लॉकडाउन में पर्यावरण के लिए बहुत सारी अच्छी खबरों के बीच हवा से विषैली गैसों की कमी की भी है। वातावरण में पीएम-2.5 और पीएम-10 की मात्रा में कमी से वातावरण में सल्फर डाईऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड आदि गैसों की भारी गिरावट देखी जा रही है। ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार ये गैसें कम होने से ग्लेशियर के लिए काफी फायदे का सौदा दिख रहा है।
गंगा-यमुना का पानी हुआ साफ, काठमांडू से हिमालय का दीदार,लॉकडाउन ने चूस लिया प्रदूषण का जहर, लॉकडाउन से पर्यावरण के घाव भर रहे हैं आदि खबरें साफ कह रही हैं कि पर्यावरण के लिए काफी फायदेमेद रहा है, लॉकडाउन।
हिन्दुस्तान में छपी एक रिपोर्ट बताती है कि कोरोना से बचाव के लिए लागू किए लॉकडाउन से वायुमंडल की सेहत में बड़ा सुधार हुआ है। एरीज के वैज्ञानिकों का कहना है पहली बार वायुमंडल जहरीली गैसों से लगभग मुक्त है। जंगलों में आग की घटनाएं न होने से ब्लैक कार्बन और मोनो ऑक्साइड का स्तर भी सामान्य है। जहरीली गैसों के अलावा पर्यावरण प्रदूषण की मात्रा 70 प्रतिशत तक कम हुई है।
क्या कहते हैं आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान एवं शोध संस्थान (एरीज) के वैज्ञानिक
आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान एवं शोध संस्थान (एरीज) के वायुमंडलीय वैज्ञानिकों के अनुसार पिछले वर्षों तक अप्रैल की शुरुआत में ही प्रदूषण बढ़ने लगता था। इस समय तक पर्यावरण में पार्टिकुलेटेड मैटर यानि पीएम 2.5 के स्तर में 50 से 60 फीसदी इजाफा होना सामान्य बात थी। इस वर्ष ये दस फीसदी भी नहीं है। पिछले सालों तक अप्रैल के पहले सप्ताह में जंगलों की आग से एक माईक्रोग्राम प्रति घन मीटर में ब्लैक कार्बन में 15 से 20 गुना तक बढ़ जाता था। इसमें कार्बन-डाई-ऑक्साइड, मोनो ऑक्साइड समेत अन्य जहरीली गैसें शामिल होती हैं। इस बार इसकी वृद्धि नहीं के बराबर है।
‘वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलॉजी’ के वैज्ञानिक कर रहे हैं शोध
कोरोना वायरस को लेकर जहां दुनिया भर के वैज्ञानिक बीमारी से निपटने को लेकर तमाम शोध कर रहे हैं, वहीं लॉकडाउन की वजह से हिमालयी क्षेत्रों में वातावरण और ग्लेशियर पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन भी शुरू कर दिया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा घटने का असर ग्लेशियर पर पड़ेगा। देहरादून स्थित ‘वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलॉजी’ के वैज्ञानिक देश-दुनिया में लॉकडाउन के चलते वातावरण में आए बदलाव और हिमालय की जियोलॉजी खासकर ग्लेशियर के पिघलने पर पड़ने वाले प्रभाव के अध्ययन में जुट गए हैं।
अमर उजाला की एक रिपोर्ट बताती है कि शोध में जुटे वैज्ञानिकों का मानना है कि भारत समेत पूरी दुनिया में लागू किए गए लॉकडाउन का पर्यावरण पर खासा असर पड़ा है और हिमालयी क्षेत्र की जियोलॉजी पर भी इसका व्यापक असर दिखाई देगा।
‘वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलॉजी’ के निदेशक डॉ कलाचंद साईं ने बताया कि लॉकडाउन की वजह से वाहनों कारखानों का संचालन समेत तमाम गतिविधियां पूरी तरह ठप हैं। इससे वातावरण में पीएम-2.5 और पीएम-10 की मात्रा में कमी से सल्फरडाई ऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड गैसों की भारी गिरावट दर्ज की गई है।
साईं का कहना है कि वातावरण में आए इस बदलाव के चलते ग्लेशियर पिघलने की गति में भी कमी आएगी, लेकिन इसकी दर क्या होगी इसका व्यापक अध्ययन से ही पता चलेगा।
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