नेपाल एक लम्बे समय से भारत से उसके पश्चिमी तट पर एक व्यापारिक मार्ग दिये जाने की मांग करता रहा था जिससे पश्चिमी दुनिया से उसका बेहतर सम्पर्क बना रहता। भारत की मान्यता थी कि नेपाल को कोलकाता होते हुये आवाजाही के लिए रास्ता खुला है और इसलिए किसी वैकल्पिक मार्ग की कोई जरूरत नहीं है। भारत का यह भी मानना था कि किसी भी मार्ग-अवरुद्ध देश को एक से ज्यादा रास्ते देने का रिवाज नहीं है। इस समस्या का समाधान हुआ 1996 में जब नेपाल के प्रधानमंत्री मनमोहन अधिकारी भारत यात्रा पर आये।
तभी भारत ने नेपाल को भारत के पश्चिमी तट से आवाजाही की सुविधा प्रदान की। इस समय तक, बताते हैं कि, भारत और नेपाल की बराहक्षेत्र या किसी भी बांध संबंधी कोई भी पारस्परिक वार्ता इसीलिए टूट जाती थी कि नेपाल भारत के पश्चिमी तट पर आवाजाही के लिए रास्ता मांगता था और भारत सरकार इसके लिए राजी नहीं होती थी। सारी वार्ताएं इसी जगह आकर अटक जाती थीं।
इस पश्चिमी रास्ते के बदले में नेपाल ने भारतीय अधिकारियों को कोसी घाटी के अनुसंधान और बराहक्षेत्र बांध के निर्माण के अध्ययन के लिए अपने देश में सुविधायें प्रदान कीं। तब से नेपाल में एक भारतीय टीम इस अध्ययन में लगी हुई है। इसके अलावा नेपाल गंगा-कोसी मार्ग पर एक जल-मार्ग की भी भारत से उम्मीद रखता है जिससे उसका इलाहाबाद-हल्दिया राष्ट्रीय जल-मार्ग संख्या 1 से सीधा सम्पर्क हो जाय। इस समस्या का समाधान भी खोजा जा रहा है और इसका अध्ययन जारी है।
तभी भारत ने नेपाल को भारत के पश्चिमी तट से आवाजाही की सुविधा प्रदान की। इस समय तक, बताते हैं कि, भारत और नेपाल की बराहक्षेत्र या किसी भी बांध संबंधी कोई भी पारस्परिक वार्ता इसीलिए टूट जाती थी कि नेपाल भारत के पश्चिमी तट पर आवाजाही के लिए रास्ता मांगता था और भारत सरकार इसके लिए राजी नहीं होती थी। सारी वार्ताएं इसी जगह आकर अटक जाती थीं।
इस पश्चिमी रास्ते के बदले में नेपाल ने भारतीय अधिकारियों को कोसी घाटी के अनुसंधान और बराहक्षेत्र बांध के निर्माण के अध्ययन के लिए अपने देश में सुविधायें प्रदान कीं। तब से नेपाल में एक भारतीय टीम इस अध्ययन में लगी हुई है। इसके अलावा नेपाल गंगा-कोसी मार्ग पर एक जल-मार्ग की भी भारत से उम्मीद रखता है जिससे उसका इलाहाबाद-हल्दिया राष्ट्रीय जल-मार्ग संख्या 1 से सीधा सम्पर्क हो जाय। इस समस्या का समाधान भी खोजा जा रहा है और इसका अध्ययन जारी है।
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