रायपुर।29 अप्रैल।न्यूज़ आज: छत्तीसगढ़ व उड़ीसा के लाखों लोगों की प्यास बुझाने वाली महानदी के पानी की विषाक्तता का अध्ययन करने के लिए केंद्र सरकार एक प्रोजेक्ट तैयार कर रही है। राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार महानदी के पानी पर अध्ययन करने के लिए इतना बड़ा प्रोजेक्ट तैयार किया जा रहा है। कृषि और अन्य क्षेत्रों में नाइट्रोजन युक्त फर्टिलाइजर के उपयोग के कारण भूमि जल में नाइट्रेट की मात्रा बढ़ गई है। यह मानव शरीर और जीव जंतुओं के लिए दीर्घकाल में हानिकारक हैं। केंद्र सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ अर्थ को प्रारंभिक जांच में महानदी के पानी में नाइट्रेट की मात्रा मिली है। इसलिए केंद्र सरकार ने पानी की जांच के लिए तीन वैज्ञानिकों का दल बनाया है। वैज्ञानिक करेंगे जांच छत्तीसगढ़ में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विज्ञान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आरके बाजपेयी, केंद्रीय चावल अनुसंधान कटक (उड़ीसा) के डायरेक्टर डॉ. टीके आद्या तथा केंद्रीय भू-जल बोर्ड के वैज्ञानिक- इन तीन सदस्यों का दल मिलकर इस प्रोजेक्ट का विस्तृत अध्ययन करेगा। तीन से पांच साल लगेंगे: महानदी का विस्तार छत्तीसगढ़ से होकर उड़ीसा तक है। इसलिए प्रोजेक्ट पर काम छत्तीसगढ़ और उड़ीसा को मिलकर करना है। छत्तीसगढ़ में इससे पहले महानदी के पानी का प्रदूषण पता करने के लिए कोई बड़ा रिसर्च नहीं किया गया है। इसमें तीन से पांच साल लगने की संभावना है।
ये है प्रोजेक्ट:- प्रोजेक्ट अभी प्रारंभिक तौर पर है। छत्तीसगढ़ में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय को जिम्मेदारी दी गई है। विवि के मृदा एवं भूमि रसायन विभाग, केंद्रीय चावल अनुसंधान कटक और केंद्रीय भूजल बोर्ड को प्रोजेक्ट की रूपरेखा तैयार कर केंद्रीय पृथ्वी मंत्रालय को देना है। इसके बाद रिसर्च शुरू होगा। अध्ययन के दौरान महानदी बेसिन में अलग-अलग जगहों पर पानी के सैंपल लिए जाएंगे। पानी में नाइट्रेट मिलने के स्रोत खोजे जाएंगे। इसके बाद पानी के सैंपल की टेस्टिंग और तथ्यों के आधार पर गहन अध्ययन किया जाएगा। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रारंभिक रूप से पानी में नाइट्रेट पहुंचने की वजह खेती है क्योंकि किसान उत्पादन के लिए फर्टिलाइजर का उपयोग अधिक मात्रा में कर रहे हैं। हर साल दस लाख टन रासायनिक खाद: राज्य में हर साल करीब दस लाख टन रासायनिक खाद का प्रयोग खेती में हो रहा है। खेतों से नाइट्रेट जमीनों में और जमीन के जरिए महानदी के पानी में पहुंच रहा है। राज्य विपणन संघ के महाप्रबंधक टी जे पांडे ने बताया कि लगभग सात लाख टन रासायनिक खाद सहकारिता के जरिए किसान मार्कफेड से खरीदता है। जबकि निजी स्तर पर भी किसान रासायनिक खाद खरीदते हैं।
महानदी एक नजर में: महानदी धमतरी जिले के सिहावा पर्वत से निकलकर बस्तर और छत्तीसगढ़ से होकर उड़ीसा और झारखंड तक बहती है। यह कुल 900 किलोमीटर तक बहती है। ड्रेनेज एरिया एक लाख बत्तीस हजार वर्ग किलोमीटर है। उड़ीसा में विश्वप्रसिद्ध हीराकुंड बांध भी महानदी पर ही बना है। यह नदी छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी नदी के रूप में जानी जाती है। हो सकती हैं कई तरह की बीमारियां: लंबे समय तक नाइट्रेट युक्त पानी के उपयोग से कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं। आंबेडकर अस्पताल में मेडिसिन विभाग के एचओडी डॉ. जीबी गुप्ता ने कहा कि इससे पाचन तंत्र से संबंधित बीमारियां हो सकती हैं। मस्तिष्क के विकास में कमी, हृदय में खराबी आ सकती है। इससे हार्टअटैक की संभावना बढ़ जाती है। पानी में नाइट्रोजन की मिलावट के कारण ही ब्लू चाइल्ड का खतरा बढ़ गया है। इसकी वजह से पैदा होने वाले बच्चे नीले रंग में आ रहे हैं। इसके अलावा मानसिक और शारीरिक विकृतियां भी आ रही हैं। पानी को उबालकर या शुद्ध कर उपयोग करने से इन बीमारियों से बचा जा सकता है। केंद्र सरकार ने दोनों राज्यों और केंद्रीय भूजल बोर्ड को इसकी जिम्मेदारी दी है। छत्तीसगढ़ से मैं इस प्रोजेक्ट पर काम करूंगा। महानदी पर यह पहला बड़ा प्रोजेक्ट है।
डॉ. आरके बाजपेयी, वैज्ञानिक
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