मैली होती अलकनंदा


बदरीनाथ धाम के पास ही अल्कापुरी ग्लेशियर से निकली अलकनंदा देश की एकमात्र नदी है जिसमें पंच प्रयाग हैं। चारधाम यात्रा में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की आस्था इससे जुड़ी हुई है और पहाड़वासियों का जीवन। पर अब इस जीवनदायिनी का अस्तित्व संकट में है। उद्गम स्थल में ही इसमें कूड़ा करकट का ढेर लगा है। आगे बढ़ने पर भी इसमें बदरीनाथ सहित राह में पड़ने वाले शहरों की गंदगी मिलती है। इसके बाद इसे परियोजनाओं में कैद किया जा रहा है। अलकनंदा की यह दुर्दशा उस मुख्यमंत्री के राज्य में है जो 'स्पर्श गंगा अभियान' चला रहा है और जिसका ब्रांड एंबेसडर अभिनेत्री से नेत्री बनीं हेमा मालिनी को बनाया गया है।

 

 

 

अलकनंदा में गिरती सीवर लाइन


नदी के किनारे हो रहा खनन
उत्तराखण्ड सरकार 'स्पर्श गंगा अभियान' की आजकल खूब चर्चा और सराहना कर रही है। अभिनेत्री एवं भाजपा नेत्री हेमा मलिनी इसकी ब्रांड एंबेसडर बनायी गई हैं। मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' अपनी सरकार के इस अभियान को लेकर खासे उत्साहित नजर आते हैं। इसका बजट भी खासा बड़ा है। लेकिन नदियों के इस राज्य में गंगा के अलावा अन्य नदियों की स्थिति भी कम दयनीय नहीं है। पर इनके लिए न सरकार के पास कोई अभियान है न ही बजट। बदरीनाथ धाम के पास बहने वाली अलकनंदा की दुर्दशा को देखकर इसे समझा जा सकता है।

अलकनंदा गंगा की प्रमुख सहायक नदी है। उच्च हिमालय के अल्कापुरी ग्लेशियर से निकलने वाली यह नदी भी हिन्दुओं की आस्था से जुड़ी हुई है। इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि इसमें देश के पांचों प्रयाग समाहित होते हैं। कुछ लोग आस्था के इन प्रयागों में जप तप कर अध्यात्म में लीन रहते हैं तो कुछ इन्हें बसुधैव कुडुम्बकम के रूप में देखते हैं।

आस्था के साथ यह नदी लोगों की आजीविका से भी जुड़ी है। पर अब इस नदी का अस्तित्व खतरे में है। बदरीनाथ धाम से कुछ ही दूरी पर अल्कापुरी ग्लेशियर से निकलने वाली अलकनंदा अपने उद्गम स्थान से ही मैली होती जा रही है। हिमालयी क्षेत्रों में लगातार हो रहे मानवीय हस्तक्षेप एवं नदी संरक्षण की झूठी कवायद के कारण नदी का स्वरूप बिगड़ता जा रहा है। यात्राकाल के दौरान होटलों, रेस्टोरेंटों एवं धर्मशालाओं के सीवरों का गंदा पानी श्री बद्रीशपुरी में सीवरेज व्यवस्था न होने के कारण सीधे अलकनंदा नदी में छोड़ा जाता है। यह सब कुछ यहां खुलेआम होता है। यहां के नगर क्षेत्र का पूरा कूड़ा कचरा भी इसी नदी में फेंका जा रहा है। नगर पंचायत बदरीनाथ का काम सिर्फ शहर का कूड़ा उठाकर अलकनंदा नदी के समीप फेंक देना है। उनकी तरफ से नदी प्रदूषित होती है तो हो। दरअसल बद्रीशपुरी स्थित अलकनंदा नदी में बढ़ रहे प्रदूषण की वजहों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। यहां के कई होटलों, लॉजों एवं धर्मशालाओं का गंदा पानी भी खुलेआम नदी में ही डाला जाता है। तप्तकुण्ड में स्नान आदि कर यात्रीगण अपने साथ लाये पॉलीथीन आदि को सीधे अलकनंदा में ही प्रवाहित करते हैं। यही नहीं श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति की ओर से बनाए गए बस अड्डे के नीचे से लेकर जीप टैक्सी स्टैंड तक के पूरे क्षेत्र का कूड़ा भी सीधे अलकनंदा में फेंका जाता है। यूं तो पूरे बद्रीशपुरी में प्रशासन ने पॉलीथीन प्रयोग पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा रखा है पर यह प्रतिबंध बस नाम का है। बिना भय एवं रोकटोक के यात्री यहां पॉलीथीन का प्रयोग कर रहे हैं। वैसे तो सरकार ने यहां निर्माण कार्यों पर भी रोक लगा रखी है पर कपाट खुलने के पहले ही दिन यहां अलकनंदा नदी के किनारे कुछ लोग अवैध तरीके से खनन करते देखे गये।

बताते चलें कि १५ जून २००५ को पंजाब, हरियाणा उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायमूर्ति जब बदरीनाथ दर्शन के लिए पहुंचे तो उन्होंने मंदिर के ठीक सामने सीवर का गंदा पानी सीधे अलकनंदा नदी में गिराये जाने को काफी गंभीरता से लिया। उन्होंने इसका संज्ञान लेते हुए उत्तराखण्ड हाईकोर्ट के रजिस्टार को पत्र लिखा। २३ अगस्त २००५ को रजिस्टार हाईकोर्ट उत्तराखण्ड ने पीआईएल दायर करके जिला प्रशासन चमोली, श्री बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति एवं नगर पंचायत को प्रतिपक्ष बनाया। ३ अक्टूबर २००५ को स्वयं तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश उत्तराखण्ड एस ज़ोसफ हेलीकाप्टर से बदरीनाथ पहुंचे। और सीवर लाइन का निरीक्षण किया। २५ अक्टूबर २००५ को जिला प्रशासन ने गंगा प्रदूषण निर्माण इकाई से बदरीनाथ सीवर ट्रीटमेंट कार्य का एस्टिमेट बनाकर ५३ ़९० लाख की कार्य योजना तैयार की। और तत्कालीन जिला अधिकारी द्वारा ८ नवम्बर २००५ को उच्च न्यायालय में प्रस्तुत होकर इंतजामों एवं व्यवस्थाओं को लेकर काउंटर भी दाखिल किया गया। तब से लेकर आज तक पांच वर्ष गुजर चुके हैं पर बदरीनाथ सीवर ट्रीटमेंट का कार्य पूरा नहीं हो पाया। कार्यदायी विभाग एवं स्थानीय प्रशासन उच्च न्यायालय के आदेशों पर जरा भी गंभीर नहीं दिखता। वरना इस बहुप्रतीक्षित योजना का यह हाल नहीं होता।

गंगा की प्रमुख सहायक नदी अलकनंदा का बद्रीशपुरी में प्रदूषित होने के बाद आगे जाकर और भी बुरा हाल हो जाता है। यहां से महज १० किमी. का सफर तय करने के बाद लामबगड़ नामक स्थान पर पानी के सौदागरों ने इस नदी को सुरंग में कैद कर दिया है। जय प्रकाश कंपनी की ४०० मेगावाट की विष्णुप्रयाग जल विद्युत परियोजना के कारण अलकनंदा को सीधे सुरंग में डाल दिया गया है। इस नदी के कई किमी तक सुरंग में बहने के कारण अब पंच प्रयागों में एक विष्णुप्रयाग का अस्तित्व भी खतरे में है। पाण्डुकेश्वर गांव में तो लोग नदी के सुरंग में जाने से काफी आहत हैं। और तो और शवदाह तक के लिए ग्रामीणों को नदी का पानी नहीं मिलता। उन्हें कपंनी के रहमोकरम पर ही निर्भर रहना पड़ता है। अपने उद्गम स्थल अल्कापुरी बांख से लेकर देवप्रयाग तक के सफर में इस को अलकनंदा नदी कहा जाता है। जो विष्णुप्रयाग में धौली गंगा, नंदप्रयाग में नंदाकिनी, कर्णप्रयाग में पिण्डर और रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी नदी को अपने साथ लेकर आगे बढ़ती है। जैसे-जैसे यह आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे इसकी बदहाली बढ़ती जाती है। एनटीपीसी कंपनी तपोवन विष्णुगाढ़ जल विद्युत परियोजना का निर्माण कर रही है। मानकों को ताक पर रखकर जोशीमठ के ठीक नीचे अणीमठ में अलकनंदा के किनारे जमकर खुदाई की जा रही है। यह निर्माण नदी को मारने का काम कर रही है। आगे फिर अलकनंदा में टी.एच.डी.सी. कंपनी द्वारा विष्णुगाड.पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना का काम जोरों पर किया जा रहा है। यहां अलकनंदा नदी को कई किमी तक सुरंग में ही बहना है। कहीं निर्माण तो कहीं गंदगी अलकनंदा की दशा को बिगाड़ रहे हैं। कर्णप्रयाग में कई स्थानों पर सीवर का गंदा पानी सीधे अलकनंदा में डाला जा रहा है। शहर का कूड़ा-कचरा कर्णप्रयाग शहर के ठीक ऊपर एक खुले स्थान पर डाला जाता है। जहां से यह सारी गंदगी बारिश में अलकनंदा में पहुंच जाती है। यही हाल रुद्रप्रयाग का है। जहां शहर का कूड़ा फेंकने के लिए प्रशासन के पास अलकनंदा नदी के अलावा कोई महफूज जगह नहीं है। आगे इस के श्रीकोट धारी देवी पहुंचने पर फिर इसे रोकने के लिये जी.वी.के. द्वारा श्रीनगर जल विद्युत परियोजना का निर्माण किया जा रहा है। इस निर्माण का असर न सिर्फ अलकनंदा पर पउ़ रहा है बल्कि पौराणिक मंदिर मां धारी देवी के अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगा है। श्रीनगर शहर का अधिंकाश दूषित पानी भी सीधे अलकनंदा में ही प्रवाहित हो रहा है। गौर करने वाली बात यह है कि गंगा एवं उसकी सहायक नदियों को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए कई नदी प्रेमियों एवं स्वयंसेवियों ने गंगोत्री, उत्तरकाशी से लेकर बदरीनाथ धाम तक कई बार अभियान चलाये। पर बदलते परिवेश के साथ उनके अभियान की गति भी बदलती गई। हश्र यह हुआ कि वे अभियान कभी भी जन आंदोलन का रूप नहीं ले पाया। नदियों को स्वच्छ एवं निर्मल बनाने के सभी प्रयास महज उनके तटों पर धरना प्रदर्शन बद्रीशपुरी इसका परिणाम यह निकला कि आज गंगा एवं उसकी सभी सहायक नदियां अपने उदगम से ही मैली हो चली है।

 

 

 

 

 

 

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