महाशीर - लुप्त हो रहे हैं नर्मदा के टाइगर

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मध्य प्रदेश में नर्मदा के प्रवाह क्षेत्र में सबसे ज्यादा बाँध बने हैं। इसी वजह से नदी का प्रवाह क्षेत्र कई स्थानों पर ठहर गया है तो कहीं कम हो गया है। महाशीर मछली की तासीर प्रवाहित जल धाराओं में ही पनपने की होने से इसके अस्तित्व पर संकट गहरा गया है। चिन्ताजनक तथ्य यह भी है कि इसके अंडे और बच्चे अब नदी के प्रवाह क्षेत्र में नहीं मिल रहे हैं। तो क्या यह माना जाये कि महाशीर के प्रजनन और अपने कुनबे को बढ़ाने की प्राकृतिक स्थितियाँ इसके लिये बाधक हो रही हैं। बीते कुछ सालों में नदी तंत्र से हुई बेतहाशा छेड़छाड़ का नतीजा अब सामने आने लगा है। इसका असर हमें नदियों के जल्दी सूखने और गर्मियों में जल संकट का सामना तो करना पड़ ही रहा है, इसके असर से इसमें रहने वाले जीव भी नहीं बच सके हैं। पर्यावरण असन्तुलन से जलीय जीवों की कई प्रजातियों पर संकट है।

हालात यहाँ तक पहुँच गए हैं कि जो मछलियाँ कभी नर्मदा और दूसरी बड़ी नदियों की पहचान हुआ करती थी, अब वे वहाँ उँगलियों पर गिनने लायक ही बची हैं। कभी नदी के पानी में दाना डालते ही झुण्ड-के-झुण्ड मछलियाँ उछल-कूद करते हुए दाने की ओर दौड़ आती थी, लेकिन ये सब अब बीते दिनों की कहानी बनती जा रही है। अगले कुछ सालों में हमें अगली पीढ़ी को चित्रों में ही बताना पड़ेगा कि नर्मदा नदी में टाइगर रिवर यानी महाशीर मछलियाँ (टोर-टोर) लाखों की तादाद में हुआ करती थीं।

मध्य प्रदेश में हुए अध्ययन के ताजा आँकड़े हमें चौंकाते हैं कि कभी इस प्रदेश की बड़ी नदियों नर्मदा, केन, बेतवा, चंबल, ताप्ती, कालीसिंध, क्षिप्रा और टोंस नदियों में, जहाँ महाशीर मछलियों की तादाद अब बहुत कम बची है, कितनी बुरी हालत हैं। इसी वजह से कुछ जगह सरकार ने इन्हें बचाने के लिये जतन करना भी शुरू किया है। आँकड़ों पर गौर करें तो 5 से 10 सालों पहले तक इन बड़ी नदियों की कुल मछलियों की 25 से 28 फीसदी महाशीर हुआ करती थी। पानी में इसकी अपनी अल्हड़ मस्ती देखने काबिल हुआ करती थी। इसी सुन्दरता और चंचलता की वजह से इसे मछलियों की रानी कहा जाता रहा है। पर अब इनकी तादाद घटकर महज 3 से 4 फीसदी तक आ पहुँची है।

यह खुलासा मध्य प्रदेश सरकार के जैव विविधता बोर्ड के ताजा अध्ययन में सामने आया है। बताया जाता है कि मध्य प्रदेश में नर्मदा के प्रवाह क्षेत्र में सबसे ज्यादा बाँध बने हैं। इसी वजह से नदी का प्रवाह क्षेत्र कई स्थानों पर ठहर गया है तो कहीं कम हो गया है। महाशीर मछली की तासीर प्रवाहित जल धाराओं में ही पनपने की होने से इसके अस्तित्व पर संकट गहरा गया है। चिन्ताजनक तथ्य यह भी है कि इसके अंडे और बच्चे अब नदी के प्रवाह क्षेत्र में नहीं मिल रहे हैं। तो क्या यह माना जाये कि महाशीर के प्रजनन और अपने कुनबे को बढ़ाने की प्राकृतिक स्थितियाँ इसके लिये बाधक हो रही हैं। जैवविविधता सर्वे में मध्य प्रदेश में मछलियों की 215 प्रजातियाँ हैं। इनमें से 17 पर विलुप्ति का खतरा है।

महाशीर मछलियों पर अध्ययन करने वाले जैव विविधता बोर्ड अधिकारियों का तो यही मानना है। उनके मुताबिक नदियों के प्रवाह क्षेत्र (खासतौर पर नर्मदा में बाँधों के निर्माण के बाद) प्राकृतिक जल प्रवाह में ठहराव होने से इनके प्रजनन पर विपरीत असर पड़ा है, बोर्ड के सदस्य सचिव डॉ. एसपी दयाल की मानें तो यह मछली प्रवाहित स्वच्छ जल धाराओं में ही प्रजनन करती है। जबकि नर्मदा जैसी हमेशा बहने वाली नदियाँ अब ठहरे हुए जलाशयों में तब्दील हो रही हैं, जो मूल चिन्ता का विषय है। प्रमुख वजह यही है महाशीर के विलुप्ति की हद तक आ जाने की। इसके अलावा रेत का अवैध खनन, अतिक्रमण, प्रदूषण मछलियों का अवैध शिकार प्रवास नहीं होने से प्राकृतिक प्रजनन पर असर, नदियों से खेती, पेयजल और अन्य परियोजनाओं के लिये नदियों का पानी खींच लेने से जैसे कारण भी हैं।

उन्होंने बताया कि नर्मदा में अब बहुत कम ऐसी जगहें बची हैं, जहाँ महाशीर नर्मदा नदी के कुछ-कुछ हिस्सों में प्रवाहित जल-धाराओं के कारण बची है। जैव विविधता बोर्ड ने इन्हें चिन्हांकित भी किया है। ओंकारेश्वर बाँध से लेकर खलघाट के बीच ऐसे स्थल मिले हैं, जहाँ अब सरकारी प्रयासों से इन्हें संरक्षित करने की योजना बनाई जा रही है। कुछ हिस्सों में कृत्रिम जल धाराओं से नदी के पानी को प्रवाहित कर महाशीर के संरक्षण पर भी काम चल रहा है। यह मुख्यतः नर्मदा नदी में पाई जाती है। इसे टाइगर ऑफ फ्रेश वाटर यानी ताजे पानी की रानी कहा जाता है। यह साफ पानी में ही पलती-बढ़ती है।

दूषित पानी में यह जिन्दा नहीं रह पाती है। नर्मदा नदी अपनी कुल लम्बाई 1312 किमी में से मध्य प्रदेश के 1077 किमी में बहती है।

उधर राज्य सरकार ने विलुप्ति से बचाने के लिये इसे 26 सितम्बर 2011 को राज्य मछली (स्टेट फिश) का दर्जा दिया है, वहीं इसे संवर्धन और प्रजाति को बचाने के लिये भी कई प्रयास किये जा रहे हैं। बीते साल कैबिनेट की बैठक में इसे प्रस्ताव के रूप में स्वीकृति दी जा चुकी है।

भोपाल के केरवा जलाशय में महाशीर का बीज संचय शुरू किया गया है। नर्मदा बेसिन में मछली पालन के लिये मछुआरों को विशेष प्रशिक्षण देंगे। नर्मदा किनारे होशंगाबाद में भी हैचरी और प्रक्षेत्र विकसित किया जा रहा है, जहाँ नदी के प्रवाह क्षेत्रों में गहरे गड्ढे चिन्हित कर उनमें मस्त्य बीज का संवर्धन किया जाएगा।

नर्मदा किनारे के जिलों में वन विभाग भी इसके लिये कृत्रिम टैंक बनाकर पहल कर रहा है। इसमें 40 मीटर चौड़े, 13 मीटर लम्बे और 3 मीटर गहरे टैंक बनाकर उसमें 45 मछलियों को अनुकूल माहौल में रखा जाता है और फिर इन्हें जुलाई में प्रजनन काल में नर्मदा नदी में छोड़ दिया जाता है। टैंक की तलहटी में 500 माइक्रोन की पॉलीथीन और उस पर मोटी रेत बिछाई जाती है। पानी को हमेशा साफ रखा जाता है। वन अधिकारी बताते हैं कि इसे विलुप्ति से बचाने के लिये पहली बार इस तरह की कोशिशें की जा रही हैं।

इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने महाशीर को विलुप्त माना है। नेशनल ब्यूरो ऑफ फिश जेनेटिक रिसोर्स लखनऊ ने भी इसके विलुप्त होने के खतरों पर चिन्ता जताई है। केन्द्रीय अन्तःस्थलीय मत्स्यकी अनुसन्धान संस्थान कोलकाता की सर्वे रिपोर्ट बताती है कि अब इन मछलियों का उत्पादन घटकर 10-से-15 फीसदी ही रह गया है। वैज्ञानिक बताते हैं कि 1956 से 1965 तक नर्मदा नदी में ये बड़ी तादाद में हुआ करती थी।

स्थानीय लोग बताते हैं कि महाशीर को बचाना है तो सबसे ज्यादा ध्यान इसके प्रजनन काल में रखना होगा। राज्य सरकारें इस दौरान मछलियों के शिकार पर रोक तो लगा देती हैं लेकिन इस पर सम्यक कार्यवाही नहीं होने से शिकार होता रहता है और इसका सबसे बड़ा खामियाजा वयस्क मादा मछलियों को उठाना पड़ता है, जिनके शरीर में उस दौरान सैकड़ों अंडे होते हैं। अवैध रूप से शिकारी इन्हें जाल, लकड़ियों या धारदार हथियारों से मारते या पकड़ते हैं।

महाशीर मध्य प्रदेश के अलावा पंजाब, हिमाचल और उत्तराखण्ड की कुछ नदियों सहित एशिया में पाकिस्तान, म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका और थाइलैंड में भी बहुतायत में मिलती है। इसके अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग रंग मिलते हैं, कहीं तांबई, कहीं चांदी की तरह तो कहीं सुनहरा और कहीं काला। मुख्य रूप से इसकी सात उप प्रजातियाँ हैं। मछुआरों के लिये भी यह सुडौल आकार, और ऊँची कीमत की वजह से महत्त्व की होती है। नदियों में इंसानी दखल के लगातार बढ़ने से महाशीर को खतरे का सामना करना पड़ रहा है। नदियों के प्रवाह को रोकना और नदी तंत्र को समझे बिना उसमें दखल देना जलीय जीवों की जान पर संकट को बढ़ा रहा है। आज पूरी प्रजाति के सामने अस्तित्व का ही संकट है। मध्य प्रदेश में जैव संरक्षण और पारिस्थितिकीय सन्तुलन के लिये महाशीर मछली का संरक्षण और संवर्धन जरूरी है।

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Post By: RuralWater
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