बीते पांच वर्षों में मनरेगा के माध्यम से औसतन लगभग पांच करोड़ लोगों को प्रतिवर्ष रोजगार प्राप्त हुआ है। इस कार्य के तहत लगभग दस करोड़ नए खाते खोले जा चुके हैं। मनरेगा के कारण ही अब कमजोर दिनों में जनवरी से जून के मध्य कृषि मजदूर अथवा छोटे काश्तकार गांवों में रहते हैं, अन्यथा इन दिनों कहीं शहर में मजदूरी करने को विवश हो जाया करते थे।केंद्र सरकार द्वारा फरवरी 2006 से महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) का संचालन किया जा रहा है। इसके माध्यम से प्रत्येक ग्राम पंचायत को 15 से 20 लाख रुपए प्रति वर्ष प्राप्त कराए जा रहे हैं। सरकार की योजना है कि 2014 में अधिकतर कार्य मनरेगा का शौचालयों के लिए किया जाए। ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी नाम मात्र के घरों में शौचालयों का प्रयोग किया जा रहा है। घर के बाहर कूड़ा फेंकने एवं खुले में शौच करने के मामलों में भारत का विश्व में पहला स्थान है। विश्व में कुल एक अरब लोग इस शर्मनाक शैली से गुजरते हैं, जिनमें सर्वाधिक भारतीय हैं। इसी प्रकार देश में 62 करोड़ लोग घरों से बाहर कूड़ा फेंकने का कार्य करते हैं। इन दोनों कार्यों को मनरेगा के माध्यम से युद्घ स्तर पर पूरा किए जाने की योजनाएं बनानी चाहिए।
बारिश के मौसम में प्रतिवर्ष इन गांवों में किसी न किसी रूप में महामारी लोगों को अपना शिकार अवश्य बनाती है। यह कूड़ा बरसात के मौसम में भींगकर दुर्गंध प्रदान करते हुए तमाम प्रकार की संक्रामक बीमारियों का जनक बन जाता है। कभी-कभी जिस स्थान पर वर्षों से कूड़ा फेंकने का कार्य किया जा रहा है, वहीं सरकारी हैंडपंप लगा दिया जाता है। इस जगह पर तमाम प्रकार के विषैले तत्व जमीन में हो जाते हैं, जो पानी में घुल जाते हैं। ऐसे हैंडपंप का पानी भी विषैले से कम हानिकारक नहीं होता है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इस बात की कोई परवाह नहीं करते हैं।
ऐसे गांवों में जहां कूड़े के अंबार लगे हों साथ ही शौच क्रिया बाहर खुले में की जा रही हो बारिश का पानी हफ्ते दस दिन तक किसी कारणवश ठहर जाए तो महामारी होने से कोई रोक नहीं सकता। यहां पीने के पानी के माध्यम से बीमारियां लोगों को मौत के गाल में पहुंचाने का कार्य करती हैं। स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारी भी इस स्थिति से ग्रामीणों को बचाने में महती भूमिका निभाने में असमर्थ नजर आते हैं।
उत्तर प्रदेश की आबादी करीब बीस करोड़ है, जो सदी के मध्य तक सर्वे के अनुसार 40 करोड़ के आस-पास हो जाएगी। यह आबादी देश की कुल आबादी का 16.5 फीसदी है। उत्तर प्रदेश में कुल 75 जिले, 820 ब्लॉक एवं 52 हजार ग्राम पंचायतें हैं। मनरेगा के माध्यम से प्रत्येक ग्राम पंचायत में अधिकतर कार्य यदि शौचालयों के निर्माण में किया जाए तो लोगों को रोजगार के साथ ही स्वास्थ्य सुविधाएं भी मिलेंगी। साथ ही महिलाएं जो प्रतिदिन खुले में शौच करने के कारण शर्मिंदगी महसूस करती हैं, उनके लिए भी राहत की बात होगी।
इसी प्रकार कूड़ा गृहों के निर्माण में भी मनरेगा की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। बीते पांच वर्षों में मनरेगा के माध्यम से औसतन लगभग पांच करोड़ लोगों को प्रतिवर्ष रोजगार प्राप्त हुआ है। इस कार्य के तहत लगभग दस करोड़ नए खाते खोले जा चुके हैं। मनरेगा के कारण ही अब कमजोर दिनों में जनवरी से जून के मध्य कृषि मजदूर अथवा छोटे काश्तकार गांवों में रहते हैं, अन्यथा इन दिनों कहीं शहर में मजदूरी करने को विवश हो जाया करते थे।
मनरेगा के माध्यम से भूमि संरक्षण एवं जल संरक्षण का जो कार्य किया जाता है। इसके माध्यम से युद्घस्तर पर नदियों के किनारे पौधरोपण कर उनकी सुरक्षा के लिए भी कार्य किए जाएं अथवा नदियों के किनारे कटने से बचाव संबंधी कार्य भी किए जाने से सार्थक भूमि संरक्षण होगा।
झारखंड में बीते दो वर्षों में 80 हजार से अधिक कुएं बनाए गए, जिनका प्रयोग सिंचाई के लिए किया जा रहा है। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश में भी प्रत्येक गांव में तालाबों एवं कुओं का निर्माण कराया जाए, जिससे सिंचाई का कार्य किया जा सके। जल संरक्षण को मुहिम की तरह चलाए जाने की आवश्यकता है, तभी किसानों की सिंचाई की समस्या को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। मनरेगा को सड़क एवं नहर के कार्य के अतिरिक्त भी उक्त महत्वपूर्ण कार्यों पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।
बारिश के मौसम में प्रतिवर्ष इन गांवों में किसी न किसी रूप में महामारी लोगों को अपना शिकार अवश्य बनाती है। यह कूड़ा बरसात के मौसम में भींगकर दुर्गंध प्रदान करते हुए तमाम प्रकार की संक्रामक बीमारियों का जनक बन जाता है। कभी-कभी जिस स्थान पर वर्षों से कूड़ा फेंकने का कार्य किया जा रहा है, वहीं सरकारी हैंडपंप लगा दिया जाता है। इस जगह पर तमाम प्रकार के विषैले तत्व जमीन में हो जाते हैं, जो पानी में घुल जाते हैं। ऐसे हैंडपंप का पानी भी विषैले से कम हानिकारक नहीं होता है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इस बात की कोई परवाह नहीं करते हैं।
ऐसे गांवों में जहां कूड़े के अंबार लगे हों साथ ही शौच क्रिया बाहर खुले में की जा रही हो बारिश का पानी हफ्ते दस दिन तक किसी कारणवश ठहर जाए तो महामारी होने से कोई रोक नहीं सकता। यहां पीने के पानी के माध्यम से बीमारियां लोगों को मौत के गाल में पहुंचाने का कार्य करती हैं। स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारी भी इस स्थिति से ग्रामीणों को बचाने में महती भूमिका निभाने में असमर्थ नजर आते हैं।
उत्तर प्रदेश की आबादी करीब बीस करोड़ है, जो सदी के मध्य तक सर्वे के अनुसार 40 करोड़ के आस-पास हो जाएगी। यह आबादी देश की कुल आबादी का 16.5 फीसदी है। उत्तर प्रदेश में कुल 75 जिले, 820 ब्लॉक एवं 52 हजार ग्राम पंचायतें हैं। मनरेगा के माध्यम से प्रत्येक ग्राम पंचायत में अधिकतर कार्य यदि शौचालयों के निर्माण में किया जाए तो लोगों को रोजगार के साथ ही स्वास्थ्य सुविधाएं भी मिलेंगी। साथ ही महिलाएं जो प्रतिदिन खुले में शौच करने के कारण शर्मिंदगी महसूस करती हैं, उनके लिए भी राहत की बात होगी।
इसी प्रकार कूड़ा गृहों के निर्माण में भी मनरेगा की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। बीते पांच वर्षों में मनरेगा के माध्यम से औसतन लगभग पांच करोड़ लोगों को प्रतिवर्ष रोजगार प्राप्त हुआ है। इस कार्य के तहत लगभग दस करोड़ नए खाते खोले जा चुके हैं। मनरेगा के कारण ही अब कमजोर दिनों में जनवरी से जून के मध्य कृषि मजदूर अथवा छोटे काश्तकार गांवों में रहते हैं, अन्यथा इन दिनों कहीं शहर में मजदूरी करने को विवश हो जाया करते थे।
मनरेगा के माध्यम से भूमि संरक्षण एवं जल संरक्षण का जो कार्य किया जाता है। इसके माध्यम से युद्घस्तर पर नदियों के किनारे पौधरोपण कर उनकी सुरक्षा के लिए भी कार्य किए जाएं अथवा नदियों के किनारे कटने से बचाव संबंधी कार्य भी किए जाने से सार्थक भूमि संरक्षण होगा।
झारखंड में बीते दो वर्षों में 80 हजार से अधिक कुएं बनाए गए, जिनका प्रयोग सिंचाई के लिए किया जा रहा है। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश में भी प्रत्येक गांव में तालाबों एवं कुओं का निर्माण कराया जाए, जिससे सिंचाई का कार्य किया जा सके। जल संरक्षण को मुहिम की तरह चलाए जाने की आवश्यकता है, तभी किसानों की सिंचाई की समस्या को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। मनरेगा को सड़क एवं नहर के कार्य के अतिरिक्त भी उक्त महत्वपूर्ण कार्यों पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।
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Post By: pankajbagwan