ही मेरे काम ने रफ्तार पकड़ ली। लेकिन अगले ही साल प्रदेश में भीषण आपदा आ गई। इस दुख की घड़ी में मैंने चमोली गढ़वाल में अपने गाँव जाकर महिलाओं को मशरूम का प्रशिक्षण देकर उन्हें स्वावलम्बी बनाने की ओर हाथ बढ़ाया। इसके लिये मैंने गाँव में खाली पड़े खंडहरों और मकानों में ही मशरूम उत्पादन शुरू किया। इसके अलावा कर्णप्रयाग, चमोली, रुद्रप्रयाग, यमुना घाटी के विभिन्न गाँवों की महिलाओं को इस काम से जोड़ा। मैंने न सिर्फ उत्पादन पर ध्यान दिया, बल्कि इसके अलावा मार्केटिंग पर भी उतना ही ध्यान दिया।

मेरा घर ही मशरूम उत्पादन की प्रयोगशाला है। मैं सीखने वालों के लिये किसी संस्थान सरीखे अपने घर में उनको न सिर्फ प्रैक्टिकल ज्ञान देती हूँ, बल्कि थ्योरी भी समझाती हूँ। मेरा सफर आज एक फूड प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी की शक्ल ले चुका है, जिसका सालाना लाखों रुपये का टर्नओवर है। मैं अब तक उत्तराखण्ड के 10 जिलों में मशरूम उत्पादन की 53 यूनिट लगा चुकी हूँ, जिससे हजारों लोग जुड़े हैं। मुझे खुशी होती है कि मेरी कम्पनी में काम करने वाले महिला और युवाओं को अपने घर में ही रोजगार मुहैया हुआ है। उनकी जिन्दगी में साफ तौर पर सुखद बदलाव देखा जा सकता है।

मुझे अपने काम से लोगों को जोड़ने के लिये कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं करना पड़ा। मैंने अपने काम की सफलता से उनके सामने उदाहरण प्रस्तुत किया, जिस वजह से लोग खुद-ब-खुद मुझसे जुड़ते चले गए। मेरे काम को उत्तराखण्ड सरकार ने भी सराहा है। इसके अलावा मुझे राष्ट्रपति पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है। इन सबके बावजूद मैं अपनी जड़ों से जुड़ी हूँ। सड़क पर खुद खड़ी होकर मशरूम में बेचना हो या मशरूम के लिये खाद तैयार करने के लिये भूसे के ढेर में उतरना, मैं ये सारे काम खुद करती हूँ। इसके अलावा मैं सप्ताह में एक दिन अपनी गाड़ी में मशरूम की ट्रे रखकर शहर के अलग-अलग इलाकों में रोड शो कर लोगों को मशरूम के बारे में बताती हूँ। मैं मानती हूँ कि इच्छाशक्ति हो, तो हम घर बैठे स्वरोजगार से अच्छी-खासी कमाई कर सकते हैं। मेरा काम तो एक बेहतर शुरुआत भर है। मेरा सपना उत्तराखण्ड को मशरूम स्टेट बनाना है।
 

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