मानस ताल व कैलाश

कैलाश पर्वत (फोटो साभार: विकिपीडिया)
कैलाश पर्वत (फोटो साभार: विकिपीडिया)
कैलाश पर्वत (फोटो साभार: विकिपीडिया) जो रमणीय है वह पवित्र भी। कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील अल्मोड़ा शहर से 240 मील तथा तिब्बत की राजधानी ल्हासा से 800 मील की दूरी पर स्थित है। पवित्र कैलाश शिखर जिसे तिब्बती भाषा में ‘कागरिंग पोचे’ कहते हैं, अद्भुत सौन्दर्य से पूर्ण प्रकृति का बेदाग नमूना है। यह हमारी उच्चतम आस्थाओं का प्रतीक है। समस्त भव्यता से परिपूर्ण धवल कान्तियुक्त चोटियाँ विशिष्ट आध्यात्मिक वातावरण का सृजन करती हैं। कैलाश का परिक्रमा क्षेत्र लगभग 32 मील का है। इसके चारों ओर 05 बौद्ध मठ (गोम्पा) स्थित हैं। कैलाश पर्वत की चोटी पर बौद्ध मतावलम्बी स्वामी दति दिमचाव व उनके अनुयायी दोजी फेंग्मो (बज्र वाराही) अवस्थित हैं। संस्कृत काव्यों में कैलाश पर्वत समस्त वरदानों के दाता भगवान शिव व माँ पार्वती का आश्रय स्थल, अति पवित्र धाम माना गया है। प्रकृति की परम सौन्दर्य स्थली मानस के दक्षिण में राक्षस ताल स्थित है, इन दोनों सरोवरों में आकर्षक हंसों का निवास इसे अद्भुत चमत्कारिक स्थलों की श्रेणी में स्थापित करता है।

मानसरोवर संसार की पवित्रतम तथा वृहदतम आकर्षक झील है, जिसका वर्णन प्राचीनतम ज्ञात सभ्यताओं द्वारा वर्णित है। यह जिनेवा स्थित झील से शताब्दियों पुरानी व ख्याति प्राप्त है। यह प्रागैतिहासिक काल से ही पवित्र मानी गयी है और 4000 वर्ष पश्चात भी इसकी पवित्रता अद्यतन यथावत है।

आलीशान धवल पर्वत शिखरों के मध्य स्थित नितान्त शान्त विस्तृत व विशुद्ध झील मरक मणि के समान शोभायमान है। झील के उत्तर में कैलाश दक्षिण में गुरलामान्धाता पर्वत शिखर खड़े हैं और यहीं स्थित है- राक्षसताल (रावण-हृद) संध्याकालीन सूर्य का प्रकाश पर्वतों के वक्ष से परावर्तित होकर इस पूरे क्षेत्र का मंजर सुनहरी सुखमय आभा बिखेरता एक मृग मरीचिका सी उत्पन्न करता है। इन पर्वतों का प्रतिबिम्ब झील की शान्त सतह पर अम्बर मणि के स्तम्भ का सा प्रतीत होता है। स्वयं में रहस्यमय, जादुई सौन्दर्य से भरपूर उगते सूरज या चन्द्रमा के प्रकाश में नैसर्गिक छवि प्रस्फुटित करता है। आध्यात्मिक दृष्टि से झील की तरंग एक भटकते हुए बेचैन मन मस्तिष्क को निर्मल शान्ति प्रदानकर गहन निद्रा के आगोश में पहुँचाने की क्षमता रखती है।

तिब्बत के पठार में स्थित मानसरोवर परिसर लगभग पालने की आकृति वाला, समुद्र सतह से 14950 फीट की ऊँचाई में 54 मील परिधि व 300 फीट गहरी कुल 200 वर्गमील क्षेत्र को समेटे हुए है। इसके पवित्र तट पर 08 बौद्ध मठ हैं, जिनमें बौद्ध भिक्षु आजीवन आत्मा की शान्ति, पवित्रता एवं निर्वाण प्राप्ति हेतु तपस्यारत हैं।

झील के विविध स्वरूपों को जानने समझने के लिये कम-से-कम एक वर्ष की समयावधि इसके परिसर में व्यतीत करनी आवश्यक है, जिन्होंने इस क्षेत्र की आकस्मिक यात्रा भी न की हो, उनके लिये इसे समझना असम्भव नहीं तो दुरूह अवश्य है। वर्ष के विविध मौसमों में इस झील में विविध सौन्दर्य प्रकट होता है। झील का सर्वोत्तम आलीशान एवं रोमांचकारी स्वरूप जाड़ों में परिलक्षित होता है, जब सम्पूर्ण झील जमकर कठोर बन जाती है। पुनः बसन्त ऋतु के आगमन पर पिघलकर नीली आभामयी जलराशि में परिवर्तित होती है। इसका जादुई रंग कलाकारों, कवियों को प्रेरणा देता है। सूर्यास्त एवं सूर्योदय का समय यहाँ नैसर्गिक सौन्दर्य का प्रतीक है। कैलाश पर्वत के चारों ओर अति विशिष्ट सौन्दर्य व परम आकर्षण यत्र-तत्र विद्यमान है। इसके शिखर की अप्रतिम मनोहारी आभा प्रति क्षण, प्रतिपल परिवर्तनीय है।

मानसरोवर झील की यह विशेषता है कि इसके तटीय क्षेत्रों के पास उच्च तरंग उद्वेलित होने के बाद भी मध्य भाग की जलराशि सदैव स्थिर व शान्त रहती है। इसमें कैलाश पर्वत के उज्जवल धवल शिखर को उत्तर में तथा मान्धाता शिखर को दक्षिण में प्रतिबिम्बित करते हुए देखा जाता है। चन्द्रमा युक्त मध्य रात्रि का दृश्य दुर्लभ व अविस्मरणीय होता है। सूर्यास्त के कैलाश का उत्तरी भाग का दृश्य एकाएक झलझला उठता है, जो दर्शकों में जादुई सम्मोहन पैदा कर उन्हें तन्द्रामय कर देता है। चेतना लौटने पर उसे केवल चाँदी के समान सफेद पर्वत दिखाई पड़ते हैं। कभी-कभी मान्धाता क्षेत्र भयानक ज्वालानुमा प्रकाश स्तम्भों से भर जाता है। गतिशील प्रकाश स्तम्भों से पश्चिमी क्षेत्र में धुन्ध प्रतीत होती है। यह दृश्य अल्पावधि में ही लुप्त होकर अन्धेरे की खोह में गुम हो जाता है। यदा-कदा सूर्यास्त की अवशेष किरणमालाएँ बर्फ को रंगीन बनाकर सुखद व लुभावना परिदृश्य प्रस्तुत करती हैं।

अनेक अवसरों पर सम्पूर्ण कैलाश क्षेत्र बर्फ की मोटी सफेद चादर से ढक जाता है। ऐसे में तम्बू, मकान, जमीन, झील, गड्ढे व झाड़ियाँ सब एकाकार हो जाती हैं। चाँदनी रात में कैलाश की शोभा का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है। सम्भवतया तिब्बत में चाँद की रोशनी की प्रबलता किसी भी अन्य क्षेत्र से कहीं अधिक है। दिन का समय क्षण-क्षण परिवर्तनशील है। तीक्ष्ण धूप के अगले ही क्षण ओलावृष्टि या बर्फबारी सम्भव है। झपकी लेते ही नीले आसमान में चमकता सूर्य दिखाई देता है। इसलिये कैलाश के बारे में लिखा गया-

‘मानसरोवर कौन परसे बिन बादल हिम बरसे’

कैलाश मानसरोवर क्षेत्र कवि या चित्रकार, भौतिकविद, रसायनज्ञ, जीव या वनस्पति विज्ञानी, भूगर्भ या मौसम विज्ञानी, इतिहासकार या भूगोलविद, खिलाड़ी या शिकारी, स्केटर या नाविक या सन्यासी, सबका ध्यान बराबर आकर्षित कर लेता है।

मानसरोवर का पिघलना- पूर्व सूचना

मानसरोवर झील के जमने की घटना की तुलना में बर्फ का टूटकर पिघलना एवं नीले जल में परिवर्तित होना एक मिश्रित आह्लादकारी दृश्य है। मध्य भाग की बर्फ पिघलने से एक माह पूर्व झील के दक्षिण एवं पश्चिम तटों पर दिग्सो और टे के मुहाने पर बर्फ पिघलकर नीले सुन्दर जल प्रान्त का निर्माण होता है, जिसकी चौड़ाई 100 गज या आधा मील हो सकती है। झील के मध्य क्षेत्र में सफेद दूधिया रंग के विशाल वस्त्र की भाँति बर्फ जमी रहती है। तटीय जल क्षेत्रों में यत्र-तत्र मानसरोवर के स्वर्णिम हंसों के जोड़े जल झकोरे लगाते परिलक्षित होते हैं। प्रातः कालीन दृश्यों में हंसों के झुण्ड सूर्योदय की दिशा में मुँह करके अधखुली व बन्द आँखों में ध्यानमग्न मुद्रा में प्रतीत होते हैं। ध्यान की यह गम्भीर मुद्रा कृत्रिम उपासना से कहीं अधिक प्रभावित करने वाली प्रतीत होती है। कुछ समय उपरान्त खुली धूप में बतखों का सूर्य स्नान आरम्भ होता है। यह दृश्य अत्यन्त रोमांचकारी नजर आता है। यदा-कदा बतखों का समूह बर्फ के तैरते कठोर पिण्डों पर भी उतरता देखा जा सकता है। इन्हीं प्राकृतिक दृश्यों के अवलोकनार्थ हमारे पूर्वज व मनीषियों द्वारा प्रकृति माँ का सानिध्य युगों से किया जाता रहा है।

झील के मध्य क्षेत्र में जमी बर्फ टूटने के 11 दिन पूर्व प्रातः 6 से 10 बजे के मध्य तीव्र विघटनात्मक प्रक्रिया परिलक्षित हुई। अनेक शेर व चीतों की दहाड़, हाथियों की चिंघाड़, डाइनामाइट के विस्फोट की ध्वनि, तोपों की गर्जना की तीव्र ध्वनियों के साथ नाना प्रकार के वाद्य यंत्रों की ध्वनियाँ, जानवरों की चिल्लाहट भरी आवाजें सुनाई पड़ीं सम्भवतः ये आवाजें और उथल-पुथल बर्फ की मोटी-मोटी पर्तों में विभाजन तथा सूक्ष्म पर्तों में निर्मित दरारों के बनने से पैदा होती हैं। मुख्य व मोटी पर्तों के मध्य की दरारें 50 से 80 फीट विस्तृत, जिनके मध्य नीला पानी भर जाता है। इस समय यत्र-तत्र बिखरे शैल व हिमखण्ड विस्तृत सफेद बंगाली साड़ियों के समान मध्य व किनारों में बिखर जाता है।

जलवायु

ग्रीष्म ऋतु में खुले आसमान में चमकती धूप में तीव्र उष्णता परन्तु बादलों के घिरते ही वातावरण में अत्यधिक ठण्ड व्याप्त हो जाती है। यात्रा के दौरान (जुलाई-अगस्त में) में कैलाश व मान्धाता की पर्वत चोटियाँ बादलों की ओढ़नी में यात्रियों के साथ लुकाछिपी का खेल खेलती हैं। बादलों की उपस्थिति में अत्यधिक शीत रहती है। नवम्बर से मई के मध्य तूफानी हवाएँ चला करती हैं। मयूर नृत्य के समान मौसम की दशा परिवर्तनशील रहती है। तेज धूप में आप पसीना-पसीना होते हैं तो क्षण भर पश्चात शीत हवाएँ बहने लगती है अगले ही क्षण मेघों से गरजते आसमान में बिजली कड़कने लगती है साथ ही हिमकण लिये वर्षा की फुहारें पड़ने लगती हैं। अगले ही पल ओले व बर्फबारी हो सकती है। क्षणभर में सतरंगी इन्द्रधनुष आसमान में अठखेलियाँ खेलने लगता है। यह सब रोमांचित करने वाले नजारे यहाँ अनुभव किये जा सकते हैं...। उगते सूर्य से झील में पिघले सोने की बारिश होती प्रतीत होती है और यह अद्वितीय सौन्दर्य दर्शकों को अभिभूत कर देता है...। वायु में विरलता के साथ-साथ प्राण-वायु की निरन्तर कमी यहाँ अनुभव की जाती है, जिससे मस्तिष्क क्रिया प्रणाली प्रभावित होती है। सूक्ष्मग्राही संवेदनाओं में ह्रास तथा स्वभाव में चिड़चिड़ापन आने लगता है। इसलिये दस हजार फीट से अधिक ऊँचाई में यात्रा के दौरान यात्रियों को आत्मनियंत्रण रखना चाहिए। अतः गर्ब्यांग से ऊपर की यात्रा पर यात्रीदल के सदस्यों को स्मरण रखना चाहिए कि यदि कोई सदस्य आत्मनियंत्रण खोता है तो दूसरों को सामान्य रहना चाहिए। एक-दूसरे की पसन्द-नापसन्द का ध्यान रखते हुए यात्रा को आनन्दमय बनाना चाहिए।

पर्वत यात्राओं से लाभ

पर्वतारोहण अनावश्यक चर्बी को कम कर व्यक्ति को सुडौल, सुन्दर व स्वस्थ बनाता है। शरीर को दवाइयों से मुक्ति प्रदान करता है। परिवहन तंत्र, तंत्रिका तंत्र एवं अन्तःस्रावी तंत्र को प्रवाह में बनाता है। हृदय व फेफड़ों को सुदृढ़ व शक्तिशाली बनाता है। मस्तिष्क को प्रफुल्लित व ताजा रखता है। असमय बुढ़ापे को दूर कर देता है।

पर्वत यात्रा से लौटने के बाद व्यक्ति नया जीवन महसूस करता है। दोगुनी शक्ति व स्फूर्ति से अपने काम में लग जाता है। इसलिये व्यस्ततम व्यवसायी को भी सामान्यतः वर्ष में अवश्य अवकाश लेकर एक माह की यात्रा पर्वतों की करनी चाहिए। स्थान, समय, काम को घर में त्यागकर एक बार इस सुखद अनुभव को लेना चाहिए। तब आप स्वयं ही महसूस करेंगे कि पहाड़ों की यात्रा कितनी लाभकारी व सुखमय है। आप निश्चित ही सोचेंगे कि इस यात्रा हेतु मैंने विलम्ब किया था।

यूरोपीय मन मस्तिष्क पर कैलाश की प्रभाव प्रतिक्रिया पर स्वेन हैडन की ट्रांस हिमालया में लिखी कुछ पंक्तियों का यहाँ पर उल्लेख सर्वथा प्रासंगिक होगा-

“अजनबी, कैलाश पर्वत को भयमिश्रित श्रद्धा से आत्मसात व अवलोकन करता है। माउण्ट एवरेस्ट व माउण्ट ब्लैक इसकी बराबरी नहीं करते। मानसरोवर परम शान्ति का पवित्रतम धाम है।” झील मानस के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए, दुनिया की किसी भी भाषा में पर्याप्त शब्दकोष व शब्दावली नहीं है। मैं स्वयं इसके निश्छल सौन्दर्य के छल में छला गया हूँ। आँखों के आगे फैला अपार सौन्दर्य कल्पनालोक का एहसास कराता है। उसके तट पर खड़ा मैं अपने को अन्तरिक्ष के छोर में पाता हूँ। एक स्वप्निल समुद्र यात्रा के मध्य पाता हूँ। इस सौन्दर्य में ठगा हुआ मैं साँस लेना तक भूल जाता हूँ परन्तु स्वयं को इस छल भरे क्षणों में सदैव भुलाये रखना चाहूँगा।

यह स्थल दो विपरीत दिशाओं से उठती हुई तरंगों का अध्यारोपण, मिलन स्थल है, परम शान्त, निर्विकार, निष्कपट, चिरस्थाई, सूक्ष्म संज्ञानी वातावरण जिसमें वायुगति, श्वास गति भी स्थिर प्रतीत होती है। इस अनुभूति के सम्मुख चर्च की सेवा, बारात यात्रा, विजय गान का हर्ष, जीवन की अन्तिम यात्रा आदि मेरे लिये अर्थहीन-प्रभाव हीन है।

आश्चर्य से भरी झील

तुम पुराणों का सार हो, तूफानों की क्रीड़ास्थली हो, तीर्थ यात्रियों की लालसा हो, पवित्रों में पवित्रतम हो और झीलों में महाझील हो। तुम सोमापंग एशिया की नौकास्थली हो, महान चार नदियों गंगा, ब्रह्मपुत्र सतलज, सिन्धु की जन्मस्थली हो, तुम समस्त झील मालाओं में मोती हो, तुम्हारा अस्तित्व वेद-पुराणों से अधिक पुराना है। उम्र ने तुम्हें सफेद कर दिया है। ओह! तुम्हारा सौन्दर्य मेरी बुद्धि क्षमता से परे है। तुम्हारे वर्णन को मेरे पास शब्द नहीं हैं।

मैं मृत्यु तक तुम्हें नहीं भूल पाऊँगा। तुम ही मेरी कविता हो, तुम ही मेरे वेद पुराण हो, तुम ही मेरे गीत हो, मेरे सम्पूर्ण भ्रमणशील जीवन में तुमसे तुलना करने लायक कुछ न पा सका। खुशियों से दमकता सौन्दर्य, प्रकृति के हृदय की धड़कन, सर्वोत्तर सौन्दर्ययुक्त भू परिदृश्य, तुम्हारे सानिध्य में समय सापेक्षित नहीं है। लगता है तुम आभासी हो, अवास्तविक हो, इस पृथ्वी की नहीं हो सकती इसलिये तुम्हारा स्थान पृथ्वी की अन्तिम सीमा स्वर्ग के पास है। यह महाभाग अवास्तविक कल्पना लोक, परियों की विचरण स्थली है। यहाँ पर सब कुछ सांसारिक मनुष्यों की पृथ्वी लोक, दम्भी व पापियों के भूलोक से परे है। मैं सोमापांग, मानस झील को बोझिल मन व दुख के साथ अलविदा कहते हुए तट छोड़ता हूँ।

ऑगस्ट गैन्सर लिखते हैं, “एशियाई आधारभूत आस्था का मुख्य मन्दिर जिसके दर्शन मैंने स्वयं किये हैं, वह एक बर्फ में चमकता हुआ पर्वत है। इसकी समरसता, बनावट व विशिष्ट आकृति कैलाश नाम को सार्थक करती है। यह दुनिया के समस्त पर्वतों में पवित्रतम पर्वत है इसलिये देवताओं की रमणीक राजधानी है।”

इस अद्वितीय पर्वत की निर्द्वन्द्व स्थिति शिवलिंग के आकार की है। इसलिये एशिया भर के महान देवताओं ने इसे राजधानी स्वीकार किया है। यह करोड़ों हिन्दू व बौद्धों का पवित्रतम स्थल ही नहीं भू-वैज्ञानिकों के लिये भी अद्वितीय स्थल है। यह हमारे भू-मण्डल का उच्चस्थ भू-क्षेत्र है, यह भूपिण्ड अभी भी संचयन की स्थिति में है।

आओ चलें दैवीय झील की यात्रा पर

झील की वापसी यात्रा पर्याप्त विश्राम के साथ नियत मार्गों से करनी चाहिए। मानसरोवर क्षेत्र को पर्याप्त समझने के लिये कैलाश पर्वत या मानस तट पर शान्ति से ध्यान लगाना चाहिए। चाहे आप तीर्थ यात्री हों या पर्यटक, आपको यहाँ आकर अनावश्यक जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। तीर्थ यात्री को इस पवित्र तट पर चिन्तन करना चाहिए। समय व स्थान से परे होकर इन बातों पर विचार करना सार्थक है- हमारी इस जीवन रूपी नौका की यात्रा कहाँ से प्रारम्भ हुई? अब हम कहाँ पर हैं? इस यात्रा का उद्देश्य क्या है? इसका अन्तिम लक्ष्य कहाँ है? क्या यह बन्धन में है? इस नाव और इस नाव के खेवनहार के बीच क्या सम्बन्ध है?

उपसंहार

आसमान को छूती तरंगें, अभी-अभी कैलाश व मान्धाता पर्वत को प्रतिबिम्बित करती शान्त नीली चादर, अभी सूर्योदय में स्वर्ण पत्री के समान चमकती, अभी पूर्ण चन्द्रमा में पिघली चाँदी सी धवल, कैलाश व मान्धाता पर्वत को पालने के समान लहरों में झुलाती, अभी-अभी अन्तरिक्ष जैसी शान्त, सुगम्य व अभी-अभी महाप्रलयंकारी तटों से टकराती व भेड़-बकरियों को तूफान में उड़ाती, कभी मृदुल-कोमल तो कभी कठोर पर्वतावली- अनेक रूप वाली मानसरोवर –हजारों जन्म-जन्मान्तर व अनेक भ्रमणों के बाद भी महान सन्त, मानवों के लिये तुम एक अनबुझी पहले हो। तुम्हारे ये विविध रूप हमारी समझ से परे हैं। महान सन्तों तथा सुन्दर स्वर्णिम हंसों की झील मानस, तुम्हें दण्डवत प्रणाम! तुम्हारी जय हो!

(यह आलेख लगभग 60 साल पहले लिखा गया था।)
अनुवाद : हीराबल्लभ भट्ट


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