मौत का कचरा


खराब बात यह है कि शहरी स्थानीय निकाय नामित साइटों पर कचरे का निपटान करते हैं और उनके कचरा प्रसंस्करण यंत्र ठीक से काम नहीं कर रहे। राज्य में हर रोज करीब 3100 से 3350 किलो मेडिकल कचरा विभिन्न स्वास्थ्य संस्थानों से पैदा होता है जिनमें निजी अस्पताल भी शामिल हैं। बायोड्रिग्रेडेबल, रीसाइक्लेबल या निष्क्रिय कचरे का कोई सही रिकॉर्ड ही नहीं है। कुल्लू, मनाली, चंबा, बिलासपुर, शिमला जिले के रोहडू और रामपुर, पावंटा साहिब और सोलन जिले के परवाणू के शहरी स्थानीय निकाय तो नदियों के किनारे ही ठोस कचरे का निपटान कर रहे हैं।

अपने पहाड़ों, नदियों और आबोहवा के बूते देश-दुनिया के सैलानियों को अपने यहाँ आकर्षित करने वाला हिमाचल धीरे-धीरे एक खतरनाक स्थिति की ओर बढ़ रहा है। मेडिकल और दूसरे ठोस कचरे को लेकर सरकार की लापरवाही आने वाले सालों में हिमाचल के लिये एक गम्भीर खतरा पैदा कर रही है। यह कचरा धड़ल्ले से नदियों के किनारे और पहाड़ियों में फेंका जा रहा है या खुले में जलाया जा रहा है। और-तो-और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद हिमाचल में अभी ठोस अपशिष्ट प्रसंस्करण संयंत्र जरूरत के हिसाब से स्थापित नहीं किये गए हैं।

इस खतरे को देखते हुए पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने भी सरकार से जवाबतलबी की थी। कोर्ट ने सरकार से जानना चाहा था कि इन्दिरा गाँधी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, शिमला और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, कांगड़ा में टांडा के मेडिकल कचरे को जलाने पर उसका क्या कहना है और ऐसा क्यों हो रहा है। दरअसल कोर्ट ने सू-मोटो के तहत सरकार से यह जवाबतलबी की थी जिसमें भर्याल इलाके में स्थित एक कचरा संयंत्र में इन्दिरा गाँधी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, शिमला के मेडिकल कचरे को खुले में जलाने और इससे आठ स्थानों पर नदियों और पर्यावरण के प्रदूषित होने का मामला उठाया गया था। मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल की खण्डपीठ ने इस मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए सरकार से जवाब माँगा।

उधर हिमाचल में केंटोनमेंट बोर्डों सहित 61 शहरी स्थानीय निकाय हैं, और उनमें से सिर्फ दर्जन भर में कचरा प्रसंस्करण या निपटान की सुविधा है या इसका अभी निर्माण किया जा रहा है। इसमें भी खराब बात यह है कि शेष शहरी स्थानीय निकाय नामित साइटों पर कचरे का निपटान करते हैं और उनके कचरा प्रसंस्करण यंत्र ठीक से काम नहीं कर रहे। राज्य में हर रोज करीब 3100 से 3350 किलो मेडिकल कचरा विभिन्न स्वास्थ्य संस्थानों से पैदा होता है जिनमें निजी अस्पताल भी शामिल हैं। बायोड्रिग्रेडेबल, रीसाइक्लेबल या निष्क्रिय कचरे का कोई सही रिकॉर्ड ही नहीं है। कुल्लू, मनाली, चंबा, बिलासपुर, शिमला जिले के रोहडू और रामपुर, पावंटा साहिब और सोलन जिले के परवाणू के शहरी स्थानीय निकाय तो नदियों के किनारे ही ठोस कचरे का निपटान कर रहे हैं।

प्रदेश में 3000 किलो से ज्यादा हर रोज पैदा होने वाले मेडिकल कचरे के 60 फीसद को जमीन में दबा दिया जाता है और सिर्फ 40 फीसद को ही वैज्ञानिक तरीके से ठिकाने लगाया जाता है। हिमाचल सरकार के अधिकारी भी मानते हैं कि यह खतरे की घंटी है और इसे तत्काल सुधारने की जरूरत है। आँकड़ों पर नजर दौड़ाई जाये तो 2009 में हिमाचल में हर रोज करीब 1280 किलो बायो मेडिकल कचरा पैदा होता था जो 2012 में बढ़कर 2860 किलो हो गया।

सैलानियों के पसन्दीदा स्थल शिमला में ठोस और दूसरे कचरे को लेकर राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) से भी सरकार को लताड़ पड़ चुकी है। पीक पर्यटन सीजन में राजधानी शिमला में हर रोज करीब 95 टन ठोस अपशिष्ट पैदा होता है जबकि ऑफ-सीजन इसकी मिकदार करीब 72-73 टन की होती है। कचरे से ऊर्जा संयंत्र में 100 मेगावाट कचरे का उपयोग करने की क्षमता है, जो 1.7 मेगावाट से दो मेगावाट बिजली पैदा करने के लिये है। 2016 में मीडिया में आई रिपोर्ट के मुताबिक शिमला में एकत्र किये गए प्लास्टिक कचरे को बड़ी तादाद में चंडीगढ़ निपटारे के लिये भेजा जाता है। जिसे बाद में पटियाला और नकोदर में कचरा ड्राइव ईंधन (आरडीएफ) को बिजली संयंत्रों को भेज दिया गया है। इसका कारण यह है कि राज्य में ठोस और मेडिकल कचरे को वैज्ञानिक तरीके से ठिकाने लगाने की सुविधा नाममात्र को है। इसका निर्देश हिमाचल को हरित अधिकरण से ही मिला था।

शिमला में इन्दिरा गाँधी मेडिकल कॉलेज अस्पताल ने एक प्रस्ताव बायो मेडिकल कचरे को ठिकाने लगाने के लिये प्रदेश के पर्यावरण, विज्ञान और टेक्नोलॉजी विभाग को भेजा है जिस पर काम चल रहा है। वन विभाग के महानिदेशक एसएस नेगी, जो पर्यावरण महकमे में विशेष सचिव भी हैं का कहना है कि स्वास्थ्य विभाग का प्रस्ताव मिला है और इस पर कैसे काम हो इसकी रूपरेखा बनाई जा रही है। नेगी ने बताया कि इसके लिये दो करोड़ की राशि उपलब्ध करवाई जाएगी।

कांगड़ा में फोर्टिस अस्पताल की वेबसाइट के मुताबिक इसी साल उसके यहाँ जुलाई में 256.830 किलो (2283.5 लीटर) यलो और 500 बैग (720.400 किलो) रेड जबकि अगस्त में 288.99 किलो (237 लीटर) यलो और 1200 बैग (745.39) किलो) बायो मेडिकल वेस्ट पैदा हुआ। दूसरे निजी अस्पतालों में भी इस तरह के मेडिकल कचरा पैदा होता है।

आईआईएम जम्मू के सन्तोष कुमार और डिपार्टमेंट ऑफ मैनेजमेंट एंड ह्यूमेनीटिज, एनआईटी हमीरपुर के स्पर्श गुप्ता ने हिमाचल को लेकर अपने अध्ययन ‘हेल्थ केयर वेस्ट मैनेजमेंट सिनेरियो - ए केस ऑफ हिमाचल प्रदेश’ में लिखा है कि निजी अस्पतालों में यलो मेडिकल वेस्ट सरकारी के मुकाबले ज्यादा है। उनके मुताबिक इन निजी अस्पतालों को इसको वैज्ञानिक तरीके से ठिकाने लगाने के लिये संयंत्रों को स्थापित करने की जरूरत है ताकि इसके दुष्प्रभावों से बचा जा सके।

 

कचरे से बिजली बनेगी हरियाणा में


हरियाणा में कचरा निस्तारण विद्युत उत्पादन संयंत्र की स्थापना व परिचालन के लिये हरियाणा सरकार वे जेबीएम समूह के मध्य एक समझौता हुआ। परियोजना में जेबीएम समूह कुल 176.87 करोड़ रुपए निवेश करेगा। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि प्रदेश में समेकित ठोस कचरा प्रबन्धन के विकास की दिशा में यह संयंत्र एक नए युग का सूत्रपात है व कचरा निस्तारण विद्युत उत्पादन संयंत्रों की स्थापना को विस्तार दिया जाएगा।


मुख्यमंत्री ने बताया कि हरियाणा में कचरे के निस्तारण की दिशा में कलस्टर आधारित स्थापित किये जाने वाले 14 कचरा निस्तारण संयंत्रों में वेस्ट टू एनर्जी आधारित 4 संयंत्र व वेस्ट टू कम्पोस्ट आधारित 10 संयंत्र शामिल हैं। कचरा निस्तारण विद्युत उत्पादन संयंत्र के लिये हरियाणा सरकार ने 18.5 एकड़ भूमि उपलब्ध कराई है। यह संयंत्र प्रतिदिन 500 टन कचरा का निस्तारण व 5 मेगावाट विद्युत उत्पादन भी करेगा। यह संयंत्र सोनीपत कलस्टर में स्थापित किया जा रहा है। कचरा निस्तारण विद्युत उत्पादन संयंत्र में सोनीपत, गन्नौर, समालखा व पानीपत क्षेत्रों के कचरे का समुचित रूप से निस्तारण किया जाएगा। परियोजना में क्षेत्रों से घर-घर से कूड़े-कचरे का उठान, ढुलाई, कचरा निस्तारण विद्युत उत्पादन संयंत्र की स्थापना व परिचालन शामिल है।


हरियाणा की शहरी स्थानीय निकाय मंत्री कविता जैन इस कचरा निस्तारण विद्युत उत्पादन संयंत्र के निश्चित समयावधि में प्रारम्भ होने की अपेक्षा करते हुए ठोस कचरा प्रबन्धन के साथ तरल कचरा प्रबन्धन की आवश्यकता पर बल दिया।

 

 

स्वच्छता में शिमला 27वाँ स्थान


केन्द्र सरकार के सर्वे में हिमाचल की राजधानी शिमला की स्वच्छता के मामले में 47वीं रैंकिंग है। इससे पिछले सर्वे में शिमला वैसे 27वें स्थान पर था। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनाने के बाद स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत 2014 में हुई और इसमें सफाई पर विशेष ध्यान दिया गया। साल 2015 में मंत्रालय की ओर से किये गए सर्वे में शिमला शहर 90वें पायदान में रहा था। शिमला के अलावा हिमाचल के तीसरे बड़े पर्यटन स्थल कुल्लू का नई सूची में 259वाँ स्थान है। यह सर्वे शहर में रहने वाले लोगों के फीडबैक, मंत्रालय की विशेषज्ञ टीम की रिपोर्ट और ठोस कचरा प्रबन्धन के आधार पर किया जाता है। शिमला शहर उत्तर भारत के दो से 10 लाख की आबादी वाले 34 शहरों में अव्वल है हालांकि सभी 144 शहरों में शिमला चौथे स्थान पर है। शिमला नगर निगम की नई अध्यक्ष (मेयर) कुसुम सदरेट ने तहलका के पूछने पर बताया कि इस पर्यटन स्थल को सुन्दर और साफ बनाने के लिये नई योजनाओं की रूपरेखा तैयार की जा रही है और एकाध साल में शहर को दोबारा ऊँची रैंकिंग पर लाया जाएगा। सदरेट का कहना है कि हमारी कोशिश शिमला को पहले दस पायदान तक लाने की है और इसके लिये लोगों में जागरूकता पर जोर दिया जा रहा है। स्वच्छता एप और स्वच्छता हेल्पलाइन कुछ महीने पहले शुरू किये गए हैं और इसका अच्छा असर होने की उम्मीद है।

 


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