लवणीय जल सिंचाई द्वारा ईसबगोल (प्लांटेगो ओवेटा) की खेती (Cultivation of Isabgol (Plantago ovata) by saline water irrigation)

ईसबगोल (प्लांटेगो ओवेटा) की खेती
ईसबगोल (प्लांटेगो ओवेटा) की खेती

ईसबगोल (प्लांटेगो ओवेटा)

ईसबगोल अपने बीजों व भूसी के कारण महत्वपूर्ण औषधीय फसल है। इसकी भूसी का उपयोग औषधि के रूप में कब्ज, पेचिश, दस्त इत्यादि अनेक पेट के विकारों में उपचार के लिए किया जाता है। भारतवर्ष में इसके बीज व भूसी का वार्षिक उत्पादन क्रमशः 13000 टन व 3200 टन होता है, जिसका 90 प्रतिशत विदेशों में निर्यात कर दिया जाता है। इस प्रकार ईसबगोल के निर्यात द्वारा भारतवर्ष का औषधीय पौधों में विदेशी मुद्रा अर्जित करने में प्रथम स्थान है।

जलवायु

भारतवर्ष में ईसबगोल की खेती सर्दियों के मौसम में की जाती है। साधारणतया ईसबगोल की खेती के लिए ठंडा व सूखा मौसम अच्छा व अनुकूल रहता है। सर्दी में वर्षा होने पर फसल में नुकसान हो जाता है।

मृदा

ईसबगोल की खेती किसी भी प्रकार की भूमि, जिसका जलनिकास अच्छा हो, में की जा सकती है। लेकिन फिर भी ईसबगोल की खेती के लिए हल्की बलुई दोमट से उर्वर दोमट भूमि, जिसका जलनिकास अच्छा तथा भूमि का पीएच मान 7.2 से 7.9 के बीच हो, अच्छी रहती है।

भूमि की तैयारी

भूमि को एक बार डिस्क हैरो से जोतने के बाद दोबारा कल्टीवेटर से जुताई करनी चाहिए। बाद में पाटा लगाकर मिट्टी को ढेले रहित बना देना चाहिए। खेत में पानी की सुविधा के लिए 6.0 मीटर गुणा 3.0 मीटर की क्यारियां बना लेनी चाहिए जिससे कम समय में अधिक भूमि की सिंचाई हो सके।

उन्नतशील प्रजातियाँ

ईसबगोल की उन्नतशील प्रजातियाँ बहुत ही कम उपलब्ध है, जिनमें गुजरात ईसबगोल -1 एवं 2 तथा एच 1-5 जो गुजरात, राजस्थान व अन्य पड़ोसी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। उत्तर भारत की जलवायु की आवश्यकतानुसार केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान, लखनऊ द्वारा "निहारिका" प्रजाति विकसित की गयी है।

बीज की मात्रा

ईसबगोल की छिड़कवां विधि से बुवाई करते हैं। इस विधि द्वारा बुवाई करने पर 10-12 कि.ग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर आवश्यक होता है।

बुवाई विधि

साधारणतया ईसबगोल की बुवाई छिड़कवां विधि से करते हैं लेकिन बुवाई कतारों में भी कर सकते हैं। दोनों विधियों से बुवाई करने पर उपज में ज्यादा अन्तर नहीं आता है।

बीजोपचार

बीजों से जुड़ी बीमारियों की रोकधाम के लिए टी.एम.टी.डी. (टेट्रामिथोलथ्रियम डाईसल्फाइड) अथवा कोई भी पारायुक्त दवा द्वारा 3 ग्राम / कि.ग्रा. बीज की मात्रा के हिसाब से उपचारित करके बोना चाहिए।

उर्वरक

ईसबगोल की फसल को ज्यादा उर्वरकों की आवश्यकता नहीं होती है, परन्तु अच्छी फसल के उत्पादन के लिए करीब 25 कि.ग्रा. नत्रजन एवं 25 कि.ग्रा. फॉस्फोरस प्रति हैक्टर बोने के समय व 25 कि.ग्रा. नत्रजन खड़ी फसल में समय-समय पर सिंचाई के बाद देनी चाहिए।

सिंचाई

ईसबगोल की फसल से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए करीब 4-5 सिंचाईयों की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बीज बोने के पहले तथा दूसरी सिंचाई बीज बोने के 20-25 दिन बाद करनी चाहिए। इसके बाद आवश्यकतानुसार 30-70 दिनों पर सिंचाई करते रहना चाहिए । ईसबगोल में आखिरी महत्त्वपूर्ण सिंचाई बालियों में दूध बनने की अवस्था या बीज भरने की अवस्था में करनी चाहिए।

निराई-गुड़ाई

बुवाई के 20-25 दिनों बाद पहली निराई-गुडाई की आवश्यकता होती है। इसके बाद आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करते हैं।

बीमारियां

ईसबगोल की फसल में कई बीमारियों का प्रकोप हो सकता है जैसे- डेम्पिंग ऑफ, बिल्ट डाउनी मिल्डयू पाउडरी मिल्डयू एवं लीफ ब्लाइट इत्यादि । विल्ट लगने पर डाइथेन एम-45 अथवा डाइथेन जेड-78 का 2.0 से 2.5 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें, पाउडरी मिल्डयू लगने की दशा में केराथान डब्ल्यू डी का 0.2 प्रतिशत छिड़काव करना चाहिए।

फसल की कटाई

ईसबगोल की बुवाई के दो महीने बाद बालियों एवं उनके फूलों का निकलना शुरू हो जाता है तथा इसकी फसल मार्च अथवा अप्रैल में बुवाई के 120 दिन पश्चात् कटाई के लिए तैयार हो जाती है।

उपज

ईसबगोल का औसत उत्पादन लगभग 10 से 12 कुंटल प्रति हेक्टेयर है लेकिन खारे पानी वाले क्षेत्रों में इसकी खेती करने पर 8 से 10 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार ली जा सकती है।

लवणीय जल सिंचाई परिणाम

लवणीय जल की परियोजना, राजा बलवन्त सिंह महाविद्यालय, बिचपुरी, आगरा में तीन से चार वर्ष तक किये गये परीक्षण के परिणामों (तालिका 3 ) के अवलोकन से ज्ञात होता है कि ईसबगोल की फसल की लवणीय जल द्वारा सिंचाई करने पर अंकुरण प्रतिशत सांख्यिकीय दृष्टि से सार्थक था। सबसे अधिक अंकुरण 76.5 प्रतिशत नहरी जल द्वारा सिंचाई में तथा सबसे कम 26.1 प्रतिशत वैद्युत चालकता : डेसी. / मीटर की जल सिंचाई में हुआ। इसी प्रकार पौधों की लम्बाई, किल्लों की संख्या प्रति पौधा भी इन्हीं उपचारों में सबसे कम तथा सबसे अधिक पाई गई थी। ईसबगोल के बीजों एवं भूसी की उपज भी सांख्यिकीय दृष्टि से सबसे अधिक नहरी जल एवं वैद्युत चालकता 2 डेसी. / मीटर की सिंचाई में 8.8 एवं 7.9 कुंटल / हेक्टेयर प्राप्त हुई तथा सबसे कम उपज वैद्युत चालकता 8 डेसी. / मीटर में 5.8 कुंटल / हेक्टेयर प्राप्त हुई ( तालिका 4 ) । अतः परिणामों से ज्ञात होता है कि ईसबगोल की फसल को वैद्युत चालकता सिंचाई जल की 8 डेसी. / मीटर तक की लवणता में उगाया जा सकता है।

लवणीय जल सिंचाई के द्वारा ईसबगोल की फसल
लवणीय जल सिंचाई के द्वारा ईसबगोल की फसल 

तालिका 3 सिंचाई जल की लवणता का ईसबगोल के वृद्धि कारकों पर प्रभाव

उपचार     अंकुरण   (प्रतिशत)
 
बालियों की संख्या      / पौधा
 
बाली की लम्बाई     (सॅमी.)
 
 प्रति बाली दानों         की संख्या
 

   दानों का भार   प्रति बाली (ग्राम) 

1000 दानों का    भार (ग्राम) 

  जल की वैद्युत चालकता (डेसीसीमन्स / मीटर )

  नहरी जल       90.0          16.6         4.9       77.4       0.13      1.77
      4       89.9          15.8        4.8      74.5      0.11     1.75
      6       87.2          14.7        4.0       73.1      0.11     1.74 
      8       68.0          12.6         3.2       71.2       0.10      1.65

क्रांतिक अन्तर   (0.05)    

      3.8
 
         1.2        0.2       4.2       0.06     1.06 

तालिका 4: सिंचाई जल की लवणता का ईसबगोल की उपज पर प्रभाव 
  उपचार     उपज / पौधा (ग्राम)     उपज (कुंटल / हैक्टर)     संबंधित          उपज          (प्रतिशत)     शुद्ध आय (रुपये /            हैक्टर)    लाभःलागत      अनुपात
       दाना       भूसी       दाना       भूसी      
   जल की वैद्युत चालकता ( डेसीसीमन्स / मीटर ) 
 नहरी जल    2.43    4.93    8.80     26.7      100       50,250      2.33
     4    2.33     4.50     7.90      25.6        90         42,360      1.96 
     6   2.20     4.23     7.20      24.1        82        39,610      1.83 
     8   1.90    3.40     5.80      19.1        66         26,330      1.21 

क्रांतिक अन्तर (0.05) 

  0.35    0.45    1.40     02.0         _           _        _  


स्रोत-अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें:
प्रभारी अधिकारी, अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना "लवणग्रस्त मृदाओं का प्रबंध एवं खारे जल का कृषि में उपयोग"
राजा बलवंत सिंह महाविद्यालय, बिचपुरी, आगरा-283105 ( उत्तर प्रदेश)
ईमेल: aicrp.salinity@gmail.com

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