मैं गंगा हूँ

मैं गंगा हूँ-गंगा मैया,

हाँ, यही तो प्रसिद्ध नाम है मेरा,

भागीरथी, जान्हवी, मंदाकिनी, विष्णुपदी
अन्य कई नाम भी है मेरे,

महाराजा भागीरथ बने थे
भू-लोक पर मेरे अवतरण के कारक,

मैंने ही मोक्ष प्रदान किया था सगर पुत्रों को,

भारत राष्ट्र की आत्मा मुझमें बसती है,

यमुना, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, नर्मदा,
सब मेरे ही तो अंश हैं,

पुण्य सलिला, मैंने सहस्त्राब्दियों से
जन गण की प्यास बुझाई है,

मोक्ष का द्वार भी मुझ से ही खुलता है,

भूमंडल के कोने-कोने से सब आते हैं,

मेरी गोद में, मोक्ष व अमृत की लालसा ले कर,

पाते हैं मेरे आँचल का शीतल स्नेहाशीष,

जो एक माँ ही दे सकती है,

इस भारत- भू में समय-समय पर,

इतिहास को करवट बदलते देखा है मैंने,

बहुतों का राजतिलक होते व,

चक्रवर्ती सम्राटों को भू लुंठित होते भी देखा है,

अनेकों युद्धों से मेरा जल लहू से लाल भी हुआ,

मैं असहाय, स्तब्ध सी देखती रही विनाश लीलाएं,

किन्तु आज, जाने अनजाने मैं अभिशप्त हूँ

प्रदूषण से, तिल-तिल मरने घुटने को विवश हूँ,

अपनी संतान के तिरस्कार के कारण,

आगत बता रहा है कि

अमृत व मोक्ष प्रदान करने वाली मुझ स्वयं का

अमरत्व अब धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है,

विडम्बना! आज संतान ही अपनी माँ को

निर्जीव करने को तत्पर है,

इन्हें ज्ञान नहीं कि फिर कौन करेगा

अमृत वर्षा, स्नेह की शीतल छाया,

शपथ तो सब लेते हैं मेरे नाम की अपने कल्याण हेतु,

किन्तु आज कोई भागीरथ शपथ नहीं लेता

मेरे त्राण के लिए,

मैं विचलित हूँ कि अपनी संतान को

अमृत कैसे दे पाऊंगी,

अपने उद्गम हिमाच्छादित उत्तुंग हिमालय गौमुख,

(जहां शिव ने मुझ सुर सरी के प्रचंड वेग को

धारण किया था पृथ्वी पर अवतरण के समय),

से निकल, पंच प्रयाग व सप्त धाराओं से अमृत बटोर

विशाल भू-भाग को शस्य श्यामल बना सुदीर्घ यात्रा कर,

विश्व की सबसे प्रदूषित नदियों में एक मैं गंगा

सारे प्रदूषण अपने में समाहित कर

मानव कल्याण का संकल्प के साथ

विलीन हो रही हूँ महासागर में अनंत की ओर !

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