मज़दूर अड्डों पर जल व शौचालय की जरूरत

समय-समय पर इन मज़दूरों को जागरूक करने के लिए सम्मेलनों, अभियानों एवं कार्यशालाओं की आवश्यकता है। जिससे ये लोग स्वयं अपने अधिकारों के लिए लड़ सके। इन लोगों को अपने संगठन बनाने की आवश्यकता भी है जिससे छोटे छोटे संगठन मिलकर बड़ा काम कर सके। प्रवासी मज़दूरों के लिए एक राष्ट्रीय पहचान की जरूरत है जिससे ये जहां भी रहे इनके श्रमिक योजनाओं का पूरा लाभ मिल सके। लेबर अड्डों को सरकार द्वारा मान्यता भी दी जाए जिससे इन लोगों की पेयजल, शौचालय, आश्रय आदि सुविधाएं मिल सकें। असंगठित कामगार अधिकार मंच असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे जन संगठनों का एक राज्य स्तरीय मंच है जो असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिक साथियों के अधिकार के लिए आवाज़ उठाता रहा है। मंच ने लेबर अड्डों पर सरकार से मांग की है कि पेयजल व शौचालय की व्यवस्था की जाए। मज़दूर दिन भर लेबर अड्डों पर खड़ा रहता है। उसकी क्षमता नहीं है कि वह बोतल खरीद कर पानी पी सके। ये मज़दूर प्रतिदिन मजदूरी की तलाश में एक स्थान पर हजारों की संख्या में एकत्र होते है। जहां पर ठेकेदार व अन्य लोग मज़दूरों को लेने आते हैं लेकिन उसमें तय नही होता कि कब उसको काम मिले। प्रायः देखा जाता है कि इन स्थानों पर पानी व शौचालय की व्यवस्था नही होती। जिनसे मज़दूरों को इस समस्या का सामना करना पड़ता है। इस मंच के तहत ग़रीबों की पहचान, सम्मान, सुरक्षा के मुद्दे को लेकर विभिन्न संगठन, ट्रेड यूनियन, गैर सरकारी संगठन व सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा काम किया जाता है और शहरी ग़रीबों को एकजुट करके उनकी समस्याओं को उठाया जाता हैं।

बढ़ते शहरीकरण व पलायन को ध्यान में रखते हुए असंगठित कामगार अधिकार मंच का गठन 10 मई 2010 को लखनऊ शहर में किया गया। मंच द्वारा 2010 में शहरी ग़रीबों की जनगणना का मुद्दा उठाया गया। जिसके परिणामस्वरूप शासन द्वारा इस मुद्दे को संज्ञान में लिया गया और छूटे हुए शहरी ग़रीबों की गणना का कार्य शुरू किया गया। बेघर समुदाय के मुद्दे पर मंच द्वारा आश्रय गृहों को सुचारु रूप से संचालन को लेकर विभिन्न शहरों में अभियान व प्रशासन से वार्ता करके आश्रय गृहों के विषय पर जागरूक करने का भी कार्य किया जाता है। वर्तमान में असंगठित कामगार अधिकार मंच उत्तर प्रदेश के दस शहरों लखनऊ, बरेली, गाज़ियाबाद, फैज़ाबाद, आगरा, कानपुर, इलाहाबाद वाराणसी, गोरखपुर व मेरठ में 40 जनसंगठनों के साथ शहर की गरीब बस्तियों व सडक पर रहने वाले असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों रिक्शा चालक, फेरी वाले, घरेलू कामगार, निर्माण मज़दूर तथा लेबर अड्डों से काम करने वाले बेघर मज़दूरों के मुद्दे पर काम कर रहा है।

हाल ही में मेरठ में मज़दूर हकदारी अभियान के तहत 12 लेबर अड्डों व श्रमिक बस्तियों में 18 अप्रैल से 28 अप्रैल तक चलाया गया। इस अभियान के अंतर्गत पर्चे व पोस्टर का वितरण भी किया गया। हस्ताक्षर अभियान भी चलाया गया जिसमें जगह-जगह मज़दूरों ने अपने हस्ताक्षर भी किए तथा मुख्यमंत्री को पोस्ट कार्ड भी भेजे गए। जिसमें लेबर अड्डों पर पंजीकरण व मूलभूत सुविधाओं की मांग को लेकर ज्ञापन अभियान आदि गतिविधियों का आयोजन किया गया। जिनमें पानी व शौचालय के साथ- साथ टीन शेड का भी इन लेबर अड्डों पर अभाव स्पष्ट रूप से मिला। ये वो मज़दूर हैं जो प्रवासी हैं तथा दूरदराज के गांव से मजदूरी के लिए आते हैं तथा देर शाम को अपने घर वापस लौटते हैं। कई बार काम न मिलने पर दिन भर अड्डे पर बैठे रहते है तथा शाम को खाली हाथ अपने घर को लौट जाते है। ये मज़दूर शहर को बनाते है लेकिन खुद घर विहीन रहते हैं। आजकल शहरों में बड़ी-बड़ी सरकारी व गैर सरकारी इमारतें बनती रहती है। इनको बनाने में इनके श्रम की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। उस समय बड़ा दुख होता है कि इनके लिए इन अड्डों पर पानी व शौचालय की सुविधा भी न हो।जागरूकता अभियान में सभी श्रमिक साथियों को जानकारी दी गई की कि श्रम विभाग द्वारा निर्माण श्रमिकों का पंजीकरण कराया जा रहा है।

अभी हाल ही में सरकार ने यह भी कहा है कि श्रम विभाग के अधिकारी स्वयं लेबर अड्डों पर जा कर निर्माण श्रमिकों का पंजीकरण करेंगे। सरकार को आदेश किए हुए एक माह से उपर का वक्त गुज़र चुका है पर अभी तक इन आदेशों का अनुपालन नहीं किया जा रहा है। इस आदेश का अनुपालन तभी संभव जब सभी मज़दूर साथी एकजुट हों और लेबर अड्डे पर पंजीकरण व पेयजल व शौचालय की मांग को ज़ोरदार तरीके से सरकार के सामने उठाएं। पंजीकृत श्रमिकों के लिए 18 योजनाएं मातृत्व हित लाभ योजना, शिशु हित लाभ योजना, दुर्घटना सहायता योजना, मेधावी छात्र पुरस्कार योजना, निर्माण कामगार गंभीर बीमारी सहायता योजना, मृत्यु एवं अन्त्येष्टि योजना, कौशल एवं विकास, तकनीकी उन्नयन एवं प्रमाणन योजना, एम्बुलेंस सहायता योजना, निर्माण कामगार बालिका आशीर्वाद योजना, निर्माण कामगार पुत्री विवाह योजना, अक्षमता पेंशन योजना, औजार क्रय हेतु आर्थिक सहायता योजना, सौर उर्जा सहायता योजना, निर्माण कामगार आवास सहायता योजना, राष्ट्रीय बीमा सहायता योजना चलाई जा रही है।

लेकिन देखने में आता है कि इन सरकार द्वारा बनाई गई योजनाओं के लिए पंजीकरण ही बड़ी मुश्किल से होता है। लेकिन अगर पंजीकरण हो भी जाता है तो इनको योजनाओं का पूरा लाभ नहीं मिल पाता है। अब हम अनुमान लगा सकते हैं कि जब सरकार की बनाई गई योजनाओं का यह हाल है तो मूलभूत आवश्यकताओं का क्या हाल होगा। इन योजनाओं का न मिल पाने का मुख्य कारण इनका पहचान पत्र व अन्य आईडी का न होना भी है। इसलिए अब की बार मंच के साथियों ने पेयजल व शौचालय के मुद्दे को भी गंभीरता से लिया। समय-समय पर इन मज़दूरों को जागरूक करने के लिए सम्मेलनों, अभियानों एवं कार्यशालाओं की आवश्यकता है। जिससे ये लोग स्वयं अपने अधिकारों के लिए लड़ सके। इन लोगों को अपने संगठन बनाने की आवश्यकता भी है जिससे छोटे छोटे संगठन मिलकर बड़ा काम कर सके। प्रवासी मज़दूरों के लिए एक राष्ट्रीय पहचान की जरूरत है जिससे ये जहां भी रहे इनके श्रमिक योजनाओं का पूरा लाभ मिल सके। लेबर अड्डों को सरकार द्वारा मान्यता भी दी जाए जिससे इन लोगों की पेयजल, शौचालय, आश्रय आदि सुविधाएं मिल सकें।

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