विज्ञान की अनोखी डायरी
विज्ञान को सरल और आम भाषा में पढ़ने वालों को सदैव देवेन्द्र मेवाड़ी की पुस्तक का इंतजार रहता है। उनकी पुस्तक पढ़ते हुए लगता है जैसे वो हमारे सामने बैठे हमें विज्ञान की बातों को समझा रहे हैं, हमें विज्ञान की बारिकियों को रोचक और आकर्षक अंदाज में बयां कर रहे हैं। उनकी ऐसी ही पुस्तक ‘‘मेरी विज्ञान डायरी’’ इस वर्ष विश्व पुस्तक मेले में देखने को मिली है। मेरी विज्ञान डायरी पुस्तक में लेखक द्वारा तीन सालों 2008 से 2010 के दौरान विज्ञान की विभिन्न घटनाओं और उनसे जुड़ें अपने संस्मरणों, यात्रा वृत्तांत, जीवनियां को शामिल किया है। लेखक ने अपने चिर-परिचित अंदाज में छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी विज्ञान की गुत्थियों को सरलता से समझाया है। इसका उदाहरण लेखक द्वारा महाप्रयोग कहलाने वाले लार्ज हेडरॉन कोलाइडर की उपयोगिता को जहां सरलता से समझाया गया है वहीं ऐसे प्रयोगों और समाज में प्रचलित अंधविश्वास और मिथ्या धारणाओं पर भी कटाक्ष किया है जो विकास और मानवता की राह में रोड़े डालते हैं।
लेखक द्वारा बसंत व बारिष वर्ष के विभिन्न मौसमों का काव्यात्मक चित्रण और उससे संबंधित विज्ञान को उजागर किया गया है। इस डायरी में विभिन्न जीवों जैसे मिट्ठू, गौरेया, हिरणों के बारे में अच्छी जानकारी दी गई है और उनसे संबंधित लेखक के संस्मरण भी साथ में दिए गए हैं।
लेखक ने पर्यावरण दिवस, गौरेया दिवस आदि अनेक दिवसों के महत्व को भी रेखांकित किया है।
लेखक की जिज्ञासु प्रवृत्ति उनको अपने पूर्वजो को जानने के लिए ‘द जीनोग्राफिक प्रॉजेक्ट’ यानी वंशावली परियोजना में भागीदार बनाती है और फिर लेखक द्वारा अपने पूर्वजों को जानने की प्रक्रिया को विस्तार से लिखा है जिसके परिणाम स्वरूप लेखक को पता चलता है कि उसके पूर्वज ऐ एम-231 संकेतक यानी ‘हेप्लोग्रुप-एन’ तय होती है। लेखक लिखते हैं कि इस प्रकार उसके पूर्वज के तमाम वंशज विगत हजारों वर्षों के दौरान फैलते गए और आज वह इस वंश के एक सदस्य के रूप में उनका सफर उन्हें साइबेरिया तक जोड़ता है।
लेखक ने अपने संस्मरणों में टाइफाइड, न्यूमोनिया, डेंगू व मलेरिया जैसे रोगों के बारे में विस्तार से समझाया है। लेखक ने डायरी में विभिन्न विज्ञान लेखकों जैसे विज्ञान कथाकार एच जी वेल्स, जूल्स वर्न व गुणाकर मुले आदि के योगदान का भी जिक्र किया है।
लेखक की इस डायरी की सबसे खास बात यह है कि लेखक ने दैनिक जीवन से जुड़ी अनेक बातों में छिपे विज्ञान को अच्छे से समझाया है। लेखक द्वारा दिल्ली के बाजार में छबीला नामक सब्ली को पहाड़ो के झाला के रूप में पहचान कर उसके वैज्ञानिक नाम लाइकेन को समझाया गया है। लाइकेन असल में प्रकृति के दो जीवों की दोस्ती का नया रूप है जो एक-दूसरे को सहारा देकर अपना अस्तित्व कायम रखते हैं। कैलेंडर का इतिहास, फसलों की उत्पत्ति की रोचक दास्तान जैसे लेख डायरी को रोचक बनाते हैं।
इस डायरी में लेखक ने 2007 से लेकर 2010 की प्रमुख वैज्ञानिक घटनाओं पर भी नजर डाली है। लेखक ने पृथ्वी ग्रह के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष, अंतर्राष्ट्रीय आलू वर्ष पर भी अपने विचार व्यक्त किए हैं। लेखक ने तीन सालों के दौरान घटित विज्ञान की अहम घटनाओं के जिक्र में अपने जीवन के अनुभवों को शामिल किया है। लेखक प्रयाग भ्रमण के दौरान कुछ सालों पहले के संगम प्रवाह और अब के प्रवाह की तुलना करते हुए नदियों के अस्तित्व पर मंडराते संकट का जिक्र भी करते हैं। लेखक द्वारा ऐसे अनेक यात्रा वृत्तांतों का जिक्र बड़े संजीदा अंदाज में किया है।
लोकप्रिय विज्ञान लेखन के लिए अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित द्रेवेन्द्र मेवाड़ी की यह पुस्तक मेरे जैसे उन पाठकों के लिए सबसे बड़ा उपहार है जो उनके लेखन से सदैव लिखना सीखते हैं। असल में उनके लेखन का आकर्षण पाठकों को बांधे रखता है जिसके कारण विज्ञान की समझ न रखने वाला भी आसानी से वैज्ञानिक विषयों को पढ़ने को उत्सुक रहता है। उनकी यह नयी पुस्तक ‘मेरी विज्ञान डायरी’ भी उनकी लेखन कला का ऐसा ही एक रूप है जिसे पाठक अवश्य पसंद करेंगे।
लेखकः द्रेवेन्द्र मेवाड़ी, प्रकाशकः आधार प्रकाशन, एस.सी.एफ. 272, सैक्टर-16, पंचकूला, हरियाण, मूल्यः 350 रुपए, पृष्ठः 232
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