मंदाकिनी के पुनर्जीवन के लिए नागरिक चेतना आवश्यक है

संकट में है मंदाकिनी नदी।
संकट में है मंदाकिनी नदी।

चेतना प्रत्येक व्यक्ति में होती है, फर्क सिर्फ इतना सा है कि चेतना सुप्त हो जाती है। इसे इस प्रकार से समझा जा सकता है, जैसे कलयुग में अमर देवता हनुमान जी को श्राप था कि अपनी अपार ताकत को भूल जाओगे। श्रीराम के साथ संपूर्ण वानर सेना समुद्र तट पर इस ताक पर खड़ी थी कि कौन समुद्र पार कर देवी सीता तक संदेश भेजेगा? आज के विज्ञानिक युग में भी ऐसा संभव नहीं हो सका कि बिना किसी टेक्नालॉजी के सहारे मनुष्य उड़ सके और और विशाल समुद्र को पार करने का साहस रख सके। यह पौराणिक कथा सुप्त चेतना को जागृत करने की ओर बड़ा इशारा है। जामवंत वो शख्सियत रहे, जिन्होंने वीर हनुमान को याद दिलाया कि आप में अपार क्षमता है। अपनी शक्ति का सदुपयोग करिए और संदेश माता सीता तक पहुंचा कर आइए। इसके आगे की कथा से जन-जन जानकार है कि लंका का क्या हश्र हुआ था?

आज भी प्रत्येक व्यक्ति में हनुमान सी ताकत का भंडार है। फर्क सिर्फ इतना सा है कि जामवंत कहां है, जो इंसान में व्याप्त शक्ति का एहसास करा सके। मनुष्य की सुप्त चेतना जागृत हो जाए तो वह बड़े से बड़ा लक्ष्य निरंतर प्रयास से पाया जा सकता है। मंदाकिनी नदी जनपद चित्रकूट के नागरिकों के लिए जीवनदायिनी है। इसी मंदाकिनी नदी पर एशिया की सबसे बड़ी पाठा जलकल योजना बन सकी।  इसकी विशेषता थी कि कम से कम पूरे चित्रकूट की प्यास बुझा सकती थी, ऐसा अनुमान तत्कालीन विशेषज्ञों ने लगाया था। किंतु वर्तमान की स्थिति ऐसी है कि मंदाकिनी नदी कहीं कम बह रही है, तो कहीं जल स्तर तलहटी तक सीमित है। एक निश्चित भूभाग रामघाट परिक्षेत्र में गहराई तक खूब जल दिख जाता है।  किंतु इसके आगे-पीछे मंदाकिनी की सच्चाई बड़ी भयावह हो चुकी है। 

नदी आपकी है और आपका जीवन नदी पर निर्भर है। जो आपसे कुछ शर्म चाहती और कुछ योगदान चाहती है। आपका आज का योगदान भविष्य की पीढ़ियों को सुख महसूस कर आएगा। अन्यथा विकराल तबाही का सामना भी आपकी ही पीढ़िया करेंगी। वो पीढ़ियां मंथन करेंगी कि क्या हमारे बुजुर्ग इतने अकर्मण्य थे कि एक नदी को जीवित करने के लिए श्रम नहीं कर सके। क्या इतने कृपण थे कि नदी की अविरल धारा के लिए तन-मन और धन से सहयोग न कर सकें। 

धर्म नगरी चित्रकूट के शहरी परिक्षेत्र में जल कुछ मात्रा में दिख जाता है। उस पर भी गंदगी से इंकार नहीं किया जा सकता है। यहां माफियाओं द्वारा नदी क्षेत्र में अवैध कब्जे भी खूब चर्चित रहे। पूर्व वर्ष में एक दूध डेयरी मालिक और सभासदों में जबरन कब्जा व नदी के पवित्र जल में गोबर आदि गंदगी डालकर जल प्रदूषित करने को लेकर खूब जंग छिड़ी। मामला न्यायालय तक पहुंचा लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात, चूंकि आज भी मंदाकिनी से घरों की सप्लाई हो रहे पीने का पानी में प्रदूषण की बात चर्चा का विषय है। वह दूध की डेयरी आबाद है और उसका मालिक भी आबाद है। अगर कहीं कुछ गलत हुआ तो मंदाकिनी के स्वच्छ पवित्र जल के साथ गलत हुआ। जिस नदी का आध्यात्मिक महत्व है, जिसे श्रद्धा के भाव से मां कहते हैं। उसी नदी के साथ शासन-प्रशासन और माफियाओं द्वारा किया जा रहा अत्याचार किसको सुखमय जीवन प्रदान करेगा। उन माफियों के साथ प्रकृति ही न्याय करेगी क्योंकि प्रकृति के प्रकोप से कोई भी बाहुबली, माफिया और ऊंचे ओहदे पर बैठे लोग बच नहीं सके। जब प्राकृतिक आपदा आती है तो पल भर में सब कुछ तहस-नहस हो जाता है और इंसान सिर्फ मेरी हो कर देखता रह जाता है।

कल्पना करिए कि भीषण गर्मी का समय है। तपन से दीवारें तन गईं, लू से भयभीत होकर कोई भी घर से बाहर नहीं निकल सकता। इधर मंदाकिनी ग्रामीण क्षेत्र में सूख जाती है। इन हालात पर भूगर्भ जल स्तर भी अत्यधिक नीचे चला जाता है, आखिर कैसे बुझेगी प्यास? मंदाकिनी नदी में जल रहा तो पशु-पक्षियों की भी प्यास बुझ जाती है। साथ ही उनका रैन-बसैरा भी नदी का तट और तट पर लगे वृक्ष हो जाते हैं। सांझ होते ही पंक्षी शाखाओं में बैठकर अपनी भाषा में एक-दूसरे को कुछ संदेश देते हैं और मनुष्य को भी इशारा करते हैं कि सांझ हो चुकी है। ऐसा मनोरम दृश्य भी ओझल होता जा रहा है। चूंकि प्यास बुझाने की उम्मीद होगी। शहरी क्षेत्र से बाहर निकलते ही मंदाकिनी ग्रामीण क्षेत्र में सूखने लगती है। ठंड के दिनों में भी जल धाराएं टूटने लगती हैं और जल स्तर न के बराबर हो जाता है। यहां स्नान करने का आनंद लेना भी पूरा स्वप्न साबित हो जाता है। सिर्फ इतना ही नहीं तटीय ग्रामों के किसानों की खेती पर भी असर पड़ा है। इतना सब कुछ भुगतने के बाद भी जनता सरकार की ओर टकटकी लगाए हैं कि सरकार को ध्यान आएगा और मंदाकिनी को पुनर्जीवित करेगी। जबकि जनता भूल जाती है कि नदियों को लेकर सरकार की कितनी योजनाएं फाइलों में पड़ी हुई हैं। सैकड़ों योजनाएं फाइलों पर क्रियान्वित हो रही हैं या फिर क्रियान्वयन होने के इंतजार में हैं।

मंदाकिनी नदी।मंदाकिनी नदी।

नमामि गंगे और भव्य कुंभ की वजह से गंगा बेशक कहीं-कहीं स्वच्छ दिखने लगी है पर समाज को भूलना नहीं चाहिए कि इसी नदी की अविरलता की मांग में स्वामी सानंद परलोक सिधार गए और मांगे आज भी कागज पर यथावत बनी हुई हैं। अतः जन चेतना को जागरूक होना होगा, जो सुप्त चेतना है उसे जगाना होगा। कोई जामवंत बने और हनुमान सी शक्तिमान जनता को जागृत करे कि नदी आपकी है और आपका जीवन नदी पर निर्भर है। जो आपसे कुछ शर्म चाहती और कुछ योगदान चाहती है। आपका आज का योगदान भविष्य की पीढ़ियों को सुख महसूस कर आएगा। अन्यथा विकराल तबाही का सामना भी आपकी ही पीढ़िया करेंगी। वो पीढ़ियां मंथन करेंगी कि क्या हमारे बुजुर्ग इतने अकर्मण्य थे कि एक नदी को जीवित करने के लिए श्रम नहीं कर सके। क्या इतने कृपण थे कि नदी की अविरल धारा के लिए तन-मन और धन से सहयोग न कर सकें। जो आज हम रेगिस्तान में प्यासे की तरह मरने के लिए मजबूर हैं। पशु-पक्षी तो पहले ही टूटे दिल के आशिक की तरह ये जगह छोड़कर चले जा चुके हैं कि अब न आएंगे यहां दोबारा। साचिए कितना भयावह जीवन होगा? सरकार को क्या, वो अपनी चाल चलती है। अगर कहीं कुछ जरूरत है तो आम आदमी की आवाज की जरूरत है।

नदी तटीय गांव की जनता नदी के प्रति समर्पण महसूस करें और सरकार इनके लिए नदी से संबंधित विशेष योजनाएं लाकर लाभान्वित करें, जिससे मनुष्य व्यवसाय से जुड़कर नदी के साथ लगाव रखेगा और न्याय हो सकेगा। इस संबंध में प्रधान संघ के अध्यक्षा दिव्या त्रिपाठी से जब बातचीत हुई तो उनका कहना था कि उनका जीवन ही नदी को स्पर्श करने वाली हवाएं सुखद महसूस कर सुखमय होता है। वो नदी से विशेष प्रेम रखती हैं और मंदाकिनी पुनर्जीवन हेतु जनमानस से चर्चा कर जागरूक करने का प्रयास करती हैं। वो कहती हैं कि समय की मांग है कि नदी के साथ होने वाली छोटी से छोटी ज्यादती अब खत्म हो। जब नदी के साथ न्याय होगा तब मनुष्य के साथ न्याय हो पाएगा। वे भविष्य की भयावहता को महसूस करते हुए कहती है कि सरकार बाद में काम करेगी पहले तो मंदाकिनी जन आवाज बने। ऐसे ही चित्रकूट जनपद के पुणे प्रवासी वरिष्ठ समाजसेवी अशोक दुबे मंदाकिनी के पुनर्जीवन विषय को गहराई से महसूस करते हैं। उनका कहना है कि नदी मनुष्यों को प्यास बुझाने से लेकर भूख मिटाने तक का काम करके जीवन देती है।

अब तक जो मनुष्य की संस्कृति फली-फूली उस पर शुरुआत से नदी और जंगल का बड़ा सहयोग और योगदान है। इनके अभाव में रेगिस्तान में प्यास से टूटने की तरह मानव धीरे-धीरे मर जाता। इसलिए नागरिकों को एक अब आवाज उठानी होगी ताकि तपती गर्मी में हवाएं जब नदी के जल को स्पर्श करें तो लू की की जगह ठंड का एहसास होगा। इसी मनोरमा के लिए नदी का मानव जीवन में अस्तित्व है। सच है कि जन आवाज बन जाए तो फिर कोई भी सरकार घुटना टेक देगी। अतः जनता अपनी नदी के प्रति गंभीर हो जाए। कितना खूबसूरत दृश्य होगा यदि मंदाकिनी का सीमांकन हो जाए। मंदाकिनी के परिक्षेत्र पर दोनों किनारों पर सुंदर टिकाऊ सदाबहार वृक्ष लग जाएं तो यह दृश्य खूबसूरत कश्मीर सा होगा और सैलानी यहां भी मंदाकिनी की भव्यता में रमने चले आएंगे। यह एक सुखद कल्पना है जिसके साकार होने के लिए सामाजिक भागीदारी जरूरी है।

रमणीय मंदाकिनी नदी के मनोहरी दृश्य के लिए नगर व्यवसाय श्याम जायसवाल का कहना है कि व्यापारी समाज हमेशा से समाजोत्थान के लिए सहयोग करता आया है। अब वक्त आ चुका है कि चित्रकूट की जीवनधारा नदी को बचाने के लिए व्यापारियों को आगे आना होगा। नदी का अस्तित्व रहेगा तभी भविष्य की पीढ़ियां सुखमय जिंदगी जी पाएंगी। पूर्व के वर्षों में कुछ जन जागरूकता का काम हुआ था। जिसमे तरह-तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा था। कोई समक्ष था हर तरह से तो तो कोई धन अभाव के चलते बहुत कुछ कर नहीं सका। पर कहते हैं संघे शक्ति कलियुगे, इसलिए एक नदी समाज की परिकल्पना बड़ी कारगर सिद्ध होगी। सभी क्षमता अनुसार मदद करें, तब जाकर संपूर्ण नदी क्षेत्रफल में सामाजिक मंशा के अनुरूप कार्य हो सकेगा और मां मंदाकिनी का वैभव इतना प्रभावशाली है कि एक नदी पर्यटक सिर्फ नदी के दर्शनार्थी बनकर आएंगे। 

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