मोजेक इण्डिया ने सामाजिक दायित्व को ध्यान में रखकर अपनी मोजेक कम्पनी फाउंडेशन के जरिए कृषि क्षेत्र में विशेष शोध के लिये वर्ष 2015 में नई-नई प्रतिभाओं को नकद पुरस्कार एवं गोल्ड मेडल देकर सम्मानित करना शुरू किया है। जिसमें जाने-माने विशेषज्ञों की ज्यूरी विशेष शोध के विजेता चुनती है। वर्ष 2014-15 में पहला पुरस्कार डॉ. अमरप्रीत सिंह को, वर्ष 2015-16 में डॉ. विक्रांत भालेराव एवं 2016-17 का पुरस्कार डॉ. कृष्णेंदु रे को दिया गया है। कृषि क्षेत्र में उदासीनता का माहौल है। कोई भी व्यक्ति आज खुशी से कृषि को पेशे के रूप में नहीं अपनाना चाहता है। इस उदासीनता के पीछे कई कारण हैं, जैसे महंगी खाद, किसानों को समय पर कर्ज का न मिलना, वर्षाजल एवं सिंचाई की कमी तथा उर्वरकों का महंगा होना। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी यह घोषणा करते नहीं थकते कि उनकी सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी कर देगी, लेकिन वे इस बात का जिक्र कभी नहीं करते कि आखिर किसानों की आय वे किस तरह दोगुनी करेंगे।
हाल ही में यह अफवाह फैली कि सरकार नई कृषि नीति की घोषणा कर रही है, जिसमें खेती को ठेके पर देने की बात की गई थी। किसान अपनी जमीन कॉर्पोरेट कम्पनियों को कई वर्षों के लिये लीज पर देंगे और कम्पनियाँ उस जमीन पर खेती करेंगी। इस बारे में सरकार का तर्क है कि किसान कर्ज के कारण ही आत्महत्या जैसा कदम उठाते हैं, अतः इसे लागू करना जरूरी है। उसका मानना है कि कार्पोरेट कम्पनियों द्वारा खेती करने से किसानों को कर्ज की जरूरत नहीं पड़ेगी। खेती पर लगने वाला सारा खर्च कम्पनियाँ स्वयं वहन करेंगी और किसान उन कम्पनियों के पास मजदूरी कर सकेंगे। यह सही है कि इससे जमीन मालिकों को खेती करने के लिये कर्ज नहीं लेना पड़ेगा, लेकिन यह भी सच है कि इससे किसान इन कम्पनियों का बन्धुआ मजदूर बनने को मजबूर होंगे।
कई बार सरकारी स्तर से हो रहे तमाम पहल के बावजूद प्राइवेट सेक्टर से सहयोग की जरूरत पड़ती है।
इसी कड़ी में प्राइवेट सेक्टर की कम्पनी मोजेक इण्डिया ने सामाजिक दायित्व को ध्यान में रखकर अपनी मोजेक कम्पनी फाउंडेशन के जरिए कृषि क्षेत्र में विशेष शोध के लिये वर्ष 2015 में नई-नई प्रतिभाओं को नकद पुरस्कार एवं गोल्ड मेडल देकर सम्मानित करना शुरू किया है। जिसमें जाने-माने विशेषज्ञों की ज्यूरी विशेष शोध के विजेता चुनती है। वर्ष 2014-15 में पहला पुरस्कार डॉ. अमरप्रीत सिंह को, वर्ष 2015-16 में डॉ. विक्रांत भालेराव एवं 2016-17 का पुरस्कार डॉ. कृष्णेंदु रे को दिया गया है। इस वर्ष डॉ. कृष्णेंदु रे को “गंगा के निचले मैदानी क्षेत्रों में मक्का की उपयोग क्षमता में सुधार के लिए विशिष्ट शोध” पर पुरस्कार के तौर पर 150,000 रुपए, प्रशस्ति पत्र, स्वर्ण पदक और ब्लेजर दिया गया।
इस पुरस्कार में डेढ़ लाख रुपए नकद, गोल्ड मेडल, प्रशस्ति पत्र एवं ब्लेजर दिये जाने का प्रावधान है। डॉ. अमरप्रीत, डॉ. भालेराव या फिर डॉ. कृष्णेंदु सबके चेहरों पर देश की मिट्टी एवं किसानों के लिये कुछ कर गुजरने की चमक थी। सरकारी प्रयासों को नाकाफी और प्राइवेट सेक्टर की उदासीनता पर इन सभी की एक-सी राय है। सभी का यही मानना है कि यदि सरकार के साथ-साथ प्राइवेट सेक्टर भी किसानों की मदद के लिये आगे आये तभी हमारा देश खाद्यान्न के मामले में अग्रणी होगा।
गुरूग्राम स्थित एस. एम. सहगल फाउंडेशन ऑडिटोरियम में सम्पन्न अवार्ड समारोह में सभी कृषि विशेषज्ञों ने एकमत से मोजेक कम्पनी फाउंडेशन द्वारा कृषि क्षेत्र, पानी बचत एवं सरकारी स्कूलों के कायापलट के लिये सराहना की है। इस अवसर पर मोजेक कम्पनी फाउंडेशन के प्रबन्ध निदेशक केविन किम ने अगले वर्ष भी अन्य श्रेणी के तीन लाख रुपए के नकद एवं गोल्ड मेडल देने की घोषणा की गई है।
इस समारोह में डॉ. आर. एस. परोदा, पूर्व महानिदेशक, भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद (आईसीएआर) और सचिव, कृषि अनुसन्धान और शिक्षा विभाग (डीएआरई), भारत सरकार भी मौजूद थे। उन्हें ईसीएआर टीम अनुसन्धान पुरस्कार, फिक्की पुरस्कार और भारत सरकार द्वारा प्रतिष्ठित पद्म भूषण सम्मान से भी 1998 में सम्मानित किया गया है। इस कार्यक्रम में भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान (आईसीएआर) के प्रमुख डॉ. बी. एस. द्विवेदी, डॉ. जे. सी. कात्याल तथा कृषि विश्वविद्यालय हरियाणा के पूर्व वाइस चांसलर भी शामिल हुए।
मोजेक कम्पनी के प्रबन्ध निदेशक केविन किम ने भविष्य में इस प्रकार की अन्य योजनाओं को शामिल करने का ऐलान किया है ताकि अधिक-से-अधिक लोग इससे लाभान्वित हो सकें। मोजेक फाउंडेशन एस. एम. सहगल फाउंडेशन के साथ मिलकर अपनी सामाजिक सहभागिता की अन्य योजनाओं पर देश के कई भागों में काम कर रही है। और सहगल फाउंडेशन करीब डेढ़ दशक से फसलों में सुधार तथा पानी बचत, स्कूलों के कायाकल्प पर कई संगठनों के साथ मिलकर काम कर रहा है।
ईमेल - sonia.chopra@smsfoundation.org
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Post By: Editorial Team