महोबा। कभी जिले की भाग्य रेखा बनकर बहने वाली छह नदियां अपने अमृतमयी जल से लाखों लोगों की प्यास बुझाने के साथ ही लाखों एकड़ कृषि भूमि और वृहद वन क्षेत्र सिंचित करती थीं। लेकिन आज वही नदियां अपना अस्तित्व बचाने को कराह रही हैं। महोबा के लोगों को जीवन देने वालीं इन नदियों को अब किसी भगीरथ की तलाश है।
प्रकृति ने छह छोटी नदियां ब्रह्मा, उर्मिल, चंद्रावल, ककरयाऊ, वर्मा और क्योलारी से जनपद की धरती को प्रचुर जल संजीवनी का दान दिया था। यह नदियां यहां के लाखों लोगों की हर जरूरत पूरी करती रहीं। जलराशि की प्रचुरता का प्रमाण है कि अलग-अलग स्थलों में आधा दर्जन से ज्यादा बड़े बांध बनाये गये। आजादी के पहले तक सब ठीक ठाक था। जल संचयन व्यवस्था इतनी बेहतर थी कि यहां के एक दर्जन से ज्यादा बड़े तालाबों को सागर की संज्ञा दी गयी। इन तालाबों के साथ ही जनपद की लाखों एकड़ कृषि भूमि व इससे ज्यादा लोगों की जीवनदायिनी नदियां अब अपने अस्तित्व बचाने को जूझ रही हैं।
यह नदियां अब कंकड़ों के दरिया में तब्दील हो गयी हैं। प्रसिद्ध उर्मिल नदी मध्यप्रदेश क्षेत्र के ढाई सौ किमी का सफर तय कर जनपद की सीमा में बने उर्मिल बांध में दम तोड़ देती है। बीते कुछ वर्षो में मप्र क्षेत्र में एक दर्जन से ज्यादा बड़े चेक डैम बनाकर बांध में आने वाला पानी भी रोक दिया गया है। अब वर्षा के दिनों में बहने वाला अतिरिक्त पानी ही बांध में आ पाता है। बांध के बाद नदी की जलधारा वर्षो से कहीं दिखती ही नहीं है। मुख्यालय के पश्चिम स्थित ग्राम चांदौ चंद्रपुरा की वादियों से निकली चंद्रावल नदी करहरा सिंधनपुर, बधारी, ग्योड़ी जैसे दर्जनों बड़े गांवों की जलापूर्ति का साधन रही है।
इसी के जल से बीस हजार हेक्टेयर कृषि क्षेत्र को जीवनदान देने के लिए चंद्रावल बांध का निर्माण किया गया। हालात यह हैं कि अब इसका उद्गम स्थल ही सूख गया है। मुख्यालय से चरखारी जाते हुए प्रेमनगर के पास से गुजरी इस नदी में वर्षा के अलावा कभी पानी नहीं दिखता। पनवाड़ी क्षेत्र के दो दर्जन से ज्यादा गांवों की प्यास बुझाने वाली क्योलारी नदी हरपालपुर के पास मप्र के चिरवारी तालाब से निकली है। लगभग 35 किमी का सफर तय कर यह नकरा गांव में ब्रह्मा नदी में समाहित हो जाती है।
इसे पर्यावरण प्रदूषण का असर कहे या मध्यप्रदेश क्षेत्र में रोके गये जल प्रवाह का परिणाम पूरी नदी में कही पानी नहीं दिखता। ब्रह्म नदी भी पूरी तरह सूख गयी है। छतेसर से होकर नौगांव फदना तक कहीं भी जलधारा नहीं दिखती। बुड़खेरा तालाब से निकली ककरयाऊ नदी तो कई वर्ष पहले ही दम तोड़ गयी है।
बुड़खेरा गांव के रामजी महराज कहते हैं कि अर्सा हो गया नदी में पानी बहता नहीं देखा। पहले अच्छी खासी जलधारा पूरे साल बहा करती थी। लोगों के नदी पार करने में दिक्कत न हो इसके लिए पुल बनाया गया। अब पानी ही नहीं रहता तो पुल का कोई मतलब ही नहीं रह गया। छोटी नदियां ही नहीं लगभग डेढ़ सौ किमी का सफर तय कर एक सैकड़ा से ज्यादा गांवों के लाखों लोगों को जीवन का अमृत पिलाने वाली बर्मा नदी का अस्तित्व भी संकट में है। सरसेड़ा के पास मौदहा डैम बन जाने से आगे के गांवों के लिए नदी का प्रवाह समाप्त सा हो गया है। धनौरी, विलगांव, उपरहका, भैसाय आदि एक सैकड़ा गांवों में जलस्तर नीचे जाने का अहम कारण भी इस नदी की जलधारा विलुप्त हो जाना है।
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