स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद - 21वाँ कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है:
तैने तो मेरे मन की कह दी
तरुण के भविष्य को लेकर मेरी चिन्ता बढ़ती गई। मैं क्या करुँ? इस प्रश्न के उत्तर की तलाश में मैं घर गया; पिताजी के पास। मेरी माँ तो तब नहीं थीं। मैंने पिताजी को अपनी चिन्ता से अवगत कराया। उसके बाद मैं दिल्ली लौट आया। लौटने पर सोचता रहा कि क्यों न मैं तरुण को गोद ले लूँ।
मैंने पिताजी को अपना विचार बताया, तो वह बहुत खुश हुए। भरे गले से बोले- “तैने तो मेरे मन की कह दी।’’ अब तरुण की माँ को तैयार करने की बात थी। यह जिम्मेदारी मैंने बाबा को दे दी। इस तरह आर्यसमाजी संस्कार विधि के साथ 1984 में मैंने तरुण को विधिवत गोद ले लिया।
मैंने अपनी वसीयत तरुण के नाम कर दी
उस वक्त तरुण चौथी कक्षा में था। मैं एन्वायरोटेक में था। मैंने सोचा कि अकेला रहता हूँ; तरुण को बुला लेता हूँ। मैंने बुलाकर सरस्वती शिशु मन्दिर में एडमिशन करा दिया। कुछ दिन तो वह रह गया, लेकिन उसका मन नहीं लगा। मैं उसे लेकर घर गया। वहाँ उसकी माँ अड़ गई कि उसे मेरे साथ नहीं जाने देगी। मैंने सोचा कि मैंने तरुण को सभी के सामने गोद लिया है। लोग मेरे साथ खड़े होंगे। लेकिन कोई मेरे साथ खड़ा नहीं हुआ। तरुण वहीं रह गया। दिल्ली आकर भी मेरा मन बेचैन ही रहा। मैं फिर गाँव आया। पिताजी से अपनी बेचैनी बताई। पिताजी ने कहा कि अपनी वसीयत कर दो, तो ये झगड़ेंगे नहीं। 1986 में मैंने अपनी वसीयत तरुण के नाम कर दी। उस वसीयत को मैंने कभी बदला नहीं।
मेरा श्राद्ध न किया जाये
1982 में मैंने अपनी आँखे ‘राजेन्द्र आई बैंक’ को डोनेट कर दी थी। विल (वसीयत) में मैंने लिखा है कि मेरी बॉडी का जो भी भाग जिसके उपयोग में आये, उसे दे दिया जाये। शेष किसी मेडिकल कॉलेज को दे दिया जाये। फिर भी कोई हिस्सा शेष रह जाये, तो उसका अन्तिम संस्कार आर्यसमाज की पद्धति से हो। कोई श्राद्ध न किया जाये। मेरा प्राणान्त कहीं अन्यत्र हो, तो मेरे शरीर के हिस्से का कहाँ उपयोग हो सकता है; पता करके शरीर वहाँ देने की बात लिखी है। मैंने जेल में भी यह लिखकर दिया है। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी के पास भी लिखकर दिया है। उन्होंने कहा है कि अक्षरशः पालन होगा।
मैं भू-समाधि या जल-समाधि नहीं चाहता
मैंने तरुण से कहा है कि एक सन्यासी के रूप में शिष्य पर गुरू का अधिकार है। मैंने यह भी कहा कि मैं भू-समाधि या जल-समाधि नहीं चाहता।
अविमुक्तेश्वरानंद जी के स्नेह पर भरोसा
मैं तो यह चाहता हूँ कि मेरे प्राण निकलते हैं, तो जल्दी निकलें। इससे वर्तमान केन्द्र सरकार (तत्कालीन संप्रग सरकार) पर इतना दबाव तो बढ़ ही जाएगा कि वह रह नहीं पाएगी। मुझे तो यह भी लगता है कि यदि मेरे प्राण निकलते हैं, तो अविमुक्तेश्वरानंद जी ही जितना मुझे स्नेह करते हैं; वह ही नहीं रह पाएँगे। चुनाव (लोकसभा चुनाव-2014) से पहले ही निकल जाएँ, तो अच्छा।
उन्हें मेरी मृत्यु की प्रतीक्षा है
भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद व हंसदेवाचार्य प्रतीक्षा कर रहे हैं कि चुनाव से पहले निकल जाएँ, तो वे इसे चुनाव में मुद्दा बनाएँ। मैंने तरुण से कहा है कि हो सकता है कि मेरे मरने के बाद शंकराचार्य (स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी) मेरे शव पर अधिकार जताएँ; कहें कि भू-समाधि ही होगी। तरुण से कहा है कि वह न होने देना। इसके लिये झगड़ा भी करना पड़े, तो झगड़ लेना।
(स्वामी सानंद द्वारा अपनी वसीयत और वसीयत में मृत्योपरान्त अपेक्षित व्यवहार जैसे बेहद निजी तथ्यों का खुलासा किये जाने से एकबारगी मुझे भ्रम हुआ कि कहीं स्वामी जी को अपनी मृत्यु का पूर्वाभास तो नहीं हो रहा। किन्तु मेरा भ्रम, सचमुच एक भ्रम ही था। स्वामी ने स्वयं यह भ्रम तोड़ा।: प्रस्तोता)
मोदी घोषणा या फिर प्राण त्याग
देखो, मई, 2014 से पहले तो केन्द्र की यह सरकार बदलेगी नहीं और ऐसे इतना लम्बा मैं खिंचने वाला नहीं। मैं यह जानता हूँ कि मेरे जीवित रहते यह सरकार कुछ करेगी नहीं। लेकिन फिर मैं सोचता हूँ कि प्राण देना तो मेरा उद्देश्य है नहीं। मेरा उद्देश्य तो गंगाजी है। ऐसे में यही रास्ता देखता हूँ कि यदि प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में मोदी जी घोषणा करें कि उनके नेतृत्व में शासन आया, तो वह गंगाजी पर निर्णय करेंगे; नहीं तो मुझे अपने प्राण त्यागने के अलावा कोई रास्ता नहीं दिखता।
फ्रैंकली स्पिकिंग, यदि कोई मुझे मेरे प्राण लेने का साधन मुहैया करा दे, तो मैं उसका मेरी अम्मा (चाची) से भी ज्यादा आभारी रहूँगा।
(विदित हो कि स्वामी सानंद को प्राण लेने वाले साधन की जरूरत नहीं पड़ी। पुरी के शंकराचार्य के आश्वासन पर स्वामी जी वृंदावन पहुँचे। पुरी शंकराचार्य भाजपा के करीबी माने जाते हैं। उन्होंने स्वामी सानंद को आश्वस्त किया कि यदि भाजपा सत्ता में आई, तो वह गंगा के पक्ष में निर्णय करेगी। पुरी शंकराचार्य के आश्वासन पर स्वामी सानंद ने भरोसा किया। उन्होंने 11 अक्टूबर, 2013 को पुरी शंकराचार्य के हाथों अपना 121 दिन लम्बा अनशन सम्पन्न किया। अनशन सम्पन्न करते हुए स्वामी सानंद ने कहा कि भाजपा के सत्ता में आने के बाद तीन महीने प्रतीक्षा करुँगा। यदि तीन महीने में प्रधानमंत्री ने अनुकूल घोषणा नहीं की, तो अपने निर्णय पर पुनः विचार करुँगा। - प्रस्तोता)
सभी का आभार
यह और कहना चाहता हूँ कि अर्जुन, सन्दीप पाण्डे और सजल.. ये तीन लड़के मेरे सहयोगी रहे; पवित्र भी। अब मैं किसी को वेतन देकर अपने पास नहीं रखना चाहता। हॉस्पिटल (सरकारी अस्पताल, देहरादून) के स्टॉफ...नर्स वगैरह ने मेरा पूरा ख्याल रखा। उन्हें भी दिल से आभार देना चाहूँगा।
साधु समाज से विशेष अपेक्षा
अन्त में यही कहूँगा कि जिम्मेदारी सिर्फ सामाजिक संस्थाओं या वैज्ञानिकों की नहीं है। सरकार, तीर्थयात्री, वैज्ञानिक और गंगा पर काम करने वाली तथाकथित संस्थाओं को गंगा की वाकई में चिन्ता करनी चाहिए। जिन्हें गंगा की सबसे ज्यादा जरूरत है, उन साधु सन्तों को करनी चाहिए। नहीं करने के सबसे पहले दोषी साधु-सन्त ही हैं।
(इस 21वाँ कथन के साथ स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद शृंखला सम्पन्न हुई। गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान के वर्तमान अध्यक्ष कुमार प्रशांत जी ने इसे लेखमाला कहा। प्रस्तोता ने इसे सचमुच एक ऐसी पाठमाला के रूप में पाया, जिसे पढ़कर यह समझा जा सकता है कि एक व्यक्ति संकल्पित हो जाये, तो क्या कर सकता है; यह भी एक व्यक्ति के संकल्प का सहयोग और विरोध किस हद तक हो सकता है। इस पाठमाला से धर्मक्षेत्र और राज्यक्षेत्र की सत्ताओं का वर्तमान चरित्र भी कुछ-कुछ समझा जा सकता है। जो पाठक और प्रकाशक इस संवाद यात्रा में साथी बने; जिन्होंने अपनी प्रतिक्रियाओं से अपनी संवेदना और सुझाव साझा किये; संवाद पढ़कर जिन्होंने गंगा कार्य करने का कोई संकल्प मन-ही-मन तय किया; कुछ मित्रों ने इस संवाद को पुस्तकाकार देने का सुझाव भी दिया; उन सभी का प्रस्तोता हृदय से आभारी है।)
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स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद शृंखला : एक परिचय
‘गंगा कोई नैचुरल फ्लो नहीं’ : स्वामी सानंद
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अविवाहित सानंद की पारिवारिक दृष्टि
आपका
अरुण तिवारी
146, सुंदर ब्लॉक, शकरपुर, दिल्ली-92
ईमेल : amethiarun@gmail.com
फोन : 09868793799
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