लोकरंग पानी के

लोकरंग पानी के,फोटो क्रेडिट-IWP-Flicker
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यह तथ्य समय सिद्ध सत्य है। कि जीवन का मूल आधार जल है। जल जीवन का प्राणदायी रूप लेकर जीवन निर्माण के पाँच तत्वों में से एक हैं। जल प्रकृति की देन है तथा जीवनभाव के लिए अमृत समान है। जल, पानी, नीर आदि अनेकों नामों से असामान्य गुणों के साथ सहज सर्वत्र उपलब्ध है। सामान्य रूप से जल का महत्व उसकी सहज, आसान तथा प्रचुर उपलब्धियाँ हैं। उसकी महत्ता के परिप्रेक्ष्य में हम उसका उपयोग नहीं रोक पाते है। समस्त संसार में अन्य कोई द्रव्य इतनी सहजता तथा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध नहीं है। हमारे वर्तमान तथा भविष्य के लिए भूगर्भ जल का घटना तथा संचय का अपेक्षित रूप से न भरपाना चिंता का विषय है। पानी अगर जरूरत भर बचाया जा सका तो उसका संचयन ही जीवन और धरा के लिए अमृत बनेगा। 'जल नहीं तो कल नहीं का उदघोष लेकर हमें उपलब्धता और जलोपयोग के बीच संतुलन बनाना पड़ेगा। जल के गुणों तथा जरूरत को हर स्तर पर, हर स्रोत में जल भंडार के रूप में भविष्य के लिए बचाये रखने का कार्यान्वयन प्राथमिकता के आधार पर ही संभव होगा। जल और जीवन एक दूसरे का पर्याय हैं। जल का यथा उचित उपयोग अनिवार्य है। यह बात हमारे संकल्प तथा जागरूकता की मांग करती है।

"पानी तो मनुष्य ही नहीं पृथ्वी के हर जीव के लिए आवश्यक है। पेड़, धरती, पक्षी, मनुष्य तथा अन्य जीव सभी के जीवन का आधार जल है। पानी न सिर्फ जन-जीवन की जरूरत पूरी करता है, यह विश्वास जनमानस में भी चला आ रहा है कि जिस स्थान पर पानी हल्का तथा पाचन के लिए गुणों से पूर्ण होगा वहीं खुशहाली होगी। वहीं फसलें अच्छी होंगी। हरियाली, खुशहाली का आधार होती है। पानी शरीर के अवयवों के संतुलन को बनाता व बिगाड़ता है।"

 पानी तो मनुष्य ही नहीं पृथ्वी के हर जीव के लिए आवश्यक है। पेड़, धरती, पक्षी, मनुष्य तथा अन्य जीव सभी के जीवन का आधार जल है पानी न सिर्फ जन-जीवन की जरूरत पूरी करता है, यह विश्वास जनमानस में भी चला आ रहा है कि जिस स्थान पर पानी हल्का तथा पाचन के लिए गुणों से पूर्ण होगा वहीं खुशहाली होगी। वहीं फसलें अच्छी होंगी। हरियाली, खुशहाली का आधार होती है। पानी शरीर के अवयवों के संतुलन को बनाता व बिगाड़ता है पानी वैज्ञानिक रूप से दो तत्वों का योग है। जिसे H2 O रूप में देखा जाता है। यह दो भाग हाइड्रोजन तथा एक भाग आक्सीजन से बना है। डॉ. अल्बर्ट जो नोबल पुरस्कार विजेता हैं, वह पानी को जीवन की उत्पत्ति का माध्यम बताते हैं। पानी में ही जीवन उत्पन्न तथा विकसित होता है। मनुष्य के साथ हर जीव-जन्तु का पहला और आखरी रिश्ता जल की बूँद से ही है। पक्षियों की उड़ान अगर आसमान में पंख खोले होती है तो उनकी भूख-प्यास का रिश्ता पानी से भी सदियों पुराना है। इसमें चार मुख्य गुण इन्हें जोड़ते हैं। शब्द,स्पर्श, रूप और गंध इसमें निहित हैं। यह उत्प्रेरक का कार्य करता है। जल में एक गुण रस का है जो पदार्थ को स्वाद तक पहुंचाता है। खट्टा मीठा, कडुवा, तीखा हर स्वाद पानी में घुलकर अपना रूप मिटा देता है।
पानी का कोई रंग-रूप नहीं होता पर रंगों से पानी का दोस्ताना भी खूब है। पानी बिना हर रंग बेरंग है। 'बिन पानी सब सून' दोहे की ये पक्तियां सत्य से भरी हैं। पानी को स्वास्थ्य और अरोग्य की कुंजी भी कहा गया है। पानी के मूलतः दो रूप हैं। यह आपका बनें तो संहारक वरना जीवनदायक ही है। पानी के जैसा स्वभाव सर्वोत्तम माना गया है। बहता पानी स्वच्छ तथा निर्मल व पीने योग्य माना जाता है। पानी की प्रकृति तथा रूप के बारे में संत कबीर दास जी ने एक दोहे में कहा है- पानी बाढ़े नाव में घर में बाढ़े दाम,दोनों हाथ उलीचिये, यही सयानों का काम। हमारे पहाड़, नदियाँ मरण शीलता की ओर बढ़ रहे हैं तो यह हमारी चिंताओं का पहला हिस्सा होना चाहिए।

जल अपनी साधारणता के साथ असाधारण भूमिका को इस जीव जगत के लिए निभाता है। पानी का तत्व रूप जीवन का अंग है इसकी जरूरत भौतिक अवस्था के साथ है परन्तु पानी है प्रतीकात्मक रूप से साहित्य, अध्यात्म तथा दर्शन की लोकवाहिनी धाराओं में बहता है। चित्रकला, तथा लोककला रंगों में भी अपने बहुरूपों के साथ उतरता है। यह यथार्थ रूप से कृतार्थ रूप तक सर्वव्याप्त है, सर्वसुलभ है। मूलाधार रूप से जीवन के अनेकों निहितार्थ साथ लेकर जुड़ रहा है। अपने तीनों रूप हवा, द्रव्य तथा ठोस के समय प्राणी मात्र को जीवन को उम्मीदों से बांधे रखता है। जीवन धारा के साथ जो जलधारा बहती है तो अनंत वर्षों से सृष्टि के साथ बह रही है। सृष्टि का यह आदित्य है। अपसूक्त ऋग्वेद में लिखी जल पर विश्व में पहली कविता है।

पानी से हरियाली और हरियाली से खुशहाली, इस मुहावरे में जीने का सूत्र है। जल मंत्र पृथ्वी उच्चारित करती है तो जीवन मंत्र गूंजता है जल में हलचल में रहे हर पल, जीवन में हो जल थल, होगा तब कल जल हर जीवन की जरूरतों में ढ़लता है ताल, तलैया, बावड़ी, झील, कुँआ, जहां पानी संरक्षित रहता था वो स्रोत तो अब सूखकर मिट गये या मिटा दिए गए। जीवन के अतिरिक्त मन के गहरे ताल में भी जल तरंग बजती है। अन्तरंग में जल के रंग खिलते हैं। आंसू आहें, प्रेम, पीड़ा सब जल के वो भाव रूप हैं जो मन के धरातल पर बहते और अपनी बहुमुखी कहानी कहते हैं। मनुष्य का पानीदार होना आंतरिक अच्छाई से जुड़ा है। नजरों का पानी मर जाना, संवेदना का मर जाना है, यह एक मुहावरा है।

" बहता पानी कहे कहानी" एक पुरानी कहावत है। रुका हुआ पानी दूषित होता रहता है। बहता पानी जीवन धारा बनकर गंगाजल के समान हो जाता है। पानी रंगहीन होकर हर रंग में मिलकर उसका रंग ले लेता है। पानी से दूसरे द्रव्यों, औषधियों की गुणवत्ता बढ़ जाती है। पानी का सेवन औषधि के समान कार्य करता है। कोई भी औषधि पानी के साथ ली जाए तो शरीर उसे शीघ्र ग्रहण करता है। हमारा शरीर पानी की 72 प्रतिशत मात्रा संचित रखता है, उससे इंसान 10 दिन बिना पानी के जी सकता है।'

पानी से स्वर और संगीत भी है। संगीत की प्रकृति अपने आपको लुभाती है। इसे अपनाकर झरने नदियाँ, जलधारायें, प्रपात वर्षा, हिमपात, अपनी कल-कल, छल-छल ध्वनियों के संगीत सृजन करते हैं। पानी तन और मन को भी तरोताजा रखता है। निदाफाज़ली ने खूब कहा है। कि 'अल्ला मेघ दे, पानी दे पानी दे, गुड़धानी दें।" पानी से फसलें जीवन पाती हैं। पानी के सैंकड़ों नाम हैं उसी के अनुरूप सैंकड़ों काम हैं। पानी के गुण विद्युत समान अदृश्य होते हैं।

 "सूर्योदय के समय जो व्यक्ति प्रतिदिन आठ अंजलि जलपान करता है। वह रोग मुक्त होकर जीता है। बुढ़ापा उसके पास नहीं आता और वह सौ वर्ष से अधिक आयु प्राप्त करता है। " 'पानी गए न ऊबरे मोती मानुष चून।' यह प्रसिद्ध दोहा आज भी सत्य है।

आयुर्वेदिक तथा योगिक उपचार दृष्टि से पानी भीतरी अंगों को विशुद्ध करता है। विनोबा भावे ने कहा था कि पानी ग्रहण करने से पेट का अल्सर भी ठीक हो जाता है। जल, नीर, वारधि, पानी जाने कितने ही नाम है जिससे जल को अमिषित किया जाता है। यह रंगहीन, गंधहीन, रूपहीन, स्वयंहीन तथा स्वादहीन द्रव्य जीवन का आधार माना जाता है। इसे अन्य किसी भी प्रकार के गुणों से विभूषित करें पर सर्वोपरि एक रूप है, यह है उसका लोकोपयोगी होना तथा चिकित्सीय गुणों से भरा होना। जिसका सार संक्षेप में जनोपयोगी पक्षों को उभारकर देखा जा सकता है। ये पक्ष जिंदगी के अंधेरों पक्षों के लिए जलते दीप के समान हैं।

भारतीय संस्कृति तथा जीवन दर्शन में जल को सुजलाम, सुफलाम, मलयज शीतलाम से विभूषित किया गया है। यह अवधारणा हमारी राष्ट्रीय प्रेम भावना से जुड़ी है। हमारे राष्ट्रीय गीत की मूल भावना भी इस स्वरूप को शब्दों में बांधती है। सुफलाम को हम अपने मंतव्य से जोड़कर देखते हैं। आज हवा पानी के प्रदूषण को हम कितना भी अलग रखें परन्तु सुजलाम का सुफलाम से परिणित होना तथा लाभकारी होना तभी संभव होगा जब इस की व्यापक अवधारणाओं को सामने रखकर हम अपने मंतव्य और गंतव्यों के साधनों की तरफ मोड़ना जरूरी समझकर चलें। जिन प्रदेशों ने सुभलाभ गुण को अपनाया हैं उन्हें हरित क्रांति के रूप में सुफल मिला है। हमारे देश में जल की मान्यता जन्म से मरण तक है। जल कलश को मंगल विधान से जोड़कर मृत्यु के बाद जल भरा घड़ा फोड़ना, जल को हाथ में लेकर संकल्प लेना, जल से शुद्धि करना, सभी मान्यता प्रतीक रूप से समपन्न किए जाते है।

"पानी से हरियाली और हरियाली से खुशहाली, इस मुहावरे में जीने का सूत्र है। जल मंत्र पृथ्वी उच्चारित करती है तो जीवन मंत्र गूंजता है जल में हलचल में रहे हर पल, जीवन में हो जल थल, होगा तब कल। जल हर जीवन की जरूरतों में ढलता है ताल, तलैया, बावड़ी, झील, कुँआ, जहां पानी संरक्षित रहता था वो स्रोत तो अब सूखकर मिट गये या मिटा दिए गए। जीवन के अतिरिक्त मन के गहरे ताल में भी जल तरंग बजती है।"

प्राचीन अवधारणा है कि हमारा शरीर पांच तत्वों से निर्मित है। ये तत्व 'क्षिति' जल, पावक गगन समीरा' नाम से विश्लेषित किए जाते हैं। ये प्रकृति के उद्गम तत्व सृष्टि संचालन के साथ व्यापक रूप में जुड़ते हैं तथा हमारे शरीर को लघु रूप में इनका संतुलन ही निरोग बनाए रखता है। इन पांच तत्वों में एक अहम तत्व जल है जल को आयुर्वेद अमृत समान मानता है। इस अमृत को संरक्षित रखना तथा प्रदूषण से बचाना हमारा जीवन ध्येय होना समय की मांग है। एक रिपोर्ट कहती है कि पृथ्वी का भू-जल तेजी से घटना एक उच्च स्तरीय विचार तथा चिंता का विषय है। संसार में जितना पानी है। उसका दो प्रतिशत मनुष्यों के लिए उपयोगी है।

हम पानी को पांच तत्वों से बाहर रखकर उसकी छोटी-छोटी जरूरतों की आपूर्ति की गुणवत्ता को देखें तो उसकी उपलब्धता और आवश्यकताओं के बीच प्राकृतिक संतुलन बने रहने या बिगड़ने से अलग रूप में बूंद-बूंद जल जन उपयोगी है। जल जीवन का सम्बल हैं।

प्राकृतिक चिकित्सा में प्रयोग की दृष्टि से जल गुणकारी होने के साथ बहुउपयोगी माना गया है। जलोपचार में, पानी की पट्टियाँ, एनिमा, वाष्प स्नान, कटिस्नान, टब स्नान के प्रयोगों से विभिन्न रोगोपचार की ये क्रियाएं अमल में लायी जाती हैं। प्रतिदिन साफ पानी से नहाना एक अनिवार्य शुद्धि का उपक्रम है तथा जीवन क्रिया मानी जाती हैं। स्नान से शरीर की थकान मिटती है तथा मनुष्य एवं अन्य जीवों को ताजा रखती है। शरीर की सभी प्रणालियां तथा मांसपेशियां पुष्ट होती हैं। गर्मी की अधिकता में शीतल जल स्नान भी आराम देता है। जल से रोगोपचार की सूची लम्बी है। सिर्फ जल की महत्ता के बहुआयामों को दर्शाना ही हमारा उद्देश्य है। भाप स्नान, पाद स्नान भी उसके अंग हैं। शरीर में मौजूद पानी जब पसीना बहाता है तो कितने ही शरीर के दूषित तत्वों को बाहर कर देता है। योग द्वारा प्रणीत बहुरूपी क्रियायें भी पानी के विभिन्न उपयोगों से युक्त हैं। जलनेति, कुंजल, सूत्रनेती आदि  प्रचलित क्रियाओं के रूप हैं। स्वच्छ पानी अगर रोगों का निदान करने में सहायक होता है। वहीं दूषित जल विभिन्न रोगों का जनक भी है।

"प्राचीन अवधारणा है कि हमारा शरीर पांच तत्वों से निर्मित है। ये तत्व 'क्षिति, जल, पावक गगन समीरा' नाम से विश्लेषित किए जाते हैं। ये प्रकृति के उद्गम तत्व सृष्टि संचालन के साथ व्यापक रूप में जुड़ते हैं तथा हमारे शरीर को लघु रूप में इनका संतुलन ही निरोग बनाए रखता है। इन पांच तत्वों में एक अहम तत्व जल है। जल को आयुर्वेद अमृत समान मानता है। इस अमृत को संरक्षित रखना तथा प्रदूषण से बचाना हमारा जीवन ध्येय होना समय की मांग है।"

पानी उपचार में दवा का सहायक तत्व होता है। जल स्वयं में औषध गुण सम्पन्न है । यह जीवन है तथा स्वास्थ्य से भरा है। जैसा कि हम जानते हैं कि धरती पर मौजूद सभी पदार्थों में पानी सबसे साधारण, सबसे अहम और आश्चर्यजनक है फिर भी लोग इसके बारे में बहुत कम जानते हैं। जल के बारे में दो प्रकार से हम उसके गुणों का बखान कर सकते हैं। एक प्रयोग की दृष्टि से, दूसरे उसके अंतः निहित महत्व की दृष्टि से जल मानव शरीर के अलावा फसलों का, पौधों का जीवनदाता है। पानी के उपयोग को समयबद्धता से तथा सेवा विधि से भी चिकित्सा के लिए माना गया है। सेवन विधि, मात्रा तथा समय के साथ उसका ताप मौसमानुसार होना भी आवश्यक होता है। यथाविधि तथा जरूरी मात्रा को देखना भी आवश्यक होता है। जल के विषय में अनेकों सूत्र तथा उक्तियाँ पुस्तकों में संरक्षित हैं। जल को बैठकर ही उदरस्थ करना चाहिए। 'पानी रे पानी तेरा रंग कैसा, जिसमें मिला दो, लगे उस जैसा, ये फिल्मी गाने के बोल हैं। पानी तत्व में मिलकर अपना वजूद मिटा देता है। यह उत्प्रेरक तथा मध्यस्थता का काम करता है। मनुष्य शरीर को आवश्यकतानुसार प्रतिदिन ढाई लीटर पानी पीना चाहिए।

ऐसा माना गया है। जल संकट के आसन्न कठिन समय में जल और जीवन को एक-दूसरे का पर्याय मानकर उन्हें विभिन्न रूपों में पारिभाषित किया जाता है। लोक जीवन में जल की भूमिका की विषाद विवेचना की गयी है। दार्शनिकों, वैज्ञानिकों, चितंको, समाज शास्त्रियों ने जल को विविध रूप में देखा, समझा और माना है। जल से वाष्प, वाष्प से बादल, बादल से बूंद, बूंदों से जीवन धारा बनने की यात्रा, अनेक घटायें, अनेक रूप, अनेक स्वाद तथा अनेकों रंग रूप लिए होती है। बूंद में समुंदर समाने की अवधारणा से, बूंद के समुंदर होने तक की यात्रा बहु चक्रीय होती है। चक्रीयता में जीवन का होना माना गया हैं। जीवन और मृत्यु के बीच कोई सीधी रेखा नहीं है। जल सृष्टि को नव रूप देता है, जल से ही जागरण, पुनर्जागरण और जीवन का लोकालोक जुड़ा है। जल पुराने को वृद्धि, नये को नव आत्मा और नवरूप देता है। जल से ही जग सृष्टि का आधार टिका है। संसार में नया को उपजाते तथा पुराने को हरा-भरा रखने, फैलने का काम जल की क्षमता का ही जयगान है। जीने की लय जल से ही उद्भूत होती है। जल से सृजितलय और संगीत में ही जीवन नाद छिपा है।

जल को ऋगवेद में औषधि रूप में माना है जिस प्रकार मेघ और समुद्र का अटूट रिश्ता है उसी प्रकार मेघ से विद्युत ऊर्जा पाकर बार-बार मेघ जीवन रचने की तरफ उमड़ता है। लोक जीवन में जल की महिमा का गान वेदों में खूब किया गया है। नदी, तालाब, बावड़ी, कुँआ, जल का लोकाधार लेकर रहते थे पर आज इनका अस्तित्व नहीं रहा।

सृष्टि का सूत्रपात जल से होने से मानना इस कथन की पुष्टि करता है कि जल और जीवन एक ही उद्गम के स्रोत हैं। जल से लोक विश्वास तथा आस्थायें जुड़ी हैं। पुराणों में नदियों को विराट पुरुष की नाड़ियों के समान कहा गया है। नदियों को पूजनीय या देवी तुल्य मानने वाले हमारे देशवासी परम्परागत जल स्रोतों को बचा पायें। जल संकट निरंतर बढ़ने की ओर है। जलाधार, जल व्यवहार जल का संसार, जलाचार तथा जल विचार लेकर ही जल के संकट को कम या दूर किया जा सकता है। जल उनकी बहती धारा में कहती है मुझे बहने दो, अपनी व्यथा कहने दो, नदी बनकर कभी हिम बनकर, कभी भूमिका गर्म में, आकाश के बादलों में, मुझे हर रूप में, संरक्षित रहने दो। अन्त में कह सकते हैं कि मुश्किल है तो हल भी होगा, आज अच्छा है तो कल भी होगा, चेत गये हम अगर समय पर, जीवन में भरपूर जल भी होगा।

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स्रोत- जल चेतना खण्ड 8 अंक 1 जनवरी 2019

 

 

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Post By: Shivendra
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