मीठे पानी की आस हुई पूरी

राजस्थान के भरतपुर जिले के लोगों को पीने का पर्याप्त मीठा पानी मयस्सर नहीं था। करीब 70 से 75 फीसदी आबादी खारा पानी पीने को विवश थी। जाहिर है, खारे पानी से उनकी प्यास बमुश्किल ही बुझती थी लेकिन चंबल-धौलापुर-भरतपुर वृहद पेयजल परियोजना ने काफी हद तक इस कमी को दूर किया है।

प्रस्तावित 599 गांवों में चंबल नदी के जल के वितरण के कार्य के लिए गांवों के क्लस्टर निर्माण के विस्तृत तखमीने बनाने का कार्य भी अलग से प्रारंभ किया जा रहा है। चंबल-धौलपुर-भरतपुर परियोजना की मुख्य ट्रांसमिशन पाइप लाइन से रूपवास में ऑफटीक देकर रूपवास तहसील के खारे पानी की समस्या से ग्रस्त 30 गांवों को चंबल नदी का जल उपलब्ध कराने की योजना की विस्तृत तकनीकी प्रस्ताव भी तैयार किए गए हैं। इन प्रस्तावों की प्रशासनिक एवं वित्तीय स्वीकृति शीघ्र जारी कर कार्यों को प्रारंभ किया जाएगा। राजस्थान के भरतपुर जिले के लोगों की मीठे पानी पीने की आस अब पूरी हो रही है। भरतपुर शहर के बाशिंदों को अब मीठे पानी का स्वाद पता चला है। यहां के लोग अब तक खारा पानी पीने के लिए ही अभिशप्त थे। हालांकि साल 1970 से इस शहर को बांध बारेठा से मीठे पानी की आपूर्ति की जा रही थी लेकिन यह पानी इस शहर की मात्र 20-25 प्रतिशत आबादी की प्यास बुझा रहा थ। अब चंबल नदी का पानी भरतपुर पहुंचने से राजस्थान के इस ऐतिहासिक शहर की फिजां बहुत बदली-सी नजर आने लगी है। राजस्थान के लोहागढ़ के नाम से विख्यात भरतपुर जिले में भूजल अत्यधिक खारा है। कम वर्षा एवं अत्यधिक दोहन होने से भूगर्भीय लवणों की घुलनशीलता से दिन-ब-दिन यह और भी खारा हो रहा है। जिले की रुपवास, भरतपुर, कुम्हेर, डीग, नगर, कामां व पहाड़ी खारे पानी की समस्या से सर्वाधिक प्रभावित हैं। जिले में कोई सतही जल स्रोत न होने से धौलपुर जिले में प्रवाहित हो रही चंबल-धौलपुर-भरतपुर वृहद पेयजल को दो चरणों में विभक्त किया गया।

प्रथम चरण के प्रथम भाग के लिए 166.50 करोड़ रुपए की स्वीकृति वर्ष 1999 में राज्य सरकार ने दे दी थी जिसके अंतर्गत धौलपुर में चंबल नदी से भरतपुर के मलाह हेड वर्क्स तक मुख्य पाइप लाइन बिछाने व जल शोधन संयंत्र के कार्य शुरू करने के निर्देश दिए गए थे। चंबल नदी का क्षेत्र घड़ियाल अभ्यारण्य के लिए संरक्षित होने से चंबल नदी में इंटैक वैल व पाइप लाइन के कार्य की स्वीकृति सर्वोच्च न्यायालय से राज्य सरकार ने अथक प्रयासों से प्राप्त की। राज्य सरकार के इन्हीं प्रयासों के परिणामस्वरूप ट्रांसमिशन पाइप लाइन का कार्य पूर्ण कर चंबल नदी का जल भरतपुर को 25 दिसंबर, 2011 से उपलब्ध कराया जा रहा है। इस महत्वाकांक्षी परियोजना के द्वितीय चरण के अंतर्गत भरतपुर से कुम्हेर होते हुए डीग, नगर, कामां एवं पहाड़ी तक मुख्य ट्रांसमिशन पाइप लाइन के कार्य और भरतपुर के मलाह हेड वर्क्स से भरतपुर के तहसील के सर्वाधिक खारे पानी की समस्या से ग्रस्त 97 गांवों को पेयजल उपलब्ध कराने के लए 311.49 करोड़ रुपए की प्रशासनिक एवं वित्तीय स्वीकृति राज्य सरकार द्वारा 20 अप्रैल, 2012 को दे दी गई है।

प्रस्तावित कार्यों की विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर स्वीकृत कार्यों के टेंडर 6 जुलाई, 2012 को आमंत्रित किए गए हैं। प्रस्तावित ट्रांसमिशन मेन पाइप लाइन में जिले की कुम्हेर, नगर, डीग, कामां एवं पहाड़ी तहसील के 599 गांवों एवं कुम्हेर, डीग, नगर तथा कामां शहर की आबादी को चंबल नदी का पेयजल परिवहन करने की क्षमता है। यह कार्य 30 माह में पूर्ण किए जाने का लक्ष्य है। इस पाइप लाइन के कार्य के पूरा हो जाने पर कुम्हेर, डीग, नगर एवं कामां शहरों को चंबल नदी का जल तुरंत उपलब्ध हो सकेगा। प्रस्तावित 599 गांवों में चंबल नदी के जल के वितरण के कार्य के लिए गांवों के क्लस्टर निर्माण के विस्तृत तखमीने बनाने का कार्य भी अलग से प्रारंभ किया जा रहा है। चंबल-धौलपुर-भरतपुर परियोजना की मुख्य ट्रांसमिशन पाइप लाइन से रूपवास में ऑफटीक देकर रूपवास तहसील के खारे पानी की समस्या से ग्रस्त 30 गांवों को चंबल नदी का जल उपलब्ध कराने की योजना की विस्तृत तकनीकी प्रस्ताव भी तैयार किए गए हैं। इन प्रस्तावों की प्रशासनिक एवं वित्तीय स्वीकृति शीघ्र जारी कर कार्यों को प्रारंभ किया जाएगा।

भरतपुर वासियों की प्यास बुझा रहा चंबल का पानीभरतपुर वासियों की प्यास बुझा रहा चंबल का पानीमहत्वाकांक्षी चंबल-धौलपुर-भरतपुर वृहद पेयजल परियोजना से भरतपुर जिले के 5 शहरों एवं 945 गांवों (वर्ष 2001 की गणना) की वर्ष 2031 तक पेयजल मांग को पूरा करने की क्षमता है। इस परियोजना के पूर्ण होने से जिले के विकास में गति आएगी तथा भूगर्भीय जल के खारेपन में भी कमी आएगी। इस परियोजना से भरतपुर स्थित राष्ट्रीय केवलादेव पक्षी बिहार को 10 अक्टूबर, 2011 से जल उपलब्ध कराना प्रारंभ कर दिया गया है। फरवरी, 2012 तक 280 एमसीएफटी जल उपलब्ध कराकर पक्षी विहार के गंभीर जल संकट को दूर किया गया है। इस परियोजना से प्रति वर्ष पक्षी विहार को 62.50 एमसीएफटी पानी भी उपलब्ध कराया जाता रहेगा। परियोजना के अंतर्गत प्रथम भाग में भरतपुर तहसील के 95, कुम्हेर के 2, रूपवास के 30 गांव लाभान्वित होंगे। प्रथम चरण के द्वितीय भाग में भरतपुर तहसील के 62, कुम्हेर के 115, रूपवास के 112, नगर के 164, डांग के 119, कामां के 114 तथा पहाड़ी तहसील के 132 गांव लाभान्वित होंगे।

भरतपुर शहर को वर्ष 1970 में भरतपुर से 40 किलोमीटर दूर बयाना स्थित सिंचाई विभाग के बरैठा बांध से आरसीसी की पाइप बिछा कर 10 एमएलडी दैनिक पेयजल उपलब्ध कराने की एक योजना पूर्ण की गई थी। समय गुजरते इस पाइप लाइन में पेड़ों के प्रवेश करने, पाइप लाइन में लगे सीमेंट के गलने एवं कॉलरों के टूटने आदि की समस्या से जोड़ों के लीकेजों से खेतों में पानी भर जाने की अत्याधिक समस्या उभर रही थी। पाइप लाइन से भी उसकी क्षमता के विरूद्ध मात्र 25 से 30 प्रतिशत पानी ही भरतपुर शहर को प्राप्त हो रहा था। राज्य सरकार ने इस पाइप लाइन को नई जीआर की पाइप लाइन में बदलने के लिए 24.08 करोड़ रुपए की प्रशासनिक एवं वित्तीय स्वीकृति 2009 में दी थी। इस कार्य को भी अप्रैल, 2011 में पूर्ण कर भरतपुर शहर की दैनिक जलापूर्ति में लगभग 7 एमएलडी की वृद्धि की गई है।

Path Alias

/articles/maithae-paanai-kai-asa-haui-pauurai

Post By: Hindi
×