भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में लघु एवं सीमान्त कृषकों, खेतिहर मजदूरों तथा अन्य श्रमिकों, शिल्पियों व विभिन्न सेवाएँ देने वाले परिवारों का बाहुल्य है। इनमें से अधिकांश परिवार गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन कर जैसे-तैसे अपना पेट पालने वाले हैं। बढ़ती हुई ग्रामीण जनसंख्या को रोजगार मुहैया कराने, गरीबी दूर करने, आर्थिक विषमता कम करने एवं बढ़ते शहरीकरण की समस्या का एकमात्र समाधान है गाँवों में रोजगार बढ़ाना। परिवार को अपनी बुनियादी जरूरतों की पूर्ति के लिए रोजगार आवश्यक है। रोजगार से अर्जित धनराशि से ही लोग अपने और अपने परिवार के लिए जीवन की मूलभूत सुविधाएँ— रोटी, कपड़ा और मकान का प्रबन्ध कर सकते हैं। किसी भी राष्ट्र की समृद्धि का प्रतीक वहाँ के लोगों को उपलब्ध रोजगार के अवसरों से होता है। जिस राष्ट्र के नागरिक जितनी अधिक संख्या में बेरोजगार होंगे वह राष्ट्र उतना ही अधिक समस्याग्रत, बीमार व बेनूर होगा।
सार्वजनिक धन के सही उपयोग, टिकाऊ एवं उपयोगी कार्य आदि की जाँच का हक जनता को है। जनता जब चाहे खर्चे का हिसाब एवं कार्यों की गुणवत्ता की जाँच कर सकती है। यही कार्य सामाजिक अंकेक्षण कहलाता है।पूर्व में रोजगार अवसरों के सृजन के लिए केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा समय-समय पर अनेक श्रम साध्य कार्यक्रमों की शुरुआत की गई परन्तु गाँवों में बेरोजगारी दूर करने में सफलता नहीं प्राप्त हो सकी। भारत में योजनागत विकास का यह अनुभव रहा है कि यद्यपि समाज के निम्न एवं पिछड़े वर्ग की विकास के मुख्यधारा से जोड़ने का अवसर सुलभ कराया गया था किन्तु अशिक्षा, गरीबी एवं पिछड़ेपन के कारण वह न तो विकास प्रक्रिया को समझ सका न ही उसका लाभ ले सका। सम्पन्न वर्ग के द्वारा सदैव यह प्रयास किया गया कि पिछड़े को पिछड़ा बनाए रखा जाए। नौकरशाहों ने भी इसी वर्ग का साथ दिया। विभिन्न योजनाओं तथा कार्यक्रमों के अन्तर्गत प्रचार-प्रसार प्राविधानित व्यवस्था का सदुपयोग नहीं किया गया। परिणामतः विकास कार्यों में जनसहभागिता नहीं हो सकी।
भारत के 73वें संवैधानिक संशोधन के माध्यम से ग्रामीण इलाकों में पंचायती राज व्यवस्था सुदृढ़ करने का प्रावधान किया गया, ताकि विकेन्द्रित नियोजन प्रणाली के माध्यम से ग्रामीण विकास किया जा सके। इस उद्देश्य से केन्द्र सरकार द्वारा 2 फरवरी, 2006 में देश के चुने हुए 200 अति पिछड़े जनपदों में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना लागू की गई। द्वितीय चरण में देश के 330 अन्य जनपदों को भी योजना में सम्मिलित किया गया तथा 1 अप्रैल, 2008 से रोजगार गारण्टी योजना को पूरे देश में चलाया जा रहा है जिसे 2 अक्तूबर, 2009 से केन्द्र सरकार द्वारा नाम संशोधित करके राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना (नरेगा) से महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी योजना (मनरेगा) कर दिया गया है।
योजना के प्रभावी क्रियान्यवन और भ्रष्टाचार से मुक्त रखने के लिए योजना में जन जागरुकता, जन सुनवाई, सामाजिक अंकेक्षण तथा सूचना के अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत निर्माण के सन्दर्भ में समस्त जानकारियाँ लेते रहने का प्रावधान किया गया है।
1. सार्वजनिक धन के सही उपयोग, टिकाऊ एवं उपयोगी कार्य आदि की जाँच का हक जनता को है। जनता जब चाहे खर्चे का हिसाब एवं कार्यों की गुणवत्ता की जाँच कर सकती है। यही कार्य सामाजिक अंकेक्षण कहलाता है।
2. सामाजिक अंकेक्षण करने के लिए लोगों में जागरुकता होना आवश्यक है, यह कार्य एक व्यक्ति द्वारा सम्भव नहीं है। ग्राम सभा इस कार्य के लिए उपयुक्त मंच है जहाँ जन सुनवाई के माध्यम से सामाजिक अंकेक्षण किया जा सकता है।
3. सामाजिक अंकेक्षण के लिए जनता एवं प्रतिनिधि, सामाजिक एवं स्वयंसेवी संस्थाओं के कार्यकर्ता, विशेषज्ञ, अधिकारी आदि सभी पक्ष मिलकर प्रभावी ढंग से कार्यवाही कर सकते हैं।
4. किसी सार्वजनिक कार्य पर प्रारम्भ से ही पूरी नजर रखने की आवश्यकता होती है। सामग्री, संख्या, वजन, नाप-तौल, सीमेण्ट, लोहा तथा सामग्री की गुणवत्ता आदि का पूरा विवरण रखा जाना आवश्यक है।
ग्राम सभा में जन सुनवाई के माध्यम से सामाजिक अंकेक्षण बराबर चलते रहना चाहिए। सामाजिक अंकेक्षण से पारदर्शिता आएगी। इसमें सूचना का अधिकार पारदर्शिता लाने में मदद करेगा। 5. मजदूरी पर लगे लोग, कार्य-दिवस, भुगतान कार्यों का अनुमापन, स्थान जहाँ से सामग्री की खरीद की गई है—इस प्रकार का विवरण तैयार किया जाना चाहिए। बाजार में प्रचलित दरें, वस्तुओं की गुणवत्ता, काम में ली गई वस्तु की मात्रा आदि का तुलनात्मक अध्ययन किया जाना चाहिए।
6. दस्तावेशी प्रमाण के साथ जनता एवं अधिकारियों के समझने योग्य विवरण तैयार कर सूचनाओं को ग्राम सभा में जन सुनवाई के दौरान प्रमाणों के साथ प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
7. कार्य करवाने के लिए जिम्मेदार कर्मचारियों, अधिकारियों जनप्रतिनिधियों द्वारा की गई अनियमितताओं का उत्तर देने का मौका देना चाहिए।
8. अनियमितताओं को सूचीबद्ध कर सम्बन्धित विभागों को कार्यवाही के लिए प्रेषित किया जाना चाहिए एवं संलिप्तता सिद्ध होने पर कठोर दण्ड का प्रावधान किया जाना चाहिए।
1. प्रत्येक कार्य के सम्पादन, पर्यवेक्षण, प्रगति तथा गुणवत्ता का आकलन करने के लिए प्रत्येक ग्राम स्तर पर एक सतर्कता समिति का गठन किया जाना चाहिए।
2. योजना के प्रभावी क्रियान्वयन तथा भ्रष्टाचार से मुक्त रखने के लिए राजस्व ग्राम स्तर, न्याय पंचायत स्तर, विकास खण्ड स्तर तथा जिला स्तर पर सशक्त निगरानी तन्त्र की व्यवस्था का प्रावधान योजना के अन्तर्गत किया जाना चाहिए।
3. ग्राम सभा की प्रत्येक त्रौमासिक बैठक में रोजगार की माँग, पंजीयन, जॉबकार्ड, कार्यरत लोगों की सूची अथवा ऐसे लोगों की सूची जिन्हें रोजगार प्राप्त नहीं हुआ आदि रिकॉर्ड के आधार पर जानकारियाँ देनी चाहिए।
4. भुगतान की राशि, अकुशल मानव श्रम, कुशल श्रमिक, कार्य पूर्ण करने में लगा समय, सामग्री, सृजित मानव दिवस, सतर्कता एवं मूल्यांकन समिति की रिपोर्ट, मस्टररोल की प्रतियाँ ग्राम सभा के समक्ष प्रस्तुत की जानी चाहिए।
5. योजना के अन्तर्गत लाभान्वित परिवारों का वर्गवार अर्थात अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग तथा सामान्य वर्ग के लोगों को उपलब्ध कराए गए रोजगार दिवसों की जानकारी खुली बैठक में दी जानी चाहिए।
6. शारीरिक रूप से विकलांगों एवं महिलाओं को उपलब्ध रोजगार दिवसों की जानकारी भी होने वाली खुली बैठक में दी जानी चाहिए।
7. स्कीम के अन्तर्गत प्रत्येक जनपद में समस्त कार्यों के भौतिक एवं वित्तीय अंकेक्षण की व्यवस्था वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर किया जाना आवश्यक है।
8. योजना के अन्तर्गत कार्यस्थल पर प्रदान की जाने वाली सुविधाओं जैसे दवा, पालना घर, पीने के पानी की व्यवस्था तथा शेड इत्यादि की जानकारी तथा सुविधा उपलब्ध करवाने में व्यय धनराशि की जानकारी भी खुली बैठक में दी जानी चाहिए।
9. ऑडिट में पाई गई गम्भीर अनियमितताओं की सूचना जिला कार्यक्रम समन्वयक और ग्रामीण रोजगार गारण्टी परिषद को भेजना चाहिए तथा परिषद द्वारा गम्भीर अनियमितताओं के निराकरण हेतु प्रभावी तन्त्र की स्थापना के साथ सम्बन्धित कर्मचारियों एवं अधिकारियों को कठोरतम दण्ड देना चाहिए जिससे गरीबों के कल्याण हेतु चलाई जा रही योजनाओं को प्रभावित करने का साहस अन्य कर्मचारी तथा अधिकारी न कर सकें।
10. योजना के अन्तर्गत कराए जा रहे कार्यों में गुणवत्ता आकलन एवं सन्धारण हेतु राज्य एवं जिला स्तर पर पैनल तैयार करने का प्रावधान किया जाना चाहिए तथा पैनल में योग्य एवं ईमानदार अधिकारियों की नियुक्ति की जानी चाहिए।
11. सूचना के अधिकार के अन्तर्गत अधिनियम के प्रावधानों एवं राज्य सरकारों द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार प्रत्येक स्तर पर आवेदनकर्ता को योजना के सम्बन्ध में सूचनाएँ उपलब्ध करवाने का प्रावधान किया गया है।
12. समस्त आलेख जैसे जॉबकार्ड, मस्टररोल, कार्यों का विवरण आदि को कम्प्यूटराइज्ड किया जाना चाहिए। यह विवरण इण्टरनेट पर उपलब्ध रहने से पारदर्शिता रहेगी।
मनरेगा के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्र में अकुशल श्रमिकों को सौ दिन के रोजगार उपलब्ध कराने के साथ-साथ गाँवों में स्थायी परिसम्पत्तियों के सृजन को महत्त्व दिया गया है। योजना के अन्तर्गत किए जाने वाले कार्यों की प्राथमिकताएँ निम्नलिखित हैं :
1. रोजगार गारण्टी अधिनियम में यह प्रावधान है कि राज्य रोजगार गारण्टी परिषद प्राथमिकता के आधार पर एक वित्तीय वर्ष में किए जाने वाले कार्यों की सूची तैयार करे।
2. योजना के अन्तर्गत कार्यों को उनकी वरीयता के आधार पर क्रियान्वित किया जाएगा।
3. जल-संरक्षण और जल-संग्रहण के कार्य योजना के अन्तर्गत किए जाएँगे।
4. सूखा नियन्त्रण के कार्य, जिनमें वन विकास एवं वृक्षरोपण के कार्य सम्मिलित हैं।
5. सिंचाई नहरें, जिनमें माइनर और माइक्रो सिंचाई के कार्य सम्मिलित हैं।
6. अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के परिवारों के भूमि स्वामियों की भूमि के लिए सिंचाई सुविधाओं के कार्य करवाना।
7. परम्परागत जल-स्रोत्रों का जीर्णोद्धार, नवीकरण तथा तालाब से गाद (मिट्टी) निकालने का कार्य सम्मिलित है।
8. भूमि विकास के कार्य करवाना, बाढ़ नियन्त्रण एवं बाढ़ बचाव कार्य में जल अवरुद्ध क्षेत्र में जल-निकासी के कार्य।
9. अन्य कोई कार्य जिन्हें केन्द्र सरकार राज्य सरकार के परामर्श से अधिसूचित करें।
10. सूची में वर्णित कार्यों के अन्तर्गत सृजित सम्पत्ति के रख-रखाव पर भी होने वाला व्यय इस योजना के अन्तर्गत किया जाएगा।
11. योजना के अन्तर्गत कराए जाने वाले कार्यों में श्रम एवं सामग्री का क्रमशः 60:40 का अनुपात रहेगा। बड़ी परियोजना में यह अनुपात जिला स्तर पर सुनिश्चित किया जाएगा।
12. विभिन्न प्रकार के निर्माण कार्यों के मॉडल डिजाइन ग्रामीण कार्य निदेशिका में वर्णित जिलावार निर्धारण समिति द्वारा अनुमोदित दरों के अनुसार कार्यों के अनुमान तैयार कर कार्य सम्पादित कराए जाने का प्रावधान है।
योजना के अन्तर्गत श्रमिकों को मजदूरी का भुगतान न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के आधार पर पुरुष एवं महिला श्रमिकों को एक समान किए जाने का प्रावधान है। मजदूरी के भुगतान में पूरी पारदर्शिता बरतने के उद्देश्य से पारिश्रमिक का भुगतान बैंक खाता अथवा डाकघर खाता के माध्यम से किया जाता है।
काम करने के इच्छुक व्यक्ति द्वारा काम की माँग किए जाने के 15 दिन के अन्दर रोजगार नहीं उपलब्ध कराया जाता है तो उसे बेरोजगारी भत्ता प्रदान किया जाए साथ ही यदि श्रमिक को उसके आवास से 5 कि.मी. की परिधि से बाहर रोजगार उपलब्ध कराए जाने की स्थिति में उसे परिवहन और निर्वाह व्यय के लिए 10 प्रतिशत अतिरिक्त मजदूरी देने का प्रावधान कार्यक्रम में किया गया है।
बेरोजगारी भत्ते की दरें राज्य सरकारों द्वारा राज्य रोजगार गारण्टी परिषद की सलाह से समय-समय पर अधिसूचित किए जाने की व्यवस्था है। इस मद की धनराशि एक वित्तीय वर्ष में 30 कार्य-दिवस हेतु न्यूनतम मजदूरी दर के एक-चौथाई से कम नहीं होगी तथा शेष अवधि के लिए न्यूनतम मजदूरी दर से आधी से कम नहीं होनी चाहिए।
रोजगार उपलब्ध नहीं कराए जाने की स्थिति में सम्बन्धित व्यक्ति को बेरोशगारी भत्ते का भुगतान सुनिश्चित करने का दायित्व कार्यक्रम अधिकारी का होगा तथा इस मद की राशि इस योजना में राज्य के 10 प्रतिशत अंशदान में चुकाए जाने की व्यवस्था की गई है।
1. मनरेगा के प्रभावी क्रियान्वयन से ग्रामीण परिवारों की न्यूनतम वार्षिक आय सुनिश्चित कर जीवन-स्तर में सुधार किया जा सकता है।
2. इस योजना के संचालित होने से गाँवों से शहरों की ओर काम की खोज में होने वाले पलायन को गाँव में ही कार्य उपलब्ध कराकर कम करने में सफलता मिल रही है।
3. योजना के अन्तर्गत होने वाले कार्यों में 33 प्रतिशत महिलाओं की सहभागिता सुनिश्चित होने से ग्रामीण माहिलाओं में आर्थिक सशक्तीकरण को बल मिलेगा।
4. योजना के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में स्थायी परिसम्पत्तियों का सृजन हो रहा है।
5. गाँवों में पहले से निर्मित कार्यों की मरम्मत, पानी के स्रोतों, तालाबों आदि से गाद निकालना एवं उनके रख-रखाव के कार्य नियमित रूप से किया जा सकेगा।
6. रोजगार की गारण्टी से ग्रामीण समाज का शक्ति समीकरण बदलेगा, शक्ति को सामाजिक क्षमता निर्माण के आधार पर देखा जा सकेगा।
7. योजना के क्रियान्वयन से असंगठित मजदूरों में मोल-तोल की क्षमता में वृद्धि होगी साथ वे न्यूनतम मजदूरी एवं सामाजिक सुरक्षा जैसे कई महत्त्वपूर्ण अधिकारों के लिए लड़ सकेंगे।
8. योजना के अन्तर्गत वृक्षारोपण कार्यक्रम चलाकर वन्य क्षेत्रफल को बढ़ाने तथा पर्यावरण असन्तुलन को कम करने में सफलता मिलेगी।
9. ग्रामीण क्षेत्रों में योजना के अन्तर्गत मत्स्य-पालन, फूलों की खेती तथा औषधि उत्पादन आदि कार्यक्रमों को सम्मिलित करके ग्रामीण परिवारों को लाभान्वित किया जा सकता है।
10. देश के विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक विषमता एवं राज्यों की सत्ता के विरोध में बनने वाले आतंकवादी संगठन एवं उनके द्वारा फैलाए जाने वाले आतंक पर भी योजना के क्रियान्वयन से रोक लगेगी।
ग्राम सभा में जन सुनवाई के माध्यम से सामाजिक अंकेक्षण बराबर चलते रहना चाहिए। सामाजिक अंकेक्षण से पारदर्शिता आएगी। इसमें सूचना का अधिकार पारदर्शिता लाने में मदद करेगा। निश्चित रूप से योजना के अन्तर्गत ऐसे प्रावधान किए गए हैं कि किसी स्तर पर गड़बड़ी होने की सम्भावना न रहे लेकिन चालाक और भ्रष्ट कर्मचारियों और अधिकारियों द्वारा योजना में गड़बड़ियों के प्रमाण मिले हैं। इसको रोकने के लिए क्रियान्वयन तन्त्र को मजबूत बनाने की आवश्यकता है। किसी भी स्तर पर अनियमितताओं को रोकने के लिए व्यक्तियों एवं अधिकारियों को सतर्क रहने की आवश्यकता है।
योजना के अन्तर्गत राशि पंचायतों को सीधे ही मिल रही है। धन के सही उपयोग के लिए प्रशासनिक ढाँचा भी मजबूत करना होगा। राज्य सरकारों को चाहिए कि जिन राज्यों में पंचायतों का ढाँचा बिल्कुल नहीं है उसे निर्मित करने के साथ ही जिन राज्यों में पंचायतों का ढाँचा कमजोर है उसे सशक्त किया जाए। यदि ग्राम सभा में सभी लोग मिलकर सही निर्णय करें और साथ ही प्रभावी निगरानी प्रणाली को विकसित किया जाए तो अगले कुछ वर्षों मंि ही गाँवों का कायाकल्प किया जा सकेगा।
(लेखक फीरोज गाँधी कॉलेज, रायबरेली के अर्थशास्त्र विभाग में रीडर हैं)
ई-मेल : ganga.verma@yahoo.co.in
सार्वजनिक धन के सही उपयोग, टिकाऊ एवं उपयोगी कार्य आदि की जाँच का हक जनता को है। जनता जब चाहे खर्चे का हिसाब एवं कार्यों की गुणवत्ता की जाँच कर सकती है। यही कार्य सामाजिक अंकेक्षण कहलाता है।पूर्व में रोजगार अवसरों के सृजन के लिए केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा समय-समय पर अनेक श्रम साध्य कार्यक्रमों की शुरुआत की गई परन्तु गाँवों में बेरोजगारी दूर करने में सफलता नहीं प्राप्त हो सकी। भारत में योजनागत विकास का यह अनुभव रहा है कि यद्यपि समाज के निम्न एवं पिछड़े वर्ग की विकास के मुख्यधारा से जोड़ने का अवसर सुलभ कराया गया था किन्तु अशिक्षा, गरीबी एवं पिछड़ेपन के कारण वह न तो विकास प्रक्रिया को समझ सका न ही उसका लाभ ले सका। सम्पन्न वर्ग के द्वारा सदैव यह प्रयास किया गया कि पिछड़े को पिछड़ा बनाए रखा जाए। नौकरशाहों ने भी इसी वर्ग का साथ दिया। विभिन्न योजनाओं तथा कार्यक्रमों के अन्तर्गत प्रचार-प्रसार प्राविधानित व्यवस्था का सदुपयोग नहीं किया गया। परिणामतः विकास कार्यों में जनसहभागिता नहीं हो सकी।
भारत के 73वें संवैधानिक संशोधन के माध्यम से ग्रामीण इलाकों में पंचायती राज व्यवस्था सुदृढ़ करने का प्रावधान किया गया, ताकि विकेन्द्रित नियोजन प्रणाली के माध्यम से ग्रामीण विकास किया जा सके। इस उद्देश्य से केन्द्र सरकार द्वारा 2 फरवरी, 2006 में देश के चुने हुए 200 अति पिछड़े जनपदों में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना लागू की गई। द्वितीय चरण में देश के 330 अन्य जनपदों को भी योजना में सम्मिलित किया गया तथा 1 अप्रैल, 2008 से रोजगार गारण्टी योजना को पूरे देश में चलाया जा रहा है जिसे 2 अक्तूबर, 2009 से केन्द्र सरकार द्वारा नाम संशोधित करके राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना (नरेगा) से महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी योजना (मनरेगा) कर दिया गया है।
योजना के प्रभावी क्रियान्यवन और भ्रष्टाचार से मुक्त रखने के लिए योजना में जन जागरुकता, जन सुनवाई, सामाजिक अंकेक्षण तथा सूचना के अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत निर्माण के सन्दर्भ में समस्त जानकारियाँ लेते रहने का प्रावधान किया गया है।
सामाजिक अंकेक्षण की प्रक्रिया
1. सार्वजनिक धन के सही उपयोग, टिकाऊ एवं उपयोगी कार्य आदि की जाँच का हक जनता को है। जनता जब चाहे खर्चे का हिसाब एवं कार्यों की गुणवत्ता की जाँच कर सकती है। यही कार्य सामाजिक अंकेक्षण कहलाता है।
2. सामाजिक अंकेक्षण करने के लिए लोगों में जागरुकता होना आवश्यक है, यह कार्य एक व्यक्ति द्वारा सम्भव नहीं है। ग्राम सभा इस कार्य के लिए उपयुक्त मंच है जहाँ जन सुनवाई के माध्यम से सामाजिक अंकेक्षण किया जा सकता है।
3. सामाजिक अंकेक्षण के लिए जनता एवं प्रतिनिधि, सामाजिक एवं स्वयंसेवी संस्थाओं के कार्यकर्ता, विशेषज्ञ, अधिकारी आदि सभी पक्ष मिलकर प्रभावी ढंग से कार्यवाही कर सकते हैं।
4. किसी सार्वजनिक कार्य पर प्रारम्भ से ही पूरी नजर रखने की आवश्यकता होती है। सामग्री, संख्या, वजन, नाप-तौल, सीमेण्ट, लोहा तथा सामग्री की गुणवत्ता आदि का पूरा विवरण रखा जाना आवश्यक है।
ग्राम सभा में जन सुनवाई के माध्यम से सामाजिक अंकेक्षण बराबर चलते रहना चाहिए। सामाजिक अंकेक्षण से पारदर्शिता आएगी। इसमें सूचना का अधिकार पारदर्शिता लाने में मदद करेगा। 5. मजदूरी पर लगे लोग, कार्य-दिवस, भुगतान कार्यों का अनुमापन, स्थान जहाँ से सामग्री की खरीद की गई है—इस प्रकार का विवरण तैयार किया जाना चाहिए। बाजार में प्रचलित दरें, वस्तुओं की गुणवत्ता, काम में ली गई वस्तु की मात्रा आदि का तुलनात्मक अध्ययन किया जाना चाहिए।
6. दस्तावेशी प्रमाण के साथ जनता एवं अधिकारियों के समझने योग्य विवरण तैयार कर सूचनाओं को ग्राम सभा में जन सुनवाई के दौरान प्रमाणों के साथ प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
7. कार्य करवाने के लिए जिम्मेदार कर्मचारियों, अधिकारियों जनप्रतिनिधियों द्वारा की गई अनियमितताओं का उत्तर देने का मौका देना चाहिए।
8. अनियमितताओं को सूचीबद्ध कर सम्बन्धित विभागों को कार्यवाही के लिए प्रेषित किया जाना चाहिए एवं संलिप्तता सिद्ध होने पर कठोर दण्ड का प्रावधान किया जाना चाहिए।
सामाजिक अंकेक्षण एवं पारदर्शिता
1. प्रत्येक कार्य के सम्पादन, पर्यवेक्षण, प्रगति तथा गुणवत्ता का आकलन करने के लिए प्रत्येक ग्राम स्तर पर एक सतर्कता समिति का गठन किया जाना चाहिए।
2. योजना के प्रभावी क्रियान्वयन तथा भ्रष्टाचार से मुक्त रखने के लिए राजस्व ग्राम स्तर, न्याय पंचायत स्तर, विकास खण्ड स्तर तथा जिला स्तर पर सशक्त निगरानी तन्त्र की व्यवस्था का प्रावधान योजना के अन्तर्गत किया जाना चाहिए।
3. ग्राम सभा की प्रत्येक त्रौमासिक बैठक में रोजगार की माँग, पंजीयन, जॉबकार्ड, कार्यरत लोगों की सूची अथवा ऐसे लोगों की सूची जिन्हें रोजगार प्राप्त नहीं हुआ आदि रिकॉर्ड के आधार पर जानकारियाँ देनी चाहिए।
4. भुगतान की राशि, अकुशल मानव श्रम, कुशल श्रमिक, कार्य पूर्ण करने में लगा समय, सामग्री, सृजित मानव दिवस, सतर्कता एवं मूल्यांकन समिति की रिपोर्ट, मस्टररोल की प्रतियाँ ग्राम सभा के समक्ष प्रस्तुत की जानी चाहिए।
5. योजना के अन्तर्गत लाभान्वित परिवारों का वर्गवार अर्थात अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग तथा सामान्य वर्ग के लोगों को उपलब्ध कराए गए रोजगार दिवसों की जानकारी खुली बैठक में दी जानी चाहिए।
6. शारीरिक रूप से विकलांगों एवं महिलाओं को उपलब्ध रोजगार दिवसों की जानकारी भी होने वाली खुली बैठक में दी जानी चाहिए।
7. स्कीम के अन्तर्गत प्रत्येक जनपद में समस्त कार्यों के भौतिक एवं वित्तीय अंकेक्षण की व्यवस्था वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर किया जाना आवश्यक है।
8. योजना के अन्तर्गत कार्यस्थल पर प्रदान की जाने वाली सुविधाओं जैसे दवा, पालना घर, पीने के पानी की व्यवस्था तथा शेड इत्यादि की जानकारी तथा सुविधा उपलब्ध करवाने में व्यय धनराशि की जानकारी भी खुली बैठक में दी जानी चाहिए।
9. ऑडिट में पाई गई गम्भीर अनियमितताओं की सूचना जिला कार्यक्रम समन्वयक और ग्रामीण रोजगार गारण्टी परिषद को भेजना चाहिए तथा परिषद द्वारा गम्भीर अनियमितताओं के निराकरण हेतु प्रभावी तन्त्र की स्थापना के साथ सम्बन्धित कर्मचारियों एवं अधिकारियों को कठोरतम दण्ड देना चाहिए जिससे गरीबों के कल्याण हेतु चलाई जा रही योजनाओं को प्रभावित करने का साहस अन्य कर्मचारी तथा अधिकारी न कर सकें।
10. योजना के अन्तर्गत कराए जा रहे कार्यों में गुणवत्ता आकलन एवं सन्धारण हेतु राज्य एवं जिला स्तर पर पैनल तैयार करने का प्रावधान किया जाना चाहिए तथा पैनल में योग्य एवं ईमानदार अधिकारियों की नियुक्ति की जानी चाहिए।
11. सूचना के अधिकार के अन्तर्गत अधिनियम के प्रावधानों एवं राज्य सरकारों द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार प्रत्येक स्तर पर आवेदनकर्ता को योजना के सम्बन्ध में सूचनाएँ उपलब्ध करवाने का प्रावधान किया गया है।
12. समस्त आलेख जैसे जॉबकार्ड, मस्टररोल, कार्यों का विवरण आदि को कम्प्यूटराइज्ड किया जाना चाहिए। यह विवरण इण्टरनेट पर उपलब्ध रहने से पारदर्शिता रहेगी।
मनरेगा के कार्यों के चयन की प्राथमिकताएँ
मनरेगा के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्र में अकुशल श्रमिकों को सौ दिन के रोजगार उपलब्ध कराने के साथ-साथ गाँवों में स्थायी परिसम्पत्तियों के सृजन को महत्त्व दिया गया है। योजना के अन्तर्गत किए जाने वाले कार्यों की प्राथमिकताएँ निम्नलिखित हैं :
1. रोजगार गारण्टी अधिनियम में यह प्रावधान है कि राज्य रोजगार गारण्टी परिषद प्राथमिकता के आधार पर एक वित्तीय वर्ष में किए जाने वाले कार्यों की सूची तैयार करे।
2. योजना के अन्तर्गत कार्यों को उनकी वरीयता के आधार पर क्रियान्वित किया जाएगा।
3. जल-संरक्षण और जल-संग्रहण के कार्य योजना के अन्तर्गत किए जाएँगे।
4. सूखा नियन्त्रण के कार्य, जिनमें वन विकास एवं वृक्षरोपण के कार्य सम्मिलित हैं।
5. सिंचाई नहरें, जिनमें माइनर और माइक्रो सिंचाई के कार्य सम्मिलित हैं।
6. अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के परिवारों के भूमि स्वामियों की भूमि के लिए सिंचाई सुविधाओं के कार्य करवाना।
7. परम्परागत जल-स्रोत्रों का जीर्णोद्धार, नवीकरण तथा तालाब से गाद (मिट्टी) निकालने का कार्य सम्मिलित है।
8. भूमि विकास के कार्य करवाना, बाढ़ नियन्त्रण एवं बाढ़ बचाव कार्य में जल अवरुद्ध क्षेत्र में जल-निकासी के कार्य।
9. अन्य कोई कार्य जिन्हें केन्द्र सरकार राज्य सरकार के परामर्श से अधिसूचित करें।
10. सूची में वर्णित कार्यों के अन्तर्गत सृजित सम्पत्ति के रख-रखाव पर भी होने वाला व्यय इस योजना के अन्तर्गत किया जाएगा।
11. योजना के अन्तर्गत कराए जाने वाले कार्यों में श्रम एवं सामग्री का क्रमशः 60:40 का अनुपात रहेगा। बड़ी परियोजना में यह अनुपात जिला स्तर पर सुनिश्चित किया जाएगा।
12. विभिन्न प्रकार के निर्माण कार्यों के मॉडल डिजाइन ग्रामीण कार्य निदेशिका में वर्णित जिलावार निर्धारण समिति द्वारा अनुमोदित दरों के अनुसार कार्यों के अनुमान तैयार कर कार्य सम्पादित कराए जाने का प्रावधान है।
मजदूरी भुगतान एवं बेरोजगारी भत्ता
योजना के अन्तर्गत श्रमिकों को मजदूरी का भुगतान न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के आधार पर पुरुष एवं महिला श्रमिकों को एक समान किए जाने का प्रावधान है। मजदूरी के भुगतान में पूरी पारदर्शिता बरतने के उद्देश्य से पारिश्रमिक का भुगतान बैंक खाता अथवा डाकघर खाता के माध्यम से किया जाता है।
काम करने के इच्छुक व्यक्ति द्वारा काम की माँग किए जाने के 15 दिन के अन्दर रोजगार नहीं उपलब्ध कराया जाता है तो उसे बेरोजगारी भत्ता प्रदान किया जाए साथ ही यदि श्रमिक को उसके आवास से 5 कि.मी. की परिधि से बाहर रोजगार उपलब्ध कराए जाने की स्थिति में उसे परिवहन और निर्वाह व्यय के लिए 10 प्रतिशत अतिरिक्त मजदूरी देने का प्रावधान कार्यक्रम में किया गया है।
बेरोजगारी भत्ते की दरें राज्य सरकारों द्वारा राज्य रोजगार गारण्टी परिषद की सलाह से समय-समय पर अधिसूचित किए जाने की व्यवस्था है। इस मद की धनराशि एक वित्तीय वर्ष में 30 कार्य-दिवस हेतु न्यूनतम मजदूरी दर के एक-चौथाई से कम नहीं होगी तथा शेष अवधि के लिए न्यूनतम मजदूरी दर से आधी से कम नहीं होनी चाहिए।
रोजगार उपलब्ध नहीं कराए जाने की स्थिति में सम्बन्धित व्यक्ति को बेरोशगारी भत्ते का भुगतान सुनिश्चित करने का दायित्व कार्यक्रम अधिकारी का होगा तथा इस मद की राशि इस योजना में राज्य के 10 प्रतिशत अंशदान में चुकाए जाने की व्यवस्था की गई है।
महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना के लाभ
1. मनरेगा के प्रभावी क्रियान्वयन से ग्रामीण परिवारों की न्यूनतम वार्षिक आय सुनिश्चित कर जीवन-स्तर में सुधार किया जा सकता है।
2. इस योजना के संचालित होने से गाँवों से शहरों की ओर काम की खोज में होने वाले पलायन को गाँव में ही कार्य उपलब्ध कराकर कम करने में सफलता मिल रही है।
3. योजना के अन्तर्गत होने वाले कार्यों में 33 प्रतिशत महिलाओं की सहभागिता सुनिश्चित होने से ग्रामीण माहिलाओं में आर्थिक सशक्तीकरण को बल मिलेगा।
4. योजना के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में स्थायी परिसम्पत्तियों का सृजन हो रहा है।
5. गाँवों में पहले से निर्मित कार्यों की मरम्मत, पानी के स्रोतों, तालाबों आदि से गाद निकालना एवं उनके रख-रखाव के कार्य नियमित रूप से किया जा सकेगा।
6. रोजगार की गारण्टी से ग्रामीण समाज का शक्ति समीकरण बदलेगा, शक्ति को सामाजिक क्षमता निर्माण के आधार पर देखा जा सकेगा।
7. योजना के क्रियान्वयन से असंगठित मजदूरों में मोल-तोल की क्षमता में वृद्धि होगी साथ वे न्यूनतम मजदूरी एवं सामाजिक सुरक्षा जैसे कई महत्त्वपूर्ण अधिकारों के लिए लड़ सकेंगे।
8. योजना के अन्तर्गत वृक्षारोपण कार्यक्रम चलाकर वन्य क्षेत्रफल को बढ़ाने तथा पर्यावरण असन्तुलन को कम करने में सफलता मिलेगी।
9. ग्रामीण क्षेत्रों में योजना के अन्तर्गत मत्स्य-पालन, फूलों की खेती तथा औषधि उत्पादन आदि कार्यक्रमों को सम्मिलित करके ग्रामीण परिवारों को लाभान्वित किया जा सकता है।
10. देश के विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक विषमता एवं राज्यों की सत्ता के विरोध में बनने वाले आतंकवादी संगठन एवं उनके द्वारा फैलाए जाने वाले आतंक पर भी योजना के क्रियान्वयन से रोक लगेगी।
ग्राम सभा में जन सुनवाई के माध्यम से सामाजिक अंकेक्षण बराबर चलते रहना चाहिए। सामाजिक अंकेक्षण से पारदर्शिता आएगी। इसमें सूचना का अधिकार पारदर्शिता लाने में मदद करेगा। निश्चित रूप से योजना के अन्तर्गत ऐसे प्रावधान किए गए हैं कि किसी स्तर पर गड़बड़ी होने की सम्भावना न रहे लेकिन चालाक और भ्रष्ट कर्मचारियों और अधिकारियों द्वारा योजना में गड़बड़ियों के प्रमाण मिले हैं। इसको रोकने के लिए क्रियान्वयन तन्त्र को मजबूत बनाने की आवश्यकता है। किसी भी स्तर पर अनियमितताओं को रोकने के लिए व्यक्तियों एवं अधिकारियों को सतर्क रहने की आवश्यकता है।
योजना के अन्तर्गत राशि पंचायतों को सीधे ही मिल रही है। धन के सही उपयोग के लिए प्रशासनिक ढाँचा भी मजबूत करना होगा। राज्य सरकारों को चाहिए कि जिन राज्यों में पंचायतों का ढाँचा बिल्कुल नहीं है उसे निर्मित करने के साथ ही जिन राज्यों में पंचायतों का ढाँचा कमजोर है उसे सशक्त किया जाए। यदि ग्राम सभा में सभी लोग मिलकर सही निर्णय करें और साथ ही प्रभावी निगरानी प्रणाली को विकसित किया जाए तो अगले कुछ वर्षों मंि ही गाँवों का कायाकल्प किया जा सकेगा।
(लेखक फीरोज गाँधी कॉलेज, रायबरेली के अर्थशास्त्र विभाग में रीडर हैं)
ई-मेल : ganga.verma@yahoo.co.in
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