मध्य प्रदेश, बरसात और बाँधों के बीच उभरते सवाल

ओंकारेश्वर बाँध
ओंकारेश्वर बाँध
ओंकारेश्वर बाँध (फोटो साभार - इण्डिया डब्ल्यूआरआईएस)बाँधों के मामले में मध्य प्रदेश समृद्ध राज्य है। मध्य प्रदेश राज्य में पूर्ण हुए बाँधों की संख्या 909 है। देश में उसका स्थान दूसरा है। उल्लेखनीय है कि देश में सबसे अधिक बाँध (1845) महाराष्ट्र में हैं। तीसरे नम्बर पर गुजरात है।

इस लेख में मध्य प्रदेश के 909 बाँधों के स्थान पर केवल 241 प्रमुख बाँधों के जल भराव और उससे जुड़े कुछ उभरते सवालों की चर्चा की गई है। विदित हो, इन 241 बाँधों में से कुछ बाँध 50 साल से भी पहले के बने हैं तो कुछ बाँधों का निर्माण हाल ही में पूरा हुआ है। कुछ बाँधों के नहरतंत्र के अधूरे होने के बावजूद वे उपलब्ध नहरतंत्र की मदद से अपनी भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं।

मध्य प्रदेश के जल संसाधन विभाग द्वारा बाँधों के भराव पर दैनिक रिपोर्ट प्रकाशित की जाती है। यह रिपोर्ट विभाग की साइट पर उपलब्ध है। इस रिपोर्ट के अनुसार दिनांक 29 सितम्बर, 2018 की स्थिति में प्रदेश के 241 मुख्य बाँधों में से 4.2 प्रतिशत बाँधों का भराव, निर्धारित क्षमता के दस प्रतिशत से भी कम है।

टीकमगढ़ जिले का ग्वालसागर, उज्जैन जिले का अरनिया, धार जिले का बगेरी, कटनी जिले का अमेडी, ग्वालियर जिले के अलापुर में तो पानी के भराव शून्य हैं वहीं नर्मदा नदी पर बने ओंकारेश्वर बाँध में पानी के भराव का स्तर निम्नतम स्तर (एल.एस.एल) के भी नीचे है।

बाँधों की दैनिक रिपोर्ट बताती है कि 13 बाँधों (5.4 प्रतिशत) का कुल भराव, सकल क्षमता के 10 से 25 प्रतिशत के बीच है। प्रदेश के 47 बाँधों में जल भराव 25 से 50 प्रतिशत के बीच है। वहीं 75 से 90 प्रतिशत भरने वाले बाँधों की संख्या 21 है। इस मानसून सीजन में मध्य प्रदेश के 90 प्रतिशत से अधिक भरने वाले बाँधों की संख्या 119 (49.4 प्रतिशत) है। शत-प्रतिशत भरने वाले बाँध, जो प्रदेश के विभिन्न जिलों में स्थित हैं, की संख्या 87 (40.6 प्रतिशत) है।

इस साल नर्मदा पर बने बाँध यथा बरगी, इंदिरा सागर और ओंकारेश्वर तथा सरदार सरोवर पूरी तरह नहीं भर सके हैं। सबसे बुरी हालत सरदार सरोवर की है। वह 36 फुट से थोड़ा अधिक खाली है। अब चूँकि बरसात खत्म हो चुकी है इस कारण नर्मदा पर या प्रदेश की अन्य नदियों पर स्थित बाँधों का शत-प्रतिशत भरना सम्भव नहीं है। यह मौजूदा हकीकत है। यही हकीकत कुछ सवाल खड़े करती है।

मध्य प्रदेश से मानसून की बिदाई हो चुकी है इसलिये यदि इस साल की बरसात की मात्रा का जायजा लिया जाये तो पता चलता है कि मध्य प्रदेश के अधिकतर हिस्सों में अच्छी बरसात हुई है। प्रदेश के 52 में से केवल 16 जिले ऐसे हैं जहाँ औसत से 24 प्रतिशत कम पानी बरसा है। ये जिले मुख्यतः नर्मदा नदी की घाटी में स्थित हैं।

बरसात की इस कमी के आधार पर नर्मदा नदी घाटी के बाँधों के कम भरने की बात कही जा रही है। यह सबसे सहज तर्क है। यह तर्क हर साल दोहराया जाता है। आवश्यक है कि अब उसकी सच्चाई को समझने का प्रयास किया जाये।

बाँधों का निर्माण अमूमन बरसात की 75 प्रतिशत निर्भरता के आधार पर किया जाता है। यदि यही पैमाना उनके निर्धारित क्षमता के अनुसार भरने का पैमाना है तो बरसात की मामूली कमी को उनके कम भरने के लिये क्यों जिम्मेदार ठहराया जाता है?

यदि इस पैमाने में खामी है तो उस खामी को ठीक करने के लिये अनुसन्धान किया जाना चाहिए? कारण खोजे जाने चाहिए। पैमाने को ठीक किया जाना चाहिए। पैमाने को ठीक करने से बरसात की मात्रा तथा बाँध के भराव का सम्बन्ध बेहतर तथा अधिक तर्कसंगत हो सकेगा। यदि ऐसा किया जाता है तो वह सर्वहिताय में होगा। उस आधार पर काम करने से साल-दर-साल होने वाली परेशानी से मुक्ति मिलेगी।

दूसरी हकीकत यह है कि हर बाँध सिल्ट से तेजी से पट रहा है। कैचमेंट से आने वाली सिल्ट की मात्रा तथा उसके जलाशय में जमाव को देखकर लगता है कि यह बेहद गम्भीर मामला है। इसके कारण अधिकांश जलाशयों के पेंदे में निर्धारित मानक से अधिक गाद का जमाव हो रहा है। इस कारण हर साल जलाशयों की भराव क्षमता कम हो रही है। उनकी निर्धारित उम्र कम हो रही है। इसलिये प्रश्न यह है कि जब यह हकीकत सबको ज्ञात है तो क्यों उसका इलाज मुख्यधारा में नहीं है। बाँध के कम भरने को क्यों बरसात से जोड़ा जाता है? गाद के मुद्दे को क्यों छुपाया जाता है?

तीसरा सवाल कैचमेंट से आने वाले पानी की मात्रा में आ रही गिरावट से जुड़ा है। उसके अनेक कारण हो सकते हैं पर उन कारणों का मालूम होना आवश्यक है। वह जानकारी ही रन-आफ की मात्रा में सुधार कर सकेगी। मध्य प्रदेश में इस साल क्षमतानुसार नहीं भरे बाँधों की संख्या (154) को देखकर लगता है कि मामला बेहद गम्भीर है। निश्चय ही कैचमेंट का रन-आफ कम हो रहा है।

यदि रन-आफ कम हो रहा है तो बरसा हुआ पानी आखिर कहाँ जा रहा है? यदि वह भूजल भण्डारों को समृद्ध कर रहा है तो कैचमेंट की नदियों की अविरलता कायम रहना चाहिए।? उसकी अवधि में गिरावट नहीं आना चाहिए। पर ऐसा नहीं हो रहा है। आश्चर्यजनक है कि छः बाँध न्यूनतम जलस्तर (एल.एस.एल.) को भी नहीं छू सके। यह निश्चय ही अनदेखी नहीं अपितु अध्ययन का विषय है।

इस साल केरल में हुई बरसात ने भी बाँधों के कमाण्ड पर कुछ सवाल खड़े किये हैं। इस साल का केरल का बरसात का पैटर्न बताता है कि 29 मई को मानसून ने दस्तक दी थी। उसके बाद अगस्त में आई तेज बारिश के कारण कई दिन तक केरल की पेरियार, भारतपुझा, पंपा, और कबानी सहित लगभग सभी नदियाँ अकल्पनीय उफान पर थीं। उस दौरान सिंचाई बाँधों से अतिरिक्त पानी भी छोड़ा गया था। अब उन नदियों का जलस्तर आश्चर्यजनक रूप से गिर रहा है। कछार के जलाशयों के जलस्तर में गिरावट आ गई है। उनके थाले के अनेक कुएँ सूख गए हैं। धरती की सतह भी सूख गई है। केंचुओं का सामूहिक खात्मा हो गया है।

यह बदलाव औसत से अधिक बरसात होने के बावजूद केरल के निचले इलाकों तथा कमाण्ड में देखा जा रहा है। इतनी बरसात के बावजूद कमाण्ड क्यों कर इतना अधिक प्यासा है? यदि यह हाल केरल में हो सकता है तो वह देश के किसी भी हिस्से में सम्भव है। यह ऐसी स्थिति है जो पहले कभी नहीं देखी गई। यह ऐसी स्थिति है जिस पर पहले कभी चर्चा नहीं हुई। इसलिये यह संकेत है जब हमें बरसात और बाँधों के बनते बिगड़ते सम्बन्धों पर ध्यान देना चाहिए। अर्थात अध्ययन करें तथा समाधान खोजें।

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