मेरे वतन पै, बेतवा

सीने में दिल है एक तो, “मायूसियां” हजार।
मेरे वतन पै, बेतवा हंसती है बार-बार।।
आबादियों से दूर चट्टानों के सिलसिले-
राहों में कच्चे-पक्के मकानों के काफिले।
ढोरों के गोल लौटते जंगल से दिन ढले,
जंगल के और बस्ती के ’महदूद’ फासले।।
पेड़ों की छांव में टूटे हुए मजार।
आता है याद मुझको उजड़ा हुआ ‘दयार’।।
यह ‘ईसुरी’ का देश है, केशव की ‘वादियां’,
मेलों में जमघटों में खुशी की मुनादियां।
देहात की ‘फिजा’ में गरीबों की शादियां,
पनघट पै मुसकराती हुई शाहजादियां।।
हरदम रहेगी याद, बुंदेलों की यादगार।
मेरे वतन पै बेतवा हंसती है बार-बार।।

-शायर मरहूम हजरत जनाब ‘तावां’ झांसवी

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