मोटर गाड़ियों के लिये वैकल्पिक र्इंधन


प्राय: सभी मोटर गाड़ियाँ, कार, बस लॉरी, इत्यादि पेट्रोल और डीजल अंतर्दहन इंजन से चालित होती हैं। क्रूड तेल तथा पेट्रोल (पेट्रोलियम) से प्राप्त होता है, जो एक जीवाश्म र्इंधन है। किंतु कुछ दशकों से इन तेलों का उपयोग दो कारणों से चिंता का विषय बन गया है। प्रथम, जीवाश्म र्इंधन के स्रोत तीव्र गति से समाप्त होते जा रहे हैं और द्वितीय इन तेलों के दहन से खतरनाक वायु प्रदूषण पैदा होता है। आज के संदर्भ में मोटर गाड़ियों के लिये वैकल्पिक र्इंधनों को विकसित करना और उनका उपयोग करना निम्नलिखित कारणों से अत्यंत आवश्यक हो गया है।

मोटर गाड़ियों केलिये वैकल्पिक र्इंधन1. विश्व में जनसंख्या और शहरीकरण के निरंतर बढ़ने से परिवहन के लिये ऊर्जा की खपत लगातार बढ़ रही है। विश्व की जनसंख्या जो आज 680 करोड़ के लगभग है, सन 2020 में 800 करोड़ होने का अनुमान है। इसी अवधि में शहरीकरण 50 प्रतिशत से बढ़कर 60 प्रतिशत हो सकता है। विश्व में कुल ऊर्जा खपत का 25 प्रतिशत उपयोग परिवहन क्षेत्र में होता है।

2. पेट्रोल और डीजल तेल से चलने वाले अंतर्दहन इंजन कार्बन डाइऑक्साइड तथा अन्य ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं, जो ग्लोबल वार्मिंग के लिये जिम्मेदार हैं। ग्लोबल वार्मिंग से जलवायु परिवर्तन का खतरा रहता है। पेट्रोल और डीजल इंजन से अन्य प्रदूषण उत्पन्न करने वाली गैसें हैं- कार्बन मोनोऑक्साइड (एक जहरीली गैस), नाइट्रोजन ऑक्साइड (जो स्मॉग और ओजोन परत क्षीण करने के लिये जिम्मेदार है) तथा पार्टीकुलेट (जो सांस की बीमारी के लिये जिम्मेदार है)।

3. भारत समेत कई देशों में क्रूड तेल का उत्पादन जितनी आवश्यकता है उससे कम होता है और वे आयात पर निर्भर रहते हैं, जो देश की सुरक्षा के लिये खतरा है।

4. क्रूड तेल के कम होते भण्डार के कारण इसकी मांग लगातार बढ़ती रहती है, जिससे राष्ट्रीय बजट पर आयात बिल का बोझ बढ़ता जाता है। इसलिए भी स्थानीय वैकल्पिक र्इंधन के बढ़ते उपयोगी की आवश्यकता है।

5. वैकल्पिक र्इंधन जैसे बायोडीजल और एथेनॉल को विकसित करने का एक और फायदा यह होगा कि इससे रोजगार पैदा करने का एक नया स्रोत प्राप्त होगा, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देगा।

भारत में पेट्रोलियम र्इंधन का उभरता परिदृश्य


सन 2010 में भारत ने 22 लाख बैरल से अधिक क्रूड तेल आयात किया (कीमत करीब 1.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक), जो उसके कुल खपत का लगभग 75 प्रतिशत था। भारत विश्व में पाँचवाँ सबसे बड़ा क्रूड तेल आयातक देश है। अन्तरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार भारत में क्रूड तेल का आयात सालाना 4 प्रतिशत से अधिक बढ़ रहा है। सन 2035 तक क्रूड तेल का आयात खपत का 75 प्रतिशत से बढ़कर 92 प्रतिशत तक होने का अनुमान है। ये तेल आपूर्ति सुरक्षा के दृष्टिकोण से एक खतरनाक स्थिति होगी।

भारत में गैस र्इंधन का उपयोग सन 2009 में 59 बिलियन घनमीटर से बढ़कर 2035 में 190 बिलियन घनमीटर होने का अनुमान है जो कुल प्राथमिक ऊर्जा की मांग का 11 प्रतिशत होगा। वर्तमान में आयातित द्रवित प्राकृतिक गैस का कुल प्राकृतिक गैस आपूर्ति में हिस्सा सन 2012-13 में 37.1 प्रतिशत था, जो सन 2016-17 तक बढ़कर 46.7 प्रतिशत होने का अनुमान है।

हमारी क्रूड तेल और गैस र्इंधन की आवश्यकता अगले बीस सालों में तीन गुना हो जायेगी। भारत की वैकल्पिक र्इंधन नीतियों का लक्ष्य क्रूड तेल का आयात खर्चा कम करना होना चाहिए।

मोटर गाड़ियों के लिये वैकल्पिक र्इंधन - मोटर गाड़ियों के लिये वैकल्पिक र्इंधनों में पहला विकल्प गैस र्इंधन है। गैस र्इंधनों में प्राकृतिक गैस (कम्प्रेस्ड प्राकृतिक गैस, द्रवित प्राकृतिक गैस) और द्रवित पेट्रोलियम गैसें हैं। ये गैसें स्वच्छ र्इंधन हैं जिनसे कम प्रदूषण पैदा होता है, किंतु इन गैसों का स्रोत पेट्रोलियम है जो कि दीर्घकाल तक उपलब्ध नहीं रहेगा। दूसरा विकल्प एल्कोहॉल या एल्कोहॉल-मिश्रित र्इंधन है। इन एल्कोहॉल में एथेनॉल और मेथेनॉल मुख्य है। एथेनॉल का उत्पादन नवीकरणीय स्रोत से होता है, इसलिये यह लंबी अवधि के लिये अच्छा विकल्प है। डीजल इंजन के लिये बायोडीजल, जिसका उत्पादन भी नवीकरणीय स्रोत से होता है, अच्छा विकल्प है।

हाइड्रोजन वैकल्पिक र्इंधन के रूप में एक अलग श्रेणी में है। यद्यपि ब्रह्माण्ड में सबसे अधिक तत्व हाइड्रोजन ही है, पृथ्वी पर शुद्ध गैस के रूप में यह बिरले ही पाया जाता है। इसलिए हाइड्रोजन गैस का उत्पादन करना पड़ता है, जिसमें विद्युत ऊर्जा का उपयोग होता है। अत: यह जीवाश्म र्इंधन की तरह नहीं है, बल्कि बैटरी की तरह ऊर्जा वाहक हैं।

कम्प्रेस्ड (सम्पीड़ित) प्राकृतिक गैस - प्राकृतिक गैस 21वीं शताब्दी का मुख्य र्इंधन माना जाता है। प्राकृतिक गैस एक मिश्रित हाइड्रोकार्बन है जिसमें मुख्यतः मीथेन (60 से 95 प्रतिशत) के साथ कुछ प्रतिशत उच्चतर हाइड्रोकार्बन जैसे - इथेन, प्रोपेन और ब्यूटेन होते हैं। इसका उत्पादन गैस के कुँओं से या क्रूड तेल के उत्पादन के दौरान होता है। मोटर गाड़ियों में सीएनजी सिलेण्डर में 200 से 250 बार दाब पर रखी जाती है। प्राकृतिक गैस की निम्न केलोरिफिक वेल्यू लगभग 47500 किलोजूल प्रति किलोग्रम होती है। यह एक उच्च ओक्टेन र्इंधन है (ओक्टेन नम्बर 120)। इसलिये यह पेट्रोल या गैस स्पार्क दहन इंजन के लिये अच्छा र्इंधन है।

सीएनजी स्वच्छ पर्यावरणहितैषी र्इंधन है। इसके उपयोग से पेट्रोल की तुलना में सब नियंत्रित गैसों का उत्सर्जिन कम होता है। CO में 93 प्रतिशत कमी, पार्टीकुलेट में भी महत्त्वपूर्ण कमी। सीएनजी के अन्य फायदे निम्नलिखित हैं:

1. वाष्पिक उत्सर्जन बिल्कुल नहीं, क्योंकि र्इंधन तंत्र बंद होता है।
2. उच्च कम्प्रेशन अनुपात का उपयोग, क्योंकि सीएनजी का ओक्टेन नम्बर उच्च होता है।
3. सीएनजी पेट्रोल से सस्ता र्इंधन है।

सीएनजी गाड़ी के उपयोग में निम्नलिखित असुविधाएं, समस्याएं या कमियाँ हो सकती हैं :


1. सीएनजी गाड़ी की कीमत पेट्रोल गाड़ी से अधिक होती है।
2. सीएनजी र्इंधन भरने के लिये स्टेशन (पंप) सीमित हैं।
3. प्राकृतिक गैस का संयोजन विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न होता है।
4. यद्यपि प्राकृतिक गैस के भंडार (कुँओं) पेट्रोलियम भंडार के कुँओं से अधिक समय तक उपलब्ध रहेंगे, किंतु यह भी नवीकरणीय र्इंधन नहीं है। अत: यह दीर्घकालीन समाधान नहीं है।

विश्व में लगभग 10 लाख से अधिक मोटर गाड़ियाँ सीएनजी से चल रही हैं। इटली में सीएनजी का उपयोग मोटर गाड़ियों में सन 1935 से हो रहा है। बहुत जल्दी भारत में 10 प्रतिशत मोटर-गाड़ियाँ सीएनजी से चलने लगेंगी। सीएनजी गाड़ियों के उपयोग के पहले दिल्ली में प्रदूषण, विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से पाँच गुना था, जो अब कम हो गया है।

द्रवित पेट्रोलियम गैस - द्रवित पेट्रोलियम गैस (एलपीजी), पेट्रोल और डीजल के बाद कदाचित तीसरा सबसे अधिक उपयोग में आने वाला मोटर गाड़ियों का र्इंधन है। इसका उपयोग पिछले 65 वर्षों से हो रहा है। औद्योगिक उपयोग में आने वाली एलपीजी मुख्यत: ‘प्रोपेन’ होती है (90 प्रतिशत प्रोपेन 2.5 प्रतिशत ब्यूटेन और बाकी प्रतिशत इथेन और प्रोपाइलीन)। इसलिये एलपीजी मोटर र्इंधन को ‘प्रोपेन’ भी कहते हैं। यह गैस होती है किंतु आसानी से सामान्य भूमंडलीय तापमान पर और 8.6 बार दाब पर द्रवित हो जाती है।

एलपीजी का कैलोरीफिक मान 50,000 किलोजूल प्रति किलोग्राम या 98,000 किलोजूल प्रति घनमीटर (मानक तापमान और दाब पर) है। एक लीटर एलपीजी में पेट्रोल की तुलना में 70 प्रतिशत ऊर्जा मात्रा होती है। द्रवित एलपीजी का आपेक्षित घनत्व 150C पर 0.51 है। गैस के रूप में यह हवा से डेढ़ गुणा भारी है। इसका आॅक्टेन नंबर लगभग 100 है और स्टोकियोमीट्रिक (सही रासायनिक) वायु-र्इंधन अनुपात 23 है। एलपीजी का उत्पादन पेट्रोलियम परिष्करण और प्राकृतिक गैस संसाधित क्रिया में होता है। एलपीजी के फायदे निम्नलिखित हैं :-

1. पेट्रोल की तुलना में यह र्इंधन 60 प्रतिशत कम CO और 60 प्रतिशत कम रिएक्टिव हाइड्रोकार्बन उत्सर्जन करता है।
2. सामान्य पेट्रोल टैंक की तुलना में एलपीजी र्इंधन का टैंक 20 गुणा अधिक पंक्चर-प्रतिरोधी होता है।
3. एलपीजी इंजन पेट्रोल इंजन के मुकाबले दोगुनी अवधि तक चलता है तथा स्नेहक का प्रदूषण भी कम होता है। दहन पिस्टन पर कार्बन भी नहीं के बराबर जमा होता है।

एलपीजी के उपयोग में निम्नलिखित असुविधाएं या समस्याएं हो सकती हैं :


1. भवनों के अंदर भंडारण और गाड़ियों के रख-रखाव में एलपीजी के अवगमन और वायु संवातन की समस्या।
2. सीएनजी की तरह एलपीजी भी नवीकरणीय र्इंधन नहीं है। अत: यह भी मोटर र्इंधन का दीर्घकालीन समाधान नहीं है।

एल्कोहल और एल्कोहल मिश्रित र्इंधन


मोटर गाड़ियों के र्इंधन की दृष्टिकोण से दो मुख्य एल्कोहल, र्इंधन एथेनॉल और मेथेनॉल है। हैनरी फोर्ड ने प्रसिद्ध टी मॉडल इंजन एल्कोहल र्इंधन द्वारा चालित बनाया था।

(अ) एथेनॉल : एथेनॉल एक एल्कोहॉल है जो बायोमास (मक्का, गन्ना तथा अन्य कृषि उत्पादों) से बनता है। यह एक उच्च ओक्टेन द्रव है और सामान्यत: पेट्रोल में मिश्रित कम काम में लिया जाता है। ई-10 (10 प्रतिशत एथेनॉल, 90 प्रतिशत पेट्रोल) वर्तमान पेट्रोल इंजनों में बिना किसी परिवर्तन के उपयोग में लिया जा सकता है। एथेनॉल अधिक स्वच्छ र्इंधन है और यह कार्बन डाइऑक्साइड और ओजोन उत्पन्न करने वाले हाइड्रोकार्बन का कम उत्सर्जन करता है। एथेनॉल का सबसे बड़ा फायदा यह है कि ये नवीकरणीय संसाधनों से बनता है। इसलिए इसकी उपलब्धता हमेशा बनी रहेगी।

एथेनॉल के उपयोग में निम्नलिखित असुविधाएं या समस्याएं हो सकती हैं :


1. कम ऊर्जा मात्रा, इसलिये बड़े र्इंधन टैंक की आवश्यकता।
2. र्इंधन तंत्र में विशिष्ट एथेनॉल अनुकूल सामान की आवश्यकता।
3. वर्तमान में पेट्रोल से महँगा।
4. एथेनॉल के उपयोग में सबसे बड़ी चिंता इसके बड़े पैमाने पर उपलब्धता को लेकर है। चूँकि यह एक कृषि उत्पाद है, इसके उत्पादन के लिये भूमि की आवश्यकता है। इस कारण (भूमि के लिये) खाद्य फसलों से प्रतिस्पर्धा हो सकती है।

एथेनॉल के उत्पादन और उपयोग में, विश्व में, ब्राजील पहले नंबर पर है जहाँ इसका उत्पादन प्रतिवर्ष 15 बिलियन लीटर से अधिक है। ब्राजील में सब मोटर र्इंधन में कम से कम 24 प्रतिशत एथेनॉल होता है। अधिकतर मोटर गाड़ियाँ तो 100 प्रतिशत एथेनॉल र्इंधन से ही चलती है। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में 57 बिलियन लीटर से अधिक एथेनॉल, मिश्रित पेट्रोल काम में लिया जाता है, जो कुल मोटर र्इंधन विक्रय का 12 प्रतिशत है।

भारत में एथेनॉल का उत्पादन मुख्यत: शीरा से होता है जो शक्कर उद्योग का उपोत्पादन है। किंतु सरकार द्वारा पेट्रोल में अनिवार्य 5 प्रतिशत एथेनॉल मिलाने का नियम बनाने के पश्चात एथेनॉल का उत्पादन अन्य कृषि फसलों, जैसे कृषि अवशेष, सोरघम (घास) इत्यादि के उपयोग से बढ़ाना पड़ेगा।

(ब) मैथेनॉल : मैथेनॉल भी एक द्रव्य एल्कोहल र्इंधन है, जिसका उत्पादन प्राकृतिक गैस से होता है। लेकिन इसका उत्पादन लकड़ी जैसे बायोमास से भी हो सकता है। इसके उपयोग के फायदों में ओजोन उत्पन्न करने वाले हाइड्रोकार्बन और पार्टीकुलेट का कम उत्सर्जन है।

मैथेनॉल के उपयोग में निम्नलिखित असुविधाएं या समस्याएं हो सकती हैं :


1. यह संक्षारक और विषैला होता है।
2. र्इंधन तंत्र में विशिष्ट मैथेनॉल अनुकूल सामान की आवश्यकता।
3. शीत तापमान में इंजन को चालू करने की समस्या।
4. पेट्रोल की तुलना में कम ऊर्जा मात्रा, इसलिये बड़े र्इंधन टैंक की आवश्यकता।
5. वर्तमान में पेट्रोल से महँगा।

बायोडीजल


बायोडीजल पेट्रोलियम-रहित र्इंधन तेल है जो अखाद्य नवीकरणीय स्रोत जैसे अखाद्य तेल (करंजा, नीम, जेट्रोफा, रेपसीड आदि) से बनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में अधिकांश बायोडीजल सोयाबीन से बनाया जाता है। बायोडीजल खाद्य तेल और जानवरों की वसा से भी बनाया जा सकता है। सन 1900 में रूडोल्फ डीजल ने जो पहला डीजल इंजन बनाया था वह मूँगफली के तेल से चलता था।

बायोडीजल एक रासायनिक क्रिया, जिसे ट्रांसइस्टैरीफिकेशन कहते हैं, से बनता है। इस क्रिया में वसा या वनस्पति तेल से ग्लिसरीन को अलग किया जाता है। इस क्रिया में दो उत्पाद बनते हैं- मिथाईल इसटर्स, जो बायोडीजल का रासायनिक नाम है और ग्लीसरीन, एक महत्त्वपूर्ण उपउत्पाद जो साबुन और अन्य सामान बनाने के काम में आता है। बायोडीजल का अमेरिकन मानक ए. एस. टी. एम. डी. 6751 है।

बायोडीजल को सामान्यत: डीजल तेल में मिलाकर उपयोग में लिया जाता है। बी 20 मिश्रण में 20 प्रतिशत बायोडीजल और 80 प्रतिशत परम्परागत डीजल तेल होता है। यह मिश्रण वर्तमान डीजल इंजनों में बिना किसी परिवर्तन के काम में लिया जा सकता है।

बायोडीजल के फायदे


1. बायोडीजल का मुख्य फायदा यह है कि ये अपने देश में ही नवीकरणीय स्रोत से बनाया जा सकता है। इससे आयात किये तेल पर निर्भरता कम होगी, जो राष्ट्रीय अर्थव्‍यवस्‍था के लिये अच्छा है।

2. यह प्रदूषित गैसों का उत्सर्जन कम करता है। (कार्बन मोनोऑक्साइड का 47 प्रतिशत कम, हाइड्रोकार्बन का 67 प्रतिशत कम और सल्फर डाइऑक्साइड का 100 प्रतिशत कम)। यह पार्टीकुलेट का उत्सर्जन भी कम करता है। इसलिये यह अधिक स्वास्थ्य कर है। यह विषैला भी नहीं है। और इसकी गंध भी अच्छी है। इसका ‘सीटेन’ नम्बर अधिक, लगभग 49, है जो इंजन के परिचालन को सुधारता है। बी 20 बायोडीजल (20 प्रतिशत बायोडीजल 80 प्रतिशत पेट्रो डीजल) सीटेन रेटिंग को 3 अंक बढ़ा देता है। बायोडीजल में ऊर्जा पेट्रोडीजल के लगभग बराबर होती है।

3. बायोडीजल एक अच्छा स्नेहक है जिससे इंजन अधिक अवधि तक चलता है। भारत वर्ष में बायोडीजल पर एक ‘राष्ट्रीय टेक्नोलॉजी मिशन’ की स्थापना की गई है। सरकार बायोडीजल के लिये जेट्रोफा वनस्पति को बढ़ावा दे रही है। डीजल तेल की खपत देश में प्रति वर्ष 5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। यह बढ़ती हुई मांग बी-20 बायोडीजल से पूरी की जा सकती है। भारत के हर एक गाँव में औसतन 100 हैक्टर बंजर जमीन है, जिसमें खेती नहीं की जा सकती, किंतु उसमें बायोडीजल के लिये वनस्पति पैदा की जा सकती है। यह कदम ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुधार सकता है, और इससे रोजगार भी बढ़ेंगे।

हाइड्रोजन


मोटर के रूप में हाइड्रोजन एक बहुत अच्छा विकल्प है, क्योंकि इसके उपयोग में इंजन से रेचन द्रव केवल जल निकलता है, कार्बन डाइऑक्साइड बिल्कुल नहीं। किंतु पृथ्वी पर हाइड्रोजन शुद्ध गैस के रूप में नहीं उपलब्ध होने के कारण इसका उत्पादन ऊर्जा के उपयोग द्वारा करना पड़ता है। हाइड्रोजन गैस प्राकृतिक गैस के भाप रिफोर्मिंग द्वारा बनाई जा सकती है, लेकिन प्राकृतिक गैस नवीकरणीय स्रोत नहीं है।

मोटर गाड़ियों के लिये वैकल्पिक र्इंधनहाइड्रोजन गैस जल के विद्युत अपघटन द्वारा भी उत्पन्न की जा सकती है, किंतु इसमें भारी मात्रा में विद्युत ऊर्जा खर्च होती है। इसलिये हाइड्रोजन गैस से जो ऊर्जा मोटर गाड़ी को मिलती है उसका स्रोत परंपरागत बिजलीघर ही है। यदि यह बिजली उत्पादन नवीकरणीय स्रोत जैसे सूर्य, जल, वायु आदि से हो, तो हाइड्रोजन मोटर गाड़ियों के लिये आदर्श र्इंधन है। इसके उदाहरण आइसलैंड में भूतापीय ऊर्जा और डेनमार्क में वायु ऊर्जा से हाइड्रोजन का उत्पादन है।

वर्तमान में हाइड्रोजन के उत्पादन, संग्रहण, स्थानांतरण और वितरण में अत्यधिक ऊर्जा व्यय होती है। हाइड्रोजन का आयतनिक घनत्व कम, मीथेन से एक तिहाई होता है। हाइड्रोजन के उपयोग के लिये ये सब समस्याएं शोध के क्षेत्र हैं और इन समस्याओं का समाधान निकालने में कई दशक लग सकते हैं। हाइड्रोजन का उपयोग ‘फ्यूल सैल’ में किया जा सकता है, जिनकी दक्षता 50 से 60 प्रतिशत तक होती है। वर्तमान में बहुत सीमित नंबर में हाइड्रोजन से चलने वाली प्रयोगात्मक मोटर गाड़ियाँ उपयोग में हैं।

भारत के संदर्भ में वैकल्पिक मोटर र्इंधनों के बड़े पैमाने पर उपयोग की परम आवश्यकता है, खासकर सीएनजी, एथेनॉल-मिश्रित पेट्रोल और और मिश्रित बायोडीजल र्इंधन की। वैकल्पिक र्इंधन के उपयोग की नीतियाँ बनाने में कई जटिल समस्याओं जैसे पर्यावरण, प्रदूषण, र्इंधन का आयात बिल कम करना, भविष्य में ऊर्जा सुरक्षा, दूसरे देशों से गैस पाइप लाइन डालना, ग्रामीण क्षेत्रों का आर्थिक विकास आदि का गहराई से अध्ययन जरूरी है। यह अध्ययन सम्मिलित रूप से तकनीकी विशेषज्ञ, अर्थशास्त्री और योजनाकारों को करना होगा। इस मिशन की सफलता के लिये बहुत शोध और विकास के साथ दूरदृष्टि, राजनीतिक इच्छा शक्ति, सरकारी समर्थन और प्रोत्साहन का होना अति आवश्यक है।

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