स्वामी सांनद गंगा संकल्प संवाद - 11वाँ कथन आपके समक्ष पठन-पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है:
अड्डे पर पहुँचकर हमने लखनऊ की बस पकड़ी। जब वह बस अगले स्टाॅप पर रुकी, तो पत्रकारों की टीम कैमरा लिये सामने थी। पता लगा कि जब मेरी और गुरुजी की बात हो रही थी, तो वहाँ अमर उजाला का कोई पत्रकार मौजूद था। उसी से सभी को सूचना मिली।
अर्जुन के पास फोन था। गुरुजी के पास फोन आया कि लौट आओ; फिर कहा कि अच्छा अब सन्यासी के कपड़े पहन लो।
मैने कहा - ‘पहन लूँगा।’
इसी बीच पता लगा कि स्वरूपानंद दिल्ली पहुँच गये हैं। मैं दिल्ली गया। वहाँ उनसे मिला। उनसे गुरुजी के निर्णय को गलत बताया। मैने बताया कि उत्तराखण्ड जाऊँगा। पी एस आई (लोक विज्ञान संस्थान, देहरादून) की टीम बुलाई है। अलकनंदा के पानी की जाँच करेगी।
उत्तराखण्ड प्रवेश पर घेराबंदी
वहाँ से मैं हरिद्वार गया। स्वरूपानंद जी के यहाँ रुका था। वहाँ करीब 100-150 गंगा समर्थक आये; बोले कि बाहर निकालो। पुलिस ने भी कहा। स्वरूपानंद जी ने भी कहा कि बाहर ही निकालो।
मैं तो वैसे भी देहरादून पी एस आई जाने के लिये निकला था। खैर, चर्चा हुई। उन्होंने कहा - ‘आप मातृसदन रुको, यहाँ नहीं।’
मातृसदन से अगली सुबह निकला, तो पुलिस ने अरेस्ट कर लिया। हरिद्वार पहुँचा दिया। एम्स भेज दिया। मैने स्वयं देखा कि हरिद्वार टीम वहाँ भी थी। मैं ‘लामा’ कागज पर साइन करके अस्पताल से एस. के. गुप्ता के यहाँ चल दिया। अस्पताल से खबर आई कि कहीं चले गये। दिनभर मुझे ऐसी जगह रखा, जहाँ कोई दिक्कत नहीं हो। फिर मैं भरत झुनझुनवाला (प्रख्यात लेखक व अर्थशास्त्री ) के यहाँ जाने के लिये लक्ष्मोली (उत्तराखण्ड में श्रीनगर गढ़वाल के पास स्थित एक गाँव ) के लिये निकला। वहाँ पहुँचा, तो मुझे एल आई ओ (स्थानीय खुफिया विभाग) के लोग मौजूद मिले। बोले - ‘आप यह घर छोड़कर कहीं नहीं जा सकते।’ फिर आॅर्डर मिला - ‘टिहरी से बाहर निकलो।’
स्वरूपानंद जी ने नहीं दिया साथ
लक्ष्मोली रहते हुये स्वरूपानंद जी से बात हुई। मैंने उनसे कहा कि यदि श्रीनगर बाँध बन गया, तो अलकनंदा पर बचाने के लिये कुछ नहीं बचेगा। मैंने उनसे यह अनुरोध भी किया कि कुछ देर के लिये ही सही, वह श्रीनगर आ जायें। उन्होंने जवाब दिया - “मैं एक बड़े मोर्चे पर लगा हूँ। 18 जून की रैली मेरा मोर्चा है। मैं एक साथ कई मोर्चे नहीं खोल सकता।’’
मैंने सोचा कि चलो, 18 जून, 2012 की रैली देखते हैं। रैली हुई, कोई 2500 लोग थे। सरकार का कोई प्रतिनिधि प्लेटफाॅर्म (मंच) पर नहीं था। पता लगा कि नारायणसामी आये थे, लेकिन कम स्ट्रेंन्थ को देखते हुये मंच पर नहीं आये। इस रैली ने सरकार को तीन महीने का समय दिया। इस सब से मैं इस नतीजे पर पहुँच गया था कि स्वरूपानंदजी सरकार पर दबाव नहीं बना रहे, बल्कि एक तरह से मदद ही कर रहे हैं।
अमरकंटक शरण में पहुँचे संकल्पित सानंद
मैंने 26 जनवरी, 2013 से शहडोल (मध्य प्रदेश) में उपवास शुरु किया। चार फरवरी को अमरकंटक शिफ्ट किया। 20 फरवरी, 2013 को हेमंत ध्यानी (‘गंगा आह्वन’ से संबद्ध कार्यकर्ता) का फोन आया कि गुरुजी कह रहे हैं कि पाँच लोग मिलकर गंगा की लड़ाई लड़ेंगे : स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद, सुशीला भण्डारी, हेमंत ध्यानी, शिवानंद जी और जी डी यानी मैं।
उसके बाद से हेमंत कभी नहीं मिले।
‘सम्भावना अथवा गुरुभक्ति उन्हें रोकती होगी’
मैंने पाया कि अविमुक्तेश्वरानंद जी कार्यक्रम तय करते हैं और फिर कन्नी काट जाते हैं। ऐसा लगा कि जब वह सामने होते हैं, तब साथ होते हैं; पीछे वह स्वरूपानंद जी के निर्देशों से बंध जाते है। इस बार 13 जून, 2013 को आश्रम में भी गुरुजी का आगमन हुआ, किन्तु अविमुक्तेश्वरानंद जी से मेरी अंतिम भेंट मई, 2013 में हुई। उसके बाद से न भेंट है और न टेलीफोन। एसएमएस (संदेश) किये, तो उनके दो-एक जवाब जरूर आये; अत्यन्त स्नेहपूर्ण जवाब ! मुझे लगा कि उनकी विवशता सम्भवतः अपने शिष्य व अपने गुरु के बीच की है। वह ज्योतिष्पीठ का शंकराचार्य बन सकते हैं। सम्भवतः यह सम्भावना उन्हें रोकती होगी। यह उनकी गुरुभक्ति भी हो सकती है।
मैं मानता हूँ कि गंगा के मार्ग में अड़चन अविमुक्तेश्वरानंद जी नहीं, स्वरूपानंद जी हैं। स्वरूपानंद जी दो बार जेल गये हैं। स्वतंत्रता सेनानी कहे जाते हैं। मेरी कैलकुलेशन थी कि उनसे जुड़कर मैं गंगाजी का कुछ काम करा पाऊँगा, लेकिन मेरी कैलकुलेशन गलत निकली।
मैने सन्यास ले लिया। हंसदेवाचार्य, रामदेव जी से मेरा सम्पर्क ही नहीं, घनिष्ठ सम्पर्क हुआ। मैं जाता हूँ, तो स्नेहपूर्वक मिलते हैं। किन्तु इसका मतलब यह नहीं कि वे मेरे काम का समर्थन करते हैं। इस बार भी उपवास शुरु करने से पहले रामदेव, हंसदेवाचार्य, चिदानंद जी से भी मिला; सभी से मिला; सभी ने अपना स्नेह-आशीष दिया। मुझे लगता है कि व्यक्तिगत रूप में ये मेरा साथ देंगे, लेकिन गंगा की बात आयेगी, तो पार्टी लाइन पर बात करेंगे। मुझे इनमें से किसी का व्यक्तिगत समर्थन नहीं है।
संत समाज के तीन वर्ग
मैं कहूँगा कि संत समाज को प्रकृति की चिन्ता नहीं है। इसीलिये उन्होंने मेरे तप में साथ आने की कोई पहल नहीं की। इनके भी तीन वर्ग हैं:
90 प्रतिशत संत पहली श्रेणी के हैं, जिन्हें सुख-सम्पत्ति की चिन्ता है। वे भक्तों की भी चिन्ता करते हैं, तो अपना हित बचाने के लिये.. अपनी दक्षिणा बचाने के लिये। इनमें मैं सन्यासी अकेले की बात नहीं कर रहा; श्री श्री रविशंकर, आसाराम और मुरारी बापू कई हैं। कुछ कथावाचकों से भी कहा कि गंगा की बात कथा में कहें। उन्होंने कहा कि नहीं, नहीं, लोग गंगा कथा नहीं, भागवत कथा सुनने आते हैं। वे भी गंगा की बात कहने को राजी नहीं।
नौ-साढे नौ प्रतिशत संत, दूसरी श्रेणी में आते हैं। ये राजनीति में दखल रखते हैं। वे राइटिस्ट-लेफ्टिस्ट हैं। राइटिस्ट हैं, तो संघ, विश्व हिन्दू परिषद या बीजेपी से जुड़े हैं। लेफ्टिस्ट हैं, तो कांग्रेस, अकाली, कम्युनिस्ट, समाजवादी आदि से जुड़े हैं।
तीसरी श्रेणी में मात्र एक या आधा प्रतिशत संत हैं, जो अपनी मुक्ति या आध्यात्मिक साधना में लगे हैं। यह तीसरा सन्यासी वर्ग मुझे दिखाई नहीं देता, पर है जरूर।
सेक्युलरिज्म और सोशलिज्म से नहीं बचेगा पर्यावरण
30 साल पहले मेरा मानना था कि समाजवाद धीरे-धीरे आयेगा। चूँकि समाजवाद.. साम्यवाद सम्पदा में समता की बात करता है, अतः ऐसा भी मानता था कि उनके आने से पर्यावरण ज्यादा तेजी से बचेगा। किन्तु अब मुझे सी एस आई आर (वैज्ञानिक, औद्योगिक अनुसंधान परिषद) के डी जी (महानिदेशक) थे डाॅ, सैय्यद हुसैन जहीर की कही एक बात याद आती है।
उनके परिवार में एक थे अली जहीर। इंदिरा कैबिनेट में मंत्री थे। यह 70 के दशक की बात है। मैं आई आई टी, कानपुर में था। मैं बोर्ड का मेम्बर था। अध्यापकों के प्रतिनिधि के रूप में डाॅ. हुसैन जहीर का क्लोज हो गया था। वह बिना एसी के थोड़ी देर भी नहीं रहते थे। वह साम्यवादी थे। वह कर्मचारी यूनियन के पक्ष में थे। मैंने पूछा कि आप तो बिना एसी नहीं रह पाते। क्या जेल में भी एसी के साथ रहेंगे?
बोले - “आई वाज बोर्न विथ अ सिल्वर स्पून इन माउथ। आई विल नाॅट लेट् टेक इट अवे फ्राम मी, बट बिकाॅज आई एम ए कम्युनिस्ट, आई वांट एवरीवन हैव दिस सिल्वर स्पून।’’
मैं आपको बताऊँ कि आई आई टी के दो प्रोफेसर दो साल तक मीसा में बंद रहे: डाॅ. ए. पी. शुक्ला। वह कम्युनिस्ट थे; न्युक्लीयर साइंस के प्रोफेसर थे। अमेरिका से पी.एच.डी. किया था। दूसरे आर.एस.एस. से थे - डाॅ. भूषण लाल। दोनों को मीसा में डाला गया। खैर जहीर साहब की सभी को सिल्वर स्पून वाली बात से मुझे अब मुझे लगता है कि समाजवाद आयेगा, तो पर्यावरण नहीं बचेगा। क्यों लगता है ? क्योंकि माक्र्स ने आत्मसंयम की बात नहीं कही। माक्र्स ने कहा कि किसी के पास तुम्हारे से ज्यादा है, तो छीन लो।
दूसरी तरफ मुझे लगता है कि ‘सेक्युलिरिज्म’ होगा, तो नैतिकता का ह्यस होगा। चूँकि धर्म ही हमें नैतिकता सिखाता है, तो फिर धर्म के बगैर नैतिकता कैसे बचेगी ? यह भी प्रश्न है। रूस में ‘सोशलिज्म’ रहा, तो देखें कि वहाँ पर्यावरण का क्या हाल हुआ ? वहाँ ‘सीर’ और ‘आगू’ दो नदियाँ थी। कैस्पीयन सागर में मिलती थीं। इन नदियों पर एक पत्रिका थी। देखें, तो पता चलता है कि कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, चीन सभी कम्युनिस्ट देशों में पर्यावरण का क्या हाल हो रहा है। कैसे ज्यादा से ज्यादा सभी को सुलभ कराने के चक्कर में नदी भेंट चढ़ गई।
संवाद जारी...
अगले सप्ताह दिनांक 03 अप्रैल, 2016 दिन रविवार को पढ़िए स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद श्रृंखला का 12वां कथन
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