महाविनाश


काठमांडू में प्रकृति का कहर बरपा है। वहाँ पर कुछ भी पहले जैसा नहीं रह गया। सब कुछ बर्बाद हो गया। बड़ी-बड़ी ऐतिहासिक धरोहरें जमींदोज हो गई हैं। बचा है तो बस पशुपति नाथ का मन्दिर। बाकी सब धरती के कोप का भाजन बन गया है। यहाँ 25 अप्रैल 2015 को धरती हिली थी। वह भी ऐसी हिली की घर-घर के तबाह हो गए। तबाही का यह मंजर 80 साल बाद सामने आया है। मगर उस समय भूकम्प का केन्द्र दुनिया की सबसे ऊँची चोटी के आसपास था। इस बार इसका केन्द्र काठमांडू से उत्तर पश्चिम में करीब 80 किलोमीटर दूर लामजुंग में था। इस भूकम्प से बिहार, पश्चिम बंगाल और पूर्वी भारत के कई शहर हिल गए थे। भूकम्प की विभीषिका इतनी अधिक थी कि चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी भूकम्प के झटके महसूस किये गए। अमेरिकी भूगर्भ सर्वेक्षण (यूएसजीएस) के मुताबिक भूकम्प की तीव्रता 7.9 थी। इसके बाद 4.5 या उससे अधिक तीव्रता के तकरीबन 16 झटके आये।

काठमांडू में भूकम्प के कारण काफी नुकसान हुआ है। यहाँ कई भवन और इमारतें गिर गई हैं। इस वजह से कई सड़कें धँस गई और काफी संख्या में लोगों के मलबे के नीचे दबे होने की आशंका है। भूकम्प के कारण काठमांडू एयरपोर्ट बन्द कर दिया गया है। मोबाइल सेवा प्रभावित हुई है। नेपाल से आए वीडियो फुटेज में ताश के पत्तों की तरह इमारतों को ढहते दिखाया गया है। कई इमारतों में दरार पड़ गई है। इसलिये वहाँ पर बहुत अफरातफरी का माहौल है। लोग बहुत डरे हुए हैं। वे घरों में नहीं जाना चाहते हैं। उन्हें डर है कि फिर कहीं भूकम्प न आ जाये। यही वजह है कि ज्यादातर लोग बाहर ही टेंट लगाकर रह रहे हैं।

भारत में भी हालात कोई बहुत बेहतर नहीं है। नेपाल में आये भूकम्प के झटके देश के कई हिस्सों में महसूस किये गए। लेकिन सबसे ज्यादा खराब हालात उत्तर प्रदेश और बिहार के तराई इलाकों में रहे। कई क्षेत्रों में इससे जानमाल का नुकसान हुआ है। लेकिन जो सबसे बड़ी बात है वह दशहत है। लोग घबराए हुए हैं। हालांकि केन्द्र सरकार ने तत्काल कदम उठाए। आपदा प्रबन्धन दल का दस्ता बिहार और उत्तर प्रदेश में भेज दिया गया है। वह किसी भी तरह के हालात से निपटने के लिये तैयार है। ऐसा ही एक दस्ता नेपाल भी भेजा गया है। वहाँ पर भारत की ओर से चल रहे राहत कार्य की निगरानी खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे हैं। उन्होंने नेपाल के राष्ट्राध्यक्ष को हर सम्भव मदद पहुँचाने का भरोसा भी दिलाया है। उसी के तहत बचाव टीम नेपाल भेजी जा रही है। नेपाल में जो कुछ हुआ उसके बारे में भूगर्भशास्त्रियों का कहना है कि मध्य हिमालय क्षेत्र में यह भूकम्प 80 सालों का एक बड़ा झटका था। पर सबसे बड़ा भूकम्प अभी नहीं आया है। मतलब साफ है इससे भी अधिक तीव्रता के भूकम्प आने की सम्भावना बची है। उनकी माने तो हिमालय क्षेत्र में अगला भूकम्प आने पर भारत में भी नेपाल की तरह तबाही मच सकती है। अहमदाबाद स्थित सिसमोलॉजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक बीके रस्तोगी ने कहा कि भारत में इस तीव्रता पर एक भूकम्प अभी आना बाकी है। यह कभी भी आ सकता है। हो सकता है आज ही आ जाये या फिर 50 साल बाद। पर आना तय है। जानकारों का ये भी मानना है कि यदि इस तरह का भूकम्प दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में आता है तो वह बर्बाद हो जाएगा। वजह साफ है। यहाँ पर जो इमारतें बनी हैं वे भूकम्परोधी नहीं है। दिल्ली के कई ऐसे इलाके है जहाँ की इमारतें सात रिक्टर स्केल तक का भी भूकम्प बर्दाश्त नहीं कर सकती। भूगर्भशास्त्रियों की माने तो हिन्दुकुश से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक के क्षेत्र में ऐसा भूकम्प आ सकता है, जिसकी तीव्रता 9 तक हो सकती है। ऐसा भूकम्प 8 रिक्टर स्केल वाले भूकम्प से दस गुना बड़ा होगा और 32 गुना ज्यादा शक्तिशाली होगा।

भूकम्प का एबीसीडी


हमारी धरती मुख्य तौर पर चार परतों से बनी हुई है। वे आन्तरिक परत, बाहरी परत, मैनटल और क्रस्ट हैं। इसकी ऊपरी दोनों परतों (क्रस्ट और ऊपरी मैंटल को) लिथोस्फेयर कहते हैं। लिथोस्फेयर पृथ्वी के आन्तरिक भाग पर वैसे ही तैरती है जैसे पानी पर जहाज तैरता है। इसे वैज्ञानिक भाषा में टेक्टोनिक प्लेट्स कहा जाता है। ये टेक्टोनिक प्लेट्स जब तैरती हुई टकराती है तो भूकम्प आता है। इनकी तीव्रता रिक्टर स्केल से मापी जाती है।

रिक्टर स्केल


रिक्टर स्केल पैमाने को सन 1935 में चार्ल्स रिक्टर ने खोजा था। इस स्केल के अन्तर्गत प्रति स्केल भूकम्प की तीव्रता 10 गुणा बढ़ जाती है और भूकम्प के दौरान जो ऊर्जा निकलती है वह प्रति स्केल 32 गुणा बढ़ जाती है। रिक्टर स्केल पर भूकम्प की भयावहता का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 8 रिक्टर पैमाने पर आया भूकम्प 60 लाख टन विस्फोटक से निकलने वाली ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है।

सेस्मिक जोन


नेपाल त्रासदीभारत को सेस्मिक जोन के आधार पर चार भागों में बाँटा गया है। जोन 2 जहाँ सबसे कम खतरा है वहीं जोन-5 में खतरनाक सबसे अधिक होता है। उत्तर-पूर्व के सभी राज्य, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखण्ड तथा हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्से जोन-5 में ही आते हैं। उत्तराखण्ड के कम ऊँचाई वाले हिस्सों से लेकर उत्तर प्रदेश और बिहार के ज्यादातर हिस्से तथा दिल्ली जोन-4 में आते हैं। जहाँ तक मध्य भारत का सवाल है तो वह अपेक्षाकृत कम खतरे वाले जोन-3 में आता है। अगर दक्षिण भारत की बात करें तो यह क्षेत्र जोन-2 में आता है। इसका मतलब यहाँ भूकम्प आने की सम्भावना न्यूनतम है। यह सेस्मिक जोन का एक मोटा खाका है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि दिल्ली में जोन-5 वाला भूकम्प नहीं आ सकता है। यहाँ पर कई ऐसे क्षेत्र हैं जो इस जोन में आ सकते हैं। कमोबेश यही दक्षिण भारत में भी कई ऐसे इलाके हैं जहाँ पर जोन-4 और जोन-5 का भूकम्प आने की सम्भावना है। इसकी मुख्य वजह वहाँ पर मौजूद भ्रंश है।

भूकम्प की तीव्रता


भूकम्प से कितना नुकसान होगा और झटके कितनी तेज होंगे, यह भूकम्प की तीव्रता पर निर्भर करता है। इसका अन्दाजा उसके केन्द्र से निकलने वाली ऊर्जा से लगाया जा सकता है। ये ऊर्जा धरती में उसी तरह तरंग पैदा करती है जैसे पानी में पत्थर फेंकने पर तरंगें पैदा होती हैं। ये तरंगें ही धरती में कम्पन पैदा करती है। कम्पन की तीव्रता ऊर्जा पर निर्भर करती है और ऊर्जा इस बात पर निर्भर करती है कि प्लेटों के टकराने की गहराई कितनी है। यदि टक्कर गहराई में होती है तो ऊर्जा सतह तक आते-आते कम हो जाती है। इससे कम्पन भी कम होता है। लेकिन अगर गहराई कम हुई तो ऊर्जा तेजी से सतह पर पहुँचती है और कम्पन भी तीव्र होता है। अगर ये घटना जमीन पर होती है तो भूकम्प आता है। समुद्र में होती है तो सुनामी आती है।

नेपाल में 80 साल बाद आये एक विनाशकारी भूकम्प ने हजारों जिन्दगियाँ तबाह कर दीं


1. 25 अप्रैल की सुबह भारतीय समयानुसार 11:45 बजे नेपाल और उत्तर भारत के कुछ इलाकों में जबरदस्त भूकम्प आया।
2. इस भूकम्प का केन्द्र काठमांडू से 80 किमी दूर लामजुंग में जमीन से 15 किमी अन्दर माना गया है।
3. रिक्टर पैमाने पर इस भूकम्प की तीव्रता 7.9 मापी गई।
4. दिल्ली में ये भूकम्प स्थानीय समयानुसार सुबह 11:45 मिनट पर आया। नेपाल सहित भारत के अन्य राज्यों जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में इसका असर हुआ।
5. इसके बाद 12:20 मिनट पर भूकम्प के झटके दोबारा आये जिसने पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित तिब्बत में भी दहशत फैला दी।
6. इस विनाशकारी भूकम्प के बाद कम-से-कम 14 हल्के झटके और आये। इनमें से अधिकांश चार से पाँच की तीव्रता के थे। जबकि उन्हीं में से एक 6.6 तीव्रता का था।
7. इस विनाशकारी दुर्घटना से नेपाल में मरने वालों की संख्या 5000 से ऊपर हो गई हैं इसमें अभी और बढ़ोत्तरी की सम्भावना है।
8. वहीं 6500 गम्भीर रूप से घायल बताए जा रहे हैं।
9. भारत में भी उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल को मिलाकर अब तक 67 लोगों की मौत हो चुकी है।

धराहरा मीनार सहित कई ऐतिहासिक स्मारक ध्वस्त


1. नेपाल में आये इस भूकम्प से 900 साल पुराना दरबार स्क्वेयर तबाह हो गया। यह यूनेस्कों की विश्व विरासत में शामिल था। यह 1069 से 1083 के बीच बना था।
2. इस भूकम्प के कारण नेपाल का 400 साल पुराना काष्टमंडप भी ढह चुका है। इसी के नाम पर नेपाल की राजधानी का नाम पड़ा था। ये पूरा मन्दिर एक पेड़ की लकड़ी से 1596 में बना था।
3. इस विनाशकारी भूकम्प से नेपाल का सबसे प्रसिद्ध जनकपुर मन्दिर ध्वस्त हो गया। 1895 से 1911 के बीच नए सिरे से बने इस मन्दिर को भी भूकम्प निगल गया।
4. नेपाल की कुतुबमीनार कही जाने वाली काठमांडू की धराहरा मीनार भी इस भूकम्प में ढह गई। इस इमारत में 400 लोगों के दबे होने की आशंका है जबकि अब तक 180 लोगों के शव मलबे से निकाले जा चुके हैं।
5. इस भूकम्प से पशुपतिनाथ मन्दिर को कोई नुकसान नहीं पहुँचा है। 1934 में भी आये भूकम्प में यह मन्दिर सुरक्षित था।
6. 1500 साल पुराने स्वयंभूनाथ स्तूप पर भी इस भूकम्प का कोई असर नहीं पड़ा।

भयावह भूकम्प


11 अगस्त 2012 : ईरान के शहर तबरीज में 6.3 और 6.4 की तीव्रता वाले दो भूकम्पों से 306 लोगों की मौत और तीन हजार से ज्यादा लोग जख्मी
11 मार्च 2011 : जापान के उत्तर पूर्वी तट पर समुद्र के नीचे 9.0 की तीव्रता के भूकम्प आने के बाद आई सुनामी से करीब 18 हजार 900 लोगों की मौत। फुकुशिमा डाईची परमाणु संयंत्र में संकट पैदा हुआ।
23 अक्टूबर 2011 : पूर्वी तुर्की में 7.2 की तीव्रता वाले भूकम्प से तबाही। 600 से ज्यादा लोगों की मौत और कम-से-कम 4150 जख्मी।
12 जनवरी 2010 : हैती में 7.0 की तीव्रता वाले भूकम्प से तीन लाख से अधिक लोगों की मौत।
14 अप्रैल 2010 : उत्तर पश्चिम चीन के क्विंघाई प्रान्त के युशु काउंटी में 6.9 की तीव्रता वाले भूकम्प में तीन हजार लोगों की मौत और कई लापता।
12 मई 2008 : चीन के दक्षिण पश्चिम प्रान्त सिचुआन में 8.0 की तीव्रता वाले भूकम्प से 87 हजार से ज्यादा लोगों की मौत या लापता।
27 मई 2006 : इंडोनेशिया के योगयाकार्ता क्षेत्र में आये शक्तिशाली भूकम्प में 6000 लोगों की मौत और 15 लाख से ज्यादा लोग बेघर।
8 अक्टूबर 2005 : 7.6 की तीव्रता वाले भूकम्प से पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम सीमान्त प्रान्त और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में 75 हजार से ज्यादा लोगों की मौत। 35 लाख लोग विस्थापित।
28 मार्च 2005 : इंडोनेशिया के न्यास द्वीप पर भूकम्प से 900 लोगों की मौत।
26 दिसम्बर 2004 : सुमात्रा तट के पास समुद्र के अन्दर आये भीषण भूकम्प से सुनामी आई जिसमें हिन्द महासागर के आसपास के देशों में दो लाख 20 हजार लोगों की मौत। इसमें एक लाख 68 हजार लोग इंडोनेशिया में मारे गए।
26 दिसम्बर 2003 : ईरान के शहर बाम में 6.7 की तीव्रता के भूकम्प में कम-से-कम 31 हजार 884 लोगों की मौत और 18 हजार जख्मी।
26 जनवरी 2001 : भारत के गुजरात में 7.7 की तीव्रता वाले भूकम्प में 25 हजार लोगों की मौत और एक लाख 66 हजार जख्मी।
30 सितम्बर 1993 : महाराष्ट्र में 6.3 की तीव्रता के भूकम्प में 7601 की मौत।
20 अक्टूबर 1991 : भारत के उत्तर प्रदेश में 6.6 की तीव्रता वाले भूकम्प में 768 लोगों की मौत।
20 अगस्त 1988 : नेपाल में 6.8 की तीव्रता वाले भूकम्प में 721 लोगों की नेपाल में और पड़ोसी भारतीय राज्य बिहार में 277 लोगों की मौत।
28 जुलाई 1976 : उत्तरी चीन के हेबेई प्रान्त के तांगशान में 7.8 की तीव्रता वाले भूकम्प में 2 लाख 42 हजार लोगों की मौत जबकि पश्चिम देशों के सूत्रों का कहना है कि यह संख्या ज्यादा थी।
15 जनवरी 1934 : नेपाल और बिहार में 8.1 की तीव्रता वाले भूकम्प में 10 हजार 700 लोगों की मौत।
1 सितम्बर 1923 : कान्तो जापान में 7.9 की तीव्रता वाले भूकम्प ने 1,42,800 लोगों की मौत।
16 दिसम्बर 1920 : हाईयुआन (चीन) में 7.8 की तीव्रता वाले भूकम्प ने 2,00,000 लोगों की मौत।

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