अगर दुनिया के चुनिन्दा लोगों को दिये जाने वाला पुरस्कार किसी के हिस्से आये तो यकीनन वह व्यक्ति कोई उल्लेखनीय काम कर रहा है। मुम्बई की डिएन डे मीनेजेस को हाल ही में क्वीन्स यंग लीडर्स अवॉर्ड से नवाजा गया है। उनकी कहानी साझा कर रही हैं रिया शर्मा।
मुम्बई की 24 वर्षीय डिएन डे मीनेजेस इन दिनों काफी चर्चा में है। दरअसल उन्होंने ऐसी उपलब्धि हासिल की है, जो हर साल गिने-चुने युवाओं को ही हासिल होती है। जून माह में उन्हें पूरी दुनिया में बेहद प्रतिष्ठित ‘क्वीन्स यंग लीडर्स अवॉर्ड’ से नवाजा गया है। क्वीन्स यंग लीडर अवॉर्ड के लिये 53 कॉमनवेल्थ देशों से 18 से 19 वर्ष के उन चंद असाधारण युवाओं को चुना जाता है, जिन्होंने अपने कौशल से अपने समाज में लोगों के जीवन में एक बड़े बदलाव की शुरुआत की है। इस पुरुस्कार के तहत विजेताओं को कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में एक साल तक लीडरशिप ट्रेनिंग हासिल करने का अवसर भी प्राप्त होता है।
यह प्रतिष्ठित अवॉर्ड डिएन को उनके अनूठे प्रोजेक्ट ‘रेड इज द न्यू ग्रीन’ के लिये मिला है। इस प्रोजेक्ट के तहत वह और उनकी टीम मासिक धर्म से सम्बन्धित मसलों पर काम करती है। मासिक धर्म एक ऐसा विषय है, जिसको लेकर हमारे समाज में कोई बात नहीं करता। इसे एक छुपाने वाली बात माना जाता है और बहुत सारे लोग तो इस प्राकृतिक प्रक्रिया को बहुत अपवित्र बात मानते हैं। डिएन इन्हीं भ्रान्तियों को दूर करने और उससे जुड़े सेहत व साफ-सफाई के मसलों पर लड़कियों महिलाओं को जागरूक करने का प्रयास कर रही हैं।
एक घटना से बदल गई सोच
डिएन ने मुम्बई के सेंट जेवियर कॉलेज से सांख्यिकीय (स्टैटिसटिक्स) में स्नातक किया और फिर एक आम युवा की तरह नौकरी करने लगीं। उनकी अपनी एक दुनिया थी। तब वह नहीं जानती थीं कि एक दिन वह एक सामाजिक बदलाव का माध्यम बनेंगी और आम से खास हो जाएँगी। लेकिन एक ‘खास दिन’ ने उनकी सामान्य ढर्रे की जिन्दगी को बदल दिया। एक दिन अॉफिस में उन्हें अचानक अपने लिये सेनेटरी पैड की जरूरत पड़ गई, लेकिन वह उन्हें आस-पास नहीं मिल सका। उसी दिन उन्होंने खुद से वादा किया कि वह मासिक धर्म से जुड़े मुद्दे पर काम करेंगी। फिर उन्होंने इस मुद्दे पर रिसर्च शुरू किया और फिर ‘रेड इज द न्यू ग्रीन’ की शुरुआत हुई।
डिएन ने अपना यह प्रोजेक्ट करीब दो साल पहले शुरू किया था। इसके तहत मुम्बई के स्कूलों में सेनेटरी नैपकिन डिस्पेंसर और उन्हें वैज्ञानिक तरीके से नष्ट करने की मशीनें लगाईं। डिएन का प्रोजेक्ट महज सेनेटरी नैपकिन बाँटने भर का प्रोजेक्ट नहीं है, बल्कि महिलाओं को एक बेहद जरूरी मुद्दे के प्रति जागरूक करने और उससे जुड़ी भ्रान्तियों को दूर करने का प्रोजेक्ट है।
उपेक्षा झेली मगर उम्मीद नहीं छोड़ी
हालांकि डिएन का सफर बहुत आसान नहीं रहा। उन्हें काफी बाधाएँ झेलनी पड़ीं। जब वे इसके लिये स्कूलों में जातीं तो लोग इस विषय पर बात तक करने को तैयार नहीं होते थे। वे कहते थे, इसकी क्या जरूरत है! एक महिला प्रिंसिपल ने तो उन्हें अपने स्कूल से बाहर कर दिया। लेकिन डिएन इससे हताश नहीं हुई। वह अपने काम में लगी रहीं। धीरे-धीरे उनकी मेहनत रंग लाने लगी। गतिविधियों का दायरा बढ़ता गया और लोग भी साथ जुड़ते चले गए। लड़कियाँ अपनी समस्याएँ उनसे जाहिर करने लगीं। सेनेटरी पैड महंगे होते हैं, इसलिये उन्होंने स्कूलों को 10 रुपए में 3 पैड मुहैया कराने शुरू किये। डिएन का मानना है कि पीरियड्स को किसी टैबू की तरह नहीं, बल्कि सामान्य चीज की तरह लेना चाहिए। जैसे बच्चों के लिये इतिहास और गणित के विषय हैं, यह भी बस एक विषय है। हमारे समाज में बहुत सारे मसले हैं, पीरियड्स भी उन्हीं में से एक सामान्य मसला है। इसके बारे में जब समाज में जागरुकता आएगी तो इससे जुड़ी समस्याओं की सही समय पर पहचान हो पाएगी, जिससे उनके समाधान की दिशा में हम आगे बढ़ सकते हैं।
उम्मीद नहीं थी इतने बड़े पुरस्कार की
इस पुरस्कार से डिएन बहुत उत्साहित हैं। उनका कहना है, ‘शुरू में इसके बारे में सुन कर मैं चकित रह गई, क्योंकि मुझे उम्मीद नहीं थी कि इतने बड़े पुरस्कार के लिये चुनी जाऊँगी। मैंने इसके लिये बिना ज्यादा सोचे आवेदन कर दिया था। इसकी एक वजह यह थी कि इसके तहत कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में एक साल की लीडरशिप ट्रेनिंग हासिल करने का मौका मिलता है। एक लीडर के रूप में अपने प्रोजेक्ट को बेहतर बनाने और ज्यादा लोगों तक पहुँचने के लिये मुझे उसकी आवश्यकता थी। मेरे पास खोेने के लिये कुछ नहीं था। लेकिन जब मुझे यह बताया गया कि मैंने ये पुरस्कार जीता है तो मैं अवाक रह गई थी। मैं इस पुरस्कार के लिये बहुत कृतज्ञ हूँ और खुद को सम्मानित महसूस कर रही हूँ।’
छोटे से ही सही, शुरुआत कीजिए
डिएन के काम के बारे में सुनकर ब्रिटेन की महारानी भी बहुत खुश हुईं। उन्होंने कहा कि ये काम समाज के लिये बहुत उपयोगी है। डिएन कहती हैं, ‘अगर मैं यह कर सकती हूँ तो आप भी कर सकती हैं। मुझे हर क्षेत्र के लोगों से सहयोग और समर्थन मिला है। अगर किसी चीज को लेकर आप में वास्तव में जुनून है, अगर आपको लगता है कि समाज को वापस लौटाने का कोई मौका आपको मिलता है, तो उसे कर डालिए। आप यह नहीं जानतीं कि आप कहाँ तक पहुँच सकती हैं।’
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