मछली-पालन ने बदली जीराहेड़ा की तस्वीर

खेतों में मजदूरी या दिल्ली अथवा हरियाणा में मजदूरी कर जीवन-यापन करने वाले भरतपुर जिले के जीराहेड़ा के लोगों की तकदीर व गाँव की तस्वीर मात्र आठ वर्ष में बदल गई। यह सब कुछ सम्भव हुआ मछली-पालन व्यवसाय से। आज जीराहेड़ा गाँव के मछली पालक किसान महंगी गाड़ियों में सफर करते दिख जाएंगे। इतना ही नहीं जीराहेड़ा गाँव दूसरे क्षेत्रों के करीब 150 लोगों को रोजगार भी मुहैया करा रहा है। मछली-पालन से किसानों में आई समृद्धि को देखकर राज्य सरकार इस क्षेत्र में मछली मण्डी भी स्थापित करने जा रही है। बात कोई ज्यादा पुरानी नहीं है। करीब 8 वर्ष पहले जीराहेड़ा के किसानों की एक बैठक हुई जिसमें किसानों ने रोजगार के वैकल्पिक संसाधनों एवं समस्याओं के बारे में चर्चा की। जीराहेड़ा की प्रमुख समस्या यह थी कि गाँव के पास में होकर गुजर रही गुड़गाँव कैनाल के पानी के रिसाव की वजह से सैकड़ों हेक्टेयर जमीन जल प्लावित होकर दलदली बन गई थी जिसका किसानों को लगान भी देना पड़ता था। इस समस्या के समाधान के लिए लुपिन लिमिटेड औद्योगिक घराने की स्वयंसेवी संस्था लुपिन ह्यूमन वेलफेयर एण्ड रिसर्च फाउण्डेशन ने एक कार्ययोजना तैयार की जिसके तहत दलदली भूमि में तालाब खोदकर मछली-पालन का कार्य शुरू कराना शामिल किया गया। इस कार्य में सबसे बड़ी बाधा यह आड़े आ रही थी कि किसानों के पास इतनी राशि नहीं थी कि वे अपना तालाब खोद सकें और न ही उन्हें मछली-पालन का ज्ञान था।

मछली-पालन ने बदली जीराहेड़ा की तस्वीर

मत्स्य विभाग के सहयोग से किसानों को दिलाया प्रशिक्षण


लुपिन संस्था ने मछली-पालन प्रशिक्षण के लिए मात्र 10 युवकों को तैयार किया जिन्हें मत्स्य विकास अभिकरण के सहयोग से प्रशिक्षण दिलाया गया और मत्स्य-पालन शुरू कराने के लिए अनुदान हेतु आवेदन भी तैयार किये। इन किसानों में से आस मोहम्मद नामक युवक ने अपने दलदलीयुक्त खेत में से एक हेक्टेयर में तालाब खुदाया जिसके लिए लुपिन ने सिडबी बैंक से 60 हजार रुपये का ऋण मुहैया कराया। गुड़गाँव कैनाल जमीन से करीब 8 फुट ऊँची होने के कारण पाइप द्वारा साइफन विधि से तालाब में पानी भर दिया तथा मछली-पालन के लिए लुपिन ने अपने मछली बीज उत्पादन केन्द्र से रेहू, कतला एवं मृगल प्रजातियों का बीज मुहैया कराया। आस मोहम्मद को पहली बार ही करीब 30 हजार रुपये का शुद्ध मुनाफा हुआ जिसे देखकर अन्य किसान भी आगे आने लगे।

मछली-पालकों की बढ़ी संख्या


आस मोहम्मद को मछली-पालन से हुए लाभ को देखकर अन्य किसान भी आगे आए जिनकी संख्या बढ़कर 47 तक पहुँच गई जिन्होंने 33.5 हेक्टेयर में तालाब खोदकर मछली-पालन शुरू किया। करीब 6 किसानों ने तो मछली-पालन व्यवसाय के लिए मछली बीज सप्लाई तथा 4 किसानों ने मछलियों को मण्डी तक पहुँचाने का काम शुरू कर दिया। मछली-पालन व्यवसाय में हो रहे लाभ को देखकर मछली-पालकों ने तालाबों को पानी से भरने, मछली निकालने, रखवाली करने के लिए दूसरे क्षेत्रों के श्रमिक रखने प्रारम्भ कर दिए। ऐसे दूसरे क्षेत्रों से आने वाले श्रमिकों की संख्या करीब 150 तक पहुँच गई।

जीराहेड़ा गाँव में मछली-पालन व्यवसाय तेजी से बढ़ने का एक कारण यह भी है कि गाँव हरियाणा राज्य की सीमा पर होने के कारण मछली उत्पादकों को मछली विक्रय में कोई परेशानी नहीं आती क्योंकि गाँव के नजदीक ही हरियाणा व दिल्ली का विस्तृत बाजार है जहाँ मछलियों की पूरे वर्ष माँग बनी रहती है। दूसरा कारण यह है कि मछली-पालन के लिए बनाए गए तालाबों को पानी से भरने के लिए अतिरिक्त संसाधन नहीं जुटाने पड़ते बल्कि गुडगाँव कैनाल में पाइप डालकर साइफन विधि से इन्हें आसानी से भरा जा सकता है। गुडगाँव कैनाल में पूरे वर्ष पानी की आवक बनी रहती है।

मछली-पालन से ग्रामीणों में आई समृद्धि


जीराहेड़ा गाँव में मछली-पालन से गाँव में प्रतिवर्ष औसतन 40 लाख रुपये की अतिरिक्त आय होने से गाँव का कायाकल्प हो गया। जो मछलीपालक कच्चे मकानों में रहते थे उनके मकान पक्के बन गये तथा मोटरसाइकिल पर चलने वालों ने चार पहिये वाले वाहन खरीद लिये। आज एक जीराहेड़ा जैसे छोटे से गाँव में 14 कारें या अन्य प्रकार के वाहन व 75 मोटरसाइकिलें हैं। ग्रामीणों ने अपने बालकों को बेहतर शिक्षा भी दिलाना शुरू कर दिया है। करीब 16 मछली-पालकों के बालक तो दिल्ली में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं तथा कुछ ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में प्रवेश दिलाया है।

जीराहेड़ा की सफलता को अन्य गांवों ने भी अपनाया


मछली-पालन से जीराहेड़ा में आई समृद्धि को देखकर गुड़गाँव कैनाल के आसपास के घौसिंगा, काकनखोरी, वामनी, नौगाँव, नगला डबोखर, किरावता व नौनेर में करीब 182 तालाब खोदे जा चुके हैं जिनमें मछली-पालन का कार्य चल रहा है। कांमा उपखण्ड क्षेत्र में तेजी से शुरू हुए मछली-पालन के कार्य को देखकर दिल्ली व हरियाणा के मछली खरीददार सीधे इन गाँवों में पहुँचने लगे हैं जिससे मछली-पालकों को मछली विक्रय के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता।

कांमा क्षेत्र बना मछली-पालकों का क्षेत्र


कांमा क्षेत्र आज राजस्थान का तालाबों में मछली उत्पादन का सबसे बड़ा क्षेत्र बन गया है। इसी दृष्टि से राज्य सरकार कांमा में मछली मण्डी स्थापित करने जा रही है जिसका विशेषज्ञों ने अवलोकन भी कर लिया है। मण्डी स्थापित होने के बाद कांमा क्षेत्र की मछलियां हरियाणा व दिल्ली के अलावा देश के दूसरे राज्यों में विक्रय हो सकेंगी। मण्डी में मछली पैकेजिंग, वर्गीकरण व अन्य सुविधाएं विकसित होंगी।

मछली-पालकों को दिया जाता समय पर मार्गदर्शन


जीराहेड़ा एवं आसपास के गांवों के मछली-पालकों को लुपिन संस्था के विशेषज्ञ समय-समय पर मार्गदर्शन प्रदान करते रहे हैं। मछलियों में फैलने वाली प्रमुख बीमारियों की रोकथाम, उत्पादन बढ़ाने की तकनीकों, मछलियों को दिये जाने वाले अतिरिक्त भोजन आदि की जानकारी मछली-पालकों को दी जाती है। संस्था के विशेषज्ञ मछली-पालकों को अधिक उत्पादन लेने, पानी के साथ बहकर आने वाली देशी मछलियों को निकालने, विक्रय के लिए बाजार ले जाते समय उनकी पैकेजिंग करने तथा मछली बीज डालने का समय, तालाबों की सफाई आदि का प्रशिक्षण भी देते हैं।

तालाबों में रोग फैलने से मछलियों की मौत होनी शुरू हो जाती है तो लुपिन संस्था ऐसे तालाब से मरी हुई मछलियों एवं पानी के नमूनों की जांच के लिए केन्द्रीय मछली-पालन अनुसन्धान केन्द्र मुम्बई भी भेजती है ताकि रोगों की वास्तविकता का पता चल सके और रोग का समय पर इलाज किया जा सके। जब कभी मछलियों में फैलने वाले रोग की स्थानीय स्तर पर रोकथाम नहीं होती है तो जयपुर अथवा दिल्ली से विशेषज्ञों की सेवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। तालाबों में ऑक्सीजन की पर्याप्त उपलब्धता के लिए ऑक्सीलेटर भी लगवाए जा रहे हैं।

समन्वित मछली-पालन आयवृद्धि में सहायक


विश्व के अन्य भागों की तरह ग्लोबल वार्मिंग की वजह से पर्यावरण में आ रहे बदलाव एवं अनियमित वर्षा के कारण किसानों को अब सामान्य खेती के स्थान पर जीराहेड़ा गाँव के कृषकों की तरह कृषि आधारित अन्य वैकल्पिक कार्य शुरू करने होंगे ताकि कम लागत में उन्हें अधिक लाभ मिल सके और उनका आर्थिक स्तर ऊँचा उठ सके। मछली-पालकों को मछली-पालन से वर्ष भर में एक बार आय होती है। इसलिए वर्ष भर आय के लिए मछली-पालन के साथ-साथ मुर्गी-पालन, भैंस-पालन, बत्तख-पालन व बागवानी करने पर जोर दिया जाता है। जीराहेड़ा, वामनी व नौनेरा के 16 मछली-पालकों ने मछली-पालन के साथ मुर्गी-पालन, भैंस-पालन का व्यवसाय शुरू किया है। मछली-पालन के साथ मुर्गी-पालन व भैंस-पालन करने से सबसे बड़ा लाभ यह है कि मुर्गियों की बीट व भैंसों के गोबर का उपयोग मछलियों को वैकल्पिक भोजन उपलब्ध कराने में किया जा सकता है जिससे मछलियों को दिए जाने वाले अतिरिक्त भोजन पर खर्च की जाने वाली राशि में कमी आ जाती है। इसके साथ ही मुर्गी-पालन एवं भैंस-पालन ऐसे व्यवसाय हैं जिनके उत्पादों के विक्रय में कोई समस्या नहीं आती है। मछली-पालन का अधिकांश कार्य मेव मुसलमान समाज के लोगों ने शुरू किया है जिससे उन्हें समन्वित मछली-पालन के अन्य कार्य शुरू करने में कोई विशेष परेशानी नहीं होती।

भरतपुर जिले के तालाबों में होने लगा मछली-पालन


कांमा क्षेत्र के मछली-पालकों में आई समृद्धि को देखकर भरतपुर जिले के लगभग सभी गांवों में पशु पेयजल के लिए बने 3 हजार 154 ग्रामीण तालाबों में से करीब 346 तालाबों में भी मछली-पालन का काम शुरू हो गया। इन तालाबों में होने वाले मछली-पालन का राजस्व ग्राम पंचायतों को मिलने की वजह से ग्राम पंचायतों की आर्थिक स्थिति में सुधार आया है।

भरतपुर जिले में होने वाले मछली-पालन के कार्य के लिए पश्चिम बंगाल से मछली बीज मंगाया जाता था जो अधिक महंगा एवं रास्ते में खराब हो जाने की वजह से लुपिन ने राजस्थान सरकार एवं भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सहयोग से भरतपुर के पास मछली बीज उत्पादन केन्द्र स्थापित किया जिसमें उत्पादित मछली बीज किसानों को निर्धारित दर पर उपलब्ध कराया जा रहा है।

विश्व के अन्य भागों की तरह ग्लोबल वार्मिंग की वजह से पर्यावरण में आ रहे बदलाव एवं अनियमित वर्षा के कारण किसानों को अब सामान्य खेती के स्थान पर जीराहेड़ा गाँव के कृषकों की तरह कृषि आधारित अन्य वैकल्पिक कार्य शुरू करने होंगे ताकि कम लागत में उन्हें अधिक लाभ मिल सके और उनका आर्थिक स्तर ऊँचा उठ सके।

(लेखक लुपिन ह्यूमन वेलफेयर और रिसर्च फाउण्डेशन में अधिशासी निदेशक हैं।)
ई-मेल : sitaraingupta10@gmail.com

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