मौसमी कारक

एक अन्य महत्वपूर्ण कार्य वर्षा जल द्वारा यह किया जाता है कि समुद्री पानी द्वारा वाष्पीकरण द्वारा जो नमक की परत मैंग्रोव के उगने वाली भूमि पर जम जाती है उसे हटाकर भूमि को पौधों के उगने योग्य बनाता है।

मैंग्रोव के बारे में आम धारणा यह है कि ये समुद्री तटों की काली बदबूदार कीचड़ में उगने वाले पौधे हैं। यह धारणा सही नहीं है क्योंकि मैंग्रोव रेतीली भूमि में तथा चट्टानी सतहों पर भी उग सकते हैं। मैंग्रोव की वृद्धि और विस्तार को नियंत्रित करने वाले कारकों में मिट्टी का प्रकार एक महत्वपूर्ण कारक है। स्थान के साथ-साथ मिट्टी के प्रकार तथा खारेपन में अन्तर पाया जाता है। इसलिये विश्व के अलग-अलग भागों में मैंग्रोव प्रजातियों के अलग-अलग प्रकार पाये जाते हैं।

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में ज्वालामुखीय मिट्टी है परन्तु उसमें भी पौधे उग जाते हैं। पिचवरम के मैंग्रोव पौधे जिस मिट्टी में उगते हैं उसमें बालू तथा चिकनी मिट्टी पायी जाती है। केरल में कोचीन के पश्च जल क्षेत्रों में मिट्टी काली है और इसकी अम्लीयता अधिक है। यहां भी मैंग्रोव बिना किसी खास कठिनाई के उग जाते हैं। सुन्दरवन क्षेत्र में जलोढ़ मिट्टी है जबकि गुजरात के तट पर महीन बालू चिकनी मिट्टी तथा नर्म रेतीले पत्थरों का मिश्रण पाया जाता है। इन दोनों ही स्थानों पर एक बड़े भूभाग पर मैंग्रोव वनस्पतियां उगती हैं।

अलग-अलग स्थानों पर पायी जाने वाली मिट्टी का प्रकार भिन्न-भिन्न हो सकता है। लेकिन खारापन, पोषक तत्वों की मात्रा, पारगम्यता और पानी का निकास आदि कारक मैंग्रोव को सर्वाधिक प्रभावित करते हैं। मैंग्रोव की वृद्धि के लिये तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से 35 डिग्री सेल्सियस तक रहना चाहिये। धरती तथा समुद्र के बीच हवा के तेज तथा बदलते रहने वाले बहाव के कारण वहां तापमान का उतार-चढ़ाव अधिक होता है। जिस भूमि में मैंग्रोव उगते हैं उसमें खारेपन को नियंत्रित करने वाला एक मुख्य कारक वर्षा है। वर्षा के जल से मैंग्रोव जड़ों के आस-पास के समुद्री पानी में नमक की सांद्रता कम हो जाती है। इसीलिए मैंग्रोव उन क्षेत्रों में सर्वाधिक पाये जाते हैं जहां साल भर अच्छी वर्षा होती रहती है।

एक अन्य महत्वपूर्ण कार्य वर्षा जल द्वारा यह किया जाता है कि समुद्री पानी द्वारा वाष्पीकरण द्वारा जो नमक की परत मैंग्रोव के उगने वाली भूमि पर जम जाती है उसे हटाकर भूमि को पौधों के उगने योग्य बनाता है। जिसके परिणामस्वरूप मैंग्रोव की वृद्धि एवं पुनरुज्जीवन क्षमता बढ़ जाती है। मैंग्रोव के वितरण में मृदा संरचना एवं मृदा लवणता नियंत्राक भूमिका निभाती है। मैंग्रोव क्षेत्रों में ज्वार-भाटे की भी एक महत्वपूर्ण भूमिका है।

मनुष्य द्वारा ज्वार-भाटे को नियंत्रित करने के लिये कुछ नहीं किया जा सकता परन्तु मनुष्य के क्रिया-कलापों से वैश्विक तापन और अन्य वृहद स्तरीय जलवायु विक्षोभों के कारण वर्षा के पैटर्न वातावरण में बदलाव आ रहा है जिससे प्रकृति का संतुलन बिगड़ता जा रहा है। उनके दुष्परिणाम आने वाले समय में न केवल पौधों और वनस्पतियों बल्कि स्वयं मनुष्य को भी भुगतने होगें।

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