महज और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की योजना से नदी साफ नहीं होने जा रही
नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण (एनजीआरबीए), जो कि 2009 में गठित की गई थी, की पाँचवीं बैठक की अध्यक्षता करने की तैयारी में है। गंगा एक्शन प्लान (जीएपी) के नाकाम होने के कार्यकर्ताओं के दावे और सार्वजनिक विरोध और आन्दोलन के बाद एनजीआरबीए बनाया गया और प्रधानमन्त्री के अध्यक्ष होने के नाते यह संस्था गंगा के पुनर्जीवन की सर्वोच्च इकाई बन गई।
सन् 1986 में तत्तकालीन प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी ने 2525 किलोमीटर लम्बी शक्तिशाली नदी की सफाई के लिये जीएपी की शुरुआत की थी।
सन् 2009 में जीएपी का फिर से शुभारम्भ किया गया और नदी घाटी प्राधिकरण को इसका प्रभारी बनाया गया। एनजीआरबीए का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि प्रदूषण का प्रभावी ढंग से नियन्त्रण हो और नदी का संरक्षण हो। प्राधिकरण के कार्यों में नदी को साफ रखने और प्रवाहमान रखने की योजना बनाना है।
पिछले 30 वर्षों में जीएपी नदी के पानी को स्वीकार्य स्तर की गुणवत्ता प्रदान करने (नहाने लायक पानी का स्तर लाने के मानक) में असफल रहा है। नदी को साफ करने के लिये दो चरणों में 950 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। कांग्रेस नीत पिछली यूपीए सरकार को विश्व बैंक से नदी साफ करने के लिये वित्तीय सहायता भी मिल चुकी है। लेकिन स्थिति चिन्ताजनक है। कमी यह है कि गंगा को बचाने की कोई सम्पूर्ण योजना नहीं है।
केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के जुलाई 2013 के अनुमान के अनुसार नदी की ऊपरी धारा के अलावा पूरी लम्बाई में मुख्यधारा में मल के कोलीफार्म का स्तर स्वीकार्य स्तर से ऊँचा बना रहता है। लेकिन ऊँचाई पर बहने वाली धारा में भी चिन्ताजनक स्थितियाँ हैं क्योंकि रुद्रप्रयाग और देवप्रयाग में भी मल सम्बन्धी कोलीफार्म का स्तर बढ़ रहा है और इससे पता चलता है कि इन उच्च स्तरीय ऑक्सीजन वाले इलाकों में भी पानी का पर्याप्त प्रवाह न होने से गन्दगी का विलय नहीं हो पाता।
जीएपी के आरम्भ से पहले ऊपरी धारा में जहाँ कोलीफार्म की संख्या कम रहती थी, अब वहाँ मल सम्बन्धी कोलीफार्म का स्तर ज्यादा दिख रहा है। नदी के ऊपरी धारा में जहाँ पर ऑक्सीकरण की क्षमता सर्वाधिक होती है वहाँ प्रदूषण बढ़ने के संकेत मिल रहे हैं। इससे पता चलता है कि वहाँ भी जल विद्युत के लिये पानी निकाले जाने से गंगा की सेहत खतरे में पड़ रही है।
नदी जैसे-जैसे मैदान में पहुँचती है वैसे-वैसे सिंचाई और पीने के पानी की आवश्यकता के लिये धारा से पानी खींचे जाने की मात्रा बढ़ती जाती है। ऋषिकेश से इलाहाबाद तक नदी की इस धारा में जाड़े और गर्मी के महीनों में पानी ही नहीं रहता। दूसरे शब्दों में नदी बहना बन्द कर देती है। लेकिन गन्दे पानी का प्रवाह बन्द नहीं होता। इस समय में नदी में सिर्फ गन्दा पानी आता है और नदी सीवर ले जाने वाला नाला बन जाती है।
केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के ताजा मानिटरिंग आँकड़ों के अनुसार निचली धारा में हरिद्वार, कन्नौज और कानपुर में बीओडी का स्तर ऊँचा है और वाराणसी में सबसे ज्यादा है। लेकिन चिन्ता की बात यह है कि नदी की पूरी यात्रा में वाराणसी में प्रदूषण का स्तर दिन-ब-दिन बुरा होता जा रहा है, उदाहरण के लिये बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) का स्तर 1986 और 2011 के बीच कभी भी 7 एमजी/लीटर से कम नहीं हुआ।
लेकिन इस बात पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि इस पूरी प्रदूषित धारा में नदी से साफ पानी खींचने का सिलसिला बढ़ रहा है। इस प्रकार खेती, उद्योग और शहरों के लिये पानी तो निकाला जा रहा है लेकिन नदी को महज कचरा वापस किया जा रहा है।
कानपुर से वाराणसी के बीच प्रदूषण का दबावः
स्रोत केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड 2013, प्रदूषण आकलनः गंगा नदी, केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड, एनओईएफ, जुलाई।
जब नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में नई सरकार बनी तो गंगा की सफाई उसके कार्यक्रमों में सबसे ऊपर थी। सरकार ने सुधारात्मक उपायों की चर्चा की और जीएपी की विफलता की तरफ संकेत किया। भाजपा नीत एनडीए ने कहा कि यूपीए के शासन काल में एनजीआरबीए बेअसर, दन्तविहीन रहा और काम शुरू ही नहीं कर पाया।
भाजपा ने इस बात पर भी आलोचना की कि जीएपी के असर की चर्चा करने के लिये पिछली सरकार के कार्यकाल में एनजीआरबीए के सदस्यों की महज तीन बार बैठक हुई।
नई सरकार के तहत 2014 में हुई पहली और पूरे क्रम की चौथी मीटिंग में यह फैसला किया गया कि एनजीआरबीए जो पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मन्त्रालय के तहत काम करता था अब जल संसाधन, नदी विकास और गंगा पुनर्जीवन मन्त्रालय के तहत काम करेगा। एनजीआरबीए को सक्रिय करने के लिये मन्त्रालय उसके सुधार और पुनर्गठन के बारे में सोच रहा है।
लेकिन पवित्र नदी की सफाई का मोदी का सपना निकट भविष्य में पूरा होता नहीं दिखता। ऐसा इस तथ्य के बावजूद है कि एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन, नमामि गंगे जैसे कार्यक्रम आरम्भ कर दिए गए हैं। फरवरी में प्रस्तुत बजट में नदी की सफाई पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया।
पिछले साल पेश किए गए अन्तरिम बजट में गंगा की सफाई के लिये विशेष तौर पर 2000 करोड़ खर्च करने की बात हुई थी। आज तक जमीन पर कुछ भी दिखाई नहीं पड़ा। जो कुछ देखा गया वह चर्चा के लिये बैठकों का आयोजन था जैसे कि गंगा मंथन और जल मंथन।
सुप्रीम कोर्ट जो कि नदी की सफाई और सीवेज ट्रींटमेंट प्लांट लगाने सम्बन्धी पर्यावरणविद एमसी मेहता की दो दशक पुरानी जनहित याचिका के आधार मामले को 1985 देख रहा है उसने कथनी को करनी में न बदलने के लिये सरकार को कई बार फटकारा है।
बताया जाता है कि प्रधानमन्त्री ने अब तक की स्थितियों का जायजा लिया है। इस बीच मन्त्रालय ने लोकसभा में दो रपटें पेश की हैं—एक प्रदूषण के सबसे बुरे स्थलों के बारे और दूसरी सात आईआईटी की तरफ से तैयार की गई गंगा नदी घाटी प्रबन्धन योजना के बारे में। जल संसाधन मन्त्री उमा भारती का कहना है कि मन्त्रालय महज दो सालों में गंगा को साफ करने को तैयार है। उन्होंने नागरिकों से कहा भी है कि वे सफाई को सुनिश्चित करें और घाटों पर पेड़ लगाएँ।
उम्मीद की जानी चाहिए कि आईआईटी ने जो योजना बनाई है वह महज सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की तरफ ही ध्यान नहीं देगी बल्कि इस बात पर भी विचार करेगी कि नदी के किनारे बसे शहरों में सिर्फ 20-30 प्रतिशत इलाके ऐसे हैं जहाँ पर सीवर लाइन की व्यवस्था है। इसलिये ट्रीटमेंट प्लांट की योजना बनाते समय गन्दगी के बहाव के सिद्धान्त को फिर से बनाया जाना चाहिए और लागू करना चाहिए।
प्रस्तुति : अरुण कुमार त्रिपाठी
नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण (एनजीआरबीए), जो कि 2009 में गठित की गई थी, की पाँचवीं बैठक की अध्यक्षता करने की तैयारी में है। गंगा एक्शन प्लान (जीएपी) के नाकाम होने के कार्यकर्ताओं के दावे और सार्वजनिक विरोध और आन्दोलन के बाद एनजीआरबीए बनाया गया और प्रधानमन्त्री के अध्यक्ष होने के नाते यह संस्था गंगा के पुनर्जीवन की सर्वोच्च इकाई बन गई।
सन् 1986 में तत्तकालीन प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी ने 2525 किलोमीटर लम्बी शक्तिशाली नदी की सफाई के लिये जीएपी की शुरुआत की थी।
सन् 2009 में जीएपी का फिर से शुभारम्भ किया गया और नदी घाटी प्राधिकरण को इसका प्रभारी बनाया गया। एनजीआरबीए का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि प्रदूषण का प्रभावी ढंग से नियन्त्रण हो और नदी का संरक्षण हो। प्राधिकरण के कार्यों में नदी को साफ रखने और प्रवाहमान रखने की योजना बनाना है।
पिछले 30 वर्षों में जीएपी नदी के पानी को स्वीकार्य स्तर की गुणवत्ता प्रदान करने (नहाने लायक पानी का स्तर लाने के मानक) में असफल रहा है। नदी को साफ करने के लिये दो चरणों में 950 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। कांग्रेस नीत पिछली यूपीए सरकार को विश्व बैंक से नदी साफ करने के लिये वित्तीय सहायता भी मिल चुकी है। लेकिन स्थिति चिन्ताजनक है। कमी यह है कि गंगा को बचाने की कोई सम्पूर्ण योजना नहीं है।
प्रदूषण का बढ़ता भार
केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के जुलाई 2013 के अनुमान के अनुसार नदी की ऊपरी धारा के अलावा पूरी लम्बाई में मुख्यधारा में मल के कोलीफार्म का स्तर स्वीकार्य स्तर से ऊँचा बना रहता है। लेकिन ऊँचाई पर बहने वाली धारा में भी चिन्ताजनक स्थितियाँ हैं क्योंकि रुद्रप्रयाग और देवप्रयाग में भी मल सम्बन्धी कोलीफार्म का स्तर बढ़ रहा है और इससे पता चलता है कि इन उच्च स्तरीय ऑक्सीजन वाले इलाकों में भी पानी का पर्याप्त प्रवाह न होने से गन्दगी का विलय नहीं हो पाता।
जीएपी के आरम्भ से पहले ऊपरी धारा में जहाँ कोलीफार्म की संख्या कम रहती थी, अब वहाँ मल सम्बन्धी कोलीफार्म का स्तर ज्यादा दिख रहा है। नदी के ऊपरी धारा में जहाँ पर ऑक्सीकरण की क्षमता सर्वाधिक होती है वहाँ प्रदूषण बढ़ने के संकेत मिल रहे हैं। इससे पता चलता है कि वहाँ भी जल विद्युत के लिये पानी निकाले जाने से गंगा की सेहत खतरे में पड़ रही है।
नदी जैसे-जैसे मैदान में पहुँचती है वैसे-वैसे सिंचाई और पीने के पानी की आवश्यकता के लिये धारा से पानी खींचे जाने की मात्रा बढ़ती जाती है। ऋषिकेश से इलाहाबाद तक नदी की इस धारा में जाड़े और गर्मी के महीनों में पानी ही नहीं रहता। दूसरे शब्दों में नदी बहना बन्द कर देती है। लेकिन गन्दे पानी का प्रवाह बन्द नहीं होता। इस समय में नदी में सिर्फ गन्दा पानी आता है और नदी सीवर ले जाने वाला नाला बन जाती है।
केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के ताजा मानिटरिंग आँकड़ों के अनुसार निचली धारा में हरिद्वार, कन्नौज और कानपुर में बीओडी का स्तर ऊँचा है और वाराणसी में सबसे ज्यादा है। लेकिन चिन्ता की बात यह है कि नदी की पूरी यात्रा में वाराणसी में प्रदूषण का स्तर दिन-ब-दिन बुरा होता जा रहा है, उदाहरण के लिये बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) का स्तर 1986 और 2011 के बीच कभी भी 7 एमजी/लीटर से कम नहीं हुआ।
लेकिन इस बात पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि इस पूरी प्रदूषित धारा में नदी से साफ पानी खींचने का सिलसिला बढ़ रहा है। इस प्रकार खेती, उद्योग और शहरों के लिये पानी तो निकाला जा रहा है लेकिन नदी को महज कचरा वापस किया जा रहा है।
लंबान (स्थान) | डिस्चार्ज (एमएलडी) | बीओडी लोड (केजी/दिन) |
कानपुर | 600 | 634,915 |
उन्नाव | 78 | 12,068 |
फतेहपुर-रायबरेली | 1,491 | 36,148 |
इलाहाबाद | 294 | 35,943 |
मिर्जापुर | 149 | 9,471 |
वाराणसी | 411 | 9,607 |
कुल | 3,023 | 738,152 |
कानपुर से वाराणसी के बीच प्रदूषण का दबावः
स्रोत केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड 2013, प्रदूषण आकलनः गंगा नदी, केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड, एनओईएफ, जुलाई।
बातें ही बातें, काम नहीं
जब नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में नई सरकार बनी तो गंगा की सफाई उसके कार्यक्रमों में सबसे ऊपर थी। सरकार ने सुधारात्मक उपायों की चर्चा की और जीएपी की विफलता की तरफ संकेत किया। भाजपा नीत एनडीए ने कहा कि यूपीए के शासन काल में एनजीआरबीए बेअसर, दन्तविहीन रहा और काम शुरू ही नहीं कर पाया।
भाजपा ने इस बात पर भी आलोचना की कि जीएपी के असर की चर्चा करने के लिये पिछली सरकार के कार्यकाल में एनजीआरबीए के सदस्यों की महज तीन बार बैठक हुई।
नई सरकार के तहत 2014 में हुई पहली और पूरे क्रम की चौथी मीटिंग में यह फैसला किया गया कि एनजीआरबीए जो पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मन्त्रालय के तहत काम करता था अब जल संसाधन, नदी विकास और गंगा पुनर्जीवन मन्त्रालय के तहत काम करेगा। एनजीआरबीए को सक्रिय करने के लिये मन्त्रालय उसके सुधार और पुनर्गठन के बारे में सोच रहा है।
लेकिन पवित्र नदी की सफाई का मोदी का सपना निकट भविष्य में पूरा होता नहीं दिखता। ऐसा इस तथ्य के बावजूद है कि एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन, नमामि गंगे जैसे कार्यक्रम आरम्भ कर दिए गए हैं। फरवरी में प्रस्तुत बजट में नदी की सफाई पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया।
पिछले साल पेश किए गए अन्तरिम बजट में गंगा की सफाई के लिये विशेष तौर पर 2000 करोड़ खर्च करने की बात हुई थी। आज तक जमीन पर कुछ भी दिखाई नहीं पड़ा। जो कुछ देखा गया वह चर्चा के लिये बैठकों का आयोजन था जैसे कि गंगा मंथन और जल मंथन।
सुप्रीम कोर्ट जो कि नदी की सफाई और सीवेज ट्रींटमेंट प्लांट लगाने सम्बन्धी पर्यावरणविद एमसी मेहता की दो दशक पुरानी जनहित याचिका के आधार मामले को 1985 देख रहा है उसने कथनी को करनी में न बदलने के लिये सरकार को कई बार फटकारा है।
बताया जाता है कि प्रधानमन्त्री ने अब तक की स्थितियों का जायजा लिया है। इस बीच मन्त्रालय ने लोकसभा में दो रपटें पेश की हैं—एक प्रदूषण के सबसे बुरे स्थलों के बारे और दूसरी सात आईआईटी की तरफ से तैयार की गई गंगा नदी घाटी प्रबन्धन योजना के बारे में। जल संसाधन मन्त्री उमा भारती का कहना है कि मन्त्रालय महज दो सालों में गंगा को साफ करने को तैयार है। उन्होंने नागरिकों से कहा भी है कि वे सफाई को सुनिश्चित करें और घाटों पर पेड़ लगाएँ।
उम्मीद की जानी चाहिए कि आईआईटी ने जो योजना बनाई है वह महज सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की तरफ ही ध्यान नहीं देगी बल्कि इस बात पर भी विचार करेगी कि नदी के किनारे बसे शहरों में सिर्फ 20-30 प्रतिशत इलाके ऐसे हैं जहाँ पर सीवर लाइन की व्यवस्था है। इसलिये ट्रीटमेंट प्लांट की योजना बनाते समय गन्दगी के बहाव के सिद्धान्त को फिर से बनाया जाना चाहिए और लागू करना चाहिए।
प्रस्तुति : अरुण कुमार त्रिपाठी
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